पंजाब में किन्नू की खेती

आम जानकारी

नींबू वर्गीय प्रजाति के फलों का मूल स्थान दक्ष्णि-पूर्वी एशिया है| इस प्रजाति में कीनू , संतरा, निम्बू और लैमन आदि शामिल है| यह पंजाब का मुख्य फल है| किन्नू की फसल पूरे उत्तरी भारत में उगाई जाती है| भारत में केले और आम के बाद यह तीसरे स्थान पर बड़े फल है| यह फल विटामिन सी के भरपूर स्त्रोत है| पंजाब, राजस्थान, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश, जम्मू और कश्मीर आदि किन्नू उगाने वाले मुख्य राज्य है|

  • Season

    Temperature

    13-37°C
  • Season

    Rainfall

    300-400mm
  • Season

    Sowing Temperature

    10-25°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    20-32°C
  • Season

    Temperature

    13-37°C
  • Season

    Rainfall

    300-400mm
  • Season

    Sowing Temperature

    10-25°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    20-32°C
  • Season

    Temperature

    13-37°C
  • Season

    Rainfall

    300-400mm
  • Season

    Sowing Temperature

    10-25°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    20-32°C

जलवायु

  • Season

    Temperature

    13-37°C
  • Season

    Rainfall

    300-400mm
  • Season

    Sowing Temperature

    10-25°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    20-32°C

मिट्टी

इसकी खेती कई प्रकार की मिट्टी, जैसे कि रेतली-दोमट से चिकनी-दोमट या गहरी चिकनी-दोमट या तेज़ाबी मिट्टी में की जाती है, जिनका जल निकास अच्छा हो| यह फसल नमकीन और क्षारीय मिट्टी में विकास नहीं करती है| यह जल-जमाव वाली मिट्टी को भी सहनयोग्य है| फसल के उचित विकास के लिए मिट्टी का pH 5.5-7.5 होना चाहिए|

प्रसिद्ध किस्में और पैदावार

Kinnow: यह राज्य का मुख्य फल है| इसके फल सुनहरी-संतरी रंग के होते है और रस मीठा होता है| इसके फल हल्के खट्टे और स्वादिष्ट होते हैं| इसके फल जनवरी में तुड़ाई के लिए तैयार हो जाते हैं|

Local: यह पंजाब के छोटे क्षेत्रों में उगाई जाने वाली किस्म है| इसके फल आकार में छोटे और सामान्य होते हैं| इसका छिलका संतरी-पीले रंग का होता है| इसके फल दिसंबर से जनवरी महीने में पक कर तैयार हो जाती है|

PAU Kinnow-1: इस किस्म के फल जनवरी महीने में पक जाते हैं। फल में 0—9 बीज होते हैं। इसकी औसतन उपज 45 किलो प्रति वृक्ष होती है।
 
Daisy: इस किस्म के फल नवंबर के तीसरे सप्ताह में पकते हैं। फल में 10—15 बीज होते हैं। इसकी औसतन उपज 57 किलो प्रति वृक्ष होती है।
 

ज़मीन की तैयारी

खेत की पहले सीधी जोताई करें, फिर तिरछी जोताई और फिर समतल करें|

बीज

बीज की मात्रा
कम से कम 208 पौधे प्रति एकड़ में लगाएं|

बिजाई

बिजाई का समय
इसकी बिजाई जून के मध्य (मानसून आने पर) से सितंबर के अंत तक की जाती है|
शुरुआती समय में फसल को तेज़ हवा से बचानेके लिए खेत के चारो तरफ आम, अमरुद, जामुन, आंवला, शीशम या शहतूत के पौधे लगाएं|

फासला
पौधों के बीच का फासला 6x6 मीटर रखें| नए पौधों के लिए 60×60×60 सैं.मी. के आकार के गड्ढे खोदें| बिजाई के समय गड्ढे में 10 किलो रूडी की खाद और 500 ग्राम सिंगल सुपर फासफेट गड्ढों में डालें|

बीज की गहराई
नए पौधों के लिए 60×60×60 सैं.मी. के आकार के गड्ढे खोदें|

बिजाई का ढंग
किन्नू का प्रजनन टी-बडिंग विधि द्वारा किया जाता है| इसकी बडिंग नींबू (jambhiri, Soh-myndong or jatli khatti) के जड़ के भाग द्वारा की जाती है| इसकी बडिंग kharna khatta के जड़ के भाग द्वारा भी किया जाता है|

