हिमाचल प्रदेश में अरहर की फसल

आम जानकारी

यह एक महत्वपूर्ण दलहनी फसल है और प्रोटीन का उच्च स्त्रोत है। यह फसल ऊष्ण और उप ऊष्ण क्षेत्रों में उगाई जाती है। यह कम वर्षा वाले क्षेत्रों की एक महत्वपूर्ण दाल है और अकेली या अनाजों के साथ उगाई जा सकती है। यह मिट्टी में नाइट्रोजन को बांध के रखती है। भारत में यह आंध्र प्रदेश , गुजरात, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र हिमाचल प्रदेश और उत्तर प्रदेश आदि क्षेत्रों में मुख्य तौर पर उगाई जाती है| हिमाचल प्रदेश में अरहर की खेती 125 एकड़ ज़मीन में की जाती है और इसकी औसतन पैदावार 1-2 क्विंटल प्रति एकड़ होती है| यह मुख्य तौर पर कम पहाड़ी क्षेत्रों में होती है| हिमाचल प्रदेश में हमीरपुर, कांगड़ा ज़िले के नूरपुर क्षेत्र में और सिरमौर ज़िले के पौंटा क्षेत्र में उगाई जाती है|

जलवायु

  • Season

    Temperature

    30-35°C (max)
    15-18°C (min)
  • Season

    Rainfall

    600-650mm
  • Season

    Sowing Temperature

    25-33°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    35-40°C
  • Season

    Temperature

    30-35°C (max)
    15-18°C (min)
  • Season

    Rainfall

    600-650mm
  • Season

    Sowing Temperature

    25-33°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    35-40°C
  • Season

    Temperature

    30-35°C (max)
    15-18°C (min)
  • Season

    Rainfall

    600-650mm
  • Season

    Sowing Temperature

    25-33°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    35-40°C
  • Season

    Temperature

    30-35°C (max)
    15-18°C (min)
  • Season

    Rainfall

    600-650mm
  • Season

    Sowing Temperature

    25-33°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    35-40°C

मिट्टी

यह मिट्टी की कई किस्मों में उगाई जा सकती है पर उपजाऊ और बढ़िया जल निकास वाली दोमट मिट्टी में यह बढ़िया परिणाम देती है। खारी और पानी खड़ा रहने वाली ज़मीनें इसकी काश्त के लिए बढ़िया नही हैं। इसकी बढ़िया खेती के लिए यह अच्छे निकास वाली मिट्टी जिसका 6.5-7.5 pH में बढ़िया उगाई जा सकती है|

प्रसिद्ध किस्में और पैदावार

Sarita (I.C.P.L.-85010):  यह किस्म उन क्षेत्रों में उगाई जाती है जहां पर अरहर-गेहूं का फसली-चक्र होता है| यह किस्म छोटे कद की और जल्दी पकने वाली किस्म है, जो कि 150-155 दिनों में पक जाती है| इसकी औसतन पैदावार 6 क्विंटल प्रति एकड़ होती है|
 
दूसरे राज्यों की किस्में
 
Pusa 855: यह किस्म 1993 में जारी की गई है। इसकी औसतन पैदावार 4-5 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। यह परिपक्व होने में 145-150 दिनों का समय लेती है। इसके बीज मध्यम मोटे होते हैं।
 
Pusa 922: यह किस्म IARI  द्वारा 2002 में जारी की गई है। इसकी औसतन पैदावार 7.5-8 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। यह परिपक्व होने में 130-140 दिनों का समय लेती है।
 
Pusa 992: यह किस्म IARI  द्वारा 2004 में जारी की गई है। इसकी औसतन पैदावार 7 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। यह परिपक्व होने में 119-162 दिनों का समय लेती है।
 
T 21: यह किस्म 1974 में जारी की गई है। इसके पौधे का कद 180-230 सैं.मी. होता है। यह परिपक्व होने में 140-180 दिनों का समय लेती है। इसकी औसतन पैदावार 4-5 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Prabhat: यह किस्म 1976 में जारी की गई है। यह किस्म 115-135 दिनों में परिपक्व हो जाती है और इसकी औसतन पैदावार 5-6 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। इसके पीले रंग के बीज (50-55 ग्राम प्रति 1000 बीज) होते हैं।
 
Gwalior 3: इस किस्म के पौधे का कद 225-275 सैं.मी. होता है। यह किस्म 180-250 दिनों में परिपक्व हो जाती है और इसकी औसतन पैदावार 3-4 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
AL-15 : यह कम समय वाली किस्म है और 135 दिनों में पकती हैं इसकी फलीयां गुच्छेदार होती हैं और औसतन पैदावार 5.5 क्विंटल प्रति एकड़ होता है।
 
