चीकू फल

आम जानकारी

इसका मूल स्थान मैक्सिको और दक्षिण अमेरिका के अन्य देश हैं। चीकू की खेती मुख्यत: भारत में की जाती है। इसे मुख्यत: लेटेक्स के उत्पादन के लिए प्रयोग किया जाता है, जिसका उपयोग चूइंग गम तैयार करने के लिए किया जाता है। भारत में इसे मुख्यत: कर्नाटक, तामिलनाडू, केरला, आंध्रा प्रदेश, महाराष्ट्र और गुजरात में उगाया जाता है। चीकू की खेती 65 हज़ार एकड़ की भूमि पर की जाती है और इसका वार्षिक उत्पादन 5.4 लाख मीट्रिक टन होता है। इसका फल छोटे आकार का होता है जिसमें 3-5 काले चमकदार बीज होते हैं।

 

मिट्टी

इसे मिट्टी की कई किस्मों में उगाया जा सकता है लेकिन अच्छे निकास वाली गहरी जलोढ़, रेतली दोमट और काली मिट्टी चीकू की खेती के लिए उत्तम रहती है। चीकू की खेती के लिए मिट्टी की पी एच 6.0-8.0 उपयुक्त होती है। चिकनी मिट्टी और कैल्शियम की उच्च मात्रा युक्त मिट्टी में इसकी खेती ना करें।

प्रसिद्ध किस्में और पैदावार

Kaalipatti: यह अधिक उपज वाली और अच्छी गुणवत्ता वाली किस्म है। इसके फल अंडाकार और कम बीज वाले होते हैं।
 
Chhatri: यह Kaalipatti किस्म से कम गुणवत्ता वाली किस्म है। यह अधिक उपज वाली किस्म है।
 
Dhola Diwani: यह किस्म अच्छी गुणवत्ता वाली उपज देती है। इसके फल अंडाकार होते हैं।
 
Cricket ball: यह किस्म Calcutta large नाम से प्रसिद्ध है। इसके फल बड़े गोल आकार के, गुद्दा दानेदार होता है । ये फल ज्यादा मीठे नहीं होते।
 
Baramasi: उत्तरी भारत में यह प्रसिद्ध किस्म है। इसके फल गोल और मध्यम होते हैं। यह 12 महीने उपज देने वाली किस्म है।
 
Pot Sapota: पौधे गमले में ही फल देना शुरू कर देते हैं। इसके फल छोटे होते हैं जो कि अंडाकार और शिखर से तीखे होते हैं। फल मीठे और सुगंधित होते हैं।
 
दूसरे राज्यों की किस्में
 
Calcutta Round, Pala, Vavi Valsa, Pilipatti, Murabba, Baharu, and Gandhevi दूसरे राज्यों में उगाने वाली किस्म है।
 

ज़मीन की तैयारी

चीकू की खेती के लिए, अच्छी तरह से तैयार ज़मीन की आवश्यकता होती है। मिट्टी को भुरभुरा करने के लिए 2-3 बार जोताई करके ज़मीन को समतल करें।

बिजाई

बिजाई का समय
बिजाई मुख्यत: जुलाई-अगस्त के महीने में की जाती है।
 
फासला
बिजाई के लिए 8-10 मी. फासले का प्रयोग करें।
 

खाद

खादें (ग्राम प्रति वर्ष)

Age of tree

(in years)

NITROGEN

(gm)

PHOSPHORUS

(gm)

POTASSIUM

(gm)

1-3 years 50 20 75
4-6 years 100 40 150
7-10 years 200 80 300
11 years and above 400 160 450

 

प्रत्येक वर्ष 40 किलो गाय का गला हुआ गोबर प्रति पौधे में डालें। गाय का गला हुआ गोबर, फासफोरस और पोटाश की पूरी मात्रा दिसंबर महीने में और नाइट्रोजन की आधी मात्रा फरवरी महीने में डालें और बाकी बची मात्रा को मॉनसून शुरू होने पर डालें।

 

 

अंतर-फसलें

सिंचाई की उपलब्धता और जलवायु के आधार पर अनानास और कोकोआ, टमाटर, बैंगन, फूलगोभी, मटर, कद्दू, केला और पपीता को अंतरफसली के तौर पर उगाया जा सकता है।

