हिमाचल प्रदेश में ज्वार की फसल

आम जानकारी

यह माना जाता है कि ज्वार उत्तरी अफ्रीका और मिश्र-सुदनीस बॉर्डर पर 5000-8000 वर्ष पहले की उत्पन्न हुई फसल है। यह भारत के अनाजों में तीसरी महत्तवपूर्ण फसल है। यू एस ए और अन्य कईं देशों में  यह फसल चारे के लिए और कईं फैक्टरियों में कच्चे माल में प्रयोग की जाती है। यू एस ए ज्वार की पैदावार में सबसे आगे है। भारत में महांराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, गुजरात, तामिलनाडू, राजस्थान और उत्तर प्रदेश ज्वार के मुख्य उत्पादक राज्य हैं। 
 
हिमाचल प्रदेश में इसे मुख्यत: 1500 मीटर की ऊंचाई वाले क्षेत्रों में उगाया जाता है। यह लगभग 250 क्विंटल प्रति एकड़ उपज देती है। सिंचाई की उपलब्धता के आधार पर एक वर्ष में दो फसलों को उगाया जा सकता है।। जैसे पहली फसल को मार्च- जून के महीने में और दूसरी फसल को मॉनसून के मौसम में (जून- अक्तूबर) उगाया जाता है।
 

जलवायु

  • Season

    Temperature

    25-32°C
  • Season

    Rainfall

    40cm
  • Season

    Sowing Temperature

    25-30°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    16-18°C
  • Season

    Temperature

    25-32°C
  • Season

    Rainfall

    40cm
  • Season

    Sowing Temperature

    25-30°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    16-18°C
  • Season

    Temperature

    25-32°C
  • Season

    Rainfall

    40cm
  • Season

    Sowing Temperature

    25-30°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    16-18°C
  • Season

    Temperature

    25-32°C
  • Season

    Rainfall

    40cm
  • Season

    Sowing Temperature

    25-30°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    16-18°C

मिट्टी

इसे मिट्टी की व्यापक किस्मों में उगाया जाता है लेकिन अच्छे निकास वाली दोमट मिट्टी इसकी खेती के लिए उपयुक्त है। इसकी खेती और अच्छी वृद्धि के लिए मिट्टी की पी एच 6 से 7.5 होनी चाहिए।

प्रसिद्ध किस्में और पैदावार

SSG-59-3: यह जल्दी पकने वाली किस्म है, जिसका तना पतला और पत्ते चौड़े होते हैं। इसकी आसानी से 2-3 कटाई की जा सकती है। पहली कटाई बिजाई के 55-60 दिनों के बाद और दूसरी कटाई, पहली कटाई के 35-40 दिनों के बाद की जाती है। इसकी औसतन पैदावार 165-220 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
MP Chari: यह मध्यम पकने वाली किस्म है। इस किस्म की पहली कटाई बिजाई के 55-60 दिनों के बाद की जाती है। चारे के लिए इसकी औसतन पैदावार 145-150 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। 
 
दूसरे राज्यों की किस्में
 
CSV 15: इस किस्म के पौधे का कद 232 सैं.मी. होता है। यह किस्म 100-112 दिनों में पक जाती है। इस किस्म के दानों की औसतन उपज 15 क्विंटल और चारे की 50 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
CSV 17: इस किस्म के पौधे का कद 133-140 सैं.मी. होता है। यह किस्म 97 दिनों में पक जाती है। इस किस्म के दानों की औसतन उपज 10 क्विंटल और चारे की 30 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
CSV 20: इस किस्म के पौधे का कद 240 सैं.मी. होता है। यह किस्म 109 दिनों में पक जाती है। इस किस्म के दानों की औसतन उपज 12 क्विंटल और चारे की 55 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
CSV 22: इस किस्म के पौधे का कद 180-200 सैं.मी. होता है। यह किस्म 120 दिनों में पक जाती है। इस किस्म के दानों की औसतन उपज 9 क्विंटल और चारे की 20 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
CSV 23: इस किस्म के पौधे का कद 215 सैं.मी. होता है। यह किस्म 110-115 दिनों में पक जाती है। इस किस्म के दानों की औसतन उपज 10-12 क्विंटल और चारे की 65 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
SSV 84: इस किस्म के पौधे का कद 277 सैं.मी. होता है। यह किस्म 120-125 दिनों में पक जाती है। इस किस्म के दानों की औसतन उपज 9-10 क्विंटल और चारे की 145-150 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
CSH 14: इस किस्म के पौधे का कद 170-200 सैं.मी. होता है। यह किस्म 105-120 दिनों में पक जाती है। इस किस्म के दानों की औसतन उपज 15-17 क्विंटल और चारे की 35-40 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। 
 
