हिमाचल प्रदेश में राजमांह की खेती का विवरण
पत्तों के धब्बा रोग
  • बीमारियां और रोकथाम
सफेद रोग : इस बीमारी के कारण पत्तों के नीचे के तरफ सफेद रंग के धब्बे बन जाते हैं। यह पत्तों को अपना भोजन बनाते हैं। यह फसल के किसी भी विकास के समय हमला कर सकते हैं। कईं बार यह पत्तों की गिरावट का कारण भी बनते हैं। पानी को खड़ा होने से परहेज़ करें और खेत साफ रखें।
इसकी रोकथाम के लिए सलफर 20 ग्राम प्रति 10 लीटर पानी को 10 दिनों के फासले पर 2-3 बार स्प्रे करें।
 
मुरझाना
सूखा : नमी और घटिया निकास वाली मिट्टी में इस बीमारी के आने के मुख्य कारण यह मिट्टी से पैदा होने वाली बीमारी है। तने के ऊपर धब्बे बन जाते हैं और तना सिकुड़ने लग जाता है।
इसकी रोकथाम के लिए, कॉपर ऑक्सीकलोराइड 25 ग्राम या कार्बेनडाज़िम 20 ग्राम प्रति 10 लीटर पानी में डालकर इसकी स्प्रे करें।
पौधों की जड़ों को गलने से रोकने के लिए टराईकोडरमा बायो फंगस 2.5 किलोग्राम प्रति 500 लीटर पानी को पौधे की जड़ों में डालें।
 
पीला चितकबरा रोग
चितकबरा रोग : इस बीमारी के दौरान पत्तों पर हल्के रंग के धब्बे बन जाते हैं। पौधे के अगले विकास में रूकावट पड़ जाती है। पत्तों  और फलों पर पीले रंग के गोल धब्बे बन जाते हैं। बिजाई के लिए सेहतमंद और बीमारी रहित बीजों का प्रयोग करें। प्रभावित पौधों को खेत में से उखाड़ कर नष्ट कर दें।
इसकी रोकथाम के लिए एसीफेट 75 एस पी 1 ग्राम या मिथाइल डैमोटोन 25 ई सी 2 मि.ली. प्रति लीटर पानी में डालकर स्प्रे करें।
 

फसल की कटाई

जब इसकी फलियां पूरी तरह पक जायें और रंग पीला हो जाये तो इसकी कटाई की जा सकती है। इसके पत्ते पीले पड़ने के बाद गिरने शुरू हो जाते हैं। कटाई समय से करें। काटी हुई फसल 3-4 दिनों के लिए धूप में रखें। अच्छी तरह सूखने के बाद बैलों या छड़ों की मदद से छंटाई की जा सकती हैं।

कटाई के बाद

राजमांह को कटाई के बाद छोटी प्रक्रिया की जरूरत होती है, लेकिन इसकी अच्छी गुणवत्ता के लिए भंडारण के दौरान अच्छी देखभाल की ज़रूरत होती है। भंडारण से पहले छंटाई करें और प्रभावित बीन्स को बाहर निकालें। ताप और नमी इनकी गुणवत्ता को कम करते हैं इसलिए इन्हें हमेशा ठंडे, गहरे और सूखे स्थान पर रखें।

मिट्टी

इसे मिट्टी की व्यापक किस्मों जैसे हल्की रेतली से भारी चिकनी मिट्टी में उगाया जा सकता है। जल निकास वाली दोमट ज़मीनों में इसकी पैदावार बहुत अच्छी होती है। यह फसल ज्यादा खारेपन को सहने योग्य नहीं है। लगभग 5.5-6 पी एच वाली ज़मीनों में इसकी पैदावार अधिक होती है।

प्रसिद्ध किस्में और पैदावार

Triloki Rajma (K-198) : इसका कद झाड़ीदार फसल की तरह छोटा होता है। इसके पत्ते चौड़े, गहरे हरे, सफेद फूल और मोटे दाने होते हैं जो हल्के पीले रंग के होते हैं। दाने खाने में स्वाद और अच्छी तरह से पकते हैं। पौधे का कद 45-55 सैं.मी. होता है और फसल 98-100 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। यह किस्म एंथ्राक्नोस, सूखा और पत्तों के गलने की प्रतिरोधक किस्म है लेकिन संगला पहाड़ियों में एंथ्राक्नोस का मध्यम खतरा होता है। इसकी औसतन पैदावार 10-12 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Baspa (B. R. C.-8) : यह छोटे कद की किस्म है जिसकी ऊपरी पहाड़ी क्षेत्रों में खेती करने की सिफारिश की गई है। यह किस्म एंथ्राक्नोस के प्रतिरोधी है। इसके दाने गहरे गुलाबी रंग मोटे होते हैं। यह किस्म 100-120 दिनों में तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 7.5-8 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Kailash (S.R.C.-74) : यह छोटे कद की किस्म 120-125 दिनों में पक जाती है। यह किस्म किन्नौर जिले के 1700-3000 मीटर की ऊंचाई वाले बारानी या सिंचित क्षेत्रों के लिए उपयुक्त है। इस किस्म के पत्ते चौड़े और पीले रंग के होते हैं। इसके नए पौधे की फलियां हरे रंग की होती हैं और उन पर लाल रंग के धब्बे होते हैं, जो कि पकने पर संतरी रंग के हो जाते हैं।
 
