मूंगफली फसल की जानकारी

आम जानकारी

मूंगफली विश्व की तीसरी और भारत में दूसरी सबसे महत्तवपूर्ण तेल बीज फसल है। इसे कईं अन्य नामों से भी जाना जाता है जैसे इर्थनुट्स, ग्राउंडनट्स, गूबर पीस, मौकीनट्स,  पिगमीनट्स और पिगनट्स यह नज़दीकी भाषा में कहते है| यह लैग्यूम परिवार से संबंधित है।  किस्म और कृषि स्थितियों के आधार पर बीजों में तेल की मात्रा 44-50 % होती है। इसके तेल का उपयोग खाना बनाने, कॉसमैटिक, साबुन बनाना आदि के लिए किया जाता है।
भारत में यह आम तौर पर उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राज्यस्थान, गुजरात,  महांराष्ट्र,  कर्नाटक,  आंध्रा प्रदेश और तामिलनाडू आदि क्षेत्रों में उगाई जाती है। हिमाचल प्रदेश में, मूंगफली की खेती पंजाब और हरियाणा के निकटवर्ती क्षेत्रों में जैसे ऊना, नालागढ़ और पांवटा आदि क्षेत्रों में की जाती है| इस फसल की औसतन पैदावार 5.5 क्विंटल प्रति एकड़ होती है|

जलवायु

  • Season

    Temperature

    20-30°C
  • Season

    Rainfall

    50-75cm
  • Season

    Sowing Temperature

    25-35°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    18-35°C
  • Season

    Sowing Temperature

    18-20°C
  • Season

    Temperature

    20-30°C
  • Season

    Rainfall

    50-75cm
  • Season

    Sowing Temperature

    25-35°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    18-35°C
  • Season

    Sowing Temperature

    18-20°C
  • Season

    Temperature

    20-30°C
  • Season

    Rainfall

    50-75cm
  • Season

    Sowing Temperature

    25-35°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    18-35°C
  • Season

    Sowing Temperature

    18-20°C
  • Season

    Temperature

    20-30°C
  • Season

    Rainfall

    50-75cm
  • Season

    Sowing Temperature

    25-35°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    18-35°C
  • Season

    Sowing Temperature

    18-20°C

मिट्टी

अच्छे जल निकास और चिकनी दोमट वाली ज़मीन में मूंगफली बीजी जाती है। अच्छे जल निकास वाली मिट्टी, जिसका pH 6.5-7 और उपजाऊ ज़मीनों में इसकी फसल बहुत अच्छी होती है। भारी जमीनें मूंगफली के लिए अनुकूल नहीं हैं क्योंकि भारी ज़मीनों में फलियां कम विकसित होती हैं।

प्रसिद्ध किस्में और पैदावार

Punjab Mungphali No. 1 यह फैलने वाली किस्म है और बारानी इलाकों में उगाने के लिए अनुकूल है। यह किस्म 130 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है और इसकी औसतन पैदावार 7.5 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।

M-45: यह भी फैलने वाली किस्म है लेकिन Punjab Mungphali No. 1 किस्म से कम फैलती है। यह किस्म सिंचित और बारानी क्षेत्रों में उगाने के लिए उपयुक्त है। यह किस्म 122 दिनों में तैयार हो जाती है।

M-13: यह किस्म भी फैलने वाली और बहुत तेजी से उगने वाली किस्म है। इस किस्म की औसतन पैदावार 12.5 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। यह किस्म 137 दिनों में तैयार हो जाती है। इसके दाने मोटे होते हैं जिनमें 49 प्रतिशत तेल की मात्रा होती है।

C-501: यह मध्यम फैलने वाली किस्म है जो कि सिंचित इलाकों में रेतली दोमट और दोमट मिट्टी में उगाने के लिए उपयुक्त है।

M-37: यह फैलने वाली किस्म है। यह किस्म 120 दिनों में तैयार हो जाती है। यह सिंचित इलाकों में रेतली मिट्टी में उगाने के लिए अनुकूल है। इसकी औसतन पैदावार 6.5 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। इसमें 50.5 प्रतिशत तेल की मात्रा होती है।

दूसरे राज्यों की किस्में

RS 1: यह फैलने वाली किस्म है। इसके मध्यम आकार के दाने होते हैं। यह किस्म 135-140 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 6-8 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।