CSH 16: इस किस्म के पौधे का कद 180 सैं.मी. होता है। यह किस्म 110 दिनों में पक जाती है। इस किस्म के दानों की औसतन उपज 17 क्विंटल और चारे की 40 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
CSH 17: इस किस्म के पौधे का कद 203 सैं.मी. होता है। यह किस्म 103 दिनों में पक जाती है। इस किस्म के दानों की औसतन उपज 17 क्विंटल और चारे की 43 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
CSH 27: इस किस्म के पौधे का कद 180-200 सैं.मी. होता है। यह किस्म 106 दिनों में पक जाती है। इस किस्म के दानों की औसतन उपज 12 क्विंटल और चारे की 55 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। 
 
Rajasthan Chari 1: इस किस्म के पौधे का कद 199-220 सैं.मी. होता है। यह किस्म 85-90 दिनों में पक जाती है। इस किस्म के चारे की औसतन उपज 160-200 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Rajasthan Chari 2: इस किस्म के पौधे का कद 190-220 सैं.मी. होता है। यह किस्म 70 दिनों में पक जाती है। इस किस्म के चारे की औसतन उपज 125-150 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Pratap Chari 1080: इस किस्म के पौधे का कद 240-260 सैं.मी. होता है। यह किस्म 60-65 दिनों में पक जाती है। इस किस्म के दानों की औसतन उपज 15 क्विंटल और चारे की 145-150 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Pratap Jowar 1430: इस किस्म के पौधे का कद 180-200 सैं.मी. होता है। यह किस्म 90-95 दिनों में पक जाती है। इस किस्म के दानों की औसतन उपज 15-18 क्विंटल और चारे की 47-50 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
SL44:  यह मीठी, रसीली, पतले तने वाली किस्म पूरे पंजाब में खरीफ ऋतु में सिंचित हालातों के लिए अनुकूल है। इसकी औसतन पैदावार 240 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Punjab Sudax Chari 1: यह ज्वार की हाइब्रिड किस्म है। इसका पौधा लंबा और पत्ते लंबे चौड़े होते हैं। इसका तना मीठा और रसदार होता है। यह समय पर बोयी जाने वाली फसल है इसकी तीन कटाइयां की जाती हैं। यह पत्तों पर लाल धब्बा रोग के प्रतिरोधक है। इसकी औसतन पैदावार 480 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
S.S.G-59-3
 
M.P. Chari
 
Pusa Chari
 
HC 136
 
Pusa Chari 9
 
Pusa Chari 23
 
HC 260, HC 171
 
Harasona 855 F
 
MFSH 3
 

ज़मीन की तैयारी

प्रत्येक वर्ष गहरी से मध्यम गहरी मिट्टी में एक गहरी जोताई करें। क्रॉस हैरो के बाद 1-2 बार जोताई करें। खेत इस तरह से तैयार करें कि खेत में पानी खड़ा ना रहे।

बिजाई

बिजाई का समय
इसकी बिजाई के लिए मध्य मार्च -अप्रैल का समय उपयुक्त होता है। मॉनसून फसल के लिए बिजाई मॉनसून के शुरू होने पर की जाती है।
 
