कुल्थी की फसल के बारे में जानकारी

आम जानकारी

यह एक दलहनी फसल है, जो कि बारानी और कम उपजाऊ भूमि में उगाने के लिए उपयुक्त है। इसका वानस्पतिक नाम “मैकरोटाइलोमा यूनीफलोरम” है। इसे खाना पकाने के उद्देश्य से उपयोग किया जाता है और इसे ताजा अंकुरित दाल के रूप में भी खाया जा सकता है। इसमें 22-23 प्रतिशत प्रोटीन की मात्रा होती है। प्रोटीन की मात्रा उच्च होने के कारण इसे पशुओं के भोजन के रूप में प्रयोग किया जाता है। इसके काफी स्वास्थ्य लाभ भी हैं। इसका उपयोग सर्दी और खांसी, मधुमेह, पथरी, कब्ज, ब्रोंकाइटिस, सामान्य बुखार और मूत्र रोगों के इलाज करने के लिए किया जाता है।

मिट्टी

इसे मिट्टी की व्यापक किस्मों में उगाया जा सकता है। यह ढलानी क्षेत्रों और अच्छे निकास वाली मिट्टी में उगाने पर अच्छे परिणाम देती है। इसकी उच्च तेजाबी या क्षारीय मिट्टी में खेती ना करें। 

प्रसिद्ध किस्में और पैदावार

Baiju (H.P.K.-4) : यह मध्यम फैलने वाली और जल्दी पकने वाली किस्म है जो कि 110-125 दिनों में पक जाती है। इसकी फलियां 4-5 सैं.मी. लंबी होती हैं और प्रत्येक फली में 4-5 दाने होते हैं। इसके दाने गहरे सलेटी रंग के होते हैं। इसके दाने बीमारियों के प्रतिरोधक होते हैं और गिरते नहीं हैं। इसकी औसतन उपज 7-8 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
दूसरे राज्यों की किस्में
 
KS 2 (1991) : यह जल्दी पकने वाली किस्म है जो 80-90 दिनों में पक जाती है। यह किस्म शुष्क क्षेत्रों में उगाने के लिए उपयुक्त है। इसके मध्यम आकार के बीज होते हैं जो भूरे रंग के होते हैं। बारानी क्षेत्रों में इसकी औसतन पैदावार 2.5 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
CO 1 (1953) : यह किस्म 110 दिनों में पक जाती है। इसके पौधे का कद 30-40 सैं.मी. होता है। इसके दाने पीले चितकबरे रंग के होते हैं (100 दानों का भार 4.6 ग्राम)। यह किस्म बारानी क्षेत्रों में उगाने के लिए उपयुक्त है। इसकी औसतन पैदावार 3-4 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Paiyur 1 (1988) : यह किस्म 110 दिनों में पक जाती है। इसके पौधे का कद 35-40 सैं.मी. होता है। इसके दाने हल्के भूरे रंग के होते हैं (100 दानों का भार 3.4 ग्राम)। यह किस्म बारानी क्षेत्रों में उगाने के लिए उपयुक्त है। इसकी औसतन पैदावार 4-4.5 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Paiyur 2 (1998) : यह किस्म 110-105 दिनों में पक जाती है। इसके पौधे का कद 40-45 सैं.मी. होता है। इसके दाने पीले भूरे रंग के होते हैं (100 दानों का भार 3.56 ग्राम)। यह किस्म बारानी क्षेत्रों में उगाने के लिए उपयुक्त है। इसकी औसतन पैदावार 3.5-4.5 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 

ज़मीन की तैयारी

कुल्थी की खेती के लिए मिट्टी के भुरभुरा होने तक खेत की जोताई करें। इसके लिए 3—4 जोताइयां आवश्यक होती हैं।

बिजाई

बिजाई का समय
बीज को मॉनसून के शुरू होने पर बोया जाता है इसे अंत जून - जुलाई के शुरू होने पर उगाया जाता है।

