बेर की फसल

आम जानकारी

बेर, जिसे गरीबों का फल भी कहा जाता है, की खेती आमतौर पर शुष्क इलाकों में की जाती है। बेर में काफी मात्रा में प्रोटीन, विटामिन सी,  पौष्टिक खनिज और तत्व पाए जाते हैं। इसकी खेती पूरे भारत में की जाती है। इसकी खेती मुख्य तौर पर मध्य प्रदेश, बिहार, उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, राज्यस्थान, गुजरात, महांराष्ट्र, तामिलनाडू और आंध्र प्रदेश आदि राज्यों में की जाती है। पंजाब राज्य में किन्नू, आम और अमरूद आदि के बाद उगाई जाने वाली फलों में मुख्य फसल बेर ही है।

जलवायु

  • Season

    Temperature

    15-40°C
  • Season

    Rainfall

    300-400mm
  • Season

    Sowing Temperature

    15-20°C
    30-37°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    30-40°C
    15-20°C
  • Season

    Temperature

    15-40°C
  • Season

    Rainfall

    300-400mm
  • Season

    Sowing Temperature

    15-20°C
    30-37°C
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    Harvesting Temperature

    30-40°C
    15-20°C
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    15-40°C
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    Rainfall

    300-400mm
  • Season

    Sowing Temperature

    15-20°C
    30-37°C
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    Harvesting Temperature

    30-40°C
    15-20°C
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    Temperature

    15-40°C
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    Rainfall

    300-400mm
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    Sowing Temperature

    15-20°C
    30-37°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    30-40°C
    15-20°C

मिट्टी

इसे ज्यादा और कम गहरी वाली मिट्टी के इलावा रेतली और चिकनी मिट्टी में भी उगाया जा सकता है। इसकी खेती बंजर और बारानी इलाकों में की जा सकती है इसकी खेती लवण वाली, खारी और दलदली मिट्टी में भी की जा सकती है। इसकी अच्छी पैदावार के लिए पानी को सोखने में सक्षम रेतली मिट्टी, जिस में पानी के निकास का अनुकूल प्रबंध हो , ठीक रहती है।

प्रसिद्ध किस्में और पैदावार

Umran: इस किस्म के फल अंडाकार आकार के चमकदार होते हैं इसके फल का रंग सुनहरी पीला होता है जो पूरी तरह पकने के बाद चॉकलेटी रंग के हो जाते हैं। इसकी फसल मार्च के आखिर या अप्रैल के मध्य तक पककर तैयार हो जाती है। इसके एक बूटे की पैदावार 150 से 200 किलोग्राम होती है।
 
Kaithli: इस किस्म के फल दरमियाने और अंडाकर आकार के होते हैं और फल का रंग हरा पीला होता है। इसकी फसल मार्च के आखिर में पककर तैयार हो जाती है। इसके फलों में मिठास भरपूर मात्रा में होती है। इसके बूटे से 75 किलोग्राम तक फल प्राप्त हो जाते हैं। इस किस्म को फफूंद के हमले का ज्यादा खतरा रहता है।
 
ZG 2: इस किस्म के बूटे का आकार काफी घना और फैला हुआ होता है। इसके फल छोटे और अंडाकार आकार के होते हैं। पकने के बाद इनका रंग हरा हो जाता है। इसका फल भी मिठास से भरपूर होता है। इस किस्म पर फफूंद का हमला नहीं होता। यह किस्म मार्च के आखिर में पककर तैयार हो जाती है। इस किस्म के प्रति बूटे की पैदावार 150 किलोग्राम तक हो सकती है।
 
Wallaiti: इस किस्म के फल दरमियाने से बड़े आकार के होते हैं। पकने पर इसके फल का रंग सुनहरी पीला हो जाता है। इसमें टी एस एस की मात्रा 13.8 से 15 प्रतिशत तक होती है। इस किस्म के प्रति बूटे की पैदावार 114 किलोग्राम तक हो सकती है।
 
Sanaur 2: इस के फल बड़े आकर और नर्म परत वाले होते हैं। इसका रंग सुनहरी पीला होता है। इसका फल भी बहुत मिठास भरपूर होता है जिसमें टी एस एस की मात्रा 19 प्रतिशत तक होती है। यह किस्म भी फफूंद के हमले से रहित होती है। मार्च के अंतिम पखवाड़े में इसका फल पककर तैयार हो जाता है। इस किस्म के प्रति बूटे की पैदावार 150 किलोग्राम तक हो सकता है।
 
Balvant: यह अगेती किस्म है और मध्य नवंबर महीने में पक जाती है। इसकी औसतन उपज 121 किलो प्रति वृक्ष होती है।
 
Neelam: यह मध्यम पकने वाली किस्म है और अंत नवंबर महीने में पक जाती है। इसकी औसतन उपज 121 किलो प्रति वृक्ष होती है।
 
दूसरे राज्यों की किस्में
 
Gola: यह ज्यादा पैदावार और जल्दी पकने वाली किस्म के लिए सूखे क्षेत्र अनुकूल होते हैं। इसके फल गोल, हरे पीले रंग के होते हैं।
 
Banarasi Kadaka
Mehrun
Parbhani
Elaichi
Sanam 5
 

ज़मीन की तैयारी

For Ber farming, well prepared land is required. To bring the soil to fine tilth, 2-3 ploughings followed by levelling should be done.