RSB 103-87: यह अर्द्ध फैलने वाली किस्म है, जिसकी औसतन पैदावार 7-8 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।

RG 510 (Raj Mungphali): यह फैलने वाली किस्म है। यह 125-130 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। यह सिंचित क्षेत्रों में उगाने के लिए उपयुक्त है। मूंगफली मध्यम आकार और गुलाबी रंग की होती हैं। इसकी औसतन पैदावार 10-12.8 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।

RG 425 (Raj Durga): यह अर्द्ध फैलने वाली किस्म है। यह किस्म 125-130 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। मूंगफली गुलाबी और सफेद रंग की होती हैं। असिंचित हालातों में औसतन पैदावार 6-8 क्विंटल प्रति एकड़ और सिंचित क्षेत्रों में 12-14.4 क्विंटल प्रति एकड़ देती है। यह तना गलन रोग की प्रतिरोधक किस्म है|

Girnar 2: यह अर्द्ध फैलने वाली किस्म है। यह किस्म 125-130 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसके बीज बड़े और हल्के भूरे रंग के होते हैं। सिंचित हालातों में इसकी औसतन पैदावार 10-12 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।

TG 37 A: यह गुच्छेदार, जल्दी पकने वाली किस्म है। यह किस्म 100-110 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। यह हल्की के साथ साथ भारी मिट्टी में भी उगाने के लिए उपयुक्त है। इसकी औसतन पैदावार 7-8 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।

RG 382 Durga: यह फैलने वाली किस्म है। यह 128-133 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। यह रेतली से दोमट मिट्टी में उगाने के लिए अनुकूल है। इसके दाने बड़े और गुलाबी रंग के होते हैं। इसकी औसतन पैदावार 8.8-10 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।

RG 141: यह गुच्छेदार किस्म है। 125-130 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसके दाने बड़े होते हैं और औसतन पैदावार 4-6.4 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।

JL 24: यह गुच्छेदार, जल्दी पकने वाली किस्म है। यह 90 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। यह पानी की कमी वाले क्षेत्रों में भी जीवित रह सकती है। यह किस्म तना गलन रोग के प्रतिरोधक है। इसकी औसतन पैदावार 4-6 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।

RS 138: यह अर्द्ध फैलने वाली किस्म है। यह 110-116 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। दाने गहरे गुलाबी रंग के होते हैं। इसकी औसतन पैदावार 6-7 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।

RSV 87: यह अर्द्ध फैलने वाली किस्म है। यह 120-130 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। यह भारी मिट्टी में उगाने के लिए उपयुक्त किस्म है। इसके दाने गहरे गुलाबी रंग के होते हैं। इसकी औसतन पैदावार 5.6-6.4 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।

GG 7: खरीफ मौसम में इस किस्म की खेती करने की सिफारिश की गई है। इसकी औसतन पैदावार 8.5 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।

GG 21: इस किस्म के बीज गहरे और भूरे आकर्षक रंग के होते हैं। इसकी फलियों की उच्च पैदावार होती है। इसकी गिरियों की औसतन पैदावार 4.9 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।

ज़मीन की तैयारी

एक वर्ष के बाद उसी खेत में मूंगफली बीजने से परहेज़ करें। मूंगफली का अंतर-फसली अनाज की फसलों के साथ करें। बिजाई से पहले खेत को साफ करें और पिछली फसल की खूंटियों को निकाल दें। 15-20 सैं.मी. की गहराई तक ज़मीन की  जोताई करें और मिट्टी को भुरभुरा बनाने के लिए अच्छी तरह जोताई करें। खेती करने के लिए हैरो और हल का प्रयोग करें।

बिजाई

बिजाई का समय
बारानी हालातों में मूंगफली की बिजाई मानसून के शुरू होने, जून के अंतिम सप्ताह या जुलाई के पहले सप्ताह में शुरू करें। बिजाई जितनी जल्दी हो सके पूरी कर लें, क्योंकि देरी से बिजाई करने पर पैदावार में कमी आती है।

