माल्टा के फल के बारे में जानकारी

आम जानकारी

माल्टा एक नींबूवर्गीय फल है जो भारत में उगाया जाता है| नींबूवर्गीय फलों में से 30% इस फल की खेती की जाती है| भारत में मैंडरिन और स्वीट ऑरेंज की किस्म बेचने के लिए उगाई  जाती है| देश के केंद्रीय और पश्चिमी भागों में मैंडरिन की खेती दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है| भारत में, फलों की पैदावार में केले और आम के बाद माल्टा का तीसरा स्थान है| भारत में, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश, पंजाब और उत्तर प्रदेश माल्टा उगाने वाले राज्य है|

जलवायु

  • Season

    Temperature

    10°C - 30°C
  • Season

    Rainfall

    500 mm
  • Season

    Sowing Temperature

    10°C - 25°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    30°C - 35°C
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    10°C - 30°C
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    500 mm
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    10°C - 25°C
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    30°C - 35°C
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    10°C - 30°C
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    30°C - 35°C
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    10°C - 30°C
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    10°C - 25°C
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    30°C - 35°C

मिट्टी

यह मिट्टी की बहुत सारी किस्मों में विकसित होती है| इसके विकास के लिए यह सामन्य हल्की दोमट मिट्टी जिसका pH 6.0-8.0 हो,में बढ़िया विकास के लिए अनुकूल है|

प्रसिद्ध किस्में और पैदावार

Jaffa: इसका वृक्ष अनानास किस्म के वृक्ष की तरह सामान आकार में होता है| इसके फल बड़े, गोल आकार और रंग में पीले-संतरी छिलके वाले, एक अकेले फल में 9-12 बीज होते है| इसके फल दिसंबर में पक जाते है| इसके फल की औसतन पैदावार 54 किलो प्रत्येक पौधा होती है|

Mousambi: इसके वृक्ष सामन्य कद के होते है| फलों का आकार दरमियाना होता है| इसका जूस तेज़ाब-रहित होता है जिसमे शुगर की मात्रा 10% होती है| नवंबर के महीने में फल पक जाते है| एक अकेले फल में 20-25 बीज होते है| इसके फल की औसतन पैदावार 40 किलो प्रत्येक पौधा होती है|

Valencia Late: तेज़ी से बढ़ने वाले, ज्यादा फल लगने वाला एक सामन्य कद का वृक्ष है| इसके फल अंडाकार होते है| यह पकने पर सुनहरी-पीले रंग में बदल जाते है| इसके फल देरी से फरवरी के महीने में पक कर तैयार होते है| एक एकेले फल में 2-7 बीज होते है| इसके फल की औसतन पैदावार 40 किलो प्रत्येक पौधा होती है|

Blood Red: इसके वृक्ष Jaffa किस्म के मुकाबले बढ़े कद के होते है| फल सामन्य आकार के होते है| पकने पर इसके फल गहरे संतरी रंग के हो जाते है| इसका गुद्दा लाल रंग का होता है जिस में खट्टेपन की मात्रा 1-2% और एकेले फल में 9-12 बीज होते है| जूस का रंग लाल होता है| इसके फल की औसतन पैदावार 43 किलो प्रत्येक पौधा होती है|

Pineapple: इसके वृक्ष सामन्य कद के और फैलने वाले होते है| यह आकार में दरमियाना और फल रसभरे होते है| एक एकेले फल में 10-20 बीज होते है| इसके फल दिसंबर-जनवरी में पक जाते है| इसके फल की औसतन पैदावार 38 किलो प्रत्येक पौधा होती है|

ज़मीन की तैयारी

पौधे के अंकुरण के लिए खेत को अच्छी तरह से तैयार करें| खेत की जोताई करें, क्रॉस जोताई और समतल करें| सीढ़ीदार खेतों में भी रोपण किया जाता है| पहाड़ी क्षेत्रों में ज्यादा घनत्व में रोपण करना सम्भव है|