प्रजनन

यह आमतौर पर कलमों और टहनियों के द्वारा लगाया जाता है। कत्था बेर आमतौर पर जड़ों के लिए प्रयोग किया जाता है। बेर के बीजों को 17-18 प्रतिशत नमक के घोल में 24 घंटों  के लिए भिगो कर रखें फिर अप्रैल के महीने नर्सरी में बिजाई करें। पंक्ति से पंक्ति का फासला 15 सैं.मी. और पौधे से पौधे का फासला 30 सैं.मी होना चाहिए। 3 से 4 सप्ताह बाद बीज अंकुरन होना शुरू हो जाता है और पौधा अगस्त महीने में कलम लगाने के लिए तैयार हो जाता है। टी के आकार में काटकर जून-सितंबर महीने में इसे लगाना चाहिए।

बिजाई

बिजाई का समय
इसका खेत में रोपण फरवरी-मार्च या अगस्त-सितंबर महीने में किया जाता है। खेत में रोपण करने से पहले पौधों के पत्ते काट लें।
 
बिजाई
पौधे लगाने के लिए 7.5x7.5 मीटर का फासला रखें।
 
बीज की गहराई
पौधे लगाने से पहले 60x60x60 सैं.मी. के गड्ढे खोदें और 15 दिनों के लिए धूप में खुले छोड़ दें। इसके बाद इन गड्ढों को मिट्टी और गोबर से भर दें इसके बाद पौधों को इन गड्ढों में लगा दें।
 

कटाई और छंटाई

हर साल पूरी तरह पौधे की कटाई और छंटाई जरूरी होती है। यह नर्सरी के समय शुरू होती है। ध्यान रखें कि नर्सरी में एक तने वाला पौधा हो। खेत में रोपण के समय पौधे का ऊपर वाला सिरा साफ हो और 30-45 सैं.मी. लंबी 4-5 मजबूत टहनियां हों। पौधे की टहनियों की कटाई करें ताकि टहनियां धरती पर ना फैल सकें। पौधे की सूखी, टूटी हुई और बीमारी वाली टहनियों को काट दें। मई के दूसरे पखवाड़े में पौधे की छंटाई करें जब पौधा ना बढ़ रहा हो।

अंतर-फसलें

इसमें पहले तीन से चार साल अन्य फसलों की बिजाई कर सकते हैं जैसे कि छोले, मूंग और काले मांह आदि शुरूआती वर्षों में इस फसल के साथ लगा सकते हैं। इस तरह यह फसलें ज्यादा आमदन देती हैं और ज़मीन में नाइट्रोजन की मात्रा बढ़ाती हैं।

खाद

खादें(किलोगाम/प्रति वृक्ष)

Age of crop

(Year)

Well decomposed cow dung

(kg)

Urea

(in gm)

First year 20 200
Second year 40 400
Third year 60 600
Fourth year 80 800
Fifth and above
100 1000

 

20 किलोग्राम प्रति वृक्ष रूड़ी की गली सड़ी खाद जो कि एक साल पुरानी हो उसे 200 ग्राम यूरिया में मिलाकर डालें। दो साल पुरानी फसल के लिए रूड़ी की मात्रा 20 किलोग्राम और यूरिया 200 ग्राम बढ़ा दें। हर साल यूरिया 200 ग्राम और रूड़ी की खाद 20 किलोग्राम प्रति वृक्ष बढ़ाते रहें।

मई के महीने में गोबर की सारा मात्रा डाल दें। यूरिया को 2 बराबर भागों में डालें। पहली मात्रा जुलाई-अगस्त और दूसरी बची मात्रा फल बनने के बाद डालें।

 

खरपतवार नियंत्रण

अगस्त महीने के पहले पखवाड़े की शुरूआत में 1.2 किलोग्राम डयूरॉन नदीननाशक प्रति एकड़ के हिसाब से छिड़काव करना चाहिए। उपरोक्त नदीन नाशक का प्रयोग नदीनों के पैदा होने से पहले करना चाहिए। नदीनों के पैदा हो जाने की सूरत में जब यह 15 से 20 सैं.मी. तक लंबे हो जायें तो इनकी रोकथाम के लिए 1.2 लीटर गलाईफोसेट या 1.2 लीटर पैराकुएट का प्रति 200 लीटर पानी में घोल तैयार करके प्रति एकड़ के हिसाब से छिड़काव करना चाहिए।