फासला
खरीफ मौसम में, अर्द्ध फैलने वाली किस्मों का प्रयोग करें, कतारों में 40-45 सैं.मी. और पौधों में 10-15 सैं.मी. फासले का प्रयोग करें। ना फैलने वाली किस्मों के लिए कतारों में 30 सैं.मी. और पौधों में 10 सैं.मी. फासले का प्रयोग करें।
Punjab Mungphali No. 1 के लिए पौधों में 22 सैं.मी., M-45 के लिए 15 सैं.मी., M-13 किस्म के लिए 22 सैं.मी. और C-501 के लिए 15 सैं.मी. फासले का प्रयोग करें|

बीज की गहराई
सीड ड्रिल की सहायता से 5 सैं.मी. की गहराई में फलियों को बोयें।

बिजाई का ढंग

बीजों को सीड ड्रिल की सहायता से बोया जाता है। मूंगफली की बिजाई के लिए बिजाई की मशीने भी उपलब्ध है|

बीज

बीज की मात्रा
Punjab Mungphali No. 1 के लिए 28 किलो ,  M-45 के लिए 36 किलो, M-13 किस्म के लिए 36 किलो और C-501 के लिए 32 किलो प्रति एकड़ बीजो का प्रयोग करें|

बीजों का उपचार
बिजाई के लिए सेहतमंद गिरियों का प्रयोग करना चाहिए। सूखी छोटी और बीमारी वाली गिरियां बिजाई के लिए प्रयोग ना करें। मिट्टी से होने वाली बीमारियों से बचाने के लिए गिरियों को थीरम 3 ग्राम या 3 ग्राम कप्तान या कार्बनडैज़िम 2 ग्राम प्रति किलो बीजों का उपचार करें| रासायनिक उपचार के बाद, टराईकोडरमा विराइड 4 ग्राम या स्यूडोमोनास फ्लूरोसैंस 10 ग्राम प्रति किलो से बीजों का उपचार करें| बीज उपचार जड़ गलन और तना गलन बीमारियों से नए पौधों की सुरक्षा होती है।

फंगसनाशी/कीटनाशी के नाम मात्रा (प्रति किलो)
Carbendazim 2gm
Captan 3gm
Thiram 3gm

खरपतवार नियंत्रण

अच्छी पैदावार के लिए, पहले 45 दिन फसल को नदीनों से बचाना बहुत जरूरी होता है। दो बार गोड़ाई करनी चाहिए, पहली गोड़ाई बिजाई के तीन सप्ताह बाद और दूसरी पहली गोडाई के तीन सप्ताह बाद करें| फलूकोरालिन 600 मि.ली. या पैंडीमैथालीन 1 लीटर प्रति एकड़ नदीनों के पैदा होने से पहले स्प्रे करें।

मेंढ़ पर मिट्टी चढ़ाना: यह एक जरूरी प्रक्रिया है, जो कि बिजाई के 40-45 दिनों के बाद की जाती है। इसकी मदद से पौधे आसानी से मिट्टी में चले जाते हैं जिससे फलियों के विकास में वृद्धि होती है।

खाद

खादें (किलोग्राम प्रति एकड़)

CAN SSP
MOP
26 103 17

 

तत्व (किलोग्राम प्रति एकड़)

NITROGEN PHOSPHORUS POTASH
6.5 16.5 10

 

मिट्टी की जांच के आधार पर खादों की मात्रा डालें। मूंगफली की पूरी फसल को नाइट्रोजन 6.5 किलो (सी ऐ एन 26 किलो), फासफोरस 16.5 किलो (सिंगल सुपर फासफेट 104 किलो) और पोटाश 10 किलो (म्युरेट ऑफ पोटाश 16.5 किलो) प्रति एकड़ में डालें। यह खादें बिजाई के समय छींटे द्वारा या ड्रिल द्वारा डालें|

पानी में घुलनशील खादें: फलियों के सुधार के लिए तत्वों के घोल की स्प्रे आवश्यक है| डी ऐ पी 2.5 किलो,  अमोनियम सलफेट 1 किलो और बोरेक्स 500 ग्राम को 37 लीटर पानी में पूरी रात के लिए भिगोएं| अगली सुबह इसे छानकर 32 लीटर मिश्रण प्राप्त किया जा सकता है और इसे 234 लीटर पानी से पतला किया जा सकता है ताकि एक एकड़ में स्प्रे के लिए 200 लीटर घोल बनाया जा सके। स्प्रे के दौरान प्लैनोफिक्स 4 मि.ली. को 15 लीटर पानी में मिलाकर मिश्रित किया जा सकता है। यह स्प्रे बिजाई के बाद 25वें और 35वें दिन की जा सकती है।

