आम जानकारी

बाजरा विश्व में व्यापक तौर पर उगाई जाती है। यह सूखे को सहन कर सकती है इसलिए इसे कम वर्षा वाले क्षेत्रों में ज्यादा उगाया जाता है। भारत बाजरे का सबसे बड़ा उत्पादक देश है। मानव उपभोग के साथ इसे पशुओं के चारे के लिए भी प्रयोग किया जाता है। इसका डंठल पशुओं को खिलाने के लिए प्रयोग किया जाता है। भारत में राजस्थान, महांराष्ट्र, गुजरात, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, मध्य प्रदेश, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और तामिलनाडू मुख्य बाजरा उत्पादक राज्य हैं।
हिमाचल प्रदेश में यह जल्दी उगने वाली फसल है जहां पर यह 1500 मीटर से कम ऊंचाई वाले क्षेत्रों में उगाने के लिए उपयुक्त है। यह फसल एस सी एन ज़हर के प्रतिरोधक है। इस फसल की औसतन पैदावार 208-250 किवंटल प्रति एकड़ होती है।
 

जलवायु

  • Season

    Temperature

    20-30°C
  • Season

    Rainfall

    40-60cm
  • Season

    Temperature

    20-30°C
  • Season

    Rainfall

    40-60cm

मिट्टी

बाजरा को मिट्टी की कई किस्मों में उगाया जा सकता है। यह जल जमाव और अम्लीय मिट्टी में खड़ी नहीं रह सकती। अच्छे निकास वाली काली कपास मिट्टी और रेतली देामट मिट्टी में उगान पर अच्छे परिणाम देती है।

प्रसिद्ध किस्में और पैदावार

L-72 और Local varieties हिमाचल प्रदेश में प्रयोग की जाने वाली किस्म हैं।
 
दूसरे राज्यों की किस्में
 
RHB 121 (MH 892) : यह हाइब्रिड किस्म 75-78 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 8.8-10 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
HHB 67 (Unnat) : यह किस्म कम और ज्यादा वर्षा वाले क्षेत्रों में उगाने के लिए उपयुक्त है। यह किस्म 65-70 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 6-8 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
HHB 60 : यह किस्म 70-75 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 8 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
RHB 177 :  यह सूखे को सहने योग्य किस्म है। इसकी औसतन पैदावार 8-10 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
ICMH 356 : यह किस्म 70-75 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। यह किस्म सूखे को सहने योग्य है और पत्तों के धब्बा रोग की प्रतिरोधक किस्म है।

Pusa 605 : यह हाइब्रिड किस्म 70-80 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 3.6-4 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
GHB 538 : यह किस्म 75-80 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसके दानों की औसतन उपज 7 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Raj 171 : यह हाइब्रिड किस्म 85 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। यह किस्म सामान्य वर्षा वाले हालातों में बिजाई के लिए उपयुक्त है। इसकी औसतन पैदावार 8-10 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Kaveri Super : यह किस्म पिछेती बिजाई के लिए उपयुक्त है और 80-85 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है।
 
86M66 : यह किस्म पिछेती बिजाई के लिए उपयुक्त है और 90 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है।
 
86M86 : यह किस्म पिछेती बिजाई के लिए उपयुक्त है और 80-85 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है।
 
MP 7792 और MP 7872 : यह किस्म पिछेती बिजाई के लिए उपयुक्त है और 75-85 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है।
 

ज़मीन की तैयारी

मिट्टी के भुरभुरा होने तक खेत की जोताई करें। भारी और नदीनों से ग्रसित मिट्टी की दो बार जोताई करें। आखिरी जोताई के समय 6 टन गाय का गला हुआ गोबर मिट्टी में मिलायें।

बिजाई

बिजाई का समय
बाजरे की बिजाई के लिए मध्य जून से अंत जुलाई का समय अनुकूल होता है।
 
फासला
कतार से कतार में 40-45 सैं.मी. और पौधे से पौधे में 10-15 सैं.मी. फासले का प्रयोग करें।
 
बीज की गहराई
बीज को 3-5 सैं.मी. गहराई पर बोयें।
 
बिजाई का ढंग
बिजाई के लिए, गड्डा खोदकर या बीज ड्रिल विधि का प्रयोग किया जाता है।
 

कटाई के बाद

अच्छी तरह से सूखाने के बाद गहाई करें और बालियों में से दानों को अलग कर लें। उसके बाद बीज को साफ करें। साफ किये बीज को धूप में सुखाएं और 12-14 प्रतिशत नमी का स्तर रखें। दानों को बोरियों में भरें और सूखे स्थान पर भंडारण करके रखें।

फसल की कटाई

जब दाने सख्त और इनमें आवश्यक नमी हो तो फसल कटाई के लिए तैयार हो जाती है। दरांती की सहायता से खड़ी फसल में से बालियों को निकाल लें। कुछ किसान दरांती से पूरे पौधे को ही काट लेते हैं। कटाई के बाद इन्हें इकट्ठा करें और फसल को खुली जगह में रखें और चार-पांच दिनों के लिए सुखाएं।