फासला
बिजाई के लिए 45 सैं.मी.x15 सैं.मी. या 60 सैं.मी.x10 सैं.मी.फासले का प्रयोग करें।
 
बीज की गहराई
बीज को 2-3 सैं.मी. की गहराई से ज्यादा नहीं बोना चाहिए।
 
बिजाई का ढंग
उत्तरी भारत में ज्वार की बिजाई बुरकाव करके या फिर हलों के द्वारा पंक्तियों में बोयी जाती है। बिजाई के लिए बिजाई वाली मशीन का प्रयोग किया जाता है।
 

बीज

बीज की मात्रा
बिजाई के लिए 22 किलो बीज प्रति एकड़ में प्रयोग करें।
 
बीज का उपचार
फसल को मिट्टी से होने वाली बीमारियों से बचाने के लिए बिजाई से पहले , 300 मैश सल्फर पाउडर 4 ग्राम और अज़ोटोबैक्टर 25 ग्राम से प्रति किलो बीज का उपचार करें।
 
निम्नलिखित में से किसी एक फंगसनाशी/ कीटनाशी का प्रयोग करें।
 
फंगसनाशी/ कीटनाशी दवाई मात्रा (प्रति किलोग्राम बीज)
Carbendazim

2gm 

Captan 2gm
Thiram 2gm
 
 

खाद

खादें (किलोग्राम प्रति एकड़)

UREA SSP MOP
73 140 -

 

तत्व (किलोग्राम प्रति एकड़)

NITROGEN PHOSPHORUS POTASH
33 22 -

 

बिजाई से पहले 10-15 टन गाय का गोबर या रूड़ी की खाद मिट्टी में डालें। बिजाई के शुरूआती समय में नाइट्रोजन 33 किलो (73 किलो यूरिया), फासफोरस 22 किलो (140 किलो सिंगल सुपर फासफेट) की मात्रा प्रति एकड़ में प्रयोग करें। फासफोरस की पूरी मात्रा के साथ नाइट्रोजन की 50% मात्रा बिजाई के समय शुरूआती खुराक के तौर पर डालें । खादों की बाकी बची मात्रा को बिजाई के 30 दिनों के बाद डालें।

 

 

सिंचाई

अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए महत्तवपूर्ण अवस्थाओं जैसे शाखाओं के बनने के समय, फूल निकलने और दाने बनने के समय उचित सिंचाई दें। ये सिंचाई के लिए गंभीर अवस्थाएं होती हैं। खरीफ के मौसम में इस फसल को  बारिश की तीव्रता के आधार पर 1 से 3 सिंचाई की आवश्यकता होती है। रबी और गर्मियों के मौसम में पानी की उचित उपलब्धता होने पर गंभीर अवस्थाओं में सिंचाई आवश्य करनी चाहिए। यदि दो सिंचाइयां उपलब्ध हों तो फूल निकलने से पहले और फूल निकलने पर सिंचाई करें। 

पौधे की देखभाल

ज्वार की मक्खी
  • हानिकारक कीट और रोकथाम
ज्वार की मक्खी : यह नए पत्तों के ऊपर अंडे देती है। अंडे सफेद रंग के और बेलनाकार के होते हैं जबकि प्रौढ़ कीट सलेटी रंग के हो जाते हैं। छोटे कीट पीले रंग के होते हैं और तने के अंदर वृद्धि करके तने को काट देते हैं और डेड हार्ट का उत्पादन करते हैं। प्रभावित पौधे में आस पास पत्तों का उत्पादन होता है। पौधे को खींचने पर पौधा आसानी से बाहर निकल आता है और गंदी दुर्गंध देता है। 1 से 6 सप्ताह के पौधे इस कीट के प्रति ज्यादा संवेदनशील होते हैं।
 