बीजों को 2x1 मीटर आकार के नर्सरी बैडों पर 15 सैं.मी. के कतारों के फासले पर बोयें| जब पौधे 10-12 सैं.मी. कद के हो जाने पर रोपण करें| रोपण के लिए सेहतमंद और एक आकार के पौधों को चुने| छोटे और कमज़ोर पौधों को हटा दे| यदि आवश्कयकता हो तो बिजाई से पहले जड़ों को हल्का काट ले| नर्सरी में, जब पौधे पेंसिल जैसे मोटे हो जाने पर बडिंग करें| प्रजनन के लिए शील्ड बडिंग या टी-बडिंग विधि का भी प्रयोग किया जाता है, जिसमे वृक्ष की चल ज़मीन से 15-20 सैं.मी. ऊपर की तरफ से निकाला जाता है| फिर इस पर 1.5-2 सैं.मी. लम्बा कट बाएं से दाएं की तरफ लगाएं| फिर इस कट के बिलकुल बीच में 2.5 सैं.मी. लम्बा कट ऊपर से निचे की तरफ लगाएं| बडिंग वाले भाग को काट कर दूसरी टहनी से जोड़ दे और फिर इसे प्लास्टिक पेपर से लपेट दे|

टी-बडिंग फरवरी-मार्च और अगस्त-सितंबर महीने में की जाती है|

अंतर-फसलें

नए और फल पैदा ना करने वाले बागों में अंतर-फसली अपनाएं| अंतर-फसली के तौर पर मत्र, मूंग, उड़द, लोबिया और चने की फसल का प्रयोग करें| अंतर-फसली 4 साल तक अपनाएं|

कटाई और छंटाई

टहनियों और पौधे के विकास के लिए कटाई-छंटाई करनी जरूरी है| यह क्रिया किसी भी समय की जा सकती है, पर इसकी कटाई-छंटाई का सबसे बढ़िया समय तुड़ाई के बाद होता है| जब पौधों का विकास हो रहा हो तो कटाई-छंटाई ना करें| रोगी, प्रभावित, मुरझाई और नष्ट टहनियों को समय-समय पर हटाते रहें|

खाद

खादें(किलोग्राम प्रति एकड़)

फसल की उम्र

यूरिया(ग्राम में)

सिंगल सुपर फासफेट(ग्राम में)

1-3 साल  240-720 -
4-7 साल  960-1680  1375-2400
8 साल या इससे ज्यादा  1920  2750

 

तत्व(किलोग्राम प्रति एकड़)

फसल की उम्र
नाइट्रोजन फासफोरस
1-3 साल 110-130 -
4-7 साल 440-770 220-385
8 साल या इससे ज्यादा 880 440

 

 

किन्नू की फसल के लिए 1-3 साल के पौधे को 10-30 किलो रूडी की खाद, 240-720 ग्राम यूरिया प्रति पौधा डालें| 4-7 साल के पौधे को 40-80 किलो रूडी की खाद, 960-1680 ग्राम यूरिया और 1375-2400 ग्राम सिंगल सुपर फासफेट प्रति वृक्ष डालें| 8 साल के पौधे को 100 किलो रूडी की खाद, 1920 ग्राम यूरिया और 2750 ग्राम सिंगल सुपर फासफेट प्रति वृक्ष डालें| रूडी की खाद की पूरी मात्रा दिसंबर के महीने में डालें, जबकि यूरिया को दो बराबर भागों में डालें| पहला फरवरी और दूसरा अप्रैल-मई महीने में डालें| यूरिया का पहला हिस्सा डालते समय सिंगल सुपर फासफेट की पूरी मात्रा डालें|

यदि फल गिरते हो तो, इसकी रोकथाम के लिए 2,4-डी 10 ग्राम को 500 लीटर पानी में मिला कर स्प्रे करें| पहली स्प्रे मार्च के अंत और फिर अप्रैल के अंत में करें| अगस्त और सितंबर महीने के अंत में दोबारा स्प्रे करें| यदि किन्नू के खेत के पास नरमे की फसल बोयी हो तो, 2,4-डी स्प्रे ना करें, बल्कि जी ऐ 3 का प्रयोग करें|

खरपतवार नियंत्रण

नदीनों की रोकथाम के लिए अंकुरण के बाद गलाईफ़ोसेट 1.6 लीटर या पैराकुएट 1.2 लीटर को 200 लीटर पानी में मिला कर प्रति एकड़ में स्प्रे करें|

