कुछ वक्त पहले नीति आयोग ने भूमिगत पानी की बर्बादी के लिए गन्ने की फसल को भी जिम्मेदार मानते हुए इसपर सवाल उठाए. आयोग के सीईओ अमिताभ कांत ने कहा कि ये फसल सबसे ज्यादा पानी पीती है. भारत में जहां लगभग 76 मिलियन लोगों को पीने का साफ पानी नहीं जुट रहा (रिपोर्ट- WaterAid), वहां गन्ने के अलावा भी कई अन्य फसलें हैं जो भूमिगत पानी को बड़ी तेजी से खत्म करती जा रही हैं.
रुई- इसे वाइट गोल्ड के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि इसकी पैदावार से काफी फायदा होता है. ये खरीफ की फसल में आता है. भारत रुई की पैदावार में भी दूसरे देशों से काफी आगे है. पानी की बात करें तो 1 किलोग्राम रुई उपजाने में लगभग 22 हजार लीटर पानी लगता है. हैरानी की बात ये है कि रुई की अधिकतर फसल देश के सूखाग्रस्त इलाकों में आ रही है. इनमें गुजरात, महाराष्ट्र, आंध्रप्रदेश, हरियाणा. मध्यप्रदेश, पंजाब और उत्तराखंड मुख्य हैं.
सोया- 12 मिलियन टन उत्पादन के साथ सोया एक ऐसी फसल है, जिसका उत्पादन देश में लगातार बढ़ रहा है. यहां की मिट्टी सोया की फसल के लिए मुफीद मानी जाती है. प्रोटीन, वेजिटेबल ऑइल और जानवरों के खाने के लिए उपजाई जाने वाली ये फसल हालांकि काफी पानी लेती है. 1 किलोग्राम सोया की पैदावार में लगभग 900 लीटर पानी लग जाता है. ये फसल सूखे से जूझ रहे महाराष्ट्र के अलावा मध्यप्रदेश और राजस्थान में उपजाई जाती है.
गेहूं- ग्रीन रिवॉल्यूशन के बाद देश में गेहूं का उत्पादन तेजी से बढ़ा. धान के बाद ये सबसे ज्यादा उपजाई और खपत होने वाली फसल है. दुनियाभर में गेहूं के उत्पादन में भारत दूसरे स्थान पर है. हालांकि इसके बावजूद इस तथ्य को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि एक किलोग्राम गेहूं के उत्पादन में लगभग 900 लीटर पानी की जरूरत होती है.
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स्रोत: न्यूज़ 18 हिंदी