आंवला की फसल

आम जानकारी

आंवला को आमतौर पर भारतीय गूज़बैरी और नेल्ली के नाम से जाना जाता है। इसे इसके औषधीय गुणों के लिए भी जाना जाता है। इसके फल विभिन्न दवाइयां तैयार करने के लिए प्रयोग किये जाते हैं। आंवला से बनी दवाइयों से अनीमिया, डायरिया, दांतों में दर्द, बुखार और जख्मों का इलाज किया जाता है। यह फल विटामिन सी का उच्च स्त्रोत है। आंवला के हरे फल आचार बनाने के लिए भी प्रयोग किए जाते हैं। विभिन्न प्रकार के  शैंपू, बालों में लगाने वाला तेल, डाई, दांतो का पाउडर, और मुंह पर लगाने वाली क्रीमें आंवला से तैयार की जाती है। यह एक शाखाओं वाला वृक्ष है, जिसकी औसत उंचाई 8-18 मीटर होती है। इसके फूल हरे-पीले रंग के होते हैं जिनकी दो किस्में होती हैं। नर फूल और मादा फूल। इसके फल पीले रंग के होते हैं,जिनका व्यास 1.3-1.6 सैं.मी होता है। भारत में उत्तर प्रदेश और हिमाचल प्रदेश आंवला के मुख्य उत्पादक राज्य हैं।

जलवायु

  • Season

    Temperature

    46-48°C
  • Season

    Rainfall

    630-800mm
  • Season

    Sowing Temperature

    22-30°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    8-15°C
  • Season

    Temperature

    46-48°C
  • Season

    Rainfall

    630-800mm
  • Season

    Sowing Temperature

    22-30°C
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    Harvesting Temperature

    8-15°C
  • Season

    Temperature

    46-48°C
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    Rainfall

    630-800mm
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    Sowing Temperature

    22-30°C
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    Harvesting Temperature

    8-15°C
  • Season

    Temperature

    46-48°C
  • Season

    Rainfall

    630-800mm
  • Season

    Sowing Temperature

    22-30°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    8-15°C

मिट्टी

इसकी प्रकृति सख्त होने के वजह से इसे मिट्टी की हर किस्म में उगाया जा सकता है। इसे हल्की अम्लीय और लूणी ज़मीन में उगाया जा सकता है और चूने वाली ज़मीन में भी इसे उगाया जा सकता हैं जब इसकी खेती अच्छे जल निकास वाली और उपजाऊ - चिकनी मिट्टी में की जाती है तो यह अच्छी पैदावार देती है। यह खारी मिट्टी को भी सहने योग्य है। इस फसल की खेती के लिए मिट्टी की पी एच 6.5-9.5 होनी चाहिए। भारी ज़मीनों में इसकी खेती करने से परहेज करें।

प्रसिद्ध किस्में और पैदावार

Banarasi: यह अच्छी गुणवत्ता वाली और जल्दी पकने वाली किस्म है। इसका आकार बड़ा और इसमें उच्च मात्रा में विटामिन होता है। यह किस्म चमकदार और पीले रंग की होती है। 
 
Green Tinzed: इसके फल हरे रंग के और आकार में बड़े होते हैं।
 
Chakiya: इसके फल मध्यम आकार के, भार 33.4 ग्राम और अंडाकार आकार के होते हैं। इसमें एस्कॉर्बिक की मात्रा 789 मि.ग्राम. प्रति 100 ग्राम, पेक्टिन की मात्रा 3.4 % और 2 % फाइबर की मात्रा होती है। इसके टुकड़ों को सुखाकर आचार बनाने के लिए प्रयोग किया जाता है।
 
Red Tinzed:  इसके फल मध्यम से बड़े आकार के होते हैं, गुद्दा आधार से ही लाल रंग का होता है।
 
White Streaked: इसके फल मध्यम आकार के और उन पर सफेद धारियां होती हैं।
 
Katha: इसके फल आकार में छोटे, हरे रंग के और उन पर सफेद धारियां बनी होती हैं।
 
दूसरे राज्यों की किस्में
 
Narendra 6: यह दरमियाने समय की फसल है जो कि मध्य नवंबर से मध्य दिसंबर में बोयी जाती है। इसके फल मध्यम आकार के होते हैं जिनका भार 38.8 ग्राम होता है। इसमें रेशे की मात्रा सबसे कम 0.8 प्रतिशत होती है। इसमें एस्कॉर्बिक एसिड 100 ग्राम होता है और कम मात्रा में फैनोलिक होता है। इसे जैमस और कैंडिज़ बनाने के लिए प्रयोग किया जाता है।
 