सिंचाई

शुरुआती विकास के समय इस फसल को बार-बार पानी लगाएं| 3-4 साल की फसल को हफ्ते के फासले पर पानी दे| इससे ज्यादा उम्र के पौधों को मिट्टी, मौसम और बारिश के अनुसार 2-3 हफ्तों के फासले पर पानी दे| इस फसल को ज्यादा पानी ना दे, क्योंकि इससे जड़ गलन, तना गलन आदि बीमारीयां लगती है| बढियां पैदावार के लिए थोड़े-थोड़े समय के बाद हल्की सिंचाई करें| अंकुरण से पहले और फल बनने के बाद का समय सिंचाई के लिए नाज़ुक होता है|

पौधे की देखभाल

पसीला
  • हानिकारक कीट और रोकथाम

सिल्ला: यह कीट फसल की वृद्धि की किसी भी अवस्था पर हमला करता है। इसके छोटे कीट संतरी रंग के और प्रौढ़ कीट सलेटी रंग के होते हैं। ये कीट पत्तों, टहनियों से रस चूसते हैं। जिसके कारण पत्ते सूख जाते हैं और मुड़ जाते हैं।

यदि इसका हमला टहनियों पर दिखे तो ट्राइज़ोफॉस + डैल्टामैथरिन 2 मि.ली. या प्रोफैनोफॉस + साइपरमैथरिन 1 मि.ली. को 1 लीटर पानी में मिलाकर या क्विनलफॉस 1 मि.ली. या एसीफेट 1 ग्राम या इमीडाक्लोप्रिड 5 मि.ली. को प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें। 15 दिनों के अंतराल पर दोबारा स्प्रे करें।

 

 

पत्ते का सुरंगी कीट
पत्ते का सुरंगी कीट : यह नींबू जाति के फलों का सबसे गंभीर कीट है। इसकी फैलने की तीव्रता के अनुसार यह 20 प्रतिशत फसल की पैदावार का नुकसान करता है। यह कोमल पत्तों और टहनियों पर हमला करता है और छेद बना देता है। गंभीर हमला होने पर पत्ते झड़ने लग जाते हैं।
 
यदि इसका हमला दिखे तो रोकथाम के लिए प्रोफैनोफोस 50 ई सी 60 मि.ली. को 15 लीटर पानी में मिलाकर नए फलों और पत्तों पर 8 दिनों के फासले पर 2-3 बार स्प्रे करें। यदि जरूरत पड़े तो 15 दिनों के बाद दोबारा स्प्रे करें या फैनवैलरेट 500 मि.ली. या ट्राइज़ोफॉस 250 मि.ली. या इमीडाक्लोप्रिड 200 मि.ली. या क्लोरपाइरीफॉस 800 मि.ली. को 200 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।
 
चेपा
चेपा : यह नींबू जाति के फलों का आम और गंभीर कीट है। यह पौधे का रस चूसकर इसे कमज़ोर बना देता है। गंभीर हमले में नए पत्ते मुड़ जाते हैं और आकार विकृत हो जाता है। यह शहद जैसा पदार्थ छोड़ते हैं, जिससे प्रभावित हिस्से पर फंगस बन जाती है।
 
इसका हमला दिखे तो रोकथाम के लिए डाइमैथोएट 10 मि.ली. या मिथाइल डेमेटन 10 मि.ली. को 10 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।
 
जूं
जूं : यदि इसका हमला दिखे तो रोकथाम के लिए डिकोफोल 1.75 मि.ली. या घुलनशील सल्फर 3 ग्राम को प्रति लीटर पानी मे मिलाकर स्प्रे करें। जरूरत पड़ने पर 15 दिनों के बाद दूसरी स्प्रे करें।
 
मिली बग
मिली बग : यदि मिली बग जैसे रस चुसने वाले कीट का हमला दिखे तो रोकथाम के लिए क्लोरपाइरीफॉस 50 ई सी 500 मि.ली. को प्रति 100 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।
 
पत्ता लपेट सुंडीयह पत्तों को इकट्ठा करके इसमें से भोजन लेती है। यह पौधे के विकास को प्रभावित करती है, जिससे पौधे का कद छोटा रह जाता है।
 
यदि इसका हमला दिखे तो क्लोरपाइरीफॉस 1250 मि.ली. या क्विनलफॉस 800 मि.ली. को 200 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।
 
kinnow white fly.jpg
सफेद मक्खी और काली मक्खी : यह नींबू वर्गीय फलों का मुख्य कीट है। प्रौढ़ और छोटे कीट दोनों ही पौधे का रस चूसकर पौधे को कमज़ोर कर देते हैं। प्रभावित पौधा पीले रंग का दिखाई देता है। जिसके कारण पत्ते मुड़े हुए दिखाई देते हैं। ये कीट शहद की बूंद जैसा पदार्थ छोड़ते हैं, जो बाद में काले फंगस के रूप में विकसित हो जाता है। काली मक्खी पत्तों के निचली ओर अंडे देती है। इसके कीट काले रंग के होते हैं।
 
