Chickpea production less, caused by frosty

February 21 2019

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जिले में जनवरी में ओलावृष्टि से लेकर पाला पड़ने के कारण फसलों पर बुरा असर पड़ा है। इस बात का खुलासा अब हो रहा है। दरअसल जिले में डॉलर चने की गहाई का दौर शुरू हो चुका है। ऐसे में धार के आसपास के ग्रामीण क्षेत्र में किसानों को निराशाजनक स्थिति का सामना करना पड़ा है। मुख्य रूप से आहू, लबरावदा, चिकलिया आसपास के क्षेत्र में चने का उत्पादन बेहद कमजोर हुआ है। ऐसे में किसानों का कहना है कि उनके यहां पर राजस्व विभाग की टीम के साथ-साथ कृषि विभाग ने कोई ध्यान नहीं दिया। अब जाकर उन्हें एहसास हुआ है कि यदि सर्वे कर लिया जाता तो शायद बीमा या मुआवजा मिलने की स्थिति बन सकती थी। एक कृषक के यहां पर 12 बीघा में मात्र 5 क्विंटल चने का उत्पादन हुआ है। जबकि आम तौर पर यहां पर करीब 48 क्विंटल चने का उत्पादन होता था। इससे अंदाजा लगा सकता है कि खेती किस तरह से नुकसानी का कारण बन गई है।

गौरतलब है कि इस बार शीतलहर का प्रकोप अधिक रहा। लंबे समय बाद इस तरह की स्थिति बनी। जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वॉर्मिंग के चलते आमतौर पर मालवा में भी शीत ऋतु के दौरान भी बहुत अधिक ठंड नहीं पड़ती थी। इस बार शीतलहर का प्रकोप लगातार बना रहा। इसके अलावा यह भी बात सामने आई है कि जिले के कई ग्रामीण क्षेत्र में ओले-पाले के कारण नुकसानी की स्थिति बनी। कृषि विभाग ने प्राथमिक तौर पर करीब 4000 हेक्टेयर में नुकसानी का आकलन करवाया था। इसको लेकर कृषि विभाग ने मैदानी स्तर पर सर्वे करवा लिया, लेकिन इन सब के बावजूद कई गांव में सर्वे नहीं हो पाया। इस बात की अब चिंता सता रही है। क्योंकि जिले के कुछ गांव में चने का उत्पादन बेहद कमजोर हुआ है।

गौरतलब है कि इस बार पानी की कमी के चलते अधिकांश किसानों ने गेहूं की बजाय डॉलर चने की बुआई की थी। ऐसे में डॉलर चने का उत्पादन करके अपने आर्थिक संकट से उबरना चाहते थे। मौसम की मार के कारण उनका नुकसान हुआ है। ग्राम आहू, चिकलिया, लबरावदा आदि ग्रामों में चिंताजनक हालात हैं। स्थिति यह है कि लबरावदा के कृषक राजेंद्र पाटीदार के यहां पर 12 बीघा के चने की गहाई की गई तो मात्र 5 क्विंटल चना ही प्राप्त हुआ। इस तरह से बीज भी नहीं मिल पाया। वहीं लागत भी नहीं निकल पाई। यह किसान तो बानगी भर है। ऐसे सैकड़ों किसान हैं, जिनका इस तरह का नुकसान हुआ है। कई स्थानों पर तो एक बीघा में मात्र 40 या 50 किलो ही चना प्राप्त हुआ है। इस तरह की स्थिति में किसान बेहद निराश हैं, क्योंकि डॉलर चने के माध्यम से ही किसान अपनी आर्थिक स्थिति सुदृढ़ करना चाह रहा था। किसानों का कहना है कि उनके गांव में इस बार सर्वे नहीं किया गया। वहीं सरकार द्वारा भी कोई विशेष रूप से ध्यान नहीं दिया गया। जबकि समाचार पत्रों के माध्यम से लगातार क्षेत्र में नुकसानी की स्थिति बताई गई थी। किसानों ने बताया कि इस बार आले-पाले के कारण न केवल चने पर बल्कि गेहूं में भी नुकसान की 

स्थिति बनी है। गेहूं की फसल भी कमजोर स्थिति में है। कई किसानों ने बताया कि गेहूं की बालियों में अभी भी दाने ठीक से नहीं हैं। ऐसे में माना जा रहा है कि मार्च में जब गेहूं की कटाई और गहाई होगी तो उस समय भी गेहूं के मामले में भी उत्पादन कमजोर होगा। इस तरह से हर स्तर पर किसानों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है।

कृषि विभाग के उपसंचालक एस जामरा ने बताया कि इस मामले में हमने पहले ही सर्वे करवा लिया है। यदि उत्पादन कम हुआ है तो फसल कटाई के आधार पर ही बीमे का लाभ मिलता है।

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स्रोत: Nai Dunia