रायपुर के कोंडागांव में विकसित काली मिर्च एमडी 16 पूरे देश में कृषि योग्य नई किस्म है। कृषि एक्सपर्ट की मानें तो नई कृषि पद्धति से तैयार यह फसल देश के किसानों के लिए गेम चेंजर बन सकती है। मौसम में ब्रेक लगने की चिंता हो या फसल में निर्धारित पैदावार नहीं होना, कहीं-न-कहीं अन्नदाता की यह चिंता वाजिब है, लेकिन उन्हें अब समय के साथ बदलती खेती की तरफ बढ़ना होगा। प्रदेश में लगभग 18 जिलों में कम बारिश हुई है। ऐसे में किसानों को नई फसलों की तरफ बढ़ना होगा। फल, फूल से लेकर काली मिर्च जैसे अन्य मसालों एवं औषधीय पौधों की खेती को अपनाना चाहिए। नई कृषि पद्धतियों को अपनाने से बेहतर पैदावार के साथ ही आर्थिक स्थिति भी सुधरेगी।
हर्बल कृषि विशेषज्ञ व सर्वश्रेष्ठ किसान का अवार्ड प्राप्त करने वाले राष्ट्रीय-कृषिरत्न डॉ. राजाराम त्रिपाठी ने मां दंतेश्वरी हर्बल फार्म तथा रिसर्च सेंटर चिखलपुटी कोंडागांव में 20 वर्षों तक रिसर्च किया, जिसमें उन्होंने पाया कि टिश्यू कल्चर से काली मिर्च की ऐसी लता बनाई जा सकती है, जो कम से कम नमी और अधिक तापमान में भी बढ़िया उत्पादन दे सकती । आस्ट्रेलियन टीक, एमडी 16 व ब्लैक पीपर काली मिर्च एमडी 14 प्रजाति के पौधे नर्सरी में दो से तीन साल की देखभाल तथा छह माह की गार्डनिंग के बाद खेतों में लगाने लायक हो जाते हैं। काली मिर्च की लता को सहारा, निरंतर मुफ्त भोजन देने वाले ऐसे साथी पौधे को खोज कर अद्वितीय जोड़ी बनाई।
काली मिर्च के अच्छे दाम मिलते हैं
प्रदेश में मसाले की खेती में हल्दी, सौंफ, हरी मिर्च के बाद काली मिर्च की पैदावार बढ़ी है। जगदलपुर, बस्तर, नारायणपुर जिले की ठंडी जलवायु में काली मिर्च की पैदावार किसानों के लिए फायदेमंद हो सकती है। आमतौर पर भोजन में काली मिर्च को मसाले की तरह उपयोग करने के अलावा इसकी आयुर्वेद यूनानी तथा अन्य चिकित्सा पद्धतियों में भी भारी मांग है। इसका मूल्य भी अन्य कृषि उत्पादों तुलना में 300 से 500 रुपये प्रति किलो है।
इस खबर को अपनी खेती के स्टाफ द्वारा सम्पादित नहीं किया गया है एवं यह खबर अलग-अलग फीड में से प्रकाशित की गयी है।
स्रोत: नई दुनिया