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आम जानकारी

भारत में, ब्रोकली ग्रामीण आर्थिकता में उछाल लाने वाली फसल है। यह ठंडे मौसम वाली फसल है और यह बसंत ऋतु में उगायी जाती है। यह आयरन, कैल्शियम और विटामिन आदि जैसे पोषक तत्व एक अच्छा स्त्रोत है। इस फसल में 3.3 प्रतिशत प्रोटीन और विटामिन ए और सी की उच्च मात्रा शामिल होती है। इसमें रिवोफलाईन , नियासीन, और थियामाइन की बहुत मात्रा शामिल होती है और कैरोटिनोइड्ज भी उच्च मात्रा में शामिल होती है। इसे मुख्य तौर पर सलाद के तौर पर प्रयोग किया जाता है और इसे हल्का पकाकर भी खाया जा सकता हैं। इसे मुख्य तौर पर ताज़ा , ठंडा करके या सलाद के लिए बेचा जाता है।  

मिट्टी

ब्रोकली की उचित और अच्छी वृद्धि के लिए नमी वाली मिट्टी की जरूरत होती है। ब्रोकली की खेती के लिए अच्छी खाद वाली मिट्टी ठीक होती है। ब्रोकली की खेती के लिए मिट्टी का pH 5.0-6.5 होना चाहिऐ। 

प्रसिद्ध किस्में और पैदावार

Palam Samridhi: यह किस्म 2015 में जारी की गई है इस किस्म की पनीरी अद्र्ध फैलने वाली है। जिन्हें कोमल, बड़े, और हरे रंग के पत्ते लगते हैं। इसका फल गोल, घना, और हरे रंग का होता है। इसके फल का औसतन भार 300 ग्राम होता है। यह किस्म पनीरी लगाने से 70—75 दिनो के बाद पक जाती हैं और इसकी औसतन पैदावार 72 क्विंटल प्रति एकड़  होती है। 

Punjab Broccoli-1: यह किस्म 1996 में जारी की गई। इसके पत्ते कोमल, मुड़े हुऐ  और गहरे हरे रंग के होते हैं। इसका फल घना और आकर्षक होता है यह किस्म 65 दिनो में पक जाती है और इसकी औसतन पैदावार 70 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। यह किस्म सलाद और खाना बनाने के लिए अनुकूल है। 

 

बिजाई

बिजाई का समय 
इसकी बिजाई के लिए मध्य अगस्त से मध्य सितंबर तक का समय ठीक होता है।

फासला 
कतारों में फसला 45X45 सें.मी. रखें।

बीज की गहराई 
बीज को 1—1.5 सें.मी की गहराई पर बोयें।
 
बिजाई का ढंग
इसकी बिजाई कतारों में या छिडकाव से भी कर सकते हैं।
 

बीज

बीज की मात्रा
एक एकड़ खेत में बिजाई के लिए 250 ग्राम बीजों का प्रयोग करें।
 
बीज का उपचार
मिट्टी से पैदा होने वाली बीमारियों से बचाव के लिए बिजाई से पहले बीजों को गर्म पानी (58 डिगरी सेल्सियस) में 30 मिनट के लिए रखकर उपचार करें।

 

खाद

खादें (किलोग्राम प्रति एकड़)

UREA SSP MOP
110 155 40

 

तत्व (किलोग्राम प्रति एकड़)

NITROGEN PHOSPHORUS POTASH
50 25 25

 

 40 टन रूडी की खाद डालें। इसके इलावा नाइट्रोजन 50 किलो (यूरिया 110 किलो), फासफोर्स 25 किलो (सिंगल सुपर फॉसफेट 155 किलो) और पोटाशियम 25 किलो (म्यूरेट ऑफ पोटाश 40 किलो) प्रति एकड़ डालें। रोपाई से पहले रूडी की खाद , फासफोर्स और पोटाशियम की पूरी मात्रा और नाइट्रोजन की आधी मात्रा डालें। बाकि बची नाइट्रोजन की मात्रा रोपाई से एक महीने के बाद डालें। 

 

खरपतवार नियंत्रण

नदीनो की रोकथाम के लिए रोपाई  से पहले फलूक्लोरालिन (बसालिन) 1—2 लीटर को प्रति 600—700 लीटर पानी  में मिलाकर प्रति एकड़ में स्प्रे करें और रोपण से 30—40 दिनो के बाद हाथ से गड़ाई करें। नए पौधो के रोपाई से एक दिन  पहले पैंडीमैथालिन 1 लीटर प्रति एकड़ पर स्प्रे करें।

सिंचाई

रोपण के तुरंत बाद , पहली सिंचाई करें। मिट्टी जलवायु या मौसम की स्थिति अनुसार गर्मियों में 7—8 दिनों और सर्दियों में 10—15 दिनो के फासले से सिंचाई करें।

