जौं की खेती

आम जानकारी

जौं गेहूं और धान के बाद एक महत्तवपूर्ण अनाज की फसल है। भारत में यह फसल गर्म इलाकों में होती है और ठंडे मौसम में इसकी बिजाई होती है। भारत में इसे रबी के मौसम में उगाया जाता है। जौं कम पानी में भी ज्यादा उपज देती है।

जलवायु

  • Season

    Temperature

    12-32°C
  • Season

    Sowing Temperature

    12 - 16°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    30°-32°C
  • Season

    Rainfall

    800-1100 mm
  • Season

    Temperature

    12-32°C
  • Season

    Sowing Temperature

    12 - 16°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    30°-32°C
  • Season

    Rainfall

    800-1100 mm
  • Season

    Temperature

    12-32°C
  • Season

    Sowing Temperature

    12 - 16°C
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    Harvesting Temperature

    30°-32°C
  • Season

    Rainfall

    800-1100 mm
  • Season

    Temperature

    12-32°C
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    Sowing Temperature

    12 - 16°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    30°-32°C
  • Season

    Rainfall

    800-1100 mm

मिट्टी

यह फसल हल्की ज़मीनों जैसे कि रेतली और कल्लर वाली ज़मीनों में भी कामयाबी से उगाई जा सकती है। इसलिए उपजाऊ ज़मीनों और भारी से दरमियानी मिट्टी इसकी अच्छी पैदावार के लिए सहायक होती हैं। तेजाबी मिट्टी में इसकी पैदावार नहीं की जा सकती।

प्रसिद्ध किस्में और पैदावार

PL 891: यह बिना छिलके वाली किस्म है। इस किस्म से सत्तू, फ्लेक्स, दलिया, आटा आदि बनाया जाता है। इसकी औसतन पैदावार 16.8 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
DWRB 123: यह किस्म बीयर बनाने के लिए उपयुक्त है। इसकी औसतन पैदावार 19.4 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
PL 419: यह किस्म बारानी हालातों में अच्छी है। इसके पत्ते चौड़े और ऊपर को होते हैं। बूटे का कद 80 सैं.मी. होता है। यह पीली कांगियारी और धब्बों के प्रतिरोधक है। इसका छिल्का पतला और बीज मोटे होते हैं। यह 130 दिनों में पक जाती है। इसकी औसतन पैदावार 14 क्विंटल प्रति एकड़ होता है।
 
PL 172: यह किस्म सिंचित और दरमियाने उपजाऊ क्षेत्र में बोयी जाती है। यह छः कतार वाली किस्म 80 सैं.मी. कद की होती है। इसका तने वाला पत्ता जामनी रंग का होता है। दाने बराबर और मोटे आकार के होते हैं। यह 124 दिनों में पक जाती है। इसकी औसतन पैदावार 14 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
PL 807: इस किस्म के पत्ते दरमियाने आकार के और खड़े हुए होते हैं। इसकी बालिया घनी और खड़ी हुई सी होती है। इसके दाने दरमियाने मोटे और हल्के पीले रंग के होते हैं। इस किस्म को पीली और भूरी कुंगी और बालियों की कांगियारी रोग कम लगते हैं। यह 137 दिनों में पक जाती है। इसकी औसतन पैदावार 17.2 क्विंटल प्रति एकड़ है।
 
DWRUB52: इस किस्म की शाखाएं भरपूर विकास करती हैं इसका औसतन कद 101 सैं.मी. है। इसकी बालियां घनी, खड़ी हुई और तीर के आकार  वाली दरमियानी करीरों वाली होती हैं। इस किस्म को पीली और भूरी कुंगी, बालियों की कंगियारी, बंद कंगियारी और झुलस रोग कम लगते हैं। इसकी औसतन पैदावार 17.3 क्विंटल प्रति एकड़ है।
 
VJM 201: यह दो कतारों वाली किस्म है और पत्ते खड़े हुए होते हैं। इसका कद 118 सैं.मी. है। इसकी बालियां घनी होती हैं। इसके दाने मोटे, सफेद और पतले छिल्के वाले होते हैं। यह पीली और भूरी कुंगी, बालियों की कंगियारी और धारियों का रोग सहने योग्य किस्म हैं यह किस्म 135 दिनों में पक जाती है। इसकी औसतन पैदावार 14.8 क्विंटल प्रति एकड़ है।
 
BH 75: यह दरमियाने कद की जल्दी पकने वाली किस्म है। यह पीली कुंगी रोधक किस्म है। इसे नए उत्पाद बनाने के लिए कच्चे माल के तौर पर प्रयोग किया जाता है।
 
BH 393: यह किस्म पंजाब और हरियाणा राज्य में उगाने योग्य है। यह सिंचित और सही समय पर बिजाई वाले इलाकों में उगाई जाती है।
 