बिजाई

बिजाई का समय
पंजाब में इसका रोपण बसंत ऋतु (फरवरी से मार्च) और मानसून के मौसम में (15 अगस्त से अक्तूबर अंत) में की जाती है|

फासला
मीठे संतरों के लिए 5x5 मीटर फासला रखें| 1x1x1 मीटर, गड्ढे खोदे और कुछ दिन तक धूप में रहने दें| प्रत्येक गड्ढे में 15-20 किलो गाय का गोबर, 500 ग्राम सिंगल सुपर फासफेट डालें|

बीज की गहराई
पौधे के अंकुरण के लिए 60×60×60 सैं.मी. आकार के गड्ढे तैयार करें|

बिजाई का ढंग

प्रजनन
जड़-तना: नींबूवर्गीय बीजों को नर्सरी बैडों 2x1 मीटर पर और कतार के बीच में 15 सैं.मी. के अंतराल पर बोयें| जब नए पौधों की ऊंचाई 10-12 सैं.मी. हो, तो रोपाई करनी चाहिए| रोपण के लिए तंदरुस्त और बराबर आकार के पौधों का प्रयोग करें| छोटे और कमज़ोर पौधों को निकाल दें| यदि आवश्यक हो, रोपण से पहले जड़ों की हल्की कटाई करें| नर्सरी में, जब पौधा पेंसिल की तरह मोटा हो तो बडिंग करें| इसके लिए शील्ड बडिंग या टी आकार की बडिंग की जाती है। ज़मीनी स्तर से 15-20 सैं.मी. के फासले पर वृक्ष की छाल में टी आकार का छेद बनाया जाता है। लेटवें आकार में 1.5-2 सैं.मी. का लंबा कट लगाया जाता है और वर्टीकल में लेटवें आकार के मध्य में से 2.5 सैं.मी. लंबा कट लगाएं। बड स्टिक में से बड निकाल लें और टी आकार के छेद में उसे लगा दें। उसके बाद उसे प्लास्टिक के पेपर से लपेट दें।
टी बडिंग फरवरी मार्च के दौरान और अगस्त-सितंबर में भी की जाती है। मीठे संतरे, किन्नू, अंगूर फलों  में प्रजनन टी बडिंग द्वारा किया जाता है। जबकि निंबू और लैमन में प्रजनन एयर लेयरिंग विधि द्वारा किया जाता है।

बीज

बीज की मात्रा
208 पौधे प्रति एकड़ का घनत्व बना कर रखना चाहिए।

कटाई और छंटाई

पौधे के तने की अच्छी वृद्धि के लिए, ज़मीनी स्तर के नज़दीक से 50-60 सैं.मी. में शाखाओं को निकाल देना चाहिए। पौधे का केंद्र खुला होना चाहिए। विकास की शुरूआती अवस्था में आस-पास की टहनियों को निकाल देना चाहिए।

खाद

खादें (किलोग्राम प्रति एकड़)

फसल की उम्र गली-सड़ी रूड़ी की खाद(किलो प्रति पौधा) यूरिया(ग्राम प्रति पौधा)
1 से 3 वर्ष 5-20 100-300
4 से 6 वर्ष 25-50 400-500
7 से 9 वर्ष 60-90 600-800
10 वर्ष या इससे ज्यादा 100 800-1600

 

तत्व (किलोग्राम प्रति एकड़)

फसल की उम्र गली-सड़ी रूड़ी की खाद(किलो प्रति पौधा) नाइट्रोजन (ग्राम प्रति पौधा)
1 से 3 वर्ष 5-20 50-150
4 से 6 वर्ष 25-50 200-250
7 से 9 वर्ष 60-90 300-400
10 वर्ष या इससे ज्यादा 100 400-800

 