Jwala (H.P.R-12) : यह किस्म कुल्लू, बैरोट, चंबा और शिमला के 1100-1800 मीटर ऊंचे क्षेत्रों के लिए जारी की गई है। यह जल्दी पकने वाली किस्म है जो कि 75-80 दिनों में पक जाती है। इसका पौधा सीधा और बौना होता है। फलियां 8-10 सैं.मी. लंबी होती हैं, प्रत्येक फली में 3-4 दाने होते हैं। इसके दाने गहरे लाल रंग के होते हैं। इसकी औसतन पैदावार 5-6 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Him-1: यह छोटे कद की जल्दी पकने वाली किस्म है जो 80-90 दिनों में पक जाती है। इसकी फलियां 10-13 सैं.मी. लंबी होती है और प्रत्येक किस्म में 4-5 दाने होते हैं। इसके दाने हल्के गुलाबी रंग के होते हैं और फलियों पर गहरे लाल रंग के धब्बे होते हैं। इसकी औसतन पैदावार 4 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Kanchan (H.P.R.-3.5) :  यह छोटे कद की, जल्दी पकने वाली किस्म है। यह किस्म मध्यम और ऊंचे पहाड़ी क्षेत्रों में उगाने के लिए जारी की गई है। इसके मोटे और गहरे गुलाबी रंग के दाने होते हैं। इसकी औसतन पैदावार 5-6 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
दूसरे राज्यों की किस्में
 
PDR 14 (Uday) : यह किस्म 1987 में जारी की गई है। इस किस्म की फसल झाड़ीदार और फलियों का रंग हरा होता है। इसके पौधे का कद 40-50 सैं.मी. होता है। सिंचित क्षेत्रों और अच्छे फसल प्रबंधन क्षेत्रों में इसकी औसतन पैदावार 8-10 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। इसके धब्बेदार दानों का औसतन भार 38-40 ग्राम प्रति 100 बीज होता है।
 
VL Rajma 125 :  यह किस्म उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में, समय से बीजी जाती है। इसकी फली में 4-5 बीज होते हैं और 100 बीज का भार लगभग 41.38 ग्राम होता है।
 
RBL 6 :  यह किस्म पंजाब के सिंचित क्षेत्रों में बोने के लिए उपयुक्त है। इसके बीज हल्के हरे रंग के होते हैं और फली में 6-8 बीज होते हैं।
 
इसके इलावा भारत में उगाई जाने वाली प्रसिद्ध किस्में
 
HUR 15, HUR-137, Amber and Arun. Also Arka Komal, Arka Suvidha, Pusa Parvathi, Pusa Himalatha, VL Boni 1, Ooty 1.
 

ज़मीन की तैयारी

मिट्टी के भुरभुरा होने तक खेत की तीन से चार बार जोताई करें, खेत को समतल रखें ताकि उसमें पानी ना खड़ा रहे यह फसल जल जमाव के प्रति काफी संवेदनशील होती है। आखिरी जोताई के समय, 60-80 क्विंटल प्रति एकड़ रूड़ी की खाद डालें ताकि अच्छी पैदावार मिल सके।

बिजाई

बिजाई का समय
इसे मॉनसून के शुरू होने पर 15-30 जून में बोया जाता है।

फासला
कतारों में 25-30 सैं.मी. फासले का प्रयोग करें।
 
बीज की गहराई
बीजों को 6-7 सैं.मी. गहराई में बोयें।
 
बिजाई का ढंग
इसकी बिजाई गड्ढा खोदकर की जाती है। समतल क्षेत्रों में, बीज पंक्तियों या बैड बनाकर बोये जाते हैं और पहाड़ी क्षेत्रों में, इसकी खेती मेंड़ बनाकर की  जाती है।
 

बीज

बीज की मात्रा
40 किलो बीज प्रति एकड़ में प्रयोग करें और मिश्रित खेती में 20 किलो बीज प्रति एकड़ में प्रयोग करें।

बीज का उपचार
बीज का उपचार थीरम 4 ग्राम प्रति किलो बीज के हिसाब से किया जाता है बीज को छांव में सुखाएं और तुरंत बीज दें।
 

