शिमला मिर्च की खेती

आम जानकारी

यह एक महत्वपूर्ण सब्जी की फसल है जिसको ग्रीन हाउस या शेड नेट हाउस में उगाया जाता है| इसे “स्वीट पेप्पर” और “बैल पेप्पर” के नाम से भी जाना जाता है| शिमला मिर्च में खनिज पदार्थ और विटामिन ऐ, सी की उच्च मात्रा पाई जाती  है| यह एक सदाबाहार जड़ी-बूटी है जो सोलनेसी परिवार से संबंध रखती है| यह 75 सैं.मी. ऊंचाई तक पहुंच जाती है| इसके फूल छोटे और फल निकलने पर सफेद-जामुनी रंग के होते हैं| खुले खेत में इसकी औसतन पैदावार 83-165 क्विंटल प्रति एकड़ और ग्रीन हॉउस में इसकी औसतन पैदावार 415-500 क्विंटल प्रति एकड़ होती है| पंजाब, बैंगलोर, पुणे, और कर्नाटक ग्रीन हाउस में शिमला मिर्च उगाने के मुख्य राज्य है| केरला, महाराष्ट्र, गुजरात, गोवा, आंध्र प्रदेश और पश्चिमी बंगाल राज्य है जो छोटे स्तर पर शिमला मिर्च का उत्पादन करते हैं|

जलवायु

  • Season

    Temperature

    21-25°C
  • Season

    Rainfall

    625-1500mm
  • Season

    Sowing Temperature

    12 - 15°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    30-35°C
  • Season

    Temperature

    21-25°C
  • Season

    Rainfall

    625-1500mm
  • Season

    Sowing Temperature

    12 - 15°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    30-35°C
  • Season

    Temperature

    21-25°C
  • Season

    Rainfall

    625-1500mm
  • Season

    Sowing Temperature

    12 - 15°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    30-35°C
  • Season

    Temperature

    21-25°C
  • Season

    Rainfall

    625-1500mm
  • Season

    Sowing Temperature

    12 - 15°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    30-35°C

मिट्टी

इसकी खेती के लिए 18-35° सै. मिट्टी का तापमान होना आवश्यक है| इसके अच्छे विकास के लिए विभिन्न प्रकार की चिकनी से दोमट मिट्टी में इसकी खेती करें| यह कुछ हद तक तेज़ाबी मिट्टी में उगाई जा सकती है|यह रेतली दोमट मिट्टी और पानी के अच्छे निकास में बढ़िया परिणाम देती है| शिमला मिर्च की खेती के लिए मिट्टी का pH 6-7 होना चाहिए|

प्रसिद्ध किस्में और पैदावार

Bomby (red color): यह जल्दी पकने वाली किस्म है| यह किस्म लम्बी, पौधे मज़बूत और शाखाएं फैलने वाली होती हैं| इसके फलों के विकास के लिए पर्याप्त छाया की जरूरत होती है| इसके फल गहरे हरे होते है और पकने के समय यह लाल रंग के हो जाते हैं, इसका औसतन भार 130-150 ग्राम होता है| इसके फलों को ज्यादा समय के लिए स्टोर करके रखा जा सकता है और यह ज्यादा दूरी वाले स्थान पर लेजाने के लिए उचित होते है|

Orobelle (yellow color): यह किस्म मुख्यतः ठंडे मौसम में विकसित होती है| इसके फल ज्यादातर वर्गाकार, सामान्य और मोटे छिलके वाले होते है| इसके फल  पकने के समय पीले रंग के होते है, जिनका औसतन भार 150 ग्राम होता है| यह किस्म बीमारीयों की रोधक किस्म है जो कि ग्रीन हाउस और खुले खेत में विकसित होती है|

Indra (green):
यह किस्म लम्बी और देखने में झाड़ीदार होती है| इसके पत्ते गहरे हरे रंग के और घने गुच्छों में होते है| इस किस्म के फल गहरे हरे रंग के होते हैं,जिनका औसतन भार 170 ग्राम होता है| फल विकसित होने के बाद 50-55 दिनों में बिजाई के लिए तैयार होते हैं| इसके फलों को ज्यादा समय के लिए स्टोर करके रखा जा सकता है और यह ज्यादा दूरी वाले स्थान पर लेजाने के लिए उचित होते है|

Indra: इसके फल गहरे हरे रंग के होते हैं। इसकी औसतन पैदावार 110 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। इसके फल का औसतन भार 80 ग्राम होता है।

दूसरे राज्यों की किस्में

California Wonder, Chinese Giant, World Beater, Yolo Wonder Bharat, ArkaMohini, ArkaGaurav, ArkaBasant, Early Giant. Bullnose, King of North, Ruby King आदि भारत में उगाई जाने वाली शिमला मिर्च की महत्वपूर्ण किस्में है|

