तोरिया की खेती

आम जानकारी

तोरिया को तिलहनी तोरिया, रापा और रप्पी के नाम से भी जाना जाता है। तोरिया जल्दी पकने वाली फसल है और इसे सभी रबी फसलों से पहले उगाया जा सकता है। इसके पौधे का कद 100 सैं.मी. होता है। इसके पौधे के चमकीले पीले रंग के फूल होते हैं। इस फसल को मुख्य रूप से उगाया जाता है क्योंकि इसमें तेल की उच्च विशेषताएं होती हैं। यह भारत में वानस्पतिक तेल का तीसरा सबसे बड़ा स्त्रोत है।
 
हिमाचल प्रदेश में इसे 1000 मीटर की ऊंचाई वाले कम पर्वतीय क्षेत्रों में उगाया जाता है। मक्की की कटाई के बाद, तोरिया की खेती मध्य सितंबर से अंत सितंबर में की जाती है। 15 सप्ताह के बाद इसकी कटाई की जाती है और जल्दी पकने वाली गेहू या आलू किस्मों को उगाया जाता है।
 

मिट्टी

तोरिया की खेती के लिए, रेतली, दोमट और हल्की मिट्टी अच्छी होती है। खारी मिट्टी में इसकी खेती ना करें।

प्रसिद्ध किस्में और पैदावार

DK-1: यह जल्दी पकने वाली किस्म है। इसकी औसतन पैदावार 2.5 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Bhvaani: इस किस्म का पौधा छोटा, लंबी फलियां और चमकदार भूरे रंग के बीज होते हैं। यह जल्दी पकने वाली किस्म है, इसलिए थ्रिप्स के प्रतिरोधक किस्म है। यह किस्म 70-80 दिनों में तैयार हो जाती है और इसकी औसतन पैदावार 3-3.5 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
दूसरे राज्यों की किस्में
 
T-9 (1978): यह किस्म सिंचित क्षेत्रों में अच्छे जल निकास वाली प्रणाली में उगाने के लिए उपयुक्त है। यह किस्म 85-100 दिनों में पक जाती है और 5-6 क्विंटल प्रति एकड़ उपज देती है। इसके भूरे रंग के बीज होते हैं जिनमें तेल की मात्रा 44 प्रतिशत होती है।
 
Sangam (1974): यह किस्म सिंचित क्षेत्रों में उगाने के लिए उपयुक्त है। यह किस्म 105 दिनों में पक जाती है और 6 क्विंटल प्रति एकड़ उपज देती है। इसके बीज में तेल की मात्रा 42-44 प्रतिशत होती है।

TL 15 (1982): यह किस्म 85-90 दिनों में पक जाती है और औसतन पैदावार 4 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 

ज़मीन की तैयारी

तोरिया की खेती मुख्य रूप से सिंचित क्षेत्रों में की जाती है जहां अच्छा जल निकास हो। मॉनसून के मौसम में पहली जोताई की जाती है उसके बाद 3-4 जोताई की जाती है। बिजाई के 3-4 सप्ताह पहले ज़मीन की तैयारी की जानी चाहिए। 

बिजाई

बिजाई का समय
बिजाई 25 सितंबर से पहले कर लेनी चाहिए।
 
फासला
कतारों में 30 सैं.मी. फासले का प्रयोग करें।
 
बीज की गहराई
बीज को 2-3 सैं.मी. की गहराई पर बोयें।
 
बिजाई का ढंग
बिजाई के लिए पोरा या केरा ढंग का प्रयोग किया जाता है।
 

बीज

बीज की मात्रा
4-5 किलो बीज प्रति एकड़ में प्रयोग करें।
 
बीज का उपचार
बीज को मिट्टी से होने वाली बीमारियों से बचाने के लिए बिजाई से पहले बीज को मैनकोजेब 2.5 ग्राम या कप्तान 3 ग्राम से प्रति किलो बीज का उपचार करें।
 

खाद

खादें (किलोग्राम प्रति एकड़)

