आड़ू की जानकारी

आम जानकारी

आड़ू शीतोष्ण क्षेत्रों की गुठली वाले फल की महत्वपूर्ण फसल है| बढिया किस्म के आड़ू उच्च-पहाड़ी क्षेत्र में जैसे की जे.ऐच.हेल , एल्बर्टा और मैचलेस आड़ू उगाये जाते है| 1960 के समय मैदानी क्षेत्रों में आड़ू की chakali किस्म उगाई जाती थी| फ्लोरिडा में जब पता चला किआड़ू कम ठंडे मौसम की फसल है तो यह मैदानी क्षेत्रों की महत्वपूर्ण फसल बन गई| आड़ू की तुड़ाई का समय अप्रैल-जुलाई महीने तक का होता है| बाग़ों में ताज़े आड़ू की फसल और कई अन्य की किस्मों से स्वादिष्ट स्क्वेश बनाए जाते हैं। आड़ू की गिरी के तेल का प्रयोग कई प्रकार के कॉस्मेटिक उत्पाद और दवाईयां बनाने के लिए किया जाता है| इसमें लोहे, फ्लोराइड और पोटाशियम की भरपूर मात्रा होती है|

जलवायु

  • Season

    Temperature

    20-30°C
  • Season

    Rainfall

    200-300mm
  • Season

    Sowing Temperature

    25-30°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    20-25°C
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    Temperature

    20-30°C
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    25-30°C
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    Harvesting Temperature

    20-25°C
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    20-30°C
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    25-30°C
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    Harvesting Temperature

    20-25°C

मिट्टी

आड़ू की फसल को गहरी रेतली दोमट मिट्टी जिसमें जैविक तत्वों की मात्रा और पानी का बढिया निकास हो की जरूरत होती है| इसके लिए मिट्टी का pH 5.8 और 6.8 होना चाहिए| आड़ू की फसल के लिए अम्लीय और नमक वाली मिट्टी उचित नहीं है| इसकी खेती के लिए हल्की ढलान वाली ज़मीन उचित मानी जाती है| इसके फल तलहटी, उच्च-पहाड़ी और दरमियाने क्षेत्रों में बढिया आकारलेते है|

प्रसिद्ध किस्में और पैदावार

Alton: इसके फल मध्यम आकार के, गोलाकर, गुद्दा गुठली से चिपका हुआ, बेरियम पीला रंग, छिल्का थोड़ी खटास वाला होता है। यह किस्म जून के तीसरे सप्ताह में पककर तैयार हो जाती है।
 
Worlds Earliest: इसके फल छोटे से मध्यम आकार के, गुद्दा हल्के भूरे रंग का, रसदार, गुठली से चिपका हुआ होता है। यह किस्म जून के तीसरे सप्ताह में पककर तैयार हो जाती है।
 
Early White Giant:  इसके फल छोटे से मध्यम आकार के, आकर्षित और सुगंधित होते हैं। गुद्दा मीठा होता है। यह किस्म जून के दूसरे सप्ताह में पककर तैयार हो जाती है। इसका गुद्दा गुठली से आसानी से अलग होने वाला होता है।
 
Red Heaven: इसके फल दरमियाने गोल, अच्छी गुणवत्ता वाले होते हैं। छिल्का पीला और सख्त होता है। यह किस्म जून के महीने में पककर तैयार हो जाती है।
 
Stark Red Gold: इसके फल मध्यम आकार के होते हैं। छिल्का पीले संतरी रंग का जिसमें पीले रंग का गुद्दा होता है। गुद्दा गुठली से थोड़ा चिपका हुआ होता है। इसमें टी एस एस की कुल मात्रा 12.4 प्रतिशत होती है। यह किस्म जल्दी पकने वाली, मई के आखिरी सप्ताह में पककर तैयार हो जाती है। इसका पौधा लंबा, फैलने वाला और ज्यादा फल देना वाला होता है।
 
Snow Queen (Nectarine): इसके फल छोटे से मध्यम आकार के, चमकदार सफेद रंग के होते हैं। मध्य जून में फल पककर तैयार हो जाते हैं। इसका पौधा फैलने वाला, अच्छी उपज देने वाला होता है। यह किस्म 6000 फीट की ऊंचाई वाले क्षेत्रों में उगाने के लिए उपयुक्त है।
 
