उड़द की काश्त

आम जानकारी

यह भारत की महत्तवपूर्ण दाल वाली फसल है प्रोटीन और फासफोरस एसिड का उच्च स्त्रोत है। यह दाल बनाने के काम आती है और नाश्ते के लिए जरूरी सामग्री है। भारत में उड़द मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, पंजाब, महाराष्ट्र, पश्चिमी बंगाल, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में उगाई जाती है। 

जलवायु

  • Season

    Temprature

    15-30°C
  • Season

    Rainfall

    50-75cm
  • Season

    Sowing Temperature

    25-35°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    18-25°C
  • Season

    Temprature

    15-30°C
  • Season

    Rainfall

    50-75cm
  • Season

    Sowing Temperature

    25-35°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    18-25°C
  • Season

    Temprature

    15-30°C
  • Season

    Rainfall

    50-75cm
  • Season

    Sowing Temperature

    25-35°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    18-25°C
  • Season

    Temprature

    15-30°C
  • Season

    Rainfall

    50-75cm
  • Season

    Sowing Temperature

    25-35°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    18-25°C

मिट्टी

नमक वाली – क्षारीय मिट्टी और जल जमाव वाली मिट्टी उड़द की खेती के लिए उपयुक्त नहीं है। फसल के अच्छे विकास के लिए सख्त, दोमट या भारी मिट्टी की जरूरत होती है, जिसमें नमी बनाए रखने की क्षमता अच्छी होती है। 

प्रसिद्ध किस्में और पैदावार

Him mash-1 (U.P.U-0031) : यह किस्म उप पर्वतीय और कम पर्वतीय उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में बिजाई के लिए उपयुक्त है। इसके भूरे से काले रंग के दाने होते हैं जो अधिक उपज देते हैं। यह किस्म 74 दिनों में तैयार हो जाती है। यह किस्म पीले चितकबरे रोग, पत्ता मरोड़, एंथ्राक्नोस और सफेद धब्बों के प्रतिरोधक और सरकोस्पोरा धब्बा रोगों को काफी हद तक सहनेयोग्य है। इसकी औसतन पैदावार 5-6 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
U.G.-218 : यह जल्दी पकने वाली किस्म है जो 81 दिनों में पक जाती है। यह किस्म उप पर्वतीय और कम पर्वतीय उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में बिजाई के लिए उपयुक्त है। इस किस्म की बिजाई मार्च के पहले पखवाड़े में की जाती है। इसके पौधे का कद 30-40 सैं.मी. होता है। इसकी औसतन पैदावार 5 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Pant U-19 : यह किस्म 85 दिनों में पक जाती है। यह किस्म पीले चितकबरे रोग के प्रतिररोधक है पर यह पत्तों के धब्बा रोगों की काफी हद तक प्रतिरोधक है। इसकी औसतन पैदावार 3-4 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
P.D.U-1: इस किस्म का कद मध्यम, लंबी फलियां और मोटे दाने होते हैं। यह किस्म कुल्लू की पहाड़ियों में बिजाई के लिए उपयुक्त है। इसकी औसतन पैदावार 4-5 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
T-9 : यह सीधी और छोटे कद की किस्म है जिसके गहरे हरे रंग के पत्ते और पीले रंग के फूल होते हैं। इसके पौधे का कद लंबा, यह किस्म पहले हरे रंग की और पकने पर काले रंग की हो जाती है। इसके बीज मोटे आकार के होते हैं जिनमें प्रोटीन की मात्रा 23 प्रतिशत होती है। यह किस्म 95-100 दिनों में तैयार हो जाती है और 3-4 क्विंटल औसतन पैदावार देती है। 
 
Palampur-93 : यह किस्म सरकोस्पोरा पत्तों के धब्बा रोग और सफेद धब्बों के प्रतिरोधक है। यह कुल्लू और कांगड़ा क्षेत्रों के लिए उपयुक्त किस्म है। इसके पौधे का कद मध्यम होता है। यह किस्म 85-90 दिनों में तैयार हो जाती है। इसके दाने बड़े आकार के, गहरे काले रंग के और सख्त होते हैं। दानों में 26.2 प्रतिशत प्रोटीन की मात्रा होती है। 
 
दूसरे राज्यों की किस्में
 
TPU-4: राजस्थान के केंद्रीय हिस्से में खेती करने के लिए उपयुक्त किस्म है। यह किस्म 1992 में BARC/MAU द्वारा जारी की गई है। इसका पौधा सीधा, मध्यम लंबाई का और बीज मोटे जो कि हल्के काले रंग के होते हैं। इसकी औसतन पैदावार 3 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। यह किस्म 75 दिनों में पक जाती है।
 
WBU-108 : यह किस्म 1996 में BCKV द्वारा जारी की गई है। यह खरीफ मौसम की किस्म है। इसकी औसतन पैदावार 5 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। यह किस्म 85 दिनों में पक जाती है। यह किस्म पीले चितकबरे रोग की प्रतिरोधक है।
 