फासला
कतार से कतार में 30 सैं.मी. और पौधे से पौधे में 10-15 सैं.मी. फासले का प्रयोग करें।

बीज की गहराई
बीज को 1.5-2 सैं.मी. की गहराई में बोयें।
 
बिजाई का ढंग
गड्ढा खोदकर
बुरकाव विधि
 

बीज

बीज की मात्रा
एक एकड़ में 7.5-8 किलो बीज का प्रयोग करें और यदि मक्की के साथ इसकी मिश्रित खेती करनी हो तो 3-4 किलो बीज प्रति एकड़ में प्रयोग करें। 
 
बीज का उपचार
मिट्टी से होने वाली बीमारियों से बचाने के लिए किसी भी फंगसनाशी जैसे कार्बेनडाज़िम या थीरम 3 ग्राम से प्रति किलो बीज का उपचार करें। 
 

खाद

खादें (किलोग्राम प्रति एकड़)

 

UREA SSP MOP
14 115 -

 

तत्व (किलोग्राम प्रति एकड़)

 

NITROGEN PHOSPHORUS POTASH
6 18 -

 

बिजाई के समय नाइट्रोजन 6 किलो (यूरिया 14 किलो) और फास्फोरस 18 किलो (एस एस पी 115 किलो) प्रति एकड़ में प्रयोग करें। इस फसल के लिए पोटाश ज़रूरी नहीं होती। यदि इस फसल की मक्की के साथ मिश्रित खेती की गई हो तो नाइट्रोजन खाद की भी जरूरत नहीं है।

 

सिंचाई

खेत में नमी बनाए रखने के लिए, तुरंत सिंचाई करें। पहली सिंचाई बीज बोने के तुरंत बाद दें। अगली, जीवन बचाव सिंचाई बीज बोने के तीसरे दिन करें। इन सिंचाइयों के साथ, जब भी जरूरत पड़े, सिंचाई करें। फूल के विकसित होने, फलियां भरने और बीज के विकसित होने के समय सिंचाई की जरूरत होती है।

खरपतवार नियंत्रण

खेत को नदीन रहित करने के लिए 45 दिनों तक लगातार निराई, गोडाई करें और मेंड़ पर मिट्टी चढ़ाते रहें। यदि खरपतवार अनियंत्रित हो जाएं तो ये फसल की उपज को 70—90 प्रतिशत कम कर सकते हैं। नदीनों के अंकुरण से पहले फ्लूक्लोरालिन 800 मि.ली. को 200 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।

पौधे की देखभाल

  • हानिकारक कीट और रोकथाम
तने की मक्खी : यदि इसका हमला दिखे तो क्विनलफॉस 2 मि.ली. को प्रति लीटर पानी में मिलाकर 2 स्प्रे करें। दूसरी स्प्रे, पहली स्प्रे के 10 दिनों के बाद करें।
 
चेपा, पत्ते का टिड्डा और सफेद मक्खी : यदि इनका हमला दिखे तो मिथाइलडेमाटोन या डाइमैथोएट या ओबेरॉन 2 मि.ली. को प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।
 
  • बीमारियां और रोकथाम
जड़ गलन : इस बीमारी से पौधे जल्दी और पूरी तरह सूख जाते हैं। पत्ते पीले रंग के हो जाते हैं।
फसल को जड़ गलन से बचाने के लिए थीरम 3 ग्राम से प्रति किलो बीजों का उपचार करना चाहिए।
 
पत्तों के ऊपरी धब्बा रोग : यदि इनका हमला दिखे तो इस बीमारी से बचाव के लिए बवास्टिन घोल 1 प्रतिशत की स्प्रे करें।
 

फसल की कटाई

जब फलियां पूरी तरह सूख जायें तो वे कटाई के लिए तैयार हो जाती हैं। इनकी औसतन पैदावार 3-4 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।