सिंचाई

आमतौर पर लगाएं पौधों को जल्दी सिंचाई की जरूरत नहीं होती पौधा शुरूआती समय में होता है तो इसे ज्यादा पानी की जरूरत नहीं होती। फल बनने के समय पानी की जरूरत होती है। इस पड़ाव के समय तीन से चार सप्ताह के फासले पर मौसम के हिसाब से पानी देते रहें। मार्च के दूसरे पखवाड़े में सिंचाई बंद कर दें।

पौधे की देखभाल

फल की मक्खी
  • हानिकारक कीट और रोकथाम
फल की मक्खी : बेर की फसल पर हमला करने वाली यह घातक कीट है। इस किस्म की मादा मक्खी नए विकसित हुए फलों के छिलके के अंदर की ओर अंडे दे देती है। इन अंडों में पैदा हुए कीड़े फल का गुद्दा खाना शुरू कर देते हैं जिस कारण फल पूरी तरह गलने के बाद नीचे गिर जाता है। इस मक्खी के हमले की प्रतिरोधक फसलें बीजने को पहल देनी चाहिए। इसके हमले का शिकार हुए फलों को खेत से दूर ले जाकर नष्ट कर देना चाहिए। खेत की साफ सफाई का खास ध्यान रखना चाहिए। 500 मि.ली. डाइमैथोएट का 300 लीटर पानी में घोल तैयार करके फरवरी और मार्च महीने के दौरान छिड़काव करना चाहिए। फल की तुड़ाई के 15 दिन पहले दवाई का छिड़काव बंद कर देना चाहिए।
 
पत्तों की सुंडी

पत्तों की सुंडी : यह कीड़ा पौधे के पत्ते और फल को खा जाता है। इसके हमले के कारण फल की गुणवत्ता प्रभावित होती है। इसका हमला होने पर कीड़े को हाथ से उठाकर खत्म कर देना चाहिए। 750 ग्राम कार्बरिल का प्रति 250 लीटर पानी में घोल तैयार करके छिड़काव करना चाहिए।

पत्तों पर धब्बे
  • बीमारियां और रोकथाम
पत्तों पर धब्बे : इसका हमला होने पर पत्तों और फलों पर सफेद रंग के धब्बे पड़ने शुरू हो जाते हैं। इसका हमला ज्यादा होने पर पत्ते और फल गिरने शुरू हो जाते हैं। फलों की गुणवत्ता कम हो जाती है और वे छोटे आकार के ही रह जाते हैं। इसकी रोकथाम के लिए फूल पड़ने के समय 250 ग्राम घुलनशील सल्फर का प्रति 100 लीटर पानी में घोल तैयार करके छिड़काव करना चहिए। जरूरत पड़ने पर दोबारा छिड़काव कर देना चाहिए।
 
पत्तों पर फंगस

पत्तों पर फंगस : इसका हमला होने पर पत्तों के निचली ओर काले रंग की फफूंदी लगनी शुरू हो जाती है। इस कारण पत्तों का रंग पीला पड़ जाता है। हमला ज्यादा होने पर पत्ते गिरने लग जाते हैं। इसका हमला दिखाई देने पर 300 ग्राम कॉपर ऑक्सी क्लोराइड का प्रति 100 लीटर पानी में घोल तैयार करके छिड़काव करना चाहिए।

फलों पर काले धब्बे
फलों पर काले धब्बे : बेर के फल के ऊपर छोटे काले धब्बे दिखने शुरू हो जाते हैं। इस बीमारी के लक्षण फरवरी महीने में दिखाई देते हैं। हमला बढ़ने पर फल गिरने शुरू हो जाते हैं। इसकी रोकथाम के लिए 250 ग्राम मैनकोजेब 75 डब्लयू पी का प्रति 100 लीटर पानी में घोल तैयार करके जनवरी महीने से लेकर फरवरी के मध्य तक 10 से 15 दिनों के फासले पर छिड़काव करना चाहिए।

 

 

फसल की कटाई

फलों की पहली तुड़ाई पौधे के 2 से 3 साल का होने पर करनी चाहिए। फलों की तुड़ाई अच्छी तरह पकने के बाद ही करनी चाहिए। फल को जरूरत से ज्यादा पकने नहीं देना चाहिए, क्योंकि इससे फल की गुणवत्ता और स्वाद पर बुरा प्रभाव पड़ता है। फल का सही आकार और किस्म के हिसाब से रंग बदलने पर ही तुड़ाई करनी चाहिए।

कटाई के बाद

तुड़ाई के बाद खराब और कच्चे फलों को अलग कर देना चाहिए और फलों को उनके आकार के हिसाब से अलग अलग कर देना चाहिए। फलों को छंटाई करने के बाद इन्हें सही आकार वाले गत्ते के डिब्बे, लकड़ी की टोकरी या जूट की बोरियों में पैक करना चाहिए।

रेफरेन्स

1.Punjab Agricultural University Ludhiana

2.Department of Agriculture

3.Indian Agricultural Research Instittute, New Delhi

4.Indian Institute of Wheat and Barley Research

5.Ministry of Agriculture & Farmers Welfare