जब आप सिमरोल और चोरल से महू की ओर से जाएं और चारों ओर रंग-बिरंगे खेत नजर आएं, रास्ते में सड़क के दोनों ओर खेतों में बिछी फूलों की चादर से आपका स्वागत हो, तो कैसा लगेगा? बेशक यह मन को भाने वाला दृश्य होगा। इस सपने को बुनने में लग चुका है मेमदी गांव, जहां किसानों की जिंदगी में फूलों की महक घुलती जा रही है। सोयाबीन के गिरते उत्पादन और फसल की अधिक लागत ने मेमदी को फूलों की खेती की ओर मोड़ दिया है। कल तक चुनिंदा किसान फूलों की खेती करते थे लेकिन इस साल गांव के आधे से अधिक किसान फूलों की खेती करने में जुट गए हैं। यही नहीं, पास में कजलीगढ़ किला, आईआईटी, महू, चोरल आदि स्थल होने से मेमदी को पर्यटन से भी जोड़ा जाएगा।
गांव में सबसे पहले फूलों की खेती शुरू करने वाले किसान रतनसिंह केलवा बताते हैं कि शुस्र्आत में एक उद्यानिकी अधिकारी ने मुझे गेंदे के बीज लाकर दिए थे। मैंने अपने खेत के छोटे से हिस्से में ये बीज डाले, तबसे इस खेती की शुस्र्आत की। धीरे-धीरे गांव के कुछ अन्य किसानों ने भी फूल की खेती शुरू की। अब तो गांव में गेंदा ही नहीं, सेवंती, गुलदाउदी और गुलदस्तों में लगने वाले जिप्सी और बिजली के फूलों की खेती भी हो रही है।
किसान गब्बूसिंह और पूर्व सरपंच रूपेश वाघमोड़े बताते हैं कि फूलों की खेती में सोयाबीन से कम खर्च लगता है और हर चार दिन में नकद पैसा भी हाथ में आता रहता है। युवा किसान दीपक सोलंकी और मदन केलवा कहते हैं कि गेंदे की फसल जब छोटी होती है तो कुछ किसान पौधों की दो कतार के बीच ककड़ी और धनिया की फसल भी ले रहे हैं।
छोटे किसानों के लिए फायदेमंद, 50 दिन में आवक शुरू
उद्यानिकी विभाग के उप संचालक टीसी वास्केल बताते हैं कि फूलों की खेती को व्यावसायिक तौर पर करने के लिए हम मेमदी के किसानों को लगातार तकनीकी मार्गदर्शन दे रहे हैं। गांव के 200 में से 120 किसानों को फूलों की खेती से जोड़ा है। दूसरी फसलों का जहां पांच-छह महीने में उत्पादन आता है, लेकिन फूलों की खेती से 40-50 दिन में उत्पादन शुरू हो जाता है। हर चार दिन में फूल तोड़ना पड़ते हैं। सप्ताह में दो बार किसान बाजार में फूल बेचकर नकद पैसा हासिल कर सकता है। आसपास के गांवों के किसानों को भी फूलों की खेती के लिए प्रेरित कर रहे हैं।
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स्रोत: नई दुनिया