PL 426: यह मध्यम कद की किस्म है, जो 125 दिनों में पक कर तैयार हो जाती है। यह सिंचित इलाकों में उगानेयोग्य किस्म है। यह किस्म तने के टूटने, पीली कुंगी, बालियों के गलने आदि की रोधक किस्म है। इसके दाने मोटे होते हैं। इसकी औसतन पैदावार 14.5 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
दूसरे राज्यों की किस्में
 
RD 2035, BCU 73, DWRUB 64, RD 2503
 
PL 751, NARENDRA BARLEY 2, GETANJALI (K1149)

 

ज़मीन की तैयारी

खेत को 2-3 बार जोतना चाहिए ताकि खेत में से नदीनों को अच्छी तरह नष्ट किया जा सके।
खेत की तैयारी के लिए तवियों का प्रयोग करें और फिर 2-3 बार सुहागा फेर दें ताकि फसल अच्छी तरह जम जाए। पहले बोयी गई फसल की पराली को हाथों से उठाकर नष्ट कर दें ताकि दीमक का हमला ना हो सके।
 

बिजाई

बिजाई का समय
अच्छी पैदावार के लिए बिजाई 15 अक्तूबर से 15 नवंबर तक कर देनी चाहिए। यदि बिजाई देरी से की जाए तो पैदावार कम हो सकती है।
 
फासला
बिजाई के लिए पंक्ति से पंक्ति का फासला 22.5 सैं.मी. होना चाहिए। यदि बिजाई देरी से की गई हो तो 18-20 सैं.मी. फासला रखें।
 
बीज की गहराई
सिंचाई वाले क्षेत्रों में गहराई 3-5 सैं.मी. रखें और बारिश वाले क्षेत्रों में 5-8 सैं.मी. रखें।
 
बिजाई का ढंग
इसकी बिजाई छींटे द्वारा और मशीन द्वारा की जाती है।
 

बीज

बीज की मात्रा
सिंचाई वाले क्षेत्रों में 35 किलोग्राम और बारिश वाले क्षेत्रों में 45 किलोग्राम बीज प्रति एकड़ में प्रयोग करें।
 
बीज का उपचार
अधिक पैदावार प्राप्त करने के लिए बाविस्टिन 2 ग्राम से प्रति किलो बीज का उपचार करें। इससे कांगियारी रोग नहीं लगता। बंद कांगियारी के रोग से बचाने के लिए बीजने से पहले वीटावैक्स 2.5 ग्राम से प्रति किलो बीज का उपचार करें। दीमक से बचाने के लिए बीज को 250 मि.ली. फॉर्माथियोन को 5.3 लीटर पानी में डालकर बीज का उपचार करें।
 

खाद

खादें (किलोग्राम प्रति एकड़)

UREA SSP MURIATE OF POTASH
55 75 10

 

तत्व (किलोग्राम प्रति एकड़)

NITROGEN PHOSPHORUS POTASH
25 12 6

 

 नाइट्रोजन 25 किलो (55 किलो युरिया), फासफोरस 12 किलो (75 किलो सिंगल सुपर फासफेट) और पोटाश 6 किलो (10 किलो म्यूरेट  ऑफ पोटाश) की मात्रा प्रति एकड़ में प्रयोग करें।
फासफोरस और पोटाश की पूरी मात्रा बिजाई के समय और नाइट्रोजन की मात्रा पहले पानी लगाने के समय डालें।

 

 

 

 

खरपतवार नियंत्रण

अच्छी फसल और अच्छी पैदावार के लिए शुरू में ही नदीनों की रोकथाम बहुत जरूरी है। चौड़े और तंग पत्तों वाले नदीन इस फसल के गंभीर कीट हैं। चौड़े पत्तों वाले नदीनों की रोकथाम के लिए नदीनों के अंकुरण के बाद 2,4-D @ 250 ग्राम को 100 लीटर पानी में मिलाकर बिजाई के 30-35 दिनों के बाद डालें।
 
बारीक पत्तों जैसे नदीनों की रोकथाम के लिए आइसोप्रोटिउरॉन 75 प्रतिशत डब्लयु पी 500 ग्राम को  प्रति 100 लीटर पानी या पैंडीमैथालीन 30 प्रतिशत ई सी 1.4 लीटर को प्रति 100 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ में स्प्रे करें।
 

सिंचाई

जौं को 2-3 पानी की जरूरत पड़ती है। पानी की कमी होने से बालियां बनने के समय पैदावार पर बुरा असर पड़ता है। अच्छी पैदावार के लिए मिट्टी में 50 प्रतिशत की नमी होनी चाहिए। पहला पानी बिजाई के समय 20-25 दिनों के बाद लगाएं। बालियां आने पर दूसरा पानी लगाएं।