ज़मीन की तैयारी

शिमला मिर्च की खेती के लिए, ज़मीन को अच्छी तरह से तैयार करें| ज़मीन को भुरभुरा बनाने के लिए, 5-6 बार सुहागे से जोताई करें| खेत की तैयारी के समय खेत में रूड़ी की खाद डालें और मिट्टी में मिलाएं|

बिजाई

बिजाई का समय

बीजों को मुख्य तौर पर अक्तूबर के अंत में बोयें और रोपण के लिए मध्य-फरवरी का समय उचित होता है| जल्दी पैदावार के लिए, बीजों को मध्य-अक्तूबर में बोयें और रोपण के लिए नवंबर के अंत का समय उचित होता है|

फासला
बिजाई के लिए पंक्ति से पंक्ति में 50 सैं.मी. और पौधे से पौधे में 40 सैं.मी. का फासला रखें|

बिजाई की गहराई
बीज को 2-4 सैं.मी. गहरा बोयें|

बिजाई का ढंग
1.प्लास्टिक शीट की मदद से सुरंगी खेती: शिमला मिर्च की अगेती पैदावार के लिए गर्मियों के शुरू में इस विधि का प्रयोग किया जाता है| यह दिसंबर से मध्य-फरवरी महीने के ठंडे मौसम में फसल की सुरक्षा करने में सहायता करती है| बिजाई के समय कतार से कतार में 130 सैं.मी. और पौधे से पौधे में 30 सैं.मी. का फासला रखें| बिजाई से पहले 45-60 सैं.मी. लम्बे डंडों को मिट्टी में स्थापित करें| खेत को प्लास्टिक शीट से (100 गेज मोटाई) डंडों की सहायता से लगाएं| फरवरी के महीने में सही तापमान होने पर प्लास्टिक शीट को हटा दें|

2. गड्डे खोद कर बीज लगाकर भी इसकी खेती की जाती है|

 

बीज

बीज की मात्रा
एक एकड़ खेत के लिए 200-300 बीजों का प्रयोग करें|

बीज का उपचार
मिट्टी से होने वाली बीमारीयों से बचाने के लिए बिजाई से पहले थीरम या कप्तान, सिरेसन आदि 2 ग्राम में प्रति किलो बीजों को भिगोएं|

पनीरी की देख-रेख और रोपण

शिमला मिर्च की खेती के लिए, सबसे पहले नर्सरी बैडों को तैयार करें| नए पौधे लगाने के लिए 300 x 60 x 15 सैं.मी. आकार के सीड बैड तैयार करें| बीजों को तैयार किये गए बैडों पर बोयें और बिजाई के बाद नर्सरी बैडों को मिट्टी की पतली परत से ढक दें| बीजों के उचित अंकुरण के लिए बिजाई के बाद तैयार बैडों पर हल्की सिंचाई करें|

जब पौधे के 4-5 पत्ते निकलने शुरू हो जाये तो आरोपण करें| मुख्य खेत में आरोपण किया जाता है| आरोपण आमतौर पर बरसात के मौसम में किया जाता है| आरोपण के लिए मुख्यतः 50-60 दिनों की पौध का प्रयोग किया जाता है|

आरोपण से पहले नर्सरी बैडों को पानी लगाएं ताकि पौधे को आसानी से उखाड़ा जा सके|

खाद

खादें(किलोग्राम प्रति एकड़)

NITROGEN P2O5 K2O
50 25 12

 

तत्व(किलोग्राम प्रति एकड़)

UREA SSP MOP
110 175 20

 

खेत की तैयारी के समय, 20-25 टन प्रति एकड़ रूड़ी की खाद मिट्टी में मिलाएं| रूड़ी की खाद के साथ, नाइट्रोजन 50 किलो( यूरिया 110 किलो), फासफोरस 25 किलो(सिंगल सुपर फासफेट 175 किलो) और पोटाशियम 12 किलो(मिउरेट ऑफ़ पोटाश 20 किलो)  प्रति एकड़ में डालें|

पोटाशियम, फासफोरस की पूरी मात्रा और नाइट्रोजन 1/3 हिस्सा रोपण से पहले कतारों में खाद के रूप में मिलाएंऔर बाकी बची हुई नाइट्रोजन को दो बराबर हिस्सों में डालें| पहली खुराक रोपण के एक महीने बाद और दूसरी रोपण के दो महीने के बाद डालें|

खरपतवार नियंत्रण

फसल की बढ़िया पैदावार के लिए, उचित समय के अंतराल पर गोड़ाई करें| नए पौधों के रोपण के 2-3 हफ्ते बाद मेंड़ पर मिट्टी चढ़ाएं यह खेत को नदीन मुक्त करने में मदद करती है| रोपण के 30 दिनों के बाद पहली गोड़ाई और 60 दिनों के बाद दूसरी गोड़ाई करें|