खरपतवार नियंत्रण

फसल के शुरू में नदीनों की रोकथाम जरूरी है। इस अवस्था में नदीनों का हमला ना होने दें। खादें डालने और सिंचाई करने के साथ ही गोडाई कर दें। नदीनों के अंकुरन से पहले फ्लूक्लोरालिन 800 मि.ली. प्रति एकड़ या पैंडीमैथालीन 1 लीटर प्रति एकड़ का प्रयोग करें।

खाद

खादें (किलोग्राम प्रति एकड़)

UREA SSP MOP
17 150 On soil test results

 

तत्व (किलोग्राम प्रति एकड़)

NITROGEN PHOSPHORUS POTASH
8 24 -

 

नाइट्रोजन 8 किलो (17 किलो यूरिया), फासफोरस 24 किलो (150 किलो एस एस पी) की मात्रा प्रति एकड़ में प्रयोग करें। 

 

 

सिंचाई

बिजाई के बाद, 1 महीने के अंतराल पर 3-4 सिंचाइयों की आवश्यकता होती है। पहली सिंचाई बिजाई के 3 सप्ताह बाद की जाती है, दूसरी सिंचाई फूल खिलने के समय और तीसरी सिंचाई फलियां विकसित होने के समय की जाती है। इस फसल के लिए गहरी सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती।

आम जानकारी

राजमांह को इसके लाल रंग की वजह से और किडनी के आकार जैसा होने पर किडनी बीन्स भी कहा जाता है।यह प्रोटीन का मुख्य स्त्रोत है और मोलीबडेनम तत्व भी देता है। इसमें कोलैस्ट्रोल को कम करने वाले तत्व भी हैं। उत्तरी भारत में इसकी दाल भी बनाई जाती है। भारत में, महाराष्ट्र, जम्मू कश्मीर, हिमाचल प्रदेश,  उत्तराखंड, बंगाल,  तामिलनाडू,  केरल,  कर्नाटक मुख्य राजमांह उत्पादक राज्य हैं।

जलवायु

  • Season

    Temperature

    15-25°C
  • Season

    Rainfall

    60-150mm
  • Season

    Sowing Temperature

    22-25°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    28-30°C

पौधे की देखभाल

  • हानिकारक कीट और रोकथाम
थ्रिप : यह कीड़ा शुष्क मौसम में सबसे ज्यादा नुकसान करता है। यह पत्तों का रस चूसता है। जिस कारण पत्ते के किनारे मुड़ जाते हैं। फूल भी गिर पड़ते हैं। थ्रिप की जनसंख्या को जानने के लिए नीले रंग के 6-8 कार्ड प्रति एकड़ प्रयोग करें। इसके इलावा वर्टीसिलियम लेकानी 5 ग्राम प्रति लीटर की स्प्रे करें।
ज्यादा नुकसान के समय इमीडाक्लोप्रिड 17.8 एस एल या फिप्रोनिल 1 मि.ली. प्रति लीटर पानी या एसीफेट 75 प्रतिशत डब्लयु पी 1 ग्राम को प्रति लीटर पानी में डालकर स्प्रे करें।
 
  • Season

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    15-25°C
  • Season

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    60-150mm
  • Season

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    22-25°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    28-30°C
चेपा
चेपा : यह कीट पत्ते का रस चूसता है। जिस कारण पत्तों पर फफूंद लग जाती है और काले हो जाते हैं। यह फलियों को भी खराब कर देता है।
इसकी रोकथाम के लिए एसीफेट 75 डब्लयु पी 1 ग्राम प्रति लीटर पानी या मिथाइल डैमीटोन 25 ई.सी. 2 मि.ली. प्रति पानी में प्रयोग करें। कीटनाशक जैसे कि कार्बोफिरोन, फोरोट 4-8 किलो प्रति एकड़ मिट्टी में डालकर फसल बीजने से 15 और 60 दिनों के बाद छिड़कने चाहिए।
 
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    Sowing Temperature

    22-25°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    28-30°C
जूं
जूं : यह कीड़ा पूरे संसार में पाया जाता है। इसके नवजात शिशु पत्तों के नीचे की तरफ अपना भोजन बनाते हैं। प्रभावित पत्ते कप के आकार की तरह बन जाते हैं। ज्यादा नुकसान होने पर पत्ते गिर जाते हैं और टहनियां सूख जाती हैं।
यदि यह बीमारी ज्यादा बढ़ जाये तो क्लोरफिनापायर 15 मि.ली. प्रति लीटर एबामैक्टिन 15 मि.ली. प्रति लीटर के हिसाब से प्रभावित भाग में छिड़क दें। यह एक खतरनाक कीड़ा है। जो कि 80 प्रतिशत तक फसल की पैदावार का नुकसान करता है। इसकी रोकथाम के लिए स्पाइरोमैसीफैन 200 मि.ली. को 180 लीटर पानी में डाल कर प्रति एकड़ पर स्प्रे करें।
 
  • Season

    Temperature

    15-25°C
  • Season

    Rainfall

    60-150mm
  • Season

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    22-25°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    28-30°C