पौधे की देखभाल

सैनिक सुंडी
  • हानिकारक कीट और रोकथाम
सैनिक सुंडी : इसका लार्वा हल्के हरे रंग का होता है और बाद की अवस्था में यह पीले रंग का हो जाता है। ये कीट पत्तों को किनारे पर से खाते हैं और कभी कभी पूरा पत्ता ही खा जाते हैं। पत्तों पर मौजूद इसके अंडे के गुच्छे रूई या फंगस की तरह लगते हैं।
 
रोकथाम : प्राकृतिक जीव सैनिक सुंडी के लार्वा को खा जाते हैं जो कि फसल को नुकसान करते हैं। बेसीलस थरीजिंनसिस की स्प्रे भी लाभदायक है।
इसके लक्षण जब भी दिखें तो मैलाथियॉन 5 प्रतिशत, 10 किलो या क्विनलफॉस 1.5 प्रतिशत 250 मि.ली. का प्रति एकड़ में छिड़काव करें। कटाई के बाद खेत में से नदीनों और जड़ों को निकाल दें।
 

 

बदबूदार कीड़ा
बदबूदार कीड़ा : इस कीट का आकार ढाल जैसा होता है। यह कीट हरे या भूरे रंग का और इस पर पीले और लाल रंग के निशान बने होते हैं। इस कीट के मुंह में रोगजनक जीव होते हैं जो कि पौधे को गंभीर नुकसान पहुंचाते है और ये अंडे गुच्छों में देते हैं।
 
रोकथाम : इसकी रोकथाम के लिए फसल के आस-पास को नदीन रहित रखें। इसकी रोकथाम के लिए परमैथरिन और बाईफैथरिन दो कीटनाशक हैं जो इस कीड़े को मारने की क्षमता रखते हैं।
 
चेपा
चेपा : यह पारदर्शी रस चूसने वाला कीट है। चेपे के हमले से पत्ते पीले पड़ जाते हैं और आधे पके पत्ते गिर जाते हैं। ज्यादातर इसका हमला जनवरी के दूसरे पखवाड़े पर होता है।
 
रोकथाम : इसकी रोकथाम के लिए 5-7 हज़ार क्राइसोपरला प्रीडेटर प्रति एकड़ या 50 ग्राम नीम का घोल प्रति लीटर का प्रयोग करें। बादलवाई होने पर इसका हमला ज्यादा होता है। इसकी रोकथाम के लिए थाईमैथोक्सम या इमीडाक्लोप्रिड 60 मि.ली. को 100 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ के हिसाब से स्प्रे करें।
 
पतली सुंडी
पतली सुंडी : यह सुंडियां हल्के हरे रंग की होती हैं। यह अपना जीवन 1-4 साल तक पूरा करती हैं। यह सुंडियां तने को मोड़ देती हैं और तने का शिखर सफेद रंग का हो जाता है।
 
रोकथाम : नुकसान होने पर इसका कोई हल मौजूद नहीं है पर फसल बीजने से पहले बीज को थाइमैथोक्सम 325 मि.ली.को प्रति 100 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।
सफेद धब्बे
  • बीमारियां और रोकथाम
सफेद धब्बे : इस बीमारी से पत्ते, तने और फूलों वाले भाग के ऊपर सफेद आटे जैसे धब्बे पड़ जाते हैं यह धब्बे बाद में सलेटी और भूरे रंग के हो जाते हैं और इससे पत्ते के अन्य भाग सूख जाते हैं इस बीमारी का हमला ठंडे तापमान और भारी नमी में बहुत होता है। घनी फसल, कम रोशनी और सूखे मौसम में इस बीमारी का हमला बढ़ जाता है।
 
बीमारी आने पर 2 ग्राम घुलनशील सल्फर प्रति लीटर पानी में या 200 ग्राम कार्बेनडाज़िम प्रति एकड़ में छिड़काव करें। गंभीर नुकसान होने पर 1 मि.ली. प्रॉपीकोनाज़ोल प्रति लीटर पानी मिलाकर प्रति एकड़ के हिसाब से स्प्रे करें।
 
धारीदार जंग
धारीदार जंग : इस बीमारी को फैलने और हमला करने के लिए 8-13 डिगरी सैल्सियस तापमान चाहिए होता है और विकास के लिए 12-15 डिगरी सैल्सियस तापमान चाहिए और बहुत पानी चाहिए। इस बीमारी से 5 से 30 प्रतिशत तक पैदावार कम हो जाती है। पत्तों पर पीले धब्बे लंबी धारियों के रूप में दिखाई देते हैं जिन पर पीली हल्दीनुमा नज़र आती है।
 
