तिल की फसल के बारे में जानकारी
फूल की मक्खी : यह पौधे के फूल वाले भाग से भोजन लेती है। प्रभावित पौधे पर फल विकसित नहीं होते।
 
शुरूआती समय में, नीम का घोल 3 ग्राम को 10 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें। यदि हमला ज्यादा हो तो कार्बरिल 50 डब्लयु पी 900 ग्राम को 200 लीटर पानी या डाइमैथोएट 20 मि.ली. को 10 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।
 

आम जानकारी

भारत विश्व में तिल का सबसे बड़ा उत्पादक देश है। कम समय की फसल होने के कारण इसे पूरे वर्ष उगाया जा सकता है। इसके बीज से निकाला गया तेल खाने के लिए प्रयोग किया जाता है। बीज दो रंगो में उपलब्ध होते हैं- काले और सफेद। तिल हिमाचल प्रदेश की महत्तवपूर्ण तिलहनी फसल है। जिसे सूखे, ढलान वाले और कम उपजाऊ क्षेत्रों में उगाया जाता है। इसकी औसतन पैदावार 2.5 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।

जलवायु

  • Season

    Temperature

    27-33°C
  • Season

    Rainfall

    400-600mm
फल छेदक
फल छेदक : नए कीट पत्तों को मोड़ देते हैं और उनको अपना भोजन बनाते हैं। पौधे से किसी भी शाखा का विकास नहीं होता। फूल निकलने की अवस्था में, ये फूल से भोजन लेते हैं जिससे पैदावार पर प्रभाव पड़ता है।
 
शुरूआती समय में, नीम का घोल 3 ग्राम को 10 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें। यदि हमला ज्यादा हो तो कार्बरिल 50 डब्लयु पी 900 ग्राम को 200 लीटर पानी या डाइमैथोएट 20 मि.ली. को 10 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।
 
  • Season

    Temperature

    27-33°C
  • Season

    Rainfall

    400-600mm
सिर वाला पतंगा
बाज के सिर वाला पतंगा : ये कीट पत्तों पर हमला करते हैं और उन्हें अपना भोजन बनाते हैं। प्रभावित पौधा कोई भी टहनी पैदा नहीं करता।
 
यदि इसका हमला दिखे तो कीटों को इक्ट्ठा करें और खेत से दूर ले जाकर नष्ट करे दें। इनका हमला दिखने पर कार्बरिल 800 ग्राम प्रति एकड़ में छिड़काव करें।
 

मिट्टी

तिल की खेती के लिए अच्छे निकास वाली हल्की से दरमियानी मिट्टी जिसमें पानी को रोक कर रखने की अच्छी क्षमता हो, उपयुक्त होती है। मिट्टी की पी एच 5 से 8 होनी चाहिए। क्षारीय और तेजाबी मिट्टी में तिल की खेती ना करें।

फाइलोडी
  • बीमारियां और रोकथाम
फाइलोडी : पौधा फूल उत्पादन नहीं करता, जिससे फूल वाला भाग पत्ते के आकार जैसे हो जाता है।
 
प्रभावित पौधे को निकाल दें और खेत से दूर ले जाकर नष्ट कर दें। फोरेट 4 किलो प्रति एकड़ में डालें या डाइमैथोएट 20 मि.ली. को 10 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।
 

प्रसिद्ध किस्में और पैदावार

Brajeshwari (LTK-4) : यह अधिक उपज वाली किस्म है जो कि सारे क्षेत्रों में उगाने के लिए उपयुक्त है। यह मध्यम लंबे समय की किस्म है जिसकी ज्यादा शाखाएं होती हैं। इसके बीज में 48-49 प्रतिशत तेल की मात्रा होती है। इसकी औसतन पैदावार 2.5-3.5 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Punjab Sesame No. 1: यह फैलने वाली किस्म है जिसके बीज बड़े और सफेद रंग के होते हैं। इसके बीज में 52 प्रतिशत तेल की मात्रा होती है। इसकी औसतन पैदावार 2 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
दूसरे राज्यों की किस्में
 
Pratap (C 50) : यह लंबी किस्म 100-105 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसके बीज सफेद रंग के होते हैं, जिनमें तेल की मात्रा 50 प्रतिशत होती है। इसकी औसतन पैदावार 2 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
RT 46 : इस किस्म के बीज सफेद होते हैं जिनमें तेल की मात्रा 50 प्रतिशत होती है। इसकी औसतन पैदावार 2.8 क्विंटल म प्रति एकड़ होती है।
 
T 13 : यह किस्म राजस्थान में हल्की मिट्टी के लिए उपयुक्त है। इसकी औसतन पैदावार 2.4 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
TC 25: यह किस्म राजस्थान में हल्की मिट्टी के लिए उपयुक्त है। यह 80-85 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसके बीज सफेद रंग के जिनमें तेल की मात्रा 48.4 प्रतिशत होती है। इसकी औसतन पैदावार 2 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।

JTS 8

Pragati
 
RT 103, RT 125, RT 54, RT 46

RT 127, RT 346, RT 351
 
हाइब्रिड किस्में

SVPR-1, TMV 4, TMV 5, TMV 3, CO-1, TMV 6, VRI (SV)-1, VRI (SV)-2
 
पत्तों के ऊपरी धब्बा रोग
पत्तों के ऊपरी धब्बा रोग : नए पत्तों के ऊपर सफेद रंग के धब्बे हो जाते हैं। इससे फल पकने से पहले ही गिर जाते हैं।
 