 

सिंचाई

फसल की अच्छी वृद्धि के लिए मौसमी वर्षा के आधार पर दो या तीन बार सिंचाई करनी आवश्यक है। फूल बनने, फली के विकास का समय सिंचाई के लिए नाज़ुक समय होता है। इन अवस्थाओं के समय पानी की कमी ना होने दें।

पौधे की देखभाल

चेपा
  • हानिकारक कीट और रोकथाम

चेपा: इस कीड़े का हमला कम वर्षा पड़ने पर ज्यादा होता है। यह काले रंग के छोटे कीड़े पौधों का रस चूसते है, जिस कारण पौधों का विकास रुक जाता हैं और पौधा पीला दिखाई देता है| यह पौधे पर चिपचिपा पदार्थ छोड़ते हैं, जो बाद में फंगस लगने के कारण काला हो जाता है।

इसकी रोकथाम के लिए रोगोर 300 मि.ली. या इमीडाक्लोप्रिड 17.8 % एस एल 80 मि.ली.या मिथाईल डीमिटन 25 % ई.सी. 300 मि.ली. की स्प्रे लक्षण दिखने पर प्रति एकड़ में करें।

सफेद सुंडी

सफेद सुंडी: इसकी भुंडी जून-जुलाई में पहले बारिश होने पर मिट्टी में से निकलती है। यह भुंडी आस पास के वृक्ष जैसे कि बेर, रूकमणजानी, अमरूद, अंगूर की बेल और बादाम आदि पर इकट्ठे होते हैं और रात को पत्तों को खाती है। यह मिट्टी में अंडे देती हैं और उनमें से निकली सफेद सुंडी मूंगफली की छोटी जड़ों या जड़ों के बालों को खा जाती हैं।

इसकी प्रभावशाली रोकथाम के लिए खेत की मई-जून में दो बार जोताई करें ताकि सारे कीट ज़मीन से बाहर आ जाएं। फसल की बिजाई में देरी ना करें। बिजाई से पहले कलोरोपाइरीफॉस 20 ई.सी. 12.5 मि.ली. से प्रति किलो बीजों का उपचार करें। भुंडीयों की रोकथाम के लिए  कारबरिल 900 ग्राम को 100 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें। यह स्प्रे मध्य-जुलाई तक हर बारिश के बाद तक करते रहें| बिजाई के समय या उससे पहले 4 किलो फोरेट या 13 किलो कार्बोफिउरॉन प्रति एकड़ में डालें|

बालों वाली सुंडी

बालों वाली सुंडी: यह कीट ज्यादा गिनती में हमला करते हैं, जिससे पत्ते झड़ जाते हैं। इसका लार्वा लाल-भूरे रंग का होता है, जिसके शरीर पर काले रंग की धारियां और लाल रंग के बाल होते है|

बारिश के तुरंत बाद 3 या 4 रोशनी यंत्रों का प्रयोग करें। खेत में से अण्डों को इकट्ठा करके नष्ट कर दें। सुंडियों को फैलने से रोकने के लिए प्रभावित खेत के पास 30 सैं.मी. गहरे और 25 सैं.मी. चौड़े गड्ढे खोदें। शाम के समय खेत में ज़हर की गोलियां रख दें। जहरीली गोलियां बनाने के लिए 10 किलो चावल का आटा, 1 किलो गुड़ और 1 लीटर क्यूनोफॉस मिला दें। लार्वे की रोकथाम के लिए 300 मि.ली. क्यूनोफॉस प्रति एकड़ में डालें| बढ़ी सुंडियों की रोकथाम के लिए 200 मि.ली. डाइक्लोरोवॉस 100 ई सी को 200 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ में स्प्रे करें।

