पुवांरका ब्लाक के गांव जयरामपुर उर्फ नानका निवासी शौकीन अंसारी ने बताया कि तीन पीढ़ियों से कपास से बनी रुई के धागे से दुतई, खेस और पहनने का कपड़ा बुनने का काम किया जाता था। पिछले एक दशक से कपास की खेती बंद होने से रुई नहीं मिल रही है। अब वे पानीपत से पुरानी ऊन लाकर उसके कंबल या फिर पुरानी साड़ियों से चादर बनाने का काम करते हैं।
गांव जयरामपुर उर्फ नानका निवासी जाकिर अंसारी ने बताया कि उनके गांव में कभी 80 फीसदी आबादी दुतई, खेस, चादर आदि बुनाई के कारोबार से जुड़ी थी। क्योंकि तब कपास की खेती होने के कारण कच्चा माल आसानी से मिल जाता था। अब कच्चे माल की अनुपलब्धता और लगातार घाटे के चलते मुश्किल से 10 या 12 लोग ही इस काम को कर रहे हैं।
गंगोह क्षेत्र के गुरुनानकपुरा गांव के 70 वर्षीय किसान मोहन सिंह का कहना है कि पहले कपास की खेती से ही किसान अपने परिवार की रोजी रोटी के साथ अपनी जरूरतें भी पूरी करता था। गन्ने और धान की खेती की अपेक्षा कपास की खेती नुकसान का सौदा साबित रही, जिस कारण इसकी खेती घट गई।
शकरपुर गांव के कुलदीप सैनी ने बताया कि राजस्थान से पहले कपास की मंडी नहीं है। ऐसे में कपास उगाकर बेचने के लिए भी किसान को परेशान होना पड़ता है। ज्यादा बीमारियां लगने के कारण कीटनाशक का इस्तेमाल करना पड़ता है जिस कारण फसल उगाना महंगा पड़ता है। एक कारण यह भी है कि कपास की खेती से किसानों का मोह भंग हो गया।
इस खबर को अपनी खेती के स्टाफ द्वारा सम्पादित नहीं किया गया है एवं यह खबर अलग-अलग फीड में से प्रकाशित की गयी है।
स्रोत: Amar Ujala