यदि खेत में इनका हमला दिखे तो  घुलनशील सलफर 25 ग्राम या डिनोकैप 5 मि.ली. को 10 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें। यदि जरूरत पड़े तो 10 दिनों के अंतराल पर दूसरी स्प्रे करें।
 

ज़मीन की तैयारी

खेत की देसी हल की सहायता से एक बार जोताई करें। उसके बाद 1-2 क्रॉस जोताई करें। मिट्टी को समतल करें ताकि खेत में पानी खड़ा ना हो सके।

सरकोस्पोरा पत्ता धब्बा रोग
सरकोस्पोरा पत्ता धब्बा रोग : पत्तों पर छोटे भूरे रंग के धब्बे दिखाई देते हैं। ज्यादा हमले के कारण पत्ते भी गिर जाते हैं।
 
इस बीमारी का खेत में हमला दिखने पर मैनकोजेब 2 ग्राम या कप्तान 2 ग्राम या कार्बेनडाज़िम 2 ग्राम को प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।
 

बिजाई

बिजाई का समय
तिल की खेती के लिए उपयुक्त समय मॉनसून का शुरूआती समय है। इसे जून के आखिरी सप्ताह से जुलाई में बोया जाता है, लेकिन बिजाई के लिए जुलाई का महीना सबसे अच्छा होता है।पिछेती बिजाई से इस फसल को फाइलोडी बीमारी से बचाया जा सकता है।

फासला
कतार से कतार में 30 सैं.मी. और पौधे से पौधे में 15 सैं.मी. फासले का प्रयोग करें। Punjab Sesame No. 1 की बिजाई के लिए कतार में 15-20 सैं.मी. फासले का प्रयोग करें।
 
बीज की गहराई
तिल के बीज को ज्यादा गहराई में ना बोयें। बीजों को 3-4 सैं.मी. की गहराई पर बोयें।
 
बिजाई का ढंग
तिल की बिजाई के लिए पोरा या ड्रिल विधि का प्रयोग किया जाता है।
 
जड़ गलन
जड़ गलन : प्रभावित जड़ें गहरे भूरे रंग की हो जाती हैं और ज्यादा हमला होने पर पौधा मर भी जाता है।
 
एक ही खेत में एक ही फसल ना बोयें और अंतरफसली अपनायें। बिजाई से पहले, कार्बेनडाज़िम 2.5 ग्राम से प्रति किलो बीज का उपचार करें। कार्बेनडाज़िम 2 ग्राम को प्रति लीटर पानी में मिलाकर मिट्टी में छिड़कें।
 

फसल की कटाई

जब पत्ते और फल रंग बदल कर पीले रंग के हो जायें और पत्ते गिरना शुरू हो जायें, तब फसल कटाई के लिए तैयार हो जाती है। कटाई में देरी करने से फलियां सूखकर गिरने लगती हैं। 

बीज

बीज की मात्रा
एक एकड़़ में 2 किलो बीज का प्रयोग करें।

बीज का उपचार
मिट्टी से होने वाली बीमारियों से बचाने के लिए बीज को कार्बेनडाज़िम 2 ग्राम या थीरम 4 ग्राम को प्रति लीटर पानी में मिलाकर प्रति किलो बीज का उपचार करें। रासायनिक उपचार के बाद, ट्राइकोडरमा विराइड या ट्राइकोडरमा 4 ग्राम से प्रति किलो बीज का उपचार करें।
 

कटाई के बाद

कटाई के बाद, फसल को बंडलों में इक्ट्ठा करें और अच्छे से सुखाने के लिए कई दिनों तक फर्श पर ढेर लगा दें। लाठियां मारकर बीज को फसल से अलग कर लें। सफाई के बाद बीज को तीन दिनों के लिए धूप में सुखाएं। उसके बाद बोरियों में स्टोर करके रख दें।

खाद

तत्व (किलोग्राम प्रति एकड़)

NITROGEN PHOSPHORUS POTASH
24 16 8

 

खादें (किलोग्राम प्रति एकड़)

UREA SSP MOP
50 100 13

 

खेत की तैयारी के समय, अच्छी तरह से गला हुआ गाय का गोबर 12.5 टन प्रति एकड़ में डालें। बिजाई के समय पूरी नाइट्रोजन, फासफोरस और पोटाश का बुरकाव करें।

 

 

 

 

सिंचाई

खरीफ के मौसम में वृद्धि के लिए कम सिंचाई की आवश्यकता होती है। बारिश की तीव्रता और नियमितता के आधार पर सिंचाई करें। फूल निकलने और फल बनने के समय पानी की कमी ना होने दें।

खरपतवार नियंत्रण

खेत को नदीन मुक्त करने के लिए, बिजाई के 20-25 दिन बाद पहली गोडाई करें। दूसरी गोडाई बिजाई के 40-45 दिन बाद करें। नदीनों की रासायनिक रोकथाम के लिए उनके अंकुरण से पहले फलूक्लोरालिन 800 मि.ली. या एलाक्लोर 600 मि.ली. को 100 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ में डालें।

पौधे की देखभाल

बिहारी बालों वाली सुंडी
  • हानिकारक कीट और रोकथाम
बिहारी बालों वाली सुंडी : यह कीट तने को छोड़कर पत्तों और पौधे के पूरे भाग को अपना भोजन बनाती है।
 
यदि इसका हमला दिखे तो डाइमैथोएट 20 मि.ली. को 10 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।