बारिश की कमी कपास उत्पादन पर डालेगी असर

October 10 2018

नई दिल्ली : अपर्याप्त बारिश और पिंक वॉलवर्म के हमलों के चलते इस वर्ष देश में कपास का उत्पादन पिछले सीजन के मुकाबले 4.7 प्रतिशत से घटकर 3.48 करोड़ गांठ पर आने के आसार हैं. इसके साथ ही कपास की फसल में कमी आने के भी आसार हैं. कपास के उत्पादन में इस कमी के कारण शीर्ष उपभोक्ता चीन की ओर से बढ़ती मांग और इसके परिणामस्वरूप वैश्विक दामों को मिल रहे प्रोत्साहन के फलस्वरूप विश्व के इस सबसे बड़े फाइबर उत्पादक का निर्यात सीमित रह सकता है. गौरतलब है कि कपास के दाम पिछले नौ महीनों में सबसे निचले स्तर पर चले गए थे और फिलहाल उसी के आसपास बने हुए हैं. कपास के उत्पादन में हो रही कमी पर कॉटन एसोसिएशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष अतुल गनात्रा का कहना है कि सूखे की वजह से हमें गुजरात में बड़ी उत्पादन के गिरावट की आशंका है. उन्होंने कहा कि एक अक्टूबर से शुरू होने वाले नए विपणन सीजन में पश्चिमी राज्य का फाइबर उत्पादन पिछले साल के मुकाबले 14.3 प्रतिशत से घटकर 90 लाख गांठ हो सकता है. भारतीय मौसम विभाग के मुताबिक जून-सितंबर के मानसूनी मौसम में देश के शीर्ष कपास उत्पादक गुजरात में सामान्य की तुलना में 28 प्रतिशत कम बारिश हुई है.

गनात्रा के अनुसार देश के दूसरे सबसे बड़े कपास उत्पादक राज्य महाराष्ट्र में पिंक वॉलवर्म आक्रमण के कारण कपास का उत्पादन 83 लाख गांठ से कम होकर 81 लाख गांठ तक होंने के आसार हैं. देश के किसानों ने अनुवांशिक रूप से संशोधित बीजों को अपनाया था. जिन्हें बीटी कपास के नाम से भी जाना जाता है. ये बॉलवर्म प्रतिरोधी होते हैं लेकिन ये संक्रमण को रोकने में पूरी तरह से नाकाम रहे हैं. दरअसल पिंक वॉलवर्म कपास के किसी पौधे के डोडे या फल के अंदर फाइबर और बीज का भक्षण करता है जिसके कारण उत्पादन में लगातार गिरावट आ जाती है.

जानकारी के अनुसार देश में कुल कपास के उत्पादन में गुजरात और महाराष्ट्र का योगदान आधे से अधिक रहता है. यदि कपास का उत्पादन कम होता है तो निर्यात में कमी आ सकती है और आयात में बढ़ोतरी की संभावना बढ़ जाती है. कपास के प्रमुख खरीददार देश पाकिस्तान, चीन, बांग्लादेश और वियतनाम शामिल हैं. आंकड़ों के मुताबिक 2017-18 में भारत ने कपास की 69 लाख गांठों का कुल निर्यात किया था. इस साल चीन की तरफ से भारतीय कपास की मांग में काफी मजबूती आई है, क्योंकि व्यापार युद्ध की वजह से यह दुनिया का सबसे बड़ा उपभोक्ता अमेरिका से आयात करने से बच रहा है.

Source: Krishi Jagran