बिजाई में देरी ना करें। पिछली फसल की कटाई के बाद, खेत साफ करें और बचे पौधे बाहर निकाल  दें। बिजाई से पहले बीज को इमीडाकलोप्रिड 70 डब्लयु एस 4 मि.ली. से प्रति किलो बीज का उपचार करें। प्रभावित पौधे को निकालें और खेत में से दूर ले जाकर नष्ट कर दें। हमले की हालत में मिथाइल डेमेटान 25 ई सी 200 मि.ली. और डाइमैथोएट 30 ई सी 200 मि.ली. को प्रति एकड़ में डालें। 
 
तना छेदक
तना छेदक : इसके अंडे लंबे पत्ते के नीचे की ओर गुच्छे में होते हैं। यह सुंडी पीले भूरे रंग की होती है। जिसका सिर भूरा होता है। पतंगे तूड़ी रंग के होते हैं। हमले के दौरान पत्तों का सूखना और उनका झड़ना देखा जा सकता है। पत्तों के ऊपर छोटे छोटे सुराख नज़र आते हैं।
 
इस कीट की जांच के लिए मध्य रात्रि तक रोशनी कार्ड लगा दें। इसे तने छेदक के प्रौढ़ कीट आकर्षित होते हैं और मर जाते हैं। फोरेट 10 जी 5 किलो या कार्बोफियूरॉन 3 जी 10 किलो को रेत में मिलाकर 20 किलो मात्रा बना लें और पत्ते के छेदों में डालें। इससे बचाव के लिए कार्बरील 800 ग्राम प्रति एकड़ में स्प्रे करें।
 
गोभ की सुंडी
गोभ की सुंडी : इसके अंडे सफेद और गोल आकार के होते हैं। इसके अंडे क्रीमी सफेद और गोलाकार आकार के होते हैं। कीटों का रंग हरे से भूरे रंग के साथ शरीर पर भूरी सलेटी रंग की धारियां होती हैं। प्रौढ़ कीट हल्के भूरे पीले रंग के होते हैं। इन कीटों का हमला होने पर बालियां आधी खायी हुइ लगती हैं और चूने जैसी दिखाई देती हैं। बालियों में इनका मल देखा जा सकता है।
 
हमले की जांच के लिए रोशनी वाले कार्ड लगाएं। फूल निकलने से दानों के पकने तक 5 सैक्स फेरोमोन कार्ड  प्रति एकड़ में प्रयोग करें। कार्बरील 10 डी 1 किलो या मैलाथियोन 5 डी 10 किलो प्रति एकड़ में स्प्रे करें। 
 
बालियों की सुंडी : जब दाने दूधिया अवस्था में होते हैं तो छोटे और प्रौढ़ कीट दानों में से रस चूसते हैं। जिसके कारण दाने सिकुड़ जाते हैं और काले रंग के हो जाते हैं। बालियों पर बड़ी संख्या में छोटे कीटों को देखा जा सकता है। ये कीट पतले और हरे रंग के होते हैं। बालियों के नर प्रौढ़ कीट हरे रंग के होते हैं। और मादा भी हरे रंग के और किनारों पर से भूरे रंग के होते हैं।
 
बालियों के निकलने के बाद तीसरे और 18वें दिन कार्बरील 10 डी 10 किलो या मैलाथियोन 5 डी 10 किलो प्रति एकड़ में छिड़कें। मैलाथियोन 50 ईसी 400 मि.ली. को 200 लीटर पानी में मिलाकर 10 प्रतिशत बालियों के निकलने पर स्प्रे करें।  
 
ज्वार का मच्छर
ज्वार का मच्छर : यह कीट छोटे मच्छर के आकार का होता है। जिसका पेट गहरा संतरी रंग का और पारदर्शी पंख  होते हैं। छोटे कीट विकसित दानों को अपना भोजन बनाते हैं। लार्वा अंडकोश से अपना भोजन लेता है और विकसित दानों को नष्ट कर देता है जिससे दाने आधे हो जाते हैं। दानों पर लाल रंग के चिपचिपे पदार्थ का निकलना छोटे कीटों की मौजूदगी को दर्शाता है।
 