फसल के 1-3 वर्ष की हो जाने पर, अच्छी तरह से गला हुए गाय का गोबर 5-20 किलो और युरिया 100-300 ग्राम प्रति वृक्ष में डालें। 4-6 वर्ष की फसल में, अच्छी तरह से गला हुआ गाय का गोबर 25-50 किलो और यूरिया 100-300 ग्राम प्रति वृक्ष में डालें। 7-9 वर्ष की फसल में यूरिया 600-800 ग्राम और गाय का गला हुआ गोबर 60-90 किलो प्रति वृक्ष में डालें। जब फसल 10 वर्ष की या इससे ज्यादा की हो जाए तो गाय का गला हुआ गोबर 100 किलो या यूरिया 800-1600 ग्राम प्रति वृक्ष में डालें।

गाय के गले हुए गोबर की पूरी मात्रा दिसंबर महीने के दौरान डालें जबकि यूरिया के दो हिस्से, पहला फरवरी महीने में और दूसरा अप्रैल-मई के महीने में डालें। यूरिया की पहली खुराक के समय सिंगल सुपर फासफेट खाद की पूरी मात्रा डालें।

यदि पकने से पहले फलों का गिरना दिखाई दे तो फलों के ज्यादा गिरने को रोकने के लिए 2,4-D 10 ग्राम को 500 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें। पहली स्प्रे मार्च के अंत में, फिर अप्रैल के अंत में करें। अगस्त और सितंबर के अंत में दोबारा स्प्रे करें। यदि सिटरस के नज़दीक कपास की फसल उगाई गई हो तो 2,4-D की स्प्रे करने से परहेज़ करें, इसकी जगह GA3 की स्प्रे करें।

खरपतवार नियंत्रण

नदीनों को हाथ से गोडाई करके या रासायनों द्वारा नियंत्रित किया जा सकता है ग्लाइफोसेट 1.6 लीटर को प्रति 150 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें। ग्लाइफोसेट की स्प्रे सिर्फ नदीनों पर ही करें, मुख्य फसल पर ना करें। 

सिंचाई

संतरे की फसल को नियमित अंतराल पर सिंचाई की आवश्यकता होती है। सर्दियों और गर्मियों में जीवन रक्षक सिंचाई जरूर करें। फूल, फल, और पौधे के अच्छे विकास के लिए सिंचाई आवश्यक है। ज्यादा सिंचाई से जड़ गलन और तना गलन की बीमारियों का खतरा होता है। उच्च आवृत्ति की सिंचाई फायदेमंद होती है। नमकीन पानी फसल के लिए हानिकारक होता है। बसंत ऋतु में अकेली जड़ों को पानी देना पौधे को प्रभावित नहीं करता।

पौधे की देखभाल

पत्ते का सुरंगी कीट
  • हानिकारक कीट और रोकथाम

पत्ते का सुरंगी कीट: ये कीट नए पत्तों के ऊपर और नीचे की सतह के अंदर लार्वा छोड़ देते हैं, जिससे पत्ते मुड़े हुए और विकृत नज़र आते हैं। सुरंगी कीट से नए पौधों के विकास में कमी देखी जा सकती है। सुरंगी कीट के अच्छे प्रबंधन के लिए इसे अकेला छोड़ देना चाहिए और ये प्राकृति कीटों का भोजन बनते हैं और इनके लार्वा को खा लेते हैं। फासफोमिडोन 1 मि.ली. या मोनोक्रोटोफॉस 1.5 मि.ली. को प्रत्येक पखवाड़े में 3-4 बार स्प्रे करें। सुरंगी कीटों का पता लगाने के लिए के लिए फेरोमोन जाल भी उपलब्ध होते हैं।

सिटरस सिल्ला

सिटरस सिल्ला: ये रस चूसने वाला कीड़े हैं। निंफस के कारण नुकसान होता है। यह पौधे पर एक तरल पदार्थ छोड़ता है जिससे पत्ता और फल का छिल्का जल जाता है। पत्ते मुड़ जाते हैं और पकने से पहले ही गिर जाते हैं। प्रभावित पौधों की छंटाई करके उन्हें जला कर इसकी रोकथाम की जा सकती है। मोनोक्रोटोफॉस 0.025% या कार्बरिल 0.1% की स्प्रे भी लाभदायक हो सकती है।