AL 201: यह भी जल्दी पकने वाली किस्म है और 140 दिनों में पकती है। इसका तना टहनियों से मजबूत होता है। प्रत्येक फली में 3-5 पीले-भूरे रंग के बीज होते हैं और औसतन पैदावार 6.2 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
PAU 881:  यह भी जल्दी पकने वाली किस्म है और 132 दिन लेती है। पौधे 2 मी. लंबे होते हैं और फली में 3-5 दाने होते हैं। औसतन पैदावार 5.6 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
PPH 4:  यह पंजाब का पहला अरहर का हाईब्रिड है। यह किस्म 145 दिनों में पकती है। पौधे 2.5 से 3 मी. लंबे होते हैं। प्रत्येक फली में 5 पीले-भूरे दाने होते हैं। औसतन पैदावार 7.2-8 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
UPAS-120 : यह किस्म (120-125 दिनों) बहुत जल्दी पकने वाली है। इसका पौधा छोटा और फैलने वाला होता है। बीज छोटे और हल्के भूरे रंग के होते हैं। इसकी औसतन पैदावार 16-20 क्विंटल प्रति हैकटेयर होती है। यह किस्म स्टैरिलिटी मौसेक को सहनेयोग्य है।
 
ICPL 151 (Jagriti) :  यह 120-130 दिनों में कटने के लिए तैयार हो जाती है और इसकी औसतन पैदावार 4-5 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Pusa Ageti : यह किस्म 150-160 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है इसकी औसतन पैदावार 5 क्विंटल प्रति एकड़ है। 
 
Pusa 84: यह माध्यम लंबी होती हैं  यह किस्म 140-150 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है।
 
IPA 203 और  IPH 09-5 (Hybrid) किस्में है।
 

सिंचाई

बिजाई से 3-4 सप्ताह बाद पहली सिंचाई करें| बाकी की सिंचाई वर्षा के अनुसार करें। फूल  निकलने और फलियों बनने की अवस्थाएं सिंचाई के लिए गंभीर अवस्थाएं होती हैं इसलिए अच्छी पैदावार के लिए इन अवस्थाओं में सिंचाई बहुत ज़रूरी है। ज्यादा पानी देने से भी पौधे की वृद्धि ज्यादा होती है, फाइटोपथोरा और झुलस रोग भी ज्यादा आता है। आधे सितंबर के बाद सिंचाई ना करें, यह फसल के पकने पर प्रभाव डालेगा।

ज़मीन की तैयारी

खेत की तैयारी के लिए, गहरी जोताई के बाद 2-3 बार तवीयों से जोताई करें और खेत को सुहागे के साथ समतल करें । यह फसल खड़े पानी को सह नहीं सकती, इसीलिए खेत में पानी खड़े रहने से रोकें ।
 
फसली चक्र : अरहर का गेहूं, जौं, सेंजी या गन्ने के साथ फसली चक्र अपनाएं ।
 

पौधे की देखभाल

ब्लिस्टर बीटल
  • हानिकारक कीट और रोकथाम
ब्लिस्टर बीटल: इसे फूलों का टिड्डा भी कहा जाता है जो कि फूलों को खाता है और फलीयों की मात्रा को कम करता है। जवान कीड़े काले रंग के होते हैं जिनके अगले पंख पर लाल धारियां होती हैं। इसको रोकने के लिए डैलटामैथरीन 28 ई.सी. 200 मि.ली. या इंडोक्साकार्ब 14.5 एस.सी. 200 मि.ली. प्रति एकड़ 100-125 ली. पानी में डाल कर छिड़काव करें। छिड़काव शाम के समय करो और 10 दिनों के फासले पर करें।
 

बीज

बीज की मात्रा 
अधिक पैदावार के लिए, 6 किलो प्रति एकड़ बीजों का प्रयोग करें ।
 
बीज का उपचार
बिजाई के लिए तंदरुस्त, मोटे बीज चुनें और उन्हें कार्बेनडाज़िम या थीरम 2 ग्राम से प्रति किलो बीजों का उपचार करें| रासायन उपचार के बाद, बीज को टराईकोडरमा व्यराईड 4 ग्राम प्रति किलो या फिर स्यूडोमोनास फ्लोरेसेन्स10 ग्राम प्रति किलो बीजों का उपचार करें|
 
फंगसनाशी/कीटनाशी नाम मात्रा (प्रति किलोग्राम बीज)
Carbendazim 2gm
Thiram 3gm
 
 
 
