महाराष्ट्र के सुखाड़ इलाके उस्मानाबाद में किसान बकरियों के दूध की तदबीर से अपनी बिगड़ी हुई तकदीर बना रहे हैं। इस काम में उनकी मदद स्थानीय नस्ल की उस्मानाबादी बकरी कर रही हैं। करीब 25 गांवों का परिवार इस बकरी की मदद से साबुन बनाकर पैसे कमा रहा है।
हेगाना ने कहा, पीड़ित परिवारों को आर्थिक मदद देने की बजाय हमने उन्हें आजीविका कमाने का तरीका सिखाने का फैसला किया। उन्हें बताया कि कैसे उस्मानाबादी बकरियों को पालकर मुनाफा कमा सकते हैं।
किसानों को एक लीटर बकरी के दूध के 300 रुपये मिलते हैं और एक दिन के काम का 150 रुपया दिया जा रहा है। इस काम में 250 परिवार और उनकी 1400 बकरियां शामिल है। संस्था इस परियोजना में 10,000 और परिवारों को जोड़ेगी।
उस्मानाबादी बकरी ही क्यों?
विटामिन ए, ई, सेलेनियम और अल्फा हाइड्रोक्सी अम्ल से भरपूर बकरी का दूध त्वचा के रोगों के इलाज में बेहतर है। उस्मानाबादी बकरी का प्रयोग दूध और मांस दोनों के लिए होता है। इस नस्ल की बकरी महाराष्ट्र में पाई जाती है।
आम तौर पर बकरी साल में दो बार प्रजनन करती है। इस नस्ल की मृत्युदर भी कम है। सामान्य तौर पर पाली जाने वाली जमुनापारी नस्ल की बकरियां सिर्फ दूध के मामले में बेहतर होती हैं, लेकिन इनकी मृत्युदर अधिक होती है।
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स्रोत: अमर उजाला