किसान संगठनों ने केंद्र से किसानों को कंबाइन से गेहूं कटवाने के लिए प्रति क्विंटल सौ रुपये भत्ता देने या पशु चारे के लिए गेहूं की खरीद पर चार-पांच रुपये प्रति किलोग्राम के हिसाब से बोनस देने का आग्रह किया है।
जो बचे हैं, वे भी किसी तरह मौजूदा ठिकाना छोड़ने की फिराक में हैं। ऐसे में किसान अगर कंबाइन से गेहूं कटाता है तो पूरे साल का पशु चारा बर्बाद हो जाएगा। फसल कटाई में देरी होती है और इस बीच मौसम खराब हो जाए तो किसान को नुकसान के अलावा कुछ हाथ नहीं लगेगा।
अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति ने केंद्र सरकार से आग्रह किया है कि वह किसानों को कंबाइन से गेहूं कटवाने के लिए प्रति क्विंटल सौ रुपये भत्ता दे। अगर ये नहीं हो सकता तो पशु चारे के लिए गेहूं की खरीद पर चार-पांच रुपये प्रति किलोग्राम के हिसाब से बोनस देने की घोषणा करे।
बता दें कि हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश और दूसरे कई राज्यों में गेहूं की कटाई का सीजन शुरू हो रहा है। जिन किसानों के पास दो-तीन एकड़ जमीन है, वे मजदूरों से ही गेहूं कटवाते हैं। इसकी वजह ये है कि उन्हें पशुओं के लिए सालभर का चारा भी चाहिए।
बड़े किसान हैं तो वे पशुओं के लिए जितना चारा चाहिए, उतनी फसल छोड़कर बाकी कंबाइन से कटा लेते हैं। इसका फायदा यह होता है कि कटाई के साथ साथ गेहूं निकल जाता है। अलग से थ्रेसर लगवाने की जरूरत नहीं पड़ती। समय की बचत भी होती है। जींद जिले के इक्कस गांव के किसान दिनेश कुमार का कहना है कि एक एकड़ की फसल अगर मजदूरों से कटवाते हैं तो सात-आठ सौ रुपये लगते हैं।
मशीन से कटाते हैं तो उसका रेट भी छह सौ से लेकर आठ सौ रुपये तक है। इस बार वह रेट बढ़ने के आसार हैं, क्योंकि मजदूर तो हैं नहीं। ऐसे में अधिकांश किसानों को कंबाइन पर ही निर्भर रहना पड़ेगा। हो सकता है कि प्रति एकड़ कटाई का रेट 12 सौ रुपये तक पहुंच जाए।
समस्या केवल यहीं पर खत्म नहीं होती। अगर कंबाइन से भी गेहूं कटवाते हैं तो उन्हें लेकर मंडी भी जाना है, मजदूरों की जरूरत तो फिर भी रहेगी। चूंकि इस बार कटाई का सीजन लंबा चलना तय है, इसलिए बीच में मौसम की मार भी झेलनी पड़ सकती है। ज्यादातर कंबाइन पंजाब से आती हैं, हालांकि हरियाणा और यूपी के तराई के इलाकों में बड़े किसानों के पास कंबाइन उपलब्ध हैं।
सरकार को चार कदम आगे बढ़ाने होंगे: सरदार वीएम सिंह
अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति के संयोजक सरदार वीएम सिंह के अनुसार, कोरोना के चलते जो लॉकडाउन हुआ है, उसमें मजदूर कहां से आएंगे। अगर कोई मजदूर बाहर निकलता है तो उसे पुलिस के डंडे खाने पड़ते हैं। जिन किसानों के पास पशुधन है, वह कंबाइन से गेहूं नहीं कटवाना चाहेगा।
एक एकड़ में जितना गेहूं होता है, उतना ही तूड़ा होता है। जैसे एक एकड़ में 15-20 क्विंटल गेहूं मिलता है तो पशु चारा भी लगभग उतना ही मिल जाता है। अगर कंबाइन से गेहूं कटता है तो महज दो तीन क्विंटल पशुचारा मिलता है। यानी गेहूं की पैदावार का पांचवा हिस्सा तूड़े के तौर पर मिलता है।
कहीं से मजदूर का जुगाड़ भी हो जाए, तो कोरोना का खतरा बरकरार है। खेत में कंबाइन से गेहूं कटवा लिया है तो उसे मंडी में ले जाने के लिए ट्रांसपोर्ट और मजदूर चाहिए। ऐसे में हमारी सरकार से मांग है कि वह किसानों के गेहूं की खरीद पर पांच रुपये प्रति किलोग्राम के हिसाब से बोनस दे, ताकि वह सालभर के लिए पशुचारा खरीद सके।
दूसरा, इस बार कटाई का सीजन आगे जाना तय है, इसलिए सरकार खेतों में ही गेहूं की खरीद सुनिश्चित करे। सभी किसान कंबाइन से गेहूं कटवा सकें, इसके लिए सौ रुपया प्रति क्विंटल की आर्थिक मदद दी जाए। अगर ऐसा हो जाता है तो अन्नदाता कई तरह की मुसीबतों से बच जाएगा।
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स्रोत: अमर उजाला