फली छेदक सुंडी

फली छेदक : यह एक महत्वपूर्ण कीड़ा है जो कि 75% तक पैदावार को कम कर देता है। यह पत्तों, फूलों औरफलीयों को खाता है। फलीयों के ऊपर गोल आकार में छेद हो जाते हैं। खेत में हैलीकोवरपा अरमीजेरा के लिए फेरोमोन पिंजरे लगाएं । यदि नुकसान कम हो तो कीड़ों को हाथों से भी मारा जा सकता है। शुरूआत में एच.एन.पी.वी. या नीम एक्सटै्रक्ट 50 ग्राम प्रति लि. पानी का छिड़काव करें । यदि इसका नुकसान दिखे तोफसल को इंडोक्साकार्ब 14.5 एस.सी. 200 मि.ली. या स्पिनोसैड 45 एस.सी. 60 मि.ली. प्रति 100-125 ली. पानी का छिड़काव शाम के समय करें।

खरपतवार नियंत्रण

रासायनिक नदीनों की रोकथाम
बिजाई से 3 सप्ताह बाद पहली और 6 सप्ताह बाद दूसरी गोडाई करें| बिजाई से 2 दिन के अंदर  नदीनों के अंकुरण से पहले पैंडीमैथालीन 1 लीटर को 150-200 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ पर डालें, और फिर बिजाई के 6-7 सप्ताह बाद हाथों से गोड़ाई करें|
 
  • बीमारियां और रोकथाम
पत्तों पर धब्बे : पत्तों के ऊपर हल्के और गहरे भूरे रंग के धब्बे दिखाई देते हैं। बहुत ज्यादा बिमारी होने पर यह पेटीओल और तने पर हमला करती है। इसको रोकने के लिए बीज बिमारी मुक्त हो और बीज को थीरम 3 ग्राम प्रति किलो के साथ
उपचार करें ।
 

खाद

खादें (किलोग्राम प्रति एकड़)

UREA DAP or SSP MOP ZINC
13 63 180 - -

 

तत्व (किलोग्राम प्रति एकड़)

NITROGEN PHOSPHORUS POTASH
6 28 -

 

नाइट्रोजन 6 किलो (13 किलो यूरिया), फासफोरस 28 किलो (सिंगल सुपर फासफेट 180 किलो) प्रति एकड़ में डालें।

 

 

मुरझाना : यह बीमारी पैदावार को कम करती है। यह शुरू में और पकने वाली फसल को नुकसान करती है। शुरू में पत्ते गिर जाते हैं और हल्के हरे हो जाते हैं और बाद में पत्ते पीले पड़ जाते हैं। इस बीमारी की प्रतिरोधी किस्मों का प्रयोग करें। हमले की शुरूआत में 1 किलोग्राम ट्राइकोडरमा को 200 किलोग्राम रूड़ी की खाद में मिलाकर तीन दिनों तक रखें और प्रभावित भाग में डालें। यदि खेत में बीमारी का हमला अधिक हो जाये तो 300 मि.ली. प्रॉपीकोनाज़ोल को 200 लीटर पानी में डालकर प्रति एकड़ पर छिड़काव करें।
 

कोढ़ रोग : यह बहुत सारी फंगस के कारण होती है। इस में तने और टहनियों के ऊपर धब्बे बन जाते हैं और जख्मी हिस्से टूट जाते हैं। फसली चक्र अपनाएं और बहुत ज्यादा नुकसान की हालत में मैनकोज़ेब 75 डब्लयु पी 2 ग्राम प्रति लीटर का छिडकाव करें।

फूल ना बनना
फूल ना बनना: यह बिमारी इरीओफाईड कीट के साथ होती है। इसके हमले से फूल नहीं बनते और पत्ते हल्के रंग के हो जाते हैं।
 
प्रतिरोधक किस्मों का प्रयोग करें। इसको रोकने के लिए फेनाज़ाकुईन 10 % ई सी 300 मि.ली. प्रति एकड़ 200 लीटर पानी में मिला कर छिड़काव करें।
 
 
फाइटोपथोरा सटैम बलाईट

फाइटोपथोरा सटैम बलाईट: यह बिमारी शुरूआत में आती है और पत्ते मर जाते हैं। तने के ऊपर भूरे गोल और बेरंग धब्बे पड़ जाते हैं और पत्ता जला हुआ लगता है।

इसको रोकने के लिए मैटालैकसीकल 8 % +मैनकोज़ोब 64% 2 ग्राम प्रति लि. का छिड़काव करें।

फसल की कटाई

सब्जी के तौर पर प्रयोग करने के लिए पत्तों और फलीयों के हरे होने पर कटाई करें। और दानों वाली फसल के लिए, 75-80% फलीयों के सूखने पर कटाई की जाती है। कटाई में देरी होने पर बीज खराब हो जाते हैं। कटाई हाथों और मशीनों द्वारा की जा सकती है। कटाई के बाद पौधों को सूखने के लिए सीधे रखें। छंटाई करके या डंडे से कूट कर दानों को पौधे से अलग किया जाता हैं|

कटाई के बाद

बीज का भंडारण करने से पहले उन्हें अच्छी तरह से सुखाएं। भंडारण के समय दानों को दालों के कीट के हमले से बचायें।