मूंगफली के पत्तों का सुरंगी कीट

मूंगफली के पत्तों का सुरंगी कीट: इसका लार्वा पत्तों में सुराख कर के पत्तों में सुराख़ करके पत्तों पर जामुनी रंग के धब्बे बना देते हैं। कुछ समय बाद यह झुण्ड बनाकर पत्तों पर रहते हैं। यह मुड़े हुए पत्तों में रहती है। गंभीर हमले के कारण फसल झुलसी हुई दिखाई देती है| प्रति एकड़ में 5 रोशनी यंत्रों का प्रयोग करें। डाईमैथोएट 30 ई.सी. 300 मि.ली. या मैलाथियॉन 50 ई.सी. 400 मि.ली. या मिथाइल डेमेटॉन 25%  ई.सी. 200 मि.ली. प्रति एकड़ में डालें|

दीमक

दीमक: यह  कीट फसल की जड़ों और तने में जा कर पौधों को नष्ट करता है| यह फलियों और बीजों में सुराख़ करके नुकसान पहुंचाता है।इसके हमले से पौधा सूखना शुरू हो जाता है।

अच्छी तरह गली हुई रूड़ी की खाद का प्रयोग करें। फसल की पुटाई देर से ना करें। इसके बचाव के लिए बिजाई से पहले प्रति किलो बीजों का 6.5 मि.ली. क्लोरोपाइरीफॉस से उपचार करें| बिजाई से पहले विशेष खतरे वाले इलाकों में 2 लीटर क्लोरोपाइरीफॉस का छिड़काव प्रति एकड़ में करें|

फली छेदक

फली छेदक: यह छोटे पौधों में सुराख़ बना देते हैं और अपना मल छोड़ते है| इसके छोटे कीट शुरू में सफेद रंग के होते  हैं और फिर भूरे रंग की के हो जाते हैं।

प्रभावित इलाकों में मैलाथियोन 5 डी 10 किलो या कार्बोफिरॉन 3 % सी जी 20 किलो प्रति एकड़ में मिटटी में बिजाई से 40 दिन पहले डालें।

टीका और पत्तों के ऊपर धब्बा रोग
  • बीमारियां और रोकथाम

टीका और पत्तों के ऊपर धब्बा रोग: इसके कारण पत्तों के ऊपरी हिस्से पर गोल धब्बे पड़जाते है, और आस पास हल्के पीले रंग के चक्र होते हैं।

इस बीमारी रोकथाम के लिए सही बीज का चुनाव करें| सेहतमंद और बेदाग बीजों का ही प्रयोग करें। बिजाई से पहले प्रति किलो बीजों को 5 ग्राम थीरम(75%) या 3 ग्राम इंडोफिल एम-45(75%) से उपचार करें। फसल के ऊपर घुलनशील सलफर 50 डब्लयू पी 500-750 ग्राम 200-300 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ में स्प्रे करें। यह स्प्रे अगस्त के पहले सप्ताह में शुरू करें और 15 दिनों के फासले पर कुल 3-4 स्प्रे करें । सिंचित फसलों पर कार्बेनडाज़िम (बाविस्टिन, डीरोसोल, एग्रोज़िम) 50 डब्लयू पी 500 ग्राम को 200 लीटर पानी में मिलकर प्रति एकड़ में स्प्रे करें। बिजाई से 40 दिन बाद 15 दिन के फासले पर 3 स्प्रे करें|

बीज गलन या जड़ गलन

बीज गलन या जड़ गलन: यह बीमारी एसपरजिलस निगर के कारण होती है। यह फल के निचली जड़ों वाले भाग पर हमला करती है| इससेपौधे पहले सूख कर फिर नष्ट हो जाते है| इसकी रोकथाम के लिए बीजों का उपचार बहुत जरूरी होता है। प्रति किलो बीजों का 3 ग्राम कप्तान या थीरम से उपचार करें|

आल्टरनेरिया झुलस रोग

झुलस रोग: इससे पौधे के पत्तों पर हल्के से गहरे भूरे रंग धब्बे पड़ जाते हैं। बाद में प्रभावित पत्ते अंदर की तरफ मुड़ जाते है और भुरभुरे हो जाते है| ए. आलटरनेटा द्वारा पैदा हुए धब्बे, गोल और पानी वाले होते है, जो पत्ते की पूरी सतह पर फैल जाते है|

अगर इसका हमला दिखाई दें तो मैनकोजेब 3 ग्राम या कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 3 ग्राम और कार्बेनडाज़िम 4 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर डालें|