सिंचाई

सर्दियों में 30 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करें और गर्मियों में 15 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करें। तुपका सिंचाई करें इससे 40 प्रतिशत पानी बचता है। शुरूआती अवस्था में पहले दो वर्षों के दौरान, वृक्ष से 50 सैं.मी. के फासले पर 2 ड्रिपर लगाएं और उसके बाद 5 वर्षों तक वृक्ष से 1 मीटर के फासले पर 4 ड्रिपर लगाएं।

खरपतवार नियंत्रण

नदीनों के अंकुरण से पहले ब्रोमासिल 800 ग्राम या डयुरॉन 800 ग्राम को शुरूआती 10-12 महीनों में डालें।

पौधे की देखभाल

  • हानिकारक कीट और रोकथाम
पत्ते का जाला: इससे पत्तों पर गहरे भूरे रंग के धब्बे पड़ जाते हैं। जिससे पत्ते सूख जाते हैं और वृक्ष की टहनियां भी सूख जाती हैं।
 
उपचार: नई टहनियां बनने के समय या फलों की तुड़ाई के समय कार्बरील 600 ग्राम या क्लोरपाइरीफॉस 200 मि.ली. या क्विनलफॉस 300 मि.ली. को 150 लीटर पानी में मिलाकर 20 दिनों के अंतराल पर स्प्रे करें।
 
कली की सुंडी
कली की सुंडी : इसकी सुंडियां  वनस्पति कलियों को खाकर उन्हें नष्ट करती हैं।
 
उपचार : क्विनलफॉस 300 मि.ली. या फेम 20 मि.ली. को 150 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ में स्प्रे करें।
 
बालों वाली सुंडी
बालों वाली सुंडी : ये कीट नई टहनियों और पौधे को अपना भोजन बनाकर नष्ट कर देते हैं।
 
उपचार : क्विनलफॉस 300 मि.ली. को 150 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ में स्प्रे करें।
 
पत्तों पर धब्बे पड़ना
  • बीमारियां और रोकथाम
पत्तों पर धब्बा रोग: गहरे जामुनी भूरे रंग के धब्बे जो कि मध्य मे से सफेद रंग के होते हैं देखे जा सकते हैं। फल और पंखुड़ियों के तने पर लंबे धब्बे देखे जा सकते हैं।
 
उपचार : कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 400 ग्राम को प्रति एकड़ में स्प्रे करें।
 
तने का गलना: यह एक फंगस वाली बीमारी है जिसके कारण तने और शाखाओं के मध्य में से लकड़ी गल जाती है।
 
उपचार: कार्बेनडाज़िम 400 ग्राम या Z- 78 को 400 ग्राम को 150 लीटर पानी में डालकर प्रति एकड़ में स्प्रे करें।
 
एंथ्राक्नोस: तने और शाखाओं पर, कैंकर के गहरे धंसे हुए धब्बे देखे जा सकते हैं और पत्तों पर भूरे रंग के धब्बे पड़ जाते हैं।
 
उपचार: कॉपर ऑक्सीक्लोराइड या एम-45, 400 ग्राम को 150 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें। 
 

फसल की कटाई

चीकू तुड़ाई के बाद पकना शुरू होते हैं। तुड़ाई जुलाई - सितंबर महीने में की जाती है। पर एक बात को ध्यान में रखना चाहिए कि अनपके फलों की तुड़ाई ना करें। तुड़ाई मुख्यत: फलों के हल्के संतरी या आलू रंग के और फलों में कम चिपचिपा दुधिया रंग होने पर की जाती है और इनको वृक्ष से तोड़ना आसान होता है। मुख्यत: 5-10 वर्ष का वृक्ष 250-1000 फल देता है।

कटाई के बाद

तुड़ाई के बाद, छंटाई की जाती है और 7-8 दिनों के लिए 20डिगरी सेल्सियस पर स्टोर किया जाता है। इसकी स्टोरेज क्षमता को 21-25 दिनों तक बढ़ाने के लिए इथाइलिन को निकालकर 5-10 प्रतिशत कार्बनडाईऑक्साइड को डाला जाता है। भंडारण के बाद लकड़ी के बक्सों में पैकिंग की जाती है और लंबी दूरी वाले स्थानों पर भेजा जाता है।