ਪਪੀਤਾ ਦੀ ਖੇਤੀ

आम जानकारी

यह उष्णकटिबंधीय फल है जिसका मूल स्थान मैक्सिको है। यह “कैरिऐसी” परिवार से संबंधित है। यह एक तेजी से बढ़ने वाला पौधा है जो लंबे समय तक फल देता है और इसमें उच्च मात्रा में पोषक तत्व होते हैं। भारत को पपीता के सबसे बड़े उत्पादक के रूप में जाना जाता है। इसे गमलों, ग्रीन हाउस, पॉलीहाउस और कंटेनर में उगाया जा सकता है। इसके स्वास्थ्य लाभ भी हैं जैसे कि कब्ज, कैंसर को दूर करने में मदद करता है, कोलेस्ट्रॉल को कम करने में मदद करता है और कैंसर कोशिकाओं से लड़ने में मदद करता है। यह विटामिन ए और विटामिन सी का उच्च स्त्रोत है। भारत में महाराष्ट्र, कर्नाटक, पश्चिमी बंगाल, उड़ीसा, जम्मू और कश्मीर, बिहार, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, तामिलनाडू और आंध्र पदेश पपीते की खेती करने वाले मुख्य राज्य हैं।
 
हिमाचल प्रदेश में, पपीते की खेती समुद्री तल से 800 मीटर की ऊंचाई वाले क्षेत्रों में की जाती है। इसे मुख्यत: ऊना, बिलासपुर, हमीरपुर, कांगड़ा और पाउंटा क्षेत्रों में उगाया जाता है और सोलन में इसकी खेती नालागढ़ क्षेत्रों में की जाती है।
 

मिट्टी

इसे मिट्टी की व्यापक किस्मों में उगाया जा सकता है। अच्छे निकास वाली पहाड़ी मिट्टी पपीते की खेती के लिए उपयुक्त होती है। रेतली और भारी मिट्टी में इसकी खेती ना करें। पपीते की खेती के लिए मिट्टी की पी एच 6.5-7.0 होनी चाहिए।

प्रसिद्ध किस्में और पैदावार

Washington: इस किस्म  के फलों में कम बीज होते हैं, फल का आकार बड़ा, पीले रंग का गुद्दा, खाने में मीठा होता है। नर पौधा मादा पौधे से छोटा होता है, और पौधा थोड़े छोटे आकार का होता है।
 
Honey Dew : इस किस्म के फल का आकार बड़ा और बीज कम होते हैं। फल का स्वाद थोड़ा मीठा होता है, फल स्वाद होता है और नर पौधा मादा पौधे से छोटा होता है और पौधे का कद मध्यम होता है।
 
Coorg Honey: इस किस्म के फल में बहुत कम बीज होते हैं, फल का आकार बड़ा, यह Honey Dew किस्म से बहुत कम मीठा होता है और पौधे का कद बड़ा होता है। नर और मादा फल एक ही वृक्ष पर फल देते हैं।
 
C O-2:  इसके फल बड़े आकार के और पौधा मध्यम कद का होता है।
 
Pusa Delicious:   इसके फल मध्यम आकार के, गुद्दा गहरे संतरी रंग का, अच्छी सुगंध वाला और स्वाद में अच्छा होता है।
 
Pusa Dwarf: पौधे का ज़मीनी स्तर से  30 सैं.मी. कद प्राप्त करने के बाद फूल निकलने शुरू होते हैं। फल का आकार मध्यम होता है। यह किस्म सीढ़ीनुमा खेती के लिए उपयुक्त है।
 
दूसरे राज्यों की किस्में
 
Co-1, Co-3, Solo, Pusa Nanha, Ranchi Selection, Coorg Green Sunrise Solo, Taiwan and Coorg Green किस्में विभिन्न राज्यों में उगाने के लिए उपयुक्त हैं।
 

ज़मीन की तैयारी

पपीते की खेती के लिए, अच्छी तरह से तैयार ज़मीन की आवश्यकता होती है। मिट्टी को भुरभुरा करने के लिए ज़मीन को समतल करना ज़रूरी है। आखिरी जोताई के समय गली हुई रूड़ी की खाद डालें।

बिजाई

बिजाई का समय
बसंत के मौसम में फरवरी-मार्च में बिजाई की जाती है, मॉनसून के मौसम में, जून जुलाई के महीने में बिजाई की जाती है और पतझड़ के मौसम में अक्तूबर नवंबर के महीने में बिजाई की जाती है।
 
