कृषि वैज्ञानिकों ने तैयार की हल्दी की नई किस्म, ये है खासियत

July 17 2019

छत्तीसगढ़ में अन्य फसलों की तुलना में मसाले की खेती का रकबा बहुत कम है। सिर्फ मिर्च 36410 हेक्टेयर में अधिक उगाया जाता है। वहीं इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के कृषि वैज्ञानिकों ने छत्तीसगढ़ हल्दी -2 (आइटी -2) की नई किस्म तैयार किया है, जो कि पूर्व में विकसित छत्तीसगढ़ हल्दी -1 से गुणवत्ता की दृष्टिकोण से अच्छी पाई गई है।

नई किस्म विकास क्लोनल सलेक्शन (प्रतिरूप चयन) पद्धति से तैयार किया गया है। यह प्रजाति छत्तीसगढ़ के ऊंचे भाग के लिए उपयुक्त पायी गयी है। आनुवंशिकी एवं पादप प्रजनन विभाग, कृषि महाविद्यालय एवं अनुसंधान केंद्र रायगढ़ के कृषि वैज्ञानिकों की माने तो इस नई प्रजाति में 30 फीसद ज्यादा उपज पाई गई है। साथ ही इसमेंउपयुक्त गुणवत्ता वाली हल्दी की 27 फीसद तक हल्दी पाई गई है।

215-210 दिनों में पककर तैयार

छत्तीसगढ़ हल्दी -2 किस्म के पौधे ऊंची और पत्तियां चौड़ी होती है। लंबे पतले राइजोम फिंगर (कंद) बनते हैं। यह मध्यम अवधि की किस्म हैं एवं लगभग 215-210 दिनों में पककर तैयार हो जाती है। पूर्व में विकसित छत्तीसगढ़ हल्दी -1 से नयी विकसित किस्म गुणवत्ता की दृष्टीकोण से अच्छी है। इस किस्म में 4.1 प्रतिशत कुरकुमिन, 6.3 फीसद तेल, 11.54 फीसद ओलियोरेसिन पाया जाता है। जबकि पूर्व विकसित किस्म (छत्तीसगढ़ हल्दी -1) में 3.9 फीसद कुरकुमिन, 6.1 फीसद तेल, 10.63 फीसद ओलियोरेसिन पाया जाता है।

20-22 टन प्रति हेक्टेयर पैदावार

इस किस्म की औसत उपज 20-22 टन प्रति हेक्टेयर आता है जो तुलनात्मक स्थानीय किस्म छत्तीसगढ़ हल्दी -1 एवं राष्ट्रीय तुलनात्मक किस्म बीएसआर एवं प्रतिमा से 30 फीसद ज्यादा है। इस किस्म में 27 फीसद तक हल्दी पायी गयी है जो कि प्रचलित किस्म रोमा (24.4 फीसद), छत्तीसगढ़ हल्दी -1 (21.6 फीसद), नरेन्द्र हल्दी (20.9 फीसद), सुरंजना (20 फीसद) एवं बीएस आर-2 (18.3 फीसद) से ज्यादा है।

यह किस्म आनुवंशिकी एवं पादप प्रजनन विभाग कृषि महाविद्यालय एवं अनुसंधान केंद्र रायगढ़, इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. एसके पाटिल एवं विभागाध्यक्ष रायपुर के निर्देशन में विकसित की गई है। इस किस्म को विकसित करने में डॉ. एसएल सावरगांवकर, डॉ. एके सिंग, सरिता साहू एवं अन्य वैज्ञानिकों की सतत मेहनत एवं योगदान रहा है।

रेतिली दोमट भूमि में अच्छा उत्पादन

यह किस्म कोलेटोट्राइकम पर्ण धब्बा, टेफरिना पत्ती झुलसन रोग, प्रकंद बिगलन बीमारी, सहनशील जोम स्केल कीट के लिए आंशिक प्रतिरोधी है। इस किस्म के कंद अच्छी चमक वाले, सुडौल लंबी गांठे, अंदर से गहरे नारंगी रंग की होती है। इस किस्म की खेती के लिए भूमि जीवांश युक्त 6.0 से 6.5 पीएच मान की जल निकासी वाली रेतिली दोमट भूमि अच्छा उत्पादन लेने में सहायक होती है।

 

इस खबर को अपनी खेती के स्टाफ द्वारा सम्पादित नहीं किया गया है एवं यह खबर अलग-अलग फीड में से प्रकाशित की गयी है।

स्रोत: नई दुनिया