भारत के उत्तर प्रदेश समेत कई राज्यों में इन दिनों खरीफ सीजन में धान की रोपाई बड़े पैमाने पर हो रही है। धान ज्यादा पानी वाली फसल है। लेकिन जापान में एक किसान ऐसा था जो सूखी जमीन पर खेती करता था....
लखनऊ। धान की खेती का नाम लेते ही दिमाग में आता है कि इसमें आधिक सिंचाई करनी पड़ेगी, पानी की अधिक जरूरत पड़ेगी और ये बात सच भी है, लेकिन जापान के एक किसान थे मासानोबू फुकुओका जो सूखी ज़मीन पर धान की खेती करते थे। इसके साथ ही वो न तो कीटनाशक का प्रयोग करते थे और न ही खेत को जोतते थे।
इसके बावजूद मासानोबू की जापानी तकनीक में चावल का उत्पादन, परंपरागत तकनीक से ज्यादा होता था। यानी लागत भी कम, मेहनत भी कम और मुनाफा ज्यादा। भारतीय किसान भी मासानोबू फुकुओका की तकनीक को अपनाकर धान की खेती कर सकते हैं और फायदा कमा सकते हैं।
1913 में पैदा हुए मासानोबू ने 2008 में 95 साल की उम्र में दुनिया को अलविदा कह दिया। लेकिन मरने से पहले उन्होंने चावल की खेती की अपनी अनोखी तकनीक पर 1975 में द वन स्ट्रा रिवोल्युशन नाम की एक किताब लिखी। इस किताब में मासानोबू ने विस्तार से बताया है कि कैसे बिना पानी, बिना कीटनाशक और खेत को जोते बिना ही आप कैसे ज्यादा उत्पादन कर सकते हैं।
जापान में अपने खेत में मासानोबू फुकुओका।
मासानोबू ने किताब में लिखा कि उनके पड़ोसी के खेत में चावल के पौधे की ऊंचाई अगस्त के महीने में उनकी कमर तक या उससे ऊफर तक आ जाती थी। जबकि उनके खुद के खेत में ये ऊंचाई करीब आधी ही रहती थी। लेकिन फिर भी वो खुश रहते थे क्योंकि उनको मालूम होता था कि उनका कम ऊंचाई वाला पौधा बाकियों के बराबर या ज्यादा पैदावार देगा।
मासानोबू के मुताबिक आमतौर पर साइज में बड़े पौधे से अगर 1 हजार किलो पुआल निकलता है तो करीब 500 से 600 किलो चावल का उत्पादन होता है। जबकि मासानोबू की तकनीक में 1 हजार किलो पुआल से 1 हजार किलो ही चावल निकलता है। फसल अच्छी रहने पर ये 1200 किलो तक चला जाता है।
कौन थे मासानोबू
जापान के शिकोकु द्वीप पर रहने वाले मासानोबू ने वनस्पति विज्ञान में पढ़ाई की थी लेकिन वो कस्टम इंस्पेक्टर के तौर पर नौकरी करते थे। 25 साल की उम्र में ही मासानोबू ने नौकरी छोड़कर खेती शुरु कर दी, जिसे जिन्होंने जिंदगी की अंतिम सांस तक किया।
मासानोबू की जापानी तकनीक
दरअसल, अगर आप चावल के पौधे को सूखे खेत में उगाते हैं तो ये ज्यादा ऊंचे नहीं हो पाते। कम ऊंचाई का फायदा मिलता है। इससे सूरज की रोशनी पौधे के हर हिस्से पर पड़ती है। पौधे के पत्ते से लेकर जड़ तक सूरज की रोशनी जाती है।
1 वर्ग इंच की पत्ती से 6 दाने पैदा होने की संभावता ज्यादा बन जाती है। जबकि पौधे के सबसे ऊपरी हिस्से पर आने 3-4 वाली पत्तियों से ही करीब 100 दाने आ जाते हैं।
मासानोबू बीज को थोड़ी ज्यादा गहराई में बोते थे, जिससे 1 वर्ग गज में करीब 20 से 25 पौधे उगते हैं। इनसे करीब 250 से लेकर 300 तक दानों का उत्पादन हो जाता है।
खेत में पानी नहीं भरने से पौधे की जड़ ज्यादा मजबूत होती है। इससे बिमारियों और कीड़ों से लड़ने में पौधे को काफी मदद मिलती है।
जून महीने में मासानोबू करीब 1 हफ्ते के लिए खेत में पानी को जाने से रोक देते हैं। इसका फायदा ये मिलता है कि खेत के खतरपतवार पानी की कमी की वजह से जल्दी मर जाते हैं। इसका फायदा ये होता है कि इससे चावल के अंकुर ज्यादा अच्छे से स्थापित हो पाते हैं।
मासानोबू, मौसम के शुरु में सिंचाई नहीं करते। अगस्त के महीने में थोड़ा थोड़ा पानी जरूर देते हैं लेकिन उस पानी को वो खेत में रूकने नहीं देते।
इस सबसे बावजूद उनकी इस तकनीक से चावल की पैदावार कम नहीं होती
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Source: Gaonconnection