सिंचाई

बिजाई के बाद तुरंत हल्की सिंचाई करें| अगली सिंचाई रोपण के तुरंत बाद करें और फिर आवश्यकता के अनुसार सिंचाई करें| शुष्क और अर्ध शुष्क क्षेत्रों में सिंचाई उचित अंतराल पर आवश्यक होती है।

पौधे की देखभाल

उखेड़ा रोग
  • बीमारीयां और रोकथाम

उखेड़ा रोग: यह एक फंगस की बीमारी है जो अंकुरित पौधों पर हमला करती है| इसके लक्षण तने पर धब्बे दिखाई देना है जिस कारण पौधा सूख कर अंत में मर जाता है| यह 4-5 दिनों में पूरी फसल पर हमला करता है| फसल को हल्के निकास वाली मिट्टी में उगाने पर मुख्य रूप से यह बीमारी हमला करती है|

उपचार: इस उखेड़ा रोग के बचाव के लिए बोर्डीओक्स मिश्रण 0.5-1.0% या कॉपर ऑक्सीक्लोराइड जैसे की ब्लीटॉक्स या फ्लाईटोलन की स्प्रे करें|

एंथ्राकनोस

ऐंथ्राक्नोस: यह एक फंगस की बीमारी है जो फसल के तने, पत्तों और फलों पर हमला करती है| इसके लक्षण फलों पर गहरे और गोल धब्बे और बीजों पर काले रंग के धब्बे देखे जा सकते है| कुछ समय बाद संक्रामक फल पकने से पहले ही गिर जाते है| यह बीमारी आम-तौर पर उचित नमी को संक्रामक करती है|

उपचार: बिजाई से पहले बीजों का उपचार आवश्यक है| बीजों को थीरम 0.2% या ब्रासिको 0.2%  ऐंथ्राक्नोस बीमारी के लिए ब्रासिको 0.2% से उपचार करें| इस बीमारी के लिए डाईथेन(एम-45) या ब्लीटॉक्स 0.4% या डाईफ़ोलटन 0.2% की 15 दिनों के अंतराल पर स्प्रे करें|

पत्तों के धब्बा रोग

पत्तों के धब्बे: यह बीमारी गर्मियों में दिखाई देती है| इसके लक्षण पत्तों के विकास के समय टैलकम पाउडर दिखाई देता है, जिससे विकास रुक जाता है और पत्ते झड़ जाते हैं|

उपचार: पत्तों के धब्बे के बचाव के लिए सलफैक्स 0.2% या ट्राईडमॉर्फ़ 0.2% की स्प्रे 15 दिनों के अंतराल पर करें|

सूखा

सूखा: इसके लक्षण से पत्ते और फल तेज़ी से सूखने लगते है|

उपचार: ब्लीचिंग पाउडर 15 किलोग्राम की सहायता से सूखे से बचाव किया जा सकता है| इसके लिए प्रतिरोधी किस्मों का प्रयोग करें जैसे “ArkaGaurav” बीमारी को रोकने में मदद करती है|

पत्तों का मुड़ना

पत्तों का मुड़ना: इसके कारण पत्ते मुड़ जाते है, पत्तों की शिराओं का भुरना और बीच वाली शीरा मोटी होने लगती है|

उपचार: प्रभावित पौधों को निकाल दें ताकि दूसरे पौधे प्रभावित ना हो सकें|

थ्रिप्स
  • कीट और रोकथाम

थ्रीप: इसके बीमारी के कारण पत्तों पर सफेद दाने दिखाई देते हैं और विकास रुक जाता है|

उपचार: मैलाथिऑन(सीथिऑन 50 ई सी 1.5 मि.ली. प्रति लीटर पानी) या डाईमैथोएट(रोगोर 30 ई सी 2 मि.ली. प्रति लीटर पानी) की स्प्रे करें| निकोटाइन सलफेट  @0.25%. की स्प्रे से कीटों की रोकथाम की जा सकती है|

चेपा

चेपा: यह पौधे को खाकर नुकसान पहुंचाता है जिससे पौधे नष्ट हो जाते हैं|

उपचार: चेपे से बचाव के लिए मोनोक्रोटोफोस 0.05-0.01% या डेमेटोन मिथाइल 0.05-0.02% की स्प्रे करें|

जूं

जूं: यह शिमला मिर्च के छोटे कीट है जो पत्तों को अपना भोजन बनाते है|

उपचार: जूं की रोकथाम के लिए सैपरमैथरिन 5 ई सी 3 मि.ली. सहायक होती है| डाईमैथोएट(रोगोर 2 मि.ली. प्रति लीटर) या डीकोफोल(केलथेन 1.5 मि.ली. प्रति लीटर) भी जूं की रोकथाम के लिए सहायक है|

फसल की कटाई

अपरिपक्व हरे फल कटाई के लिए तैयार होते है| अपरिपक्व फल नर्म और कुरकुरे कटाई के लिए बढ़िया होते है| शिमला मिर्च की औसतन पैदावार मुख्य तौर 40-50 क्विंटल प्रति एकड़ होती है|