Narendra 7 (Promising variety): यह दरमियाने मौसम की फसल है जो कि मध्य नवंबर से मध्य दिसंबर में बोयी जाती है। इसके फल मध्यम से बड़े आकार के होते हैं जिनका भार 44 ग्राम होता है और हरा-सफेद रंग होता है। इसके फल में रेशे की मात्रा 1.5 प्रतिशत होती है।
 
Krishna:  यह जल्दी पकने वाली किस्म है जो कि मध्य अक्तूबर से मध्य नवंबर में पक जाती है। इसके फल मध्यम आकार के होते हैं जिनका भार 44.6 ग्राम होता है। इसका छिल्का नर्म और फल पर धारियां अच्छे से बनी होती हैं। इस किस्म में 1.4 प्रतिशत तक रेशा होता है। इसकी औसतन पैदावार 123 किलोग्राम प्रति वृक्ष होती है।
 
Balwant: यह जल्दी पकने वाली किस्म है जो कि मध्य नवंबर के महीने में पक जाती है। इसके चपटे गोल आकार के मध्यम फल होते हैं इसके फल नर्म और रसदार, अंदर से सफेद गुद्दे वाले और बाहरे से छिल्का हरा होता है। इसकी औसतन पैदावार 121 किलोग्राम प्रति वृक्ष होती है।
 
NA-9: यह भी जल्दी पकने वाली किस्म है जो कि मध्य अक्तूबर से मध्य नवंबर में पक जाती है। इसके फल बड़े आकार के होते हैं जिनका भार 50.3 ग्राम होता है जिनका आकार अंडाकार, छिल्का नर्म और पतला होता है। इस किस्म में रेशा कम होता है जिसकी मात्रा 0.9 प्रतिशत होती है और उच्च मात्रा में एस्कॉर्बिक एसिड होता है। इससे जैमस, जैलीज़ और कैंडीज़ आदि बनाने के लिए प्रयोग किया जाता है।
 
NA-10: यह भी जल्दी पकने वाली किस्म है जो कि मध्य अक्तूबर से मध्य नवंबर में पक जाती है। इसके फल मध्यम से बड़े आकार के होते हैं जिनका भार 41.5 ग्राम होता है। इसका छिल्का खुरदरा होता है और ऊपर धारियां बनी होती है। इसका गुद्दा हरे-सफेद रंग का होता है, जिसमें 1.5 प्रतिशत रेशा होता है।
 
Francis: यह दरमियाने मौसम की फसल है जो कि मध्य नवंबर से मध्य दिसंबर में बोयी जाती है। इसके फल बड़े आकार के होते हैं जिनका भार 45.8 ग्राम होता है। फल हरे-सफेद रंग का होता है। इसमें रेशे की मात्रा 1.5 प्रतिशत होता है। इस किस्म को हाथी झूल के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि इसकी शाखाएं लटकी हुई होती हैं।
 
NA-5(Kanchan): यह दरमियाने मौसम की फसल है जो कि मध्य नवंबर से मध्य दिसंबर में बोयी जाती है। इसके फल छोटे आकार के होते हैं जिनका भार 30.2 ग्राम होता है इसमें रेशे की मात्रा 1.5 प्रतिशत होती है और इसमें काफी मात्रा में एस्कॉर्बिक एसिड पाया जाता है।
 
NA-4 (Krishna) और BSR-1 (Bhavanisagar)  भी अन्य राज्यों की कुछ प्रसिद्ध किस्में हैं।
 

ज़मीन की तैयारी

आंवला की खेती के लिए अच्छी तरह से जोती गई ज़मीन और जैविक मिट्टी की आवश्यकता होती है। पौध रोपण से पहले ज़मीन की अच्छी तरह जोताई करें जब तक मिट्टी भुरभुरी ना हो जाये। जैविक खाद जैसे कि रूड़ी की खाद को मिट्टी में मिलायें। उसके बाद 2.5 सैं.मी. गहरा और 15 सैं.मी. x 15 सैं.मी. आकार के नर्सरी बैड तैयार करें।

बिजाई

बिजाई का समय
आंवला की खेती जुलाई महीने में की जाती है।
 
फासला
पौधों को 7.5 मीटर x 7.5 मीटर के फासले पर बोयें।
 
बीज की गहराई
1 मीटर घनाकार गहरा गड्ढा खोदें और उसे सूरज की रोशनी में 15-20 दिनों के लिए खुला छोड़ दें।
 