Sharbati: फल बड़े, हरे पीले रंग के साथ हल्के गुलाबी रंग के, अधिक रसदार, अच्छा स्वाद होता है। जून के आखिरी में फल पककर तैयार हो जाते हैं।
 
Shan-e- Punjab:  यह किस्म मई के दूसरे सप्ताह में पक जाती है। इसके फल बड़े आकार के पीले रंग के साथ हल्के लाल रंग के, उत्तम स्वाद वाले और गुठली रहित होते हैं। इस किस्म के फल सख्त होते हैं। यह किस्म परिवहन के लिए और पैकिंग के लिए उपयुक्त है। इसकी नियमित फलों की उपज 125 किलो प्रति वृक्ष होती है।
 
July Albert: इसके फल मध्यम आकार के होते हैं। छिल्के का रंग हल्का लाल, गठीला गुद्दा पीले रंग का, नर्म होता है। इसके फल अच्छी गुणवत्ता वाले होते हैं। यह किस्म जुलाई के दूसरे सप्ताह में पक जाती है। यह पैकिंग के लिए उपयुक्त किस्म है। 
 
Summer Set: इसके फल मध्यम आकार के पीले से संतरी रंग के होते हैं। गुद्दा गुठली से चिपका हुआ होता है। यह किस्म मध्यम फैलने वाली और मध्यम उपज देने वाली किस्म है। इसके फल जून के आखिरी सप्ताह में पक जाते हैं। इसमें टी एस एस की मात्रा 12 प्रतिशत होती है।
 
JH HALE.: इस किस्म के फल मध्यम आकार के, गोलाकार, लाल जामुनी रंग के होते हैं। इनमें थोड़ी खटास होती है। ये फल जुलाई के तीसरे सप्ताह में पक जाते हैं।
 
Silver King (Nectarine): यह किस्म कुल्लू की पहाड़ियों में उगाने के लिए उपयुक्त है। इसके फल मई से मध्य जून के आखिरी सप्ताह में पक जाते हैं। फलों का रंग हरा सफेद होता है। इनका 3/4 हिस्सा लाल रंग का होता है। गुद्दा क्रीमिश सफेद रंग का, स्वाद में मीठा होता है। इसमें कुल घुलनशील की मात्रा 8-10 प्रतिशत होती है और अम्लता 0.6 प्रतिशत होती है।
 
Venus Misoori (Nectarine): यह मध्य मौसम की किस्म, जुलाई के पहले सप्ताह में पक जाती है। इसके फल आकार में अत्याधिक बड़े, हरे पीले रंग के होते हैं। फल की सतह खुरदरी होती है। फल का 3/4 हिस्सा मैरून लाल रंग का होता है। गुद्दा सख्त और कुरकुरा, पीले रंग का, स्वाद में मीठा होता है। इसका फल अति गुणकारी होता है। इस किस्म का पौधा मध्यम उगने वाला और अधिक फल देने वाला होता है।
 
Suncrest (Nectarine): इस किस्म के फल का भार 102.25 ग्राम होता है। फल लंबा, मध्यम आकार का, छिल्का पीले संतरी रंग का, गुद्दे का रंग संतरी होता है। गुठली लंबी होती है जिसका भार 4.61 ग्राम होता है। इसके गुद्दे, गुठली का अनुपात 22.84 होता है। टी एस एस की मात्रा 18.4 डिगरी होती है। अम्लीय की मात्रा 0.5 प्रतिशत होती है। सुक्रॉस की मात्रा 14.46 प्रतिशत होती है। इसमें अघुलनशील शर्करा की मात्रा 8.34 प्रतिशत होती है।
 
Early Grande: इस किस्म के फल का भार 82.67 ग्राम होता है। फल मध्यम आकार का और लंबा होता है। छिल्का पीले हरे रंग का, गुद्दा पीले रंग का होता है। गुठली लंबी होती है जिसका भार 5.44 ग्राम होता है। टी एस एस की मात्रा 13.6 डिगरी ब्रिक्स, अम्लता 0.5 प्रतिशत, सुक्रॉस 14.46 प्रतिशत, अघुलनशील शर्करा की मात्रा 8.81 प्रतिशत होती है।
 
