हर सफलता के पीछे एक संघर्ष है। कहते हैं जहां चाह वहीं रहा...। इसका उदाहरण छत्तीसगढ़ के पाटन क्षेत्र में देखने को मिल रहा है। आज से चार साल पहले एक किसान ने जैविक पद्धति से उस सुगंधित चावल के किस्मों को फिर से उगाने का निश्चय किया, जिसे दशकों से भूला दिया गया था। आज यही खेती किसान की अच्छी कमाई का जरिया है। इस धान से निकले चावल की खुशबू छत्तीसगढ़ सहित दूसरे राज्यों में महक रही है।
किसान गुरुदेव साहू की प्रेरणा से गांव के करीब 40 कृषक परिवार आज तिलकस्तूरी, कालीकमौध और जयगुंडी किस्म की दुर्लभ और सुगंधित धान की खेती कर रहे हैं। जैविक पद्धति की खेती में गौमूत्र, गोबर और कुछ विशेष प्रकार की पत्तियों का उपयोग किया जाता है, जिससे न केवल पैदावार पूरी तरह से कीट पतंगों के प्रकोप से सुरक्षित रहता है बल्कि पौधों को आवश्यक खाद भी इन चीजों से उपलब्ध हो जाती है।
स्वयं तैयार करते हैं जैविक कीटनाशक और खाद
कृषक साहू अपने खेत में जैविक कीटनाशक, गौ मूत्र से तैयार पंचगव्य, सींगखाद, वर्मी कम्पोस्ट खाद और दवाइयां तैयार करते हैं। फलस्वरूप जैविक पद्धति से उत्पादन रासायनिक खेती के बराबर तक पहुंच रहा है। रासायनिक पद्धति से उपजे धान की कीमत 25 से 40 रुपये प्रतिकिलो तक है वहीं जैविक धान के चावल की कीमत 80 से 100 रुपये प्रतिकिलो है।
उन्नत और प्रगतिशील कृषक का सम्मान
गुरुदेव साहू की जैविक पद्धति से खेती करने और अधिक उपज प्राप्त करने के लिए कृषि विभाग ने विकासखंड और जिला स्तर पर पुरस्कृत किया है। कई प्राइवेट कंपनियों ने भी उन्हें उन्नत कृषक, प्रगतिशील कृषक और कृषक समृद्धि सम्मान से नवाजा है। गुरुदेव साहू न केवल स्वयं जैविक खेती अपना रहे बल्कि गांव के अन्य किसानों को प्रेरित कर रहे हैं। कई किसानों का जैविक समूह बनाकर पीजीएस इंडिया में अपने सभी कृषकों के साथ 2018 में जैविक प्रमाणीकरण प्रमाणपत्र भी प्राप्त किया है।
विभिन्न राज्यों में है सुगंधित चावल की डिमांड
अरसनारा के जैविक सुगंधित चावल की मांग छत्तीसगढ़ ही नहीं बल्कि उन सभी राज्यों में है, जहां कृषि एक्सपो के माध्यम से इन किसानों ने अपना चावल बेचा है। सुगंधित चावल की खेती करने वाले गुरुदेव ने बताया कि जैविक खेती से उत्पादन तो कम होता है, लेकिन कीमत ऊंची मिलती है। गुरुदेव बताते हैं कि सबसे पहले 2014 में राजनांदगांव में कृषि मेला में स्टॉल लगाकर चावल की बिक्री की, तब जैविक चावल 60 रुपये किलो बिका। उसके बाद से यहां के किसानों ने मां कर्मा कृषक समूह बनाकर चावल की खुद पैकेजिंग शुरू की और पीछे पलटकर नहीं देखा। इन चार सालों में इन किसानों ने राजस्थान, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली के विश्व किसान मेला में सुगंधित धान की बिक्री की है।
क्या होता है सींग खाद और किस तरह उपयोग
पाटन विकासखंड का यह ऐसा पहला गांव है, जहां सींग खाद का इस्तेमाल किया जाता है। अरसनारा गांव के किसानों द्वारा मृत मवेशियों के सींग से खाद का इस्तेमाल करके धान की फसलों और सब्जियों के लिए टॉनिक तैयार किया जाता है। सींग खाद बनाने के लिए पहले जमीन में तीन फीट लंबा तीन फीट चौड़ा और तीन फीट गहरा गड्ढा खोदकर उसमें पहले गोबर का लेप लगाया जाता है, उसके बाद सींग के खोल में गोबर भरकर उसे गड्ढे में रख दिया जाता है। इस गड्ढे में 10 से 12 सींग ऐसे रखा जाता है कि उसका नुकीला भाग नीचे रहे। फिर पूरे गड्ढे को गोबर और फिर ऊपर से मिट्टी से ढक दिया जाता है। इस गड्ढे को छह महीने बाद खोदकर सींग को निकालने पर सींग के अंदर सफेद पाउडर जैसा मिलता है, जिसे ही टॉनिक के रूप में पौधों में डाला जाता है। ये सींग खाद पूरी तरह से जैविक होती है और पौधों सब्जियों को कीट पतंगों से दूर रखने के साथ-साथ पौधों की वृद्धि में सहायक होती है।
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स्रोत: नई दुनिया