Barkha (RBU 38) : यह किस्म 1999 में RAU, बांसवाड़ा द्वारा जारी गई है। इसके बीज मोटे होते हैं। यह किस्म सरकोसपोरा पत्तों के धब्बे रोग की प्रतिरोधक है। इसकी औसतन पैदावार 5 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। यह किस्म 75 दिनों में पक जाती है।
IPU 94-1 : यह किस्म 1999 में IIPR द्वारा जारी गई है। यह किस्म पीले चितकबरे रोग की प्रतिरोधक है। यह खरीफ मौसम की किस्म है। इसकी औसतन पैदावार 4.5-5 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। यह किस्म 85 दिनों में परिपक्व हो जाती है।
 
Shekhar 2 (KU 300) : यह किस्म 2001 में CSAUAT द्वारा जारी गई है। इसकी औसतन पैदावार 4.5-5 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। यह किस्म 70 दिनों में पक जाती है।
 
Pant Urd 31 : यह जल्दी पकने वाली किस्म है। जो कि 2008 में जारी की गई है। इसकी औसतन पैदावार 6 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। यह किस्म 75-80 दिनों में पक जाती है।
 
Pant Urd 40 : यह जल्दी पकने वाली किस्म है। जो कि 2008 में जारी की गई है। इसकी औसतन पैदावार 5- 6 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। यह किस्म 70-75 दिनों में पक जाती है।
 
Vishwas (NUL-7) : यह किस्म 2012 में जारी की गई है। इसकी औसतन पैदावार 4 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। यह किस्म 69-73 दिनों में पक जाती है।
 
AL-15 :  यह जल्दी पकने वाली किस्म है। जो कि 135 दिनों में पक जाती है। फलियां गुच्छों में पैदा होती हैं। इसकी औसतन पैदावार 5.5 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
AL 201 : यह जल्दी पकने वाली किस्म है। पकने के लिए 140 दिनों का समय लेती है। इसका मुख्य तना किनारों की शाखाओं से मजबूत होता है। प्रत्येक फली में 3-5 पीले भूरे रंग के और मध्यम आकार के बीज होते हैं। इसकी औसतन पैदावार 6.2 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
PAU 881 : यह जल्दी पकने वाली किस्म है। पकने के लिए 132 दिनों का समय लेती है। पौधा 2 मीटर लंबा होता है। प्रत्येक फली में 3-5 पीले भूरे रंग के और मध्यम आकार के बीज होते हैं। इसकी औसतन पैदावार 5.6 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
UPAS-120 : यह ज्यादा जल्दी पकने वाली किस्म है। पकने के लिए 120-125 दिनों का समय लेती है। यह लंबी और अर्द्ध फैलने वाली किस्में हैं। इसके बीज छोटे और हल्के भूरे रंग के होते हैं। इसकी औसतन पैदावार 6-7 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। यह चितकबरे रोग के संवेदनशील किस्म है। 
 
ICPL 151 (Jagriti) : यह किस्म 120-130 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 4 से 5 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
PusaAgeti : यह छोटे और मोटे बीजों वाली किस्म है। यह 150-160 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 5 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Pusa 84 : मध्यम लंबी अर्द्ध फैलने वाली किस्म है। यह 140-150 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है।
 
IPA 203 and IPH 09-5 (Hybrid)
 

ज़मीन की तैयारी

बिजाई से पहले मिट्टी के भुरभुरा होने तक 2-3 बार जोताई करें। इस बात का ध्यान रखना चाहिए जब आखिरी बार जोताई करें, तब  ज़मीन अच्छे से समतल और अच्छे निकास वाली होनी चाहिए।

बिजाई

बिजाई का समय
यह फसल मॉनसून के शुरू होने पर अंत जून से जुलाई के पहले सप्ताह में बोयी जाती है। 
 
फासला
खरीफ की फसल के लिए, कतार से कतार में 30 सैं.मी. और पौधे से पौधे में 10 सैं.मी. का फासला रखें। रबी की फसल के लिए, कतार से कतार में 22.5 सैं.मी. और पौधे से पौधे में 7 सैं.मी. का फासला रखें।
 
बीज की गहराई
बीज को 4-6 सैं.मी. गहराई पर बोयें। 
 
बिजाई का ढंग
बिजाई के लिए केरा या पोरा ढंग अपनाएं या इसकी बिजाई, बिजाई वाली मशीन से करें।
 

बीज

बीज की मात्रा
7-7.5 किलो बीज प्रति एकड़ में प्रयोग करें। यदि अंतर फसली की गई हो, तो एक एकड़ में 4 किलो से ज्यादा बीज प्रयोग ना करें। 
 
बीज का उपचार
बिजाई से पहले बीज को कप्तान या थीरम या मैनकोजेब या कार्बेनडाज़िम 2.5 ग्राम से प्रति किलो बीज का उपचार करें और बाद में छांव में सुखाएं। रसायनों के बाद, बीज को राइज़ोबियम 2 ग्राम से प्रति किलो बीज का उपचार करें।
 
निम्नलिखित में से किसी एक फंगसनाशी/ कीटनाशक का प्रयोग करें
 

फंगसनाशी/कीटनाशी दवाई

मात्रा (प्रति किलोग्राम बीज)

     Carbendazim

2.5gm
Captan 2.5gm
Thiram 2.5gm
Mancozeb 2.5gm

 