पौधे की देखभाल

  • हानिकारक कीट और रोकथाम
थ्रिप्स: ये छोटे कीट होते हैं जो कि हल्के पीले से हल्के भूरे रंग के होते हैं और इसके लक्षण नष्ट हुए और सिल्वर रंग के पत्ते हो जाते हैं।
 
रोकथाम: यदि चेपे और तेले का नुकसान अधिक हो तो इमीडाक्लोप्रिड 17.8 एस एल 60 मि.ली. को प्रति 150 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ पर स्प्रे करें।
निमाटोड: इसके लक्षण है पौधे के विकास में कमी और पौधे का पीला पड़ना आदि।
 
रोकथाम: इसका हमला दिखने पर 5 किलो फोरेट या कार्बोफ्यूरॉन 10 किलो प्रति एकड़ के हिसाब से बुरकाव करें।
चमकीली पीठ वाला पतंगा: इसका लार्वा पत्तों की ऊपरी और निचली सतह को नष्ट करता है और परिणामस्वरूप यह पूरे पौधे को नुकसान पहुंचाता है।

रोकथाम: यदि हमला बढ़ जाये तो स्पिनोसैड 25 प्रतिशत एस सी 80 मि.ली. को प्रति 150 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।

 

  • बीमारियां और रोकथाम
सफेद फंगस: यह बीमारी स्लैरोटीनिया स्लैरोटियोरम के कारण होती है। इसके हमले से पत्तों और तनों पर अनियमित और सलेटी रंग के धब्बे देखे जा सकते हैं।
 
रोकथाम: यदि खेत में यह बीमारी दिखे तो मैटालैक्सिल+मैनकोजेब 2 ग्राम प्रति लीटर पानी की स्प्रे करें और 10 दिनों के फासले पर कुल 3 स्प्रे करें।
उखेड़ा रोग: यह बीमारी राइज़ोकटोनिया सोलानी के कारण होती है। इसके हमले से नए पौधे अंकुरण के तुरंत बाद नष्ट हो जाते हैं और तने पर भूरे लाल या काले रंग का गलन दिखाई देता है।
 
रोकथाम: पौधों की जड़ों में रिडोमिल गोल्ड 2.5 ग्राम प्रति लीटर पानी डालें और आवश्यकतानुसार सिंचाई करें। पानी  खड़ा ना होने दें।
पत्तों पर धब्बे: इसके हमले से पत्तों की निचली सतह पर संतरी या पीले रंग के छोटे धब्बे दिखाई देते हैं।
 
रोकथाम: यदि यह बीमारी बढ़ जाये तो मैटालैक्सिल 8 प्रतिशत + मैनकोजेब 64 प्रतिशत डब्लयु पी 250 ग्राम प्रति 150 लीटर पानी की स्प्रे करें।
पत्तों पर गोल धब्बे: इससे पत्तों पर छोटे और जामुनी रंग के धब्बे बन जाते हैं जो बाद में भूरे रंग के हो जाते हैं।

रोकथाम: यदि यह बीमारी बढ़ जाये तो मैटालैक्सिल 8 प्रतिशत + मैनकोजेब 64 प्रतिशत डब्लयु पी 250 ग्राम प्रति 150 लीटर पानी की स्प्रे करें।

फसल की कटाई

मैदानी क्षेत्रों में फल की तुड़ाई का समय दिसंबर से मार्च का महीना है। जबकि पहाड़ी क्षेत्रों में नवंबर से अप्रैल का महीना है।
 
अगेती पकने वाली किस्म 40-50 दिनों में तुड़ाई के लिए तैयार हो जाती है। मध्यम समय की किस्म 60-100 दिनों में और देरी से पकने वाली किस्म 100-115 दिनों में तुड़ाई के लिए तैयार हो जाती है।
 
10-15 सैं.मी. तना, हरा और सघन फल तुड़ाई के लिए तैयार होता है। तुड़ाई करने में देरी ना करें क्योंकि फल के गुच्छे ढीले पड़ने लग जाते हैं जिससे इनकी मार्किट कीमत कम हो जाती है। तुड़ाई तीखे चाकू से करें। इसकी औसतन पैदावार 40-60 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।

बीज उत्पादन

ब्रोकली की अन्य किस्में और अन्य गोभी वाली फसलों में 1600 मीटर का फासला बनाए रखें। प्रत्येक पांच कतारों के बाद एक कतार छोड़ दें। इससे फसल की जांच करने में आसानी होती है। प्रभावित पौधे और पत्तों की विशेषता में अलग दिखने वाले पौधों को हटा दें। फलियों का रंग भूरा होने पर फसल की तुड़ाई करें। इसकी तुड़ाई 2—3 बार करनी चाहिए। तुड़ाई क बाद पौधे को पकने और सूखने के लिए एक सप्ताह तक खेत में छोड़ दें। इसे अच्छी तरह सुखाने के बाद, बीज के उद्देश्य के लिए फसल की थ्रैशिंग करें।