रोकथाम : पीली कुंगी से बचाव के लिए रोग रहित किस्मों की बिजाई करें। मिश्रित खेती और फसली चक्र अपनाएं। ज्यादा मात्रा में नाइट्रोजन का प्रयोग ना करें। लक्षण दिखाई देने पर 12-15 किलो सल्फर प्रति एकड़ में छिड़काव करें या 2 ग्राम मैनकोज़ेब  या  प्रॉपीकोनाज़ोल 25 ई सी 1 मि.ली. को प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।

 

झंडा रोग
झंडा रोग : यह बीज से पैदा होने वाली बीमारी है। यह बीमारी हवा द्वारा फैलती है यह बीमारी ठंडे और नमी वाले मौसम में फूल आने पर पौधे के ऊपर हमला करती है।
 
रोकथाम : बीज को फंगीनाशी जैसे कि कार्बोक्सिन 75 डब्लयु पी 2.5 ग्राम से प्रति किलो बीज का उपचार करें। ज्यादा बीमारी पड़ने पर कार्बेनडाज़िम 2.5 ग्राम, टैबुकोनाज़ोल 1.25 से प्रति किलो बीज का उपचार करें। यदि नमी की मात्रा कम हो तो बीजों को टराईकोडरमा विराईड 4 ग्राम और कार्बोक्सिन (विटावैक्स 75 डब्लयु पी) 1.25 ग्राम  से प्रति किलो बीज का उपचार करें।
बालियों का कीड़ा
बालियों का कीड़ा : यह कीड़ा बालियां निकलने पर हमला करके जाल बना लेता है। इसके अंडे चकमीले सफेद रंग के होते हैं और गुच्छों में पाए जाते हैं। अंडों के ऊपर संतरी रंग के बाल होते हैं। इसकी सुंडियां भूरे रंग की होती हैं जिनके ऊपर पीले रंग की धारियां होती हैं और थोड़े बाल होते हैं। जवान कीड़ों की अगली टांगे भूरे रंग की होती हैं और पिछली टांगे पीले रंग की होती हैं।
 
रोकथाम : बालग कीड़ों की रोकथाम के लिए दिन के समय रोशनी यंत्र लगाएं। फूल से बालियां बनने पर 5 फेरोमोन कार्ड प्रति एकड़ पर लगाएं। गंभीर हालत में 1 ग्राम मैलाथियॉन या कार्बरिल 1 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।
 
थ्रिप्स
थ्रिप्स : यह अक्सर सूखे मौसम में नज़र आती है।
 
रोकथाम : इसके गंभीर रूप का पता करने के लिए 6-8 नीले नीले चिपकने वाले कार्ड प्रति एकड़ में लगाएं। इसके हमले को कम करने के लिए 5 ग्राम वर्टीसिलियम लैकानी को प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।
गंभीर हालातों में इमीडाक्लोप्रिड 17.8% एस एल या फिप्रोनिल 2.5 मि.ली.प्रति लीटर पानी में मिलाकर या 2 ग्राम एसीफेट 75 प्रतिशत डब्लयु पी को प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें या 1gm थाइमैथोक्सम 25 प्रतिशत डब्लयु जी को प्रति लीटर पानी में मिलाकर खेत में डालें।
घास का टिड्डा
घास का टिड्डा : नाबालिग और बालिग टिड्डे पत्ते को खाते हैं। नाबालिग हरे भूरे रंग के होते हैं और शरीर पर धारियां होती हैं।
 
रोकथाम : फसल की कटाई के बाद सारे पौधों को खेत में से हटा दें और अच्छी तरह सफाई कर दें। इसके अंडों को मारने के लिए गर्मियों में खेत की जोताई कर दें। जिससे धूप के कारण अंडे मर जाते हैं। गंभीर हालातों में 900 ग्राम कार्बरिल 50 डब्लयु पी की प्रति एकड़ के हिसाब से स्प्रे करें।
 

फसल की कटाई

फसल किस्म के अनुसार मार्च के आखिर और अप्रैल में पक जाती है। फसल को ज्यादा पकने से बचाने के लिए समय के अनुसार कटाई करें। फसल में 25-30 प्रतिशत नमी होने पर फसल की कटाई करें। कटाई के लिए दांतों वाली दरांती का प्रयाग करें। कटाई के बाद बीजों को सूखे स्थान पर स्टोर करें।

कटाई के बाद

जौं सिरका और शराब बनाने के लिए प्रयोग किया जाता है।

रेफरेन्स

1.Punjab Agricultural University Ludhiana

2.Department of Agriculture

3.Indian Agricultural Research Instittute, New Delhi

4.Indian Institute of Wheat and Barley Research

5.Ministry of Agriculture & Farmers Welfare