 

खाद

खादें (किलोग्राम प्रति एकड़)

UREA SSP MOP
19 105 14

 

तत्व (किलोग्राम प्रति एकड़)

NITROGEN PHOSPHORUS POTASH
8 17 8

 

खेत की तैयारी के समय नाइट्रोजन 8 किलो (19 किलो यूरिया), फासफोरस 17 किलो(105 किलो सिंगल सुपर फासफेट) और पोटाश  8 किलो (म्यूरेट ऑफ पोटाश 14 किलो) प्रति एकड़ में डालें।

 

 

सिंचाई

उड़द की फसल खरीफ ऋतु में उगाई जाती है। यदि सिंचाई की आवश्यकता हो तो मौसम के अनुसार सिंचाई करें।

खरपतवार नियंत्रण

खेत को नदीनों से बचाने के लिए एक या दो बार गोडाई करें और पहली गोडाई बिजाई के 1 महीना बाद करें। नदीनों के लिए बिजाई से दो दिनों के अंदर अंदर पैंडीमैथालीन 1 लीटर प्रति एकड़ 100-200 लीटर पानी में डालकर स्प्रे करें।

पौधे की देखभाल

पीला चितकबरा रोग
  • बीमारियां और रोकथाम
पीला चितकबरा रोग : यह विषाणु रोग सफेद मक्खी के द्वारा फैलता है। पत्तों के ऊपर पीले और हरे रंग की धारियां पड़ जाती हैं और फलियां नहीं बनती।
इस बीमारी को सहनेयोग्य किस्मों का प्रयोग करें। सफेद मक्खी को रोकने के लिए थायामैथोक्सम 40 ग्राम, ट्राइज़ोफॉस 600 मि.ली. प्रति एकड़ की स्प्रे करें और 10 दिनों के बाद दूसरी स्प्रे करें।
 
पत्तों पर धब्बे
पत्तों पर धब्बे : इस बीमारी को रोकने के लिए बीज का कप्तान या थीरम से उपचार करें और सहनेयोग्य किस्मों का प्रयोग करें। यदि खेत में इसका नुकसान दिखे तो ज़िनेब 75 डब्लयु पी 400 ग्राम को प्रति एकड़ स्प्रे करें और 10 दिनों के अंतराल पर दो या तीन स्प्रे करें।
 
  • हानिकारक कीट और रोकथाम
रस चूसने वाले कीड़े (तेला, चेपा, सफेद मक्खी) : यदि इन कीटों द्वारा नुकसान दिखे तो मैलाथियॉन 375 मि.ली. या डाइमैथोएट 250 मि.ली. ऑक्सीमैथाटोन मिथाइल 250 मि.ली. प्रति एकड़ की स्प्रे करें। 
 
सफेद मक्खी के लिए, थायामैथोक्सम 40 ग्राम या ट्राइज़ोफॉस 600 मि.ली. प्रति एकड़ की स्प्रे करें। यदि जरूरत पड़े तो 10 दिनों के बाद दूसरी स्प्रे करें।
 
तंबाकू सुंडी
तंबाकू सुंडी : यदि खेत में इसका हमला दिखे तो एसीफेट 57 एस पी 800 ग्राम या क्लोरपाइरीफॉस 20 ई सी 1.5 लीटर प्रति एकड़ की स्प्रे करें। जरूरत पड़ने पर 10 दिनों के बाद दूसरी स्प्रे करें।
 
बालों वाली सुंडी : कम हमले की सूरत में सुंडियों को इकट्ठा करके कैरोसीन वाले पानी में डालकर नष्ट करें। यदि हमला बढ़ जाये तो क्विनलफॉस 500 मि.ली. या डाइक्लोरोवास 200 मि.ली. प्रति एकड़ डालकर स्प्रे करें।
 
फली छेदक : यह खतरनाक कीड़ा है और भारी नुकसान करता है। इसका हमला होने पर इंडोएक्साकार्ब 14.5 एस सी 200 मि.ली. या एसीफेट 75 एस पी 800 ग्राम या स्पाइनोसैड 45 एस सी 60 मि.ली. प्रति एकड़ की स्प्रे करें।
 
जूं : नुकसान होने की सूरत में डाइमैथोएट 30 ई सी 150 मि.ली. प्रति एकड़ की स्प्रे करें।
 
ब्लिस्टर बीटल
ब्लिस्टर बीटल : ये कीड़े फूल निकलने के समय हमला करते हैं ये फूलों और कलियों को खाते हैं, जिस कारण दाने नहीं बनते।
 
यदि इसका नुकसान दिखे तो इंडोएक्साकार्ब 14.5 एस सी 200 मि.ली. या 75 एस सी 800 ग्राम प्रति एकड़ की स्प्रे करें। जरूरत पड़ने पर 10 दिनों के बाद दूसरी स्प्रे करें।
 

फसल की कटाई

पत्तों के गिरने और फलियों का रंग भूरा काला होने पर कटाई करें। फसल की दरांती से कटाई करें और सूखने के लिए खेत में बिछा दें। गहाई करके दानों को फलियों से अलग करें।