फासला
पौधे से पौधे में 3x3 मीटर फासले का प्रयोग करें।
 
बीज की गहराई
बीजों को 1 सैं.मी. की गहराई पर बोयें।
 
बिजाई का ढंग
प्रजनन विधि का प्रयोग किया जाता है।
 

पनीरी की देख-रेख और रोपण

नए पौधों को 25x10 सैं.मी. लंबाई, चौड़ाई वाले पॉलीथीन के बैगों में तैयार किया जाता है। इन पॉलीथीन बैगों में पानी के उचित निकास के लिए निचले हिस्से में 1 मि.मी. अर्द्ध व्यास के 8-10 छेद करें। रूड़ी की खाद, मिट्टी और रेत के समान अनुपात से पॉलीथीन बैगों को भरें। मुख्य तौर पर पॉलीथीन बैग में जुलाई के दूसरे सप्ताह से सितंबर के तीसरे सप्ताह तक बीजों को बोया जाता है। बिजाई से पहले, कप्तान 3 ग्राम से प्रति किलो बीज का उपचार करें। नये निकले पौधों को उखेड़ा रोग से बचाने के लिए कप्तान 0.2 प्रतिशत का मिट्टी में छिड़काव करें। नए पौधों की रोपाई अक्तूबर नवंबर महीने में की जाती है।

खाद

रोपाई के समय कोई भी खाद ना डालें। उसके बाद फरवरी महीने में N:P:K(19:19:19) 1 किलो दो बार डालें।

सिंचाई

मौसम, फसल की वृद्धि और मिट्टी की किस्म के आधार पर सिंचाई करें।

पौधे की देखभाल

तने का गलना
  • बीमारियां और रोकथाम
तना गलन : पौधे के तने पर पानी जैसे गीले रंग के धब्बे दिखाई देते हैं। ये धब्बे पौधे के सभी तरफ फैल जाते हैं। पौधे के पत्ते पुरी तरह विकसित होने से पहले ही गिर जाते हैं।
 
उपचार : इस बीमारी की रोकथाम के लिए एम-45@ 300 ग्राम को 150 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।
 
पत्तों के धब्बा रोग
पत्तों पर सफेद धब्बे : पत्तों की ऊपरी सतह पर सफेद रंग के धब्बे विकसित हो जाते हैं। ये धब्बे प्रभावित पौधे के मुख्य तने पर भी पड़ जाते हैं। इसके कीट पौधे को अपने भोजन के रूप में प्रयोग करते हैं। गंभीर हमले के कारण पत्ते गिर जाते हैं और फल समय से पहले ही पक जाते हैं।
 
उपचार : थायोफनेट मिथाइल 70 प्रतिशत डब्लयु पी 300 ग्राम को 150-160 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ में स्प्रे करें।
 
जड़ गलन
जड़ गलन या सूखा : इस बीमारी के कारण जड़ें गल जाती हैं जिसके कारण पौधा अपने आप ही सूख जाता है।
 
उपचार : इस बीमारी की रोकथाम के लिए साफ 400 ग्राम को 150 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।
 
पपीते का चितकबरा रोग
पपीते का चितकबरा रोग : पौधे के ऊपरी नए पत्तों पर इसके लक्षण देखे जा सकते हैं।
 
उपचार : इस बीमारी की रोकथाम के लिए एम-45 या कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 400 ग्राम को 150 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।
 
  • हानिकारक कीट और रोकथाम
चेपा : ये कीट पौधे का रस चूसते हैं। चेपा पौधों में बीमारी को फैलने में मदद करता है।
 
उपचार : इन कीटों की रोकथाम के लिए मैलाथियोन 300 मि.ली. को 150 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।
 
फल की मक्खी
फल की मक्खी : मादा मक्खी फल के मध्य में अंडे देती है, उसके बाद छोटे कीट फल के गुद्दे को अपने भोजन के रूप में लेते हैं जिससे फल नष्ट हो जाता है।
 
उपचार : इस कीट की रोकथाम के लिए मैलाथियोन 300 मि.ली. को 150 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।
 

फसल की कटाई

मुख्यत: फल के पूरा आकार लेने, हल्का हरा होने और शिखर से पीला होने पर फल की तुड़ाई की जाती है। पहली तुड़ाई रोपाई के 14-15 महीनों के बाद की जा सकती है। 4-5 तुड़ाइयां प्रति मौसम की जा सकती हैं।