इन कीटों को आकर्षित करने के लिए रोशनी वाले कार्ड लगाएं। कार्बरील 10 डी 10 किलो या मैलाथियोन 5 डी 10 किलो बालियां निकलने के बाद तीसरे और 18वें दिन प्रति एकड़ में डालें। 
 
एंथ्राक्नोस
  • बीमारियां और रोकथाम
एंथ्राक्नोस : पत्तों की दोनों तरफ छोटे लाल रंग के धब्बे जो बीच में से सफेद रंग के होते हैं, पड़ जाते हैं। प्रभावित भाग के सफेद सतह के ऊपर कई छोटे छोटे काले धब्बे दिखाई देते हैं जो फंगस के जीवाणु होते हैं। तने के ऊपर गोलाकार कोढ़ विकसित हो जाता है। जब हम प्रभावित तने को काटते हैं तो यह बेरंगा दिखाई देता है। यह बीमारी बारिश, उच्च नमी और 28-30 डिगरी सैल्सियस तापमान पर ज्यादा फैलती है। 
 
फसल को लगातार ना उगाएं। अंतरफसली अपनायें। प्रतिरोधक किस्मों का प्रयोग करें। बिजाई से पहले कप्तान या थीरम 3 ग्राम से प्रति किलो बीज का उपचार करें। यदि इसका हमला दिखे तो मैनकोजेब 300 ग्राम या कार्बेनडाज़िम 400 ग्राम को 200 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।
 
कुंगी
कुंगी : यह बीमारी फसल की वृद्धि वाली अवस्था में हमला करती है। पत्तों के निचली तरफ लाल रंग के छोटे धब्बे देखे जा सकते हैं। पत्तों की दोनों सतहों पर दाने बन जाते हैं और पत्तों के फटने पर लाल रंग का पाउडर निकलता है। तने के नज़दीक और तने पर भी दाने पड़ जाते हैं। यह बीमारी कम तापमान 10-12 डिगरी सैल्सियस के साथ बारिश वाले मौसम में भी हमला करती है।  
 
कुंगी की प्रतिरोधक किस्मों का प्रयोग करें। यदि इसका हमला दिखे तो मैनकोजेब 250 ग्राम को 150 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें। या सल्फर 10 किलो को प्रति एकड़ में छिड़कें।
 
गुंदिया रोग
गुंदिया रोग : इस बीमारी के कारण प्रभावित फूल में से शहद जैसा पदार्थ निकलता है।  यह पदार्थ कई कीटों और कीड़ियों को आकर्षित करता है और बालियां काले रंग की दिखाई देती हैं। मिट्टी के ऊपर प्रभावित पौधे के आधार पर सफेद रंग के धब्बे देखे जा सकते हैं। फूल निकलने के समय अधिक बारिश, उच्च नमी और बादलवाई में यह बीमारी अधिक फैलती है।
 
गुंदिया रोग की प्रतिरोधक किस्मों का प्रयोग करें। बिजाई से पहले 2 प्रतिशत नमक के घोल में बीजों को भिगोयें, इस रोग से प्रभावित बीजों को निकाल दें। कप्तान या थीरम 4 ग्राम से प्रति किलो बीज का उपचार करें। ज़ीरम, ज़िनेब, कप्तान या मैनकोजब 2.5 ग्राम को प्रति लीटर पानी में मिलाकर बालियां निकलने के समय स्प्रे करें। दूसरी स्प्रे 50 प्रतिशत फूल निकलने के समय करें। यदि जरूरत पड़े तो सप्ताह में एक सप्ताह में दोबारा स्प्रे करें।
 
दानों पर फंगस
दानों पर फंगस : फूल निकलने या दानें भरने के समय नमी वाले मौसम के कारण बालियों पर फंगस पड़ जाती है। घनी बालियां इस बीमारी के प्रति ज्यादा संवेदनशील होती हैं।
 
