एक गांव में 200 में से आधे से ज्यादा किसान करते हैं मधुमक्खी पालन और शहद की खेती

July 24 2019

शहद उत्पादन और मधुमक्खी पालन के लिए कैथल के गांव गोहरां खेड़ी का नाम जिले या प्रदेश में ही नहीं, बल्कि देश भर और विदेशों में भी प्रसिद्ध है। करीब 200 किसानों में से आधे से भी ज्यादा शहद की खेती करते हैं। शहद उत्पादन की अधिकता के कारण भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद इस गांव को मधुग्राम का दर्जा दे चुकी है, जो अपने आप में गांव की एक बड़ी उपलब्धि है।

गांव के मधुमक्खी पालक किसान केवल कैथल जिले में ही नहीं, बल्कि आसपास के राज्यों में भी मधुमक्खी पालन करते हैं। किसान हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, जम्मू कश्मीर, पंजाब, उत्तराखंड, राजस्थान और उत्तर प्रदेश सहित आसपास के कई राज्यों में मक्खियों का पालन करते हैं, ताकि गांव से शहर की सप्लाई ज्यों की त्यों बनी रहे।

किसान शहद उत्पादन को लेकर अलग-अलग समय पर विभिन्न पुरस्कारों से सम्मानित भी हो चुके हैं। इसमें करीब 342 हेक्टेयर भूमि पर गेहूं और धान की खेती की जाती है। इसके बीच भी किसान खाली जगहों पर मधुमक्खियों के बॉक्स रख देते हैं, ताकि साथ में उगी फूलदार फसलों से मक्खियों को भरण-पोषण के लिए पर्याप्त खाना मिलता रहे।

शहद के व्यवसाय से जुड़ने से गांव में बेरोजगारों की संख्या न के बराबर

गांव की आबादी करीब तीन हजार है। 20 वर्षों से भी अधिक समय से गांव के लोग शहद के व्यवसाय से जुड़े हैं। शहर उत्पादक किसानों का कहना है कि शुरुआत में जब किसानों का मधुमक्खी पालन की ओर रुझान ज्यादा हुआ तो उस समय करीब पांच सौ क्विंटल शहद प्रत्येक सीजन में वर्ष में दो बार तैयार होता था। उस समय शहद के मार्केट में रेट भी अच्छे मिल रहे थे।

अब कुछ किसानों ने इस व्यवसाय को इस कारण छोड़ दिया है कि शहद के रेट उचित नहीं मिल रहे। गांव की एक और खास बात ये है कि गांव में शहद के कारोबार के चलते बेरोजगारों की संख्या भी न के बराबर है। कुछ किसानों के पास तो मधुमक्खियों के करीब 500 से भी ज्यादा बॉक्स हैं। इन किसानों का कहना है कि प्रत्येक बॉक्स से हर वर्ष करीब 35 किलो शहद का उत्पादन किया जा सकता है।

इससे उनके परिवार का खर्च तो आसानी से वहन हो ही जाता है। साथ में उनके बच्चे भी अच्छे शिक्षण संस्थानों में शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं।

20 वर्ष पहले गांव के लोगों ने अपनाया था मधुमक्खी पालन का व्यवसाय

गांव के एक भूमिहीन किसान सतपाल सिंह का कहना है कि उन्होंने करीब 20 वर्ष पहले कृषि विज्ञान केंद्र से प्रशिक्षण लेकर इस व्यवसाय को अपनाया था। साथ ही ग्रामीणों को भी इसके लिए प्रेरित किया। आज गांव के सैंकड़ों लोग इस व्यवसाय को अपना चुके हैं। शहद की बिक्री में भी ज्यादा दिक्कतों का सामना नहीं करना पड़ता।

सबसे बड़ी बात ये है कि गांव में कोई भी युवा बेरोजगार नहीं दिखता। उन्होंने इस बात को लेकर चिंता जाहिर की कि भविष्य में किसानों का इस व्यवसाय से लगाव कम हो रहा है। शुरुआत में शहद 160 रुपये प्रति किलो से भी ज्यादा दाम पर बिकता था, लेकिन अब इसके रेट आधे भी नहीं रहे हैं, जिस कारण लोग इससे पीछे हट रहे हैं।

20 बॉक्सों से हुई थी गांव में शहद उत्पादन की शुरुआत

सतपाल सिंह ने कृषि विज्ञान केंद्र से प्रशिक्षण ले कुल 20 बक्सों से शहद उत्पादन शुरू किया था। उस समय उसकी पहली कमाई 10 हजार रुपये थी। 2004 में उसने बॉक्सों की संख्या बढ़ाई और करीब 15 युवाओं को अपने साथ लेकर काम शुरू किया। उसने करीब पांच लाख रुपये कमाए। 2016 में बॉक्सों की संख्या10 हजार तक पहुंच गई थी।

 

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स्रोत: अमर उजाला