खुमानी फल

आम जानकारी

यह भारत के सूखे तापमान और मध्य पहाड़ी क्षेत्रों में उगने वाली महत्तवपूर्ण फल की फसल है यह रोज़ासियाए परिवार से संबंधित है। खुमानी का मूल स्थान चीन है और अब यह भारत के हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश, जम्मू और कश्मीर राज्यों में उगाई जाती है। यह विटामिन ए और नियासिन का उच्च स्त्रोत है। खुमानी को जैम, मीठे व्यंजन, स्क्वैश और नेक्टर बनाने के लिए प्रयोग किया जाता है। इन्हें सुखाया जाता है और छोटे डिब्बों में भरकर अन्य उत्पाद बनाने के लिए रखा जाता है। इसके स्वास्थ्य लाभ भी हैं जैसे वजन कम करना, रक्त संचार को नियंत्रित करना और कैंसर के खतरे को कम करना। इसके मीठे फलों को कन्फेक्शनरी में उपयोग किया जाता है और कड़वे फलों को तेल निकालने के लिए उपयोग किया जाता है। 

मिट्टी

इसकी ठोस प्रकृति के कारण इसे मिट्टी की कई किस्मों में उगाया जाता है। खुमानी की खेती के लिए रेतली दोमट मिट्टी जो कि अच्छे जल निकास वाली उपजाऊ मिट्टी उपयुक्त रहती है। मिट्टी की पी एच 6-6.8 अच्छी होती है। हिमाचल प्रदेश के किन्नौर जिले में खुमानी की खेती, रेतली मिट्टी जो कि अच्छे जल निकास वाली है और कम उपजाऊ है, में बड़े स्तर पर की जाती है।

प्रसिद्ध किस्में और पैदावार

मध्य पहाड़ियों में : New Castle, Shakarpara and Early Shipley
 
अधिक पहाड़ी क्षेत्रों में : Nugget, Royal, Charmagaz, Nari, Suffaida and Kaisha
 
सूखे शीतोष्न क्षेत्रों में : Charmagaz, Shakarpara, Suffaida and Kaisha
 
अन्य किस्में
 
अगेती पकने वाली किस्में : are Beladi and Baiti
 
पिछेती पकने वाली किस्में : are Farmingdale and Alfred.
 
दूसरे राज्यों की किस्में 
 
Moorpark, Turkey, Ambroise, Chaubattia Alankar, Chaubattia Madhu, Chaubattia Kesri,Bebeco, Halma, Rakchakarpa, Tokpopa, Margulam, Narmu, Khante, Australian, Charmagaz and Rogan are other state varieties. 
 

ज़मीन की तैयारी

रोपाई के 1 महीने पहले 1 मीटर x 1 मीटर x 1 मीटर आकार के गड्ढे खोदकर ज़मीन तैयार करें। गड्ढों को मिट्टी, रूड़ी की खाद 60 किलो, एस एस पी 1 किलो और क्लोरपाइरीफॉस 10 मि.ली. को 10 लीटर पानी में मिलाकर, मिश्रण से भरें।

खाद

तत्व (किलोग्राम प्रति एकड़)

NITROGEN
PHOSPHORUS
POTASH
500 250 200

 

40-45 किलो रूड़ी की खाद प्रति वृक्ष डालें और नाइट्रोजन 500 ग्राम, फासफोरस 250 ग्राम और पोटेशियम 200 ग्राम को मिट्टी में मिलाकर पके हुए खुमानी के वृक्षों में डालें जैसे 7 वर्ष के या इससे ऊपर के वृक्ष। फासफोरस और पोटेशियम की पूरी मात्रा रूड़ी की खाद डालने के समय दिसंबर से जनवरी महीने में डालें। नाइट्रोजन को दो बराबर भागों में बांटे, पहले भाग को फूल निकलने से 3 सप्ताह पहले और बाकी की मात्रा को 4 सप्ताह बाद डालें। बारानी क्षेत्रों में, बाकी बची नाइट्रोजन की मात्रा को  मॉनसून के शुरू होने पर डालें।

 

बीज

बीज की मात्रा 
रोपाई के लिए 110 वृक्ष प्रति एकड़ में प्रयोग करें।

बीज का उपचार
बिजाई से पहले बीजों को किनेथिन 5 पी पी एम या GA3, 500 पी पी एम के घोल में 24 घंटे के लिए भिगोकर रखें। इससे बीजों का अंकुरण जल्दी होने में मदद मिलेगी।
 

बिजाई

बिजाई का समय
रोपाई मुख्यत: निष्क्रिय अवस्था में अंत दिसंबर से मध्य मार्च में की जाती है।
 
फासला
नर्सरी में बीजों में 15-20 सैं.मी. और कतार से कतार में 25-30 सैं.मी. फासले का प्रयोग करें। रोपाई के लिए पौधे से पौधे में 6 मीटर x 6 मीटर फासले का प्रयोग करें।

बीज की गहराई
नर्सरी में बीज को 5-10 सैं.मी. की गहराई पर बोयें।
 

खरपतवार नियंत्रण

नदीनों  की अच्छी रोकथाम के लिए उनके अंकुरण होने से पहले सिफारिश की हुई डयूरॉन या एट्राज़िन 1.5 किलो को प्रति एकड़ में डालें और नदीनों के अंकुरण के बाद ग्लाइफोसेट 300 मि.ली. या ग्रामोक्सोन 800 मि.ली. को प्रति एकड़ में डालें।नदीनों की वृद्धि को जांचने के लिए मलचिंग भी एक प्रभावी तरीका है। 