कुंगी

कुंगी: इससे सबसे पहले पत्तों के निचली तरफ दाने बन जाते हैं। यह फूल और शिखर को छोड़कर पौधे के प्रत्येक हिस्से पर होती है। गंभीर हमले से प्रभावित पत्ते अकर्मक हो कर सूख जाते है, पर पौधे से जुड़े रहते हैं।

इस बीमारी का हमला दिखने पर 400 ग्राम मैनकोजेब या क्लोरोथैलोनिल 400 ग्राम या घुलनशील सल्फर 100 ग्राम प्रति एकड़ की स्प्रे करें। जरूरत पड़ने पर दूसरी स्प्रे 15 दिनों के बाद दोबारा करें।

कमी और इसका इलाज

पोटाशियम की कमी
इसकी कमी से पत्ते बढ़ते नहीं है और बे-ढंगे हो जाते है| पके हुए पत्ते पीले दिखाई देते है और नाड़ियां हरी रहती है|
इसकी पूर्ति के लिए मिउरेट ऑफ पोटाश 16-20 किलो प्रति एकड़ में डालें।

कैल्शियम की कमी
यह कमी ज्यादातर हल्की या तेज़ाबी मिट्टी में पाई जाती है| इसकी कमी से पौधे पूरी तरह से नहीं विकास करते और मुड़े हुए नज़र आते है|
इसकी पूर्ति के लिए जिप्सम 200 किलो प्रति एकड़ में खूंटी बनने के समय डालें|

लोहे की कमी
इसकी कमी से पत्ते सफेद दिखाई देते है|
इसकी पूर्ति के लिए सल्फेट 5 ग्राम + सिटरिक एसिड 1 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर एक सप्ताह के फासले पर स्प्रे करें। स्प्रे तब तक जारी रखें जब तक कमी पूरी ना हो जाये।

जिंक की कमी
इसकी कमी से पौधे के पत्ते गुच्छों में दिखाई देते हैं, पत्तों का विकास रूक जाता है और छोटे नज़र आते हैं।
इसकी पूर्ति के लिए जिंक सल्फेट 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें। यह स्प्रे 7 दिनों के फासले पर 2-3 बार करें|

सल्फर की कमी
इसकी कमी से नए पौधों का विकास रूक जाता है और आकार में छोटे नज़र आते हैं छोटे पत्ते भी पीले हो जाते है| पौधे के पकने में देरी होती है।
इसकी पूर्ति के लिए जिप्सम 200 किलो प्रति एकड़ पर बिजाई और खूंटी बनने के समय डालें|

फसल की कटाई

खरीफ की ऋतु में बोयी फसल नवंबर महीने में पक जाती है, जब पौधे एक जैसे पीले हो जाते है और पुराने पत्ते झड़ने शुरू हो जाते है| अंत-अप्रैल से अंत-मई में बोई गयी फसल मानसून के बाद अंत-अगस्त और सितंबर में पक जाती है| सही पुटाई के लिए मिट्टी में नमी होनी चाहिए और फसल को ज्यादा पकने ना दें| जल्दी पुटाई के लिए पंजाब खेतीबाड़ी यूनिवर्सिटी की तरफ से तैयार किये गए मूंगफली की पुटाई करने वाले यंत्र का प्रयोग करें| पुटाई की हुई फसल के छोटे-छोटे ढेरों को कुछ दिन के लिए धुप में पड़े रहने दें| इसके बाद 2-3 दिनों के लिए फसल को एक जगह पर इकट्ठा करके रोज़ाना 2-3 बार तरंगली से झाड़ते रहे, ताकि फलियों और पत्तों को पौधे से अलग किया जा सके| फलियों और पत्तों को इकट्ठा करके देर लगा दें| स्टोर करने से पहले फलियों को 4-5 दिनों के लिए धुप में सूखा लें|

कटाई के बाद

फलियों को साफ और छांटने के बाद बोरियों में भर दें और हवा के अच्छे बहाव के लिए प्रत्येक 10 बोरियों को चिनवा दें। बोरियों को गलने से बचाने के लिए बोरियों के नीचे लकड़ी के टुकड़े रख दें।

गिरियां तैयार करना: खानेयोग्य गिरियों को छिलके से अलग कर लें| भारत धुली हुई, भुनी हुई और सूखी हुई गिरियां तैयार करने के लिए भी जाना जाता है|