पिछेती बिजाई ना करें। प्रतिरोधक किस्मों का प्रयोग करें। बिजाई से पहले थीरम 3 ग्राम से प्रति किलो बीज का उपचार करें। यदि बालियां निकलने के दौरान बारिश हो जाये तो मैनकोजेब 2.5 ग्राम या कप्तान 2 ग्राम को प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।
 
पत्तों के निचले धब्बे
पत्तों के निचले धब्बे : पत्तों की निचली सतह पर सफेद रंग के धब्बे विकसित हो जाते हैं। पत्ते हरे या पीले रंग के दिखाई देते हैं।
 
एक ही खेत में लगातार फसल ना उगायें। दालों और तेल वाली फसलों के साथ फसली चक्र अपनायें। इस बीमारी की प्रतिरोधक किस्मों का प्रयोग करें। बिजाई से पहले मैटालैक्सिल 4 ग्राम से प्रति किलो बीज का उपचार करें। यदि इसका हमला दिखे तो मैटालैक्सिल 2 ग्राम या मैनकोजेब 2.5 ग्राम को प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें। 
 
पत्ता झुलस रोग : शुरूआती अवस्था में छोटे संकुचित लंबी धुरी के आकार के धब्बे पड़ जाते हैं। पुराने पौधों पर लंबे समय तक तूड़ी के आकार के धब्बे मध्य और किनारों पर देखे जा सकते हैं। यह पत्ते के बड़े भाग को नष्ट कर देता है और फल जली हुई दिखाई देती है। यह बीमारी उच्च नमी, अधिक बारिश के साथ ठंडे नमी वाले मौसम में ज्यादा फैलती है।
 
बीमारी रहित बीजों का प्रयोग करें और प्रतिरोधक किस्में उगायें। अंतरफसली अपनायें। बिजाई से पहले थीरम या कप्तान 4 ग्राम से प्रति किलो बीज का उपचार करें। यदि इसका हमला दिखे तो मैनकोजेब 2.5 ग्राम को प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें। जरूरत पड़े तो 15 दिनों के अंतराल पर दूसरी स्प्रे करें।
 
दानों की कांगियारी : बालियों में दाने बनने के समय यह बीमारी हमला करती है। दाने गंदे सफेद या सलेटी रंग के दिखाई देते हैं और सफेद क्रीम से ढक जाते हैं। बालियों के निकलने से पूर्व भी पौधा इस बीमारी से प्रभावित हो सकता है। इससे पौधा, सेहतमंद पौधे से छोटा, पतला तना होता है। बालियां सेहतमंद पौधे से जल्दी निकल आती हैं। 
 
बीमारी रहित बीजों का प्रयोग करें और प्रतिरोधक किस्में उगायें। अंतरफसली अपनायें। बिजाई से पहले थीरम या कप्तान 3 ग्राम से प्रति किलो बीज का उपचार करें।
 

फसल की कटाई

इसकी कटाई का सही समय तब होता है जब दाने सख्त और नमी 25 प्रतिशत से कम हो। जब फसल पक जाये तो तुरंत कटाई कर लें। कटाई के लिए दरांती का प्रयोग करें। पौधे धरती के नज़दीक से काटें। कटाई के बाद काटी फसल को एक जगह पर इक्ट्ठी करें और अलग अलग आकार की भरियां बना लें। कटाई के 2-3 दिन बाद बालियों में से दाने निकालें। कई बार खड़ी फसल में से बालियां काटकर अलग अलग कर ली जाती हैं और फिर बालियों की छंटाई कर ली जाती है। इसके बाद इन्हें 3-4 दिन धूप में सुखाया जाता है।

कटाई के बाद

सूखने के बाद छड़ी की सहायता से फसल को झाड़ लें। दाने इक्ट्ठे करें। धूप में 6-7 दिन रखें ताकि 13-15 प्रतिशत नमी हो जाये। साफ किये दाने सूखी और साफ जगह पर जमा कर लें।