UREA SSP MOP
54 105 25

 

तत्व (किलोग्राम प्रति एकड़)

NITROGEN PHOSPHORUS POTASH
25 16 15

 

सिंचित क्षेत्रों के लिए, गाय का गोबर 30-40 क्विंटल प्रति एकड़ मिट्टी में खेत की तैयारी के समय अच्छी तरह मिलायें।
बिजाई के समय, नाइट्रोजन 25 किलो (यूरिया 54 किलो) और फासफोरस 16 किलो (एस एस पी 100 किलो), और पोटाशियम 15 किलो (म्यूरेट ऑफ पोटाश 25 किलो) प्रति एकड़ में डालें। नाइट्रोजन की आधी मात्रा और फासफोरस की पूरी मात्रा को बिजाई के समय डालें। बाकी की मात्रा पहली सिंचाई के समय डालें।
 

 

 

सिंचाई

अच्छी खेती के लिए, तोरिया की फसल को 2 सिंचाइयों की आवश्यकता होती है। पहली सिंचाई बिजाई के 30-35 दिनों के बाद और फूल विकसित होने से पहले करें और दूसरी सिंचाई बिजाई के 70-80 दिनों के बाद करें। यदि सिर्फ एक सिंचाई उपलब्ध हो तो इसे फल विकसित होने के बाद दें। 

खरपतवार नियंत्रण

यदि नदीनों की मात्रा ज्यादा हो तो बिजाई के  20-25 दिनों के बाद गोडाई करें।

पौधे की देखभाल

  • बीमारियां और रोकथाम
सूखा : यदि सूखे का हमला देखा जाए तो सल्फर पाउडर की 8 किलो प्रति एकड़ में स्प्रे करें।
 
आल्टरनेरिया  झुलस रोग : इससे पत्तियां बेरंग हो जाती हैं और पौधे से गिर जाती हैं। छोटे पौधे और पुराने पत्ते इस बीमारी के प्रति काफी संवेदनशील होते हैं।
 
इस रोग को रोकने के लिए फसली चक्र अपनायें। सोए की फसल समान खेत में लगातार ना उगायें। साफ बीज का प्रयोग करें। बिजाई से पहले बीज को गर्म पानी में 50 डिगरी सैल्सियस पर 25-30 मिनट के लिए भिगोयें। यदि इसका हमला दिखे तो मैनकोजेब 3 ग्राम को प्रति लीटर पानी में मिलाकर फोलियर स्प्रे करें।
 
  • हानिकारक कीट और रोकथाम
चितकबरी भुंडी : यह मुख्य रूप से बिजाई के 7-10 दिनों के बाद हमला करती है। इस कीट की रोकथाम के लिए मिथाइल पैराथियॉन 2 प्रतिशत या मैलाथियोन 5 प्रतिशत 8-10 किलो की प्रति एकड़ में स्प्रे करें।
 
चमकीली पीठ वाला पतंगा : इस कीट की रोकथाम के लिए क्विनलफॉस 25 ई सी 300 मि.ली. की प्रति एकड़ में स्प्रे करें।
 
सफेद मक्खी : यदि सफेद मक्खी का हमला दिखे तो मिथाइल पैराथियॉन 5 प्रतिशत 10 किलो की प्रति एकड़ में स्प्रे करें और सिंचित क्षेत्रों में डाइमैथोएट 30 ई सी 300 मि.ली. की प्रति एकड़ में स्प्रे करें।
 
सफेद बग : यदि इसका हमला दिखे तो डाइमैथोएट 30 ई सी 300 मि.ली. की प्रति एकड़ में स्प्रे करें। जरूरत पड़ने पर यह स्प्रे 20 दिनों के अंतराल पर करें।
 

फसल की कटाई

अंत दिसंबर से जनवरी के पहले सप्ताह में कटाई की जाती है। पत्तों के गिरने और फलियों के पीले रंग के होने पर कटाई की जाती है। इसकी औसतन पैदावार 4-6 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।