स्केल कीट

स्केल कीट: सिटरस स्केल कीट बहुत छोटे कीट होते हैं जो सिटरस के वृक्ष और फलों से रस चूसते हैं। ये कीट शहद की बूंद की तरह पदार्थ छोड़ते हैं, जिससे चींटियां आकर्षित होती हैं। इनका मुंह वाला हिस्सा ज्यादा नहीं होता है। नर कीटों का जीवनकाल कम होता है। सिटरस के पौधे पर दो तरह के स्केल कीट हमला करते हैं, कंटीले और नर्म स्केल कीट। कंटीले कीट पौधे के हिस्से में अपना मुंह डालते हैं और उस जगह से बिल्कुल नहीं हिलते, उसी जगह को खाते रहते हैं और प्रजनन करते हैं। नर्म कीट पौधे के ऊपर परत बना देते हैं जो पौधे के पत्तों को ढक देती है और प्रकाश संश्लेषण क्रिया को रोक देते हैं। जो मरे हुए नर्म कीट होते हैं वो मरने के बाद पेड़ से चिपके रहने की बजाय गिर जाते हैं। नीम का तेल इन्हें रोकने के लिए प्रभावशाली उपाय है। पैराथियोन 0.03% इमलसन, डाइमैथोएट 150 मि.ली. या मैलाथियोन 0.1% की स्प्रे भी इन कीटों को रोकने के लिए प्रभावशाली उपाय है।

चेपा और मिली बग

चेपा और मिली बग: ये पौधे का रस चूसने वाले छोटे कीट हैं। कीड़े पत्ते के अंदरूनी भाग में होते हैं। चेपे और कीटों को रोकने के लिए पाइरीथैरीओड्स या कीट तेल का प्रयोग किया जा सकता है।

सिटरस का कोढ़ रोग
  • बीमारियां और रोकथाम

सिटरस का कोढ़ रोग: पौधों में तनों, पत्तों और फलों पर भूरे, पानी रंग जैसे धब्बे बन जाते हैं। सिटरस कैंकर बैक्टीरिया पौधे के रक्षक सैल में से प्रवेश करता है। इससे नए पत्ते ज्यादा प्रभावित होते हैं। क्षेत्र में हवा के द्वारा ये बैक्टीरिया सेहतमंद पौधों को भी प्रभावित करता है।

दूषित उपकरणों के द्वारा भी यह बीमारी सवस्थ पौधों पर फैलती है। यह बैक्टीरिया कई महीनों तक पुराने घावों पर रह सकता है। यह घावों की उपस्थिति से पता लगाया जा सकता है। इसे प्रभावित शाखाओं को काटकर रोका जा सकता है। बॉर्डीऑक्स 1 % स्प्रे, एक्यूअस घोल 550 पी पी एम, स्ट्रैप्टोमाइसिन सल्फेट भी सिटरस कैंकर को रोकने के लिए उपयोगी है।

गुंदियां रोग

गुंदियां रोग: वृक्ष की छाल में गूंद निकलना इस बीमारी के लक्षण हैं। प्रभावित पौधा हल्के पीले रंग में बदल जाता है। तने और पत्ते की सतह पर गूंद की सख्त परत बन जाती है। कई बार छाल गलने से नष्ट हो जाती है और वृक्ष मर जाता है। पौधा फल के परिपक्व होने से पहले ही मर जाता है। इस बीमारी को जड़ गलन भी कहा जाता है। जड़ गलन की प्रतिरोधक किस्मों का प्रयोग करना, जल निकास का अच्छे से प्रबंध करने से इस बीमारी को रोका जा सकता है। पौधे को नुकसान से बचाना चाहिए। मिट्टी में 0.2 % मैटालैक्सिल MZ-72 + 0.5 % ट्राइकोडरमा विराइड डालें, इससे इस बीमारी को रोकने में मदद मिलती है। वर्ष में एक बार ज़मीनी स्तर से 50-75 सैं.मी ऊंचाई पर बॉर्डीऑक्स को जरूर डालना चाहिए।