बिजाई का ढंग
मुख्य खेत में नए अंकुरित पौधे लगाएं।
 

बीज

बीज की मात्रा
अच्छी वृद्धि के लिए 200 पौधे प्रति एकड़ में प्रयोग करें।

बीज का उपचार
बीज को मिट्टी से पैदा होने वाले कीटों और बीमारियों से बचाने के लिए और अच्छे अंकुरन के लिए बिजाई से पहले जिबरैलिक एसिड 200-500 पी पी एम से उपचार करें। रासायनिक उपचार के बाद बीज को हवा में सुखाएं। 
 

खाद

तत्व (ग्राम प्रति वृक्ष)

NITROGEN PHOSPHORUS POTASH
80 50 60

 

खादें (ग्राम प्रति वृक्ष)

CAN
SSP
MOP
320 310 100

 

खेत की तैयारी के समय 10 किलो FYM को मिट्टी में अच्छी तरह मिलाएं। फासफोरस और पोटाश की पूरी मात्रा को दिसंबर महीने में रूड़ी की खाद के साथ डालें। नाइट्रोजन को दो भागों में पहले मार्च-अप्रैल के महीने में और दूसरा अगस्त-सितंबर के महीने में डालें।

 

 

सिंचाई

गर्मियों के मौसम में 15 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करें और सर्दियों में अक्तूबर दिसंबर के महीने में 25-30 लीटर प्रति दिन प्रति वृक्ष दें। मॉनसून के महीने में सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती। फूल आने के समय सिंचाई करने से परहेज़ करें।

खरपतवार नियंत्रण

लगातार नदीनों को हटाकर खेत को नदीन मुक्त रखें। कटाई और छंटाई आवश्य करें। क्रॉस शाखाओं को काट दें। सिर्फ 4-5 शाखाएं वृद्धि के लिए छोड़ दें।
नदीनों को हटाने के लिए मलचिंग एक सबसे बेहतर तरीका है। गर्मियों में वृक्ष की जड़ से लेकर 10-15 सैं.मी. ऊपर तक मलचिंग करें।
 

पौधे की देखभाल

छाल खाने वाली सुंडी
  • हानिकारक कीट और रोकथाम
छाल खाने वाली सुंडियां : ये सुंडियां तने को नुकसान पहुंचाती हैं  और छाल द्वारा अपना भोजन तैयार करती हैं।
इनकी रोकथाम के लिए क्विनलफॉस 0.01 प्रतिशत या फैनवलरेट 0.5 प्रतिशत घोल को छेदों में भरें।
 
पित्त वाली सुंडी
पित्त वाली सुंडी: यह सुंडी तनेके शिखर में जन्म लेती हैं और सुरंग बना देती हैं।
इनकी रोकथाम के लिए डाइमैथोएट 0.03% डालें।
 
  • बीमारीयां और रोकथाम
कुंगी: पत्तों और फलों पर गोल आकार में लाल रंग के धब्बे पड़ जाते है।
इसकी रोकथाम के लिए इंडोफिल एम-45 0.3% को दो बार डालें। पहली सितंबर के शुरू में और दूसरी फिर 15 दिनों के बाद डालें|
 
अंदरूनी गलन: यह बीमारी मुख्य तौर पर बोरोन की कमी से होती है। इस बीमारी के कारण टिशु भूरे रंग के, बाद में काले रंग के हो जाते हैं।
इस बीमारी से बचाव के लिए बोरोन 0.6% सितंबर से अक्तूबर के महीने में डालें|
 
फल का गलना: इस बीमारी के कारण फलों पर सोजिश पड़ जाती है और रंग बदल जाता है|
इसकी रोकथाम के लिए क्लोराइड 0.1%- 0.5% डालें| 
 

फसल की कटाई

पौधा रोपाई के 7-8 वर्ष बाद उपज देना शुरू करता है। जब फल हरे रंग के हो जाएं और इनमें एसकार्बिक एसिड की अधिक मात्रा हो जाए तो फरवरी के महीने में तुड़ाई कर दें। इसकी तुड़ाई वृक्ष को हिलाकर की जाती है। जब फल पूरी तरह से पक जाते हैं तो यह हरे पीले रंग के हो जाते हैं। बीजों के लिए पके फलों का प्रयोग किया जाता है।

कटाई के बाद

तुड़ाई के बाद छंटाई करनी चाहिए। उसके बाद फलों को बांस की टोकरी और लकड़ी के डिब्बे में रखें। फसल खराब होने से बचाने के लिए इसकी पैकिंग अच्छे से करनी चाहिए और जल्दी से जल्दी मंडी में भेज दें। आंवला से कई उत्पाद जैसे आंवला पाउडर, चूर्ण, च्यवनप्राश, अरिष्ट, और मीठे उत्पाद तैयार किए जाते हैं।