अंतर-फसलें

यदि किसान अधिक आय कमाना चाहते हैं, तो वे 2-5 वर्ष के पौधे के साथ अंतरफसली कर सकते हैं। अंतरफसली  लोबिया, सोयाबीन, मटर और फलियों के साथ की जानी चाहिए।

सिंचाई

सिंचाई मुख्य तौर पर  फल विकसित होने की अवस्था में अप्रैल मई के महीने में की जाती है। मिट्टी की किस्म, वृक्ष की उम्र और जलवायु हालातों के आधार पर सिंचाई की जाती है। गर्मियों के मौसम में, मई जून के महीने में 8-10 दिनों के अंतराल पर सिंचाई की जाती है। भारी बारिश के हालातों में पानी का सही निकास होना चाहिए। पानी को खेत में खड़ा ना होने दें। मिट्टी में नमी बनाए रखने के लिए 10 सैं.मी. घास की मोटी परत के साथ मलचिंग करना भी एक प्रभावी तरीका है।

प्रजनन

खुमानी का प्रजनन मुख्य तौर पर कलम लगाकर, बडिंग, टी बडिंग, कलम बांधकर और चिप बडिंग द्वारा किया जाता है। मूल पौधे से नए पौधे तैयार करने के लिए, पकी हुई खुमानियों से बीज को इकट्ठा कर लिया जाता है। अच्छे अंकुरण के लिए 4 डिग्री सेल्सियस पर 45 दिनों के लिए स्तरीकरण दिया जाता है। स्तरीकरण के बाद, बीज उपचार किया जाना चाहिए। बीज उपचार के बाद इन्हें नर्सरी बैड पर बोया जाता है। बिजाई के बाद मलचिंग की जाती है और हल्की सिंचाई दी जाती है। 

पौधे की देखभाल

  • हानिकारक कीट और रोकथाम
छेदक : टहनी छेदक जो कि भूरे रंग की सुंडियां होती हैं और तना छेदक क्रीम रंग की सुंडियां होती हैं। टहनी छेदक शाखा के ऊपरी हिस्से में छेद कर देते हैं जिससे शाखाएं मर जाती हैं और तना छेदक तने में गोल छेद कर देते हैं। जिससे वृक्ष कमज़ोर हो जाता है और अंतत: मर जाता है।
 
रोकथाम : इसकी रोकथाम के लिए क्विनलफॉस 500 मि.ली. को 150 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।
 
जूं : ये कीट पौधे के रस को अपना भोजन बनाते हैं जिसके कारण पत्तों पर कांस्य रंग के धब्बे पड़ जाते हैं।
 
रोकथाम : जूं की रोकथाम के लिए 250 मि.ली. फेनाज़ाकुइन को 150 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।
 
पत्ता लपेट सुंडी : ये कीट हल्के पीले या हरे रंग के होते हैं जिनके कारण पत्ते मुड़ जाते हैं।
 
रोकथाम : इसकी रोकथाम के लिए क्विनलफॉस 500 मि.ली. को 150 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।
 
चेपा : ये छोटे कीट होते हैं जो कि विभिन्न रंगों में होते हैं और पौधे का रस चूसते हैं। इसके कारण पत्ते मुड़ जाते हैं। जो कि मोटे हो जाते हैं, पीले रंग के हो जाते हैं और अंतत: मर जाते हैं।
रोकथामडाइमैथोएट 30 % ई सी 1 मि.ली. को प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।
 
धफड़ी रोग : पत्तों के अंदरूनी भाग में गहरे फंगस के धब्बे देखे जा सकते हैं। उसके बाद ये धब्बे सलेटी रंग के हो जाते हैं। प्रभावित भाग गिर जाता है। उसके बाद ये धब्बे फलों पर भी देखे जा सकते हैं।
धफड़ी रोग की रोकथाम के लिए 2.5 ग्राम कॉपर ऑक्सीक्लोराइड को 1 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।
 
  • बीमारियां और रोकथाम
कोढ़ रोग : यह रोग स्यिूडोमोनास सिरिंजे के कारण होता है। इस बीमारी के कारण पत्तों पर भूरे रंग के धब्बे पड़ जाते हैं और फलों पर गहरे रंग के धंसे हुए धब्बे विकसित हो जाते हैं।
 
रोकथाम : इस बीमारी की रोकथाम के लिए बोर्डीऑक्स के मिश्रण का 2:2:250 के अनुपात में डालें।
 
पत्तों के ऊपरी धब्बा रोग : इसके कारण कली पर सफेद सलेटी रंग के धब्बे देखे जा सकते हैं, शाखा का विकास कम हो जाता है और प्रभावित भाग अपने आप सख्त होकर टूट जाता है।
इसकी रोकथाम के लिए 2.5 ग्राम Z-78 को 1 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करे।
 
पत्तों का धब्बा रोग : यह एग्सैंथोमोनास कैंपेसट्रिस के कारण होता है। इसके कारण पत्तों के अंदरूनी भाग में जामुनी, भूरे या काले रंग के धबबे देखे जा सकते हैं।
इसकी रोकथाम के लिए 2.5 ग्राम मैनकोजेब को 1 लीटर पानी में डालकर स्प्रे करें।
 

फसल की कटाई

तुड़ाई मुख्यत: मई के पहले सप्ताह से अंत जून में की जाती है। फलों की सतह हरी से पीली होने पर उनकी तुड़ाई की जाती है। तुड़ाई के बाद छंटाई की जाती है। उसके बाद खुमानी को 0 डिगरी सैल्सियस तापमान पर 1-2 सप्ताह के लिए रखा जाता है और 85-95 % नमी पर रखा जाता है। इसकी औसतन पैदावार 20-35 किलो प्रति वृक्ष होती है।