Pratap: इस किस्म के फल का भार 111.55 ग्राम होता है। फल मध्यम आकार का, गोलाकार, छिल्का पीले संतरी रंग का, गुद्दा पीले रंग का होता है। गुठली गोल होती है जिसका भार 4.11 ग्राम होता है। टी एस एस की मात्रा 13.5 डिगरी होती है। अम्लता 0.62 प्रतिशत, सुक्रॉस 12.91 प्रतिशत और अघुलनशील शर्करा की मात्रा 9.29 प्रतिशत होती है।
 
Suncrest: यह मध्य मौसम की किस्म, जून के आखिरी सप्ताह में पक जाती है। इसके फल का आकार बड़ा होता है और भार 175 ग्राम होता है। फल गोल, सख्त, पीले रंग का छिल्का, फल मीठे और रसदार होते हैं। टी एस एस की मात्रा 10.5 डिगरी ब्रिक्स होती है।
 
Glow Heaven: यह मध्य मौसम की किस्म है। इसके फल बड़े आकार के, भार 190 ग्राम होता है। फल गोल, मीठे, रसदार, पीला गुद्दा होता है। इसमें टी एस एस की मात्रा 11.2 डिगरी ब्रिक्स होती है। यह किस्म जुलाई के पहले सप्ताह में पक जाती है।
 
दूसरे राज्यों की किस्में
 
पूरे भारत में उपलब्ध आडू की अलग-अलग किस्में  prabhat, Pratap, Flordasun, Shan-e- Punjab, Florda red sun, Red (Nectarine), Khurmani, Sharbati,  Flordaprince है|
 
Khurmani: इस किस्म के फल बड़े, आकर्षित और लाल रंग के होते है, इसका गुद्दा सफेद, नरम, रसीला और गुठली चिपकी हुई होती हैं|
 
Florida Red: इस किस्म के फल बढिया, मध्य मौसम वाले होते है जो जून के शुरू में पक जाते है| इसके फल बड़े, आमतौर पर लाल, रसीले और गुठली के बिना होते है| इसकी औसतन पैदावार 100 किलो प्रति वृक्ष होती हैं|
 

ज़मीन की तैयारी

5मीटरx5मीटर फासले के गड्ढे खोदकर ज़मीन को अच्छी तरह तैयार करें और बैडों को 20 किलो रूड़ी की खाद, 125 ग्राम यूरिया और 25 ग्राम क्लोरपाइरीफॉस से भर दें। इन्हें 30 सैं.मी. मिट्टी में मिक्स करें और ज़मीनी स्तर से 10 सैं.मी. ऊपर तक भरें।

बिजाई

बिजाई का समय
टी-बडिंग मई के पहले हफ्ते में पूरी करें। टी-बडिंग से तैयार किया हुआ पौधा दिसंबर-जनवरी महीने तक मुख्य खेत में लगाने के लिए तैयार हो जाता है|
 
फासला
बिजाई के लिए 6.5x6.5 मीटर फासले पर वर्गाकार विधि का प्रयोग करें|
 
बीज की गहराई
आड़ू की बीजों को बैडों पर बोना चाहिए जो 5 सैं.मी. गहराई में हो, और जिनमें 12-16 सैं.मी. फासला हो। 
 
बिजाई का ढंग
बिजाई के लिए शुरू में कलम लगाने की विधि का प्रयोग किया जाता है और फिर मुख्य खेत में रोपाई की जाती है|
 

बीज

बीज की मात्रा
प्रजनन क्रिया का प्रयोग किया जाता है।
 

प्रजनन

प्रजनन के लिए, कलम लगाने वाली विधि का प्रयोग करें| नए पौधे तैयार करने के लिए Sharbati, Khurmani किस्में प्रयोग की जाती है| 

कटाई और छंटाई

आड़ू को भारी और लगातार कांट-छांट की जरूरत होती है| कटाई-छंटाई अक्तूबर के आखरी हफ्ते में करनी जरूरी होती है| पुरानी टहनियों से नई शाखाओं को निकाल दें और अनावश्यक शाखाओं को काट दें| आड़ू का नया पौधा लगाने के लिए इसका कद 35 इंच होना चाहिए|

खाद

खादें (ग्राम प्रति वृक्ष)

Tree age FYM (Kg/tree) Urea (gm/tree) SSP (gm/tree) MOP (gm/tree)
1-2 years 10-15 150-200 200-300 150-300
3-4 years 15-20 500-700 500-750 400-600
5 years and above 25-30 1000 1000 800

