मानसून के दौरान बाढ़ और बढ़ता तापमान से चाय के बागान वालों के लिए खतरे की घंटी साबित हो रहा है। चाय बागान में लगने वाला रेड स्पाइडर माइट (कीट) मार्च-अप्रैल में लगता था, वो अब पूरे साल नुकसान पहुंचाने लगा है।
पश्चिम बंगाल के सिलिगुड़ी में चाय के बागान के मालिक शिव के. सरिया पिछले कुछ वर्षों से जलवायु परिवर्तन के असर से होने वाले नुकसान को झेल रहे हैं। वह बताते हैं, ‘वातावरण का तापमान बढ़ने से पूरे साल कीट-पतंगों का हमला होता है, जिसके लिए कीटनाशक का छिड़काव करना पड़ता है।
जैसे टी मास्क्यूटो बग (टीबीजी) फसल को काफी नुकसान पहुंचा रहा है, यह पत्ती में जहर डाल देता है और पत्ती को तोड़ा नहीं गया तो पूरे पौधे को नष्ट कर देता है। इसी तरह से रेड स्पाइडर कीट और लूपर कैटर पिलर भी नुकसान पहुंचा रहे हैं।’
वहीं, शिव के सरिया कहते हैं, ‘पहले दिसंबर से मार्च के बीच बारिश हो जाती थी, लेकिन अब बहुत कम होती है। जबिक सालभर में होने वाली कुल बारिश उतनी ही है, जो मानसून सीजन में अधिक होने पर बाढ़ का रूप ले लेती है।’
भारत दूसरा सबसे बड़ा चाय उत्पादक देश
चीन के बाद भारत दूसरा सबसे बड़ा चाय उत्पादक देश है, लेकिन बदलते मौसम की वजह से इसका उत्पादन घटने के आसार हैं। टी प्लांट वर्कर एसोसिएशन के महासचिव जियाउल हक कहते हैं, ‘आज के तीस साल पहले कीड़े-मकोड़े नहीं लगते थे, आज केमिकल का स्प्रे अधिक करना पड़ रहा है, जिससे जर्मनी आदि देशों में इसका निर्यात नहीं हो पा रहा है।
दूसरे बारिश का बंटवारा और बाढ़ आने से चाय के बगीचों में ऊपर से पानी बहने से बगीचे बर्बाद हो जाते हैं। असम और बंगाल में वनों के कटने और माइनिंग का भी असर पड़ रहा है।’
चाय के लिए 18-30 डिग्री तापमान अच्छा...
चाय उत्पादन के लिए आदर्श तापमान 18-30 डिग्री सेल्सियस तक होना अच्छा माना जाता है, यदि तापमान 32 डिग्री से ऊपर जाता है या 13 डिग्री से नीचे जाता है तो यह पौधे की बढ़वार पर असर डालता है। इसके साथ ही तेज हवाएं, जमाव वाली ठंड, अत्यधिक तेज बारिश भी चाय उत्पादन पर विपरीत असर डालते हैं।
दार्जिलिंग में पहले अधिक ठंड रहती थी...
जलवायु परिवर्तन के असर को समझाते हुए पश्चिम बंगाल के सिलिगुड़ी में टी बोर्ड के डायरेक्टर रिसर्च डॉ. विश्वजीत बेरा कहते हैं, “दार्जिलिंग चाय का नाम है, यहां पहले अधिक ठंड रहती थी, लेकिन अभी नहीं है। इसकी गुणवत्ता खराब होने के पीछे जलवायु परिवर्तन ही है।
असमान्य बारिश और बढ़ते तापमान से काफी नुकसान हो रहा है, कीड़े लगते हैं और अगर तेज बारिश में पौधे के नीचे पानी जम गया तो वह मर जाएगा। हमारी कोशिश है कि जलवायु परिवर्तन के हिसाब से पौधों को विकसित करना, ताकि पैदावार प्रभावित न हो। इसके लिए जीनोम सीक्वेंसिंग तकनीक पर काम कर रहे हैं।”
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स्रोत: Amar Ujala