यदि इसका हमला दिखाई दे तो एसीफेट 1.25 ग्राम या क्विनलफॉस 1.5 मि.ली. या इमीडाक्लोप्रिड 2 मि.ली. को प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें। यदि जरूरत पड़े तो 15 दिनों के अंतराल पर दूसरी स्प्रे करें।
 
kinnow CANKER.png
  • बीमारियां और रोकथाम
कोहड़ रोग : इसके लक्षण पत्तों, टहनियां और फलों पर देखे जा सकते हैं। शुरू में पत्तों पर पीले धब्बे दिखाई देते हैं फिर यह बड़े और भूरे हो जाते हैं और फिर बाद में खुरदरे और दोनो तरफ बन जाते हैं।
कम प्रभावित बागों में से प्रभावित टहनियां, फलों और पत्तों को निकालकर नष्ट कर दें। फिर प्रभावित भागों पर बोर्डो पेस्ट (1 किलो मोरचिउड +1 किलो चूना + 10 लीटर पानी) डालें। इसकी रोकथाम के लिए कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 18 ग्राम और स्ट्रैप्टोसाइक्लिन 6 ग्राम को 10 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें। 30 दिनों के बाद दोबारा स्प्रे करें।
 
kinnow gummosis.jpg

गोंदिया रोग : यदि जड़ गलन और गोंदिया रोग का हमला दिखे तो प्रभावित जड़ों के साथ-साथ अन्य प्रभावित भागों को हटा दें और फिर कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 2.5 ग्राम प्रति लीटर डालें और मिट्टी से ढक दें या हमले की तीव्रता के अनुसार तने के नज़दीक मैटालैक्सिल+मैनकोजेब 20 ग्राम प्रति 10 लीटर पानी में मिलाकर डालें। फोसटाइल (एलीएट) 2.5 ग्राम प्रति लीटर पानी की दो स्प्रे अप्रैल से सितंबर महीने में करें।

टहनियों का सूखना
टहनियों का सूखना : तने, शिखर, और टहनियों का सूखना और साथ ही फल का गलना बीमारी के मुख्य लक्षण हैं।
 
इसकी प्रभावशाली रोकथाम के लिए समय-समय पर सूखी टहनियों को हटा दें और काटे भागों पर बॉर्डीऑक्स पेस्ट लगाएं। मार्च, जुलाई और सितंबर महीने में कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 3 ग्राम को प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।
 
फ्ला दा हरा पेना

किन्नुओं का हरापन : संतरे पर सूरज की रोशनी पड़ने वाले फल का भाग संतरी रंग का हो जाता है लेकिन दूसरी तरफ वाला भाग हल्के हरे रंग का होता है। पत्तों पर भी हरे रंग के धब्बे देखे जा सकते हैं।

प्रभावित और अनउत्पादित वृक्षों को निकाल दें। टैट्रासाइक्लिन 500 पी पी एम 5 ग्राम को प्रति लीटर पानी में मिलाकर 15 दिनों के अंतराल पर स्प्रे करने से इस हमले को कम किया जा सकता है।

 

फसल की कटाई

उचित आकार और आकर्षक रंग लेने पर जब फल में टी एस एस 12:1 तेज़ाब की मात्रा 12:1 अनुपात हो जाने पर किन्नू तुड़ाई के लिए तैयार हो जाते है| किस्म के अनुसार किन्नू आमतौर पर मध्य- जनवरी से मध्य फरवरी में पक जाते है| सही समय पर तुड़ाई करना जावश्यक है, क्योंकि समय से पहले या देरी से तुड़ाई करने से फलों की गुणवत्ता पर बुरा प्रभाव पड़ता है|

कटाई के बाद

तुड़ाई के बाद फलों को साफ पानी से धोये और फिर 2.5 मि.ली. क्लोरिनेटड पानी को प्रति लीटर पानी में मिला कर बनाये घोल में फलों को भिगो दे| फिर थोड़ा-थोड़ा करके फलों को सुखाएं| फलों की दिखावट और बढियां गुणवत्ता को बरकरार रखने के लिए सिट्राशाइन वैक्स के साथ पोलिश करें| फिर फलों को छांव में सुखाएं और फिर डिब्बों में पैक करें|

रेफरेन्स

1.Punjab Agricultural University Ludhiana

2.Department of Agriculture

3.Indian Agricultural Research Instittute, New Delhi

4.Indian Institute of Wheat and Barley Research

5.Ministry of Agriculture & Farmers Welfare