कुंगी : हरे पत्तों पर लाल भूरे से लाल संतरी रंग के धब्बे विकसित हो जाते हैं।
 
यदि इसका हमला दिखे तो मैनकोजेब 75 डब्लयु पी 2 ग्राम को प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें। यदि जरूरत पड़े तो 8 दिनों के अंतराल पर दोबारा स्प्रे करें।
 
कांगियारी : इसकी रोकथाम के लिए कांगियारी की प्रतिरोधक किस्मों का प्रयोग करें। यदि इसका हमला दिखे,  तो प्रभावित पौधों को निकालकर खेत से बाहर ले जाकर नष्ट कर दें और मैनकोजेब 2 ग्राम को प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।
 
गूंदिया रोग : इस बीमारी में बालियों के ऊपर शहद की बूंदों जैसा पदार्थ पाया जाता है। 10-15 दिनों के बाद ये बूंदें सूख जाती हैं और गहरे भूरे से काले रंग में बदल जाती हैं। बीज काले रंग की फंगस में बदल जाते हैं जिसे सैकलेरोटिया कहते हैं।
 
गूंदिया रोग से बचाव के लिए बीजों को 20 प्रतिशत नमक के घोल में पांच मिनट के लिए डुबोकर रखें। जो बीज पानी के ऊपर तैरने लग जायें उन्हें पानी में से निकालकर नष्ट कर दें और बाकी के बीजों को साफ पानी से धोयें। इस रोग की रोकथाम के लिए जिनेब या मैनकोजेब 2 ग्राम को प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें। 3 दिनों के अंतराल पर दो से तीन स्प्रे करें।
 
  • बीमारियां और रोकथाम
पत्तों के निचले धब्बे : इसके हमले में पत्तों के दोनों भागों ऊपर और नीचे सफेद रंग के धब्बे पड़ जाते हैं। बलियां पत्तों के ढांचे में बदल जाती हैं। यह बीमारी बादलवाई के मौसम में ज्यादा फैलती है।
यदि इसका हमला दिखे तो मैटालैक्सिल MZ  30 ग्राम को 15 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें। यदि जरूरत पड़े तो 15 दिनों के अंतराल पर दोबारा स्प्रे करें।
 
नीली भुंडी : नीली भुंडी की रोकथाम के लिए 1.5 प्रतिशत क्विनलफॉस 250 मि.ली. प्रति एकड़ में करें।
 

पौधे की देखभाल

  • हानिकारक कीट और रोकथाम
जड़ का कीट/दीमक : यदि इस कीट का हमला दिखे तो मिथाइल पैराथियोन 2 प्रतिशत 10 किलो का बुरकाव प्रति एकड़ में करें।
 

सिंचाई

यह बारानी क्षेत्र की फसल है इसलिए इसे कम सिंचाई की आवश्यकता होती है। बारिश की तीव्रता और नियमितता के अनुसार सिंचाई दें। जोताई के समय, फूल निकलने और दाने भरने की अवस्था में पानी की कमी ना होने दें। इन अवस्थाओं में पानी की कमी होना पैदावार में गंभीर नुकसान करता है।

खरपतवार नियंत्रण

खेत को साफ और नदीन रहित रखें। बाजरे की बिजाई के बाद एट्राज़िन 400 ग्राम को 150 लीटर पानी में मिलाकर डालें। 

खाद

खादें (किलोग्राम प्रति एकड़)

UREA SSP MOP
75 150 -

 

तत्व (किलोग्राम प्रति एकड़)

NITROGEN
PHOSPHORUS POTASH
35 24 -

 

बाजरे की पूरी फसल को नाइट्रोजन 35 किलो (यूरिया 75 किलो), फासफोरस 24 किलो (एस एस पी 150 किलो) प्रति एकड़ में जरूरत होती है।
नाइट्रोजन की आधी मात्रा और फासफोरस की पूरी मात्रा बाजरे की बिजाई से पहले डालें। बाकी बची नाइट्रोजन की मात्रा बिजाई के 30-35 दिनों के बाद डालें।
 

 

 

बीज

बीज की मात्रा
बिजाई की विधि के अनुसार, 1.2-2 किलो बीज प्रति एकड़ में प्रयोग करें।
 
बीज का उपचार
बीज को गूंदिया रोग से बचाने के लिए 20 प्रतिशत नमक के घोल में पांच मिनट के लिए डुबोकर रखें। जो बीज पानी के ऊपर तैरने लग जायें उन्हें पानी में से निकालकर नष्ट कर दें और बाकी के बीजों को साफ पानी से धोयें। 
 
इसके बाद 3 ग्राम थीरम या क्लोरपाइरीफॉस 20 ई सी 4 मि.ली. से प्रति किलो बीज का उपचार करें।