भारतीय मृदा विज्ञान संस्थान, भोपाल (आइआइएसएस) नए साल में प्रदेश के किसानों को आधुनिक तरीके से खेती करने के तौर-तरीके सिखाएगा। इसके तहत सिंचाई के लिए ड्रिप और स्प्रिंकलर पद्धति का उपयोग करने पर जोर दिया जाएगा। दरअसल, तमाम कोशिशों के बावजूद गांवों में सिंचाई की पद्धति में बदलाव नहीं आ रहा है। किसान सीधे पाइप के माध्यम से खेतों में पानी छोड़ते हैं। इससे बड़ी मात्रा में पानी बर्बाद भी होता है। यदि वे ड्रिप व स्प्रिंकलर पद्धति से सिंचाई करेंगे तो फसल को उतना ही पानी मिलेगा, जितनी उसे जरूरत होगी। बताया जा रहा है कि विज्ञानी इसे लेकर किसानों को जागरूक कर रहे हैं। नए साल में बड़े पैमाने पर जागरूकता कार्यक्रम चलाए जाएंगे।
मृदा विज्ञान संस्थान किसानों को जागरूक करने के लिए प्रशिक्षण शिविर भी आयोजित करता है। वरिष्ठ विज्ञानी डॉ. रणजीत चौधरी बताते हैं कि बीते कुछ साल में हुई बारिश के आंकड़ों को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। हमें जल संचय के लिए ऐसे उपाय करने होंगे, जो जरूरी हैं इसलिए खेती में सिंचाई के ऐसे ही तौर-तरीकों को अपनाने की जरूरत है। ड्रिप व स्प्रिंकलर यानी टपक-फव्वारा सिंचाई की ऐसी प्रणाली है, जिसमें कम पानी लगता है। उतना ही पानी फसलों को मिलता है, जितना पौधों के लिए आवश्यक होता है, इसलिए किसानों को यह पद्धति अपनाने की सलाह दी जाती है। इस साल बड़े स्तर पर किसानों को इन पद्धतियों से अवगत कराया जाएगा।
बारिश के पानी को सहेजें किसान
वरिष्ठ विज्ञानी डॉ. चौधरी के अनुसार संस्थान में वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम के जरिये बारिश के पानी को सहेजा जाता है। समय-समय पर किसानों को इसे दिखवाते हैं, ताकि वे अपने गांवों में पहुंचकर बारिश के पानी को सहेजने के उपाय कर सकें। खेत तालाब के निर्माण से काफी मात्रा में जल संचय किया जा सकता है।
किसानों को दिखाएंगे आधुनिक खेती के कारगर तरीके
संस्थान परिसर में विज्ञानी आधुनिक पद्धतियों से ही खेती कर रहे हैं, ताकि किसान इन तरीकों को देखकर अपना सकें। यहां खेत तालाब भी बनाया गया है।
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स्रोत: Nai Dunia