 

सिंचाई

पौधे की बिजाई के बाद, तुरंत सिंचाई करें| बारिश के मौसम में, पौधों को पानी की जरूरत नहीं होती है| तुपका सिंचाई पानी के प्रभावशाली प्रयोग के लिए उचित विधि है | इस फसल को नाज़ुक अवस्था में सिंचाई की ज्यादा जरूरत होती है, जैसे कि सूखा पड़ने पर आदि| फूलों के अंकुरण, कलम लगाने की अवस्था, फलों के विकास के समय फसल को सिंचाई की आवश्यकता होती है|

खरपतवार नियंत्रण

इस फसल को नियमित हाथों से गोड़ाई की आवश्यकता होती है, हालांकि यह थकावट वाला और महंगा काम है| आड़ू की जड़ें अस्थायी होती है, जो लगातार जोताई करने से क्षतिग्रस्त हो जाती है| इस लिए नदीन-नाशक का प्रयोग करना उचित है| नदीनों के अंकुरण से पहले ड्यूरॉन 800 ग्राम- 1 किलो प्रति एकड़ में डालें या में फरवरी-मार्च में नए बाग़ों में चौड़े पत्तों और घास वाले नदीन को रोकने के लिए अंकुरण के बाद ग्लाइफोसेट 600मि.ली. को 200 लीटर पानी में मिला कर प्रति एकड़ में स्प्रे करे|

पौधे की देखभाल

  • बीमारीयां और रोकथाम
छोटे धब्बे: पत्तों पर गहरे भूरे रंग के धब्बे पड़ जाते हैं।
 
उपचार:  पत्तों के गिरने या कलियों के सूजने के समय कप्तान या ज़ीरम या थीरम 0.2 प्रतिशत की स्प्रे करें।
 
बैक्टीरियल कैंकर और गोंदिया रोग: यह मुख्य तने, टहनी, शाखाओं, कलियों, पत्तों और यहां तक कि फलों पर भी हमला करता है। 
 
उपचार:  सुनिश्चित करें कि आड़ू की उपयुक्त किस्म हो और जड़ का भाग भूगौलिक स्थान और पर्यावरण की स्थितियों के आधार पर लिया गया हो। फूल खिलने से पहले वृक्षों पर कॉपर की स्प्रे करें। संक्रमण को कम करने के लिए अगेती गर्मियों में वृक्षों की सिधाई करें। 
 
भूरा गलना: इसके कारण पौधा सूख जाता है, पत्तियां और नई टहनियां मर जाती हैं।
 
उपचार:  तुड़ाई से 3 सप्ताह पहले कप्तान 0.2 प्रतिशत की स्प्रे करें।
 
  • हानिकारक कीट और रोकथाम
चेपा: यह कीट मार्च से मई के महीने में क्रियाशील होता है। इस कीट के कारण पत्ते मुड़ जाते हैं और पीले हो जाते हैं।
 
उपचार: रोगोर 30 ई सी 800 मि.ली. को 500 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ में स्प्रे करें। यदि जरूरत हो तो 15 दिनों के बाद दोबारा स्प्रे करें।
 
काला चेपा: यह कीट अप्रैल-जून महीने में क्रियाशील होता है।
 
उपचार:  मैलाथियोन 50 ई सी 800 मि.ली. को 500 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।
 
चपटे सिर वाला छेदक: यह एक गंभीर कीट है जो कि मध्य मार्च में क्रियाशील होता है। ये हरे पत्तों को खाता है।
 
उपचार:  डरमेट 20 ई सी 1000 मि.ली. को 500 लीटर पानी में मिलाकर तुड़ाई के बाद जून के महीने में स्प्रे करें।
 

फसल की कटाई

अप्रैल से मई का महीना आड़ू की फसल के लिए मुख्य तुड़ाई का समय होता है| इनका अच्छा रंग और सख्त गुद्दा इनकी तुड़ाई के लिए तैयार होने के लक्षण दिखाते हैं। आडू के फलों की तुड़ाई फल को घुमाकर की जाती है।

कटाई के बाद

तुड़ाई के बाद, इनको सामान्य तामपान पर स्टोर कर लिया जाता है और स्क्वेश आदि बनाने के लिए प्रयोग किया जाता है|