पत्तों के धब्बा रोग

पत्तों के धब्बा रोग: पौधे के ऊपरी भागों पर सफेद रूई जैसे धब्बे देखे जाते हैं। पत्ते हल्के पीले और मुड़ जाते हैं। पत्तों पर विकृत लाइनें दिखाई देती हैं। पत्तों की ऊपरी सतह ज्यादा प्रभावित होती है। नए फल पकने से पहले ही गिर जाते हैं। उपज कम हो जाती है। पत्तों के ऊपरी धब्बे रोग को रोकने के लिए पौधे के प्रभावित भागों को निकाल दें और नष्ट कर दें। कार्बेनडाज़िम की 20-22 दिनों के अंतराल पर तीन बार स्प्रे करने से इस बीमारी को रोका जा सकता है।

काले धब्बे

काले धब्बे: काले धब्बे एक फंगस वाली बीमारी है। फलों पर काले धब्बों को देखा जा सकता है। बसंत के शुरू में हरे पत्तों पर स्प्रे करने से काले धब्बों से पौधे को बचाया जा सकता है। इसे 6 सप्ताह के बाद दोबारा दोहराना चाहिए।

जिंक की कमी

जिंक की कमी: यह सिटरस के वृक्ष में बहुत सामान्य कमी है। इसे पत्तों की मध्य नाड़ी और शिराओं में पीले भाग के रूप में देखा जा सकता है। जड़ का गलना और शाखाओं का झाड़ीदार होना आम देखा जा सकता है। फल पीला, लम्बा और आकार में छोटा हो जाता है। सिटरस के वृक्ष में जिंक की कमी को पूरा करने के लिए खादों की उचित मात्रा दी जानी चाहिए। जिंक सल्फेट को 10 लीटर पानी में 2 चम्मच मिलाकर दिया जा सकता है। इसकी स्प्रे पूरे वृक्ष, शाखाओं और हरे पत्तों पर की जा सकती है। इसे गाय या भेड़ की खाद द्वारा भी बचाया जा सकता है।

आयरन की कमी

आयरन की कमी: नए पत्तों का पीले हरे रंग में बदलना आयरन की कमी के लक्षण हैं। पौधे को आयरन कीलेट दिया जाना चाहिए। गाय और भेड़ की खाद द्वारा भी पौधे को आयरन की कमी से बचाया जा सकता है। यह कमी ज्यादातर क्षारीय मिट्टी के कारण होती है।

फसल की कटाई

उचित आकार के होने के साथ आकर्षित रंग, शुगर की मात्रा 12:1 होने पर किन्नू के फल तुड़ाई के लिए तैयार हो जाते हैं। किस्म के आधार पर फल मध्य जनवरी से मध्य फरवरी के महीने में तैयार हो जाते हैं। कटाई उचित समय पर करें, ज्यादा जल्दी और ज्यादा देरी से कटाई करने पर घटिया गुणवत्ता के फल मिलते हैं।

कटाई के बाद

कटाई के बाद, फलों को पानी से अच्छे से धोयें फिर क्लोरीनेटड 2.5 मि.ली. को प्रति लीटर पानी में मिलाकर इसमें फलों को भिगो दें। तब इन्हें अलग अलग करके सुखाएं। अच्छी गुणवत्ता के साथ आकार में सुधार लाने के लिए सिट्राशाइन वैक्स फोम लगाएं। फिर इन फलों को छांव में सुखाएं और पैकिंग करें। फलों को बक्सों में पैक किया जाता है।

रेफरेन्स

1.Punjab Agricultural University Ludhiana

2.Department of Agriculture

3.Indian Agricultural Research Instittute, New Delhi

4.Indian Institute of Wheat and Barley Research

5.Ministry of Agriculture & Farmers Welfare