पंजाब में अरहर फसल की खेती

आम जानकारी

यह एक महत्वपूर्ण फसल है और प्रोटीन का स्त्रोत है। यह फसल ऊष्ण और उप ऊष्ण क्षेत्रों में उगाई जाती है। यह कम वर्षा वाले क्षेत्रों की एक महत्वपूर्ण दाल है और अकेली या अनाजों के साथ लगाई जा सकती है। यह नाइट्रोजन को बांध के रखती है। भारत में यह फसल आंध्र प्रदेश, गुजरात, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश में उगाई जाती है।

जलवायु

  • Season

    Temperature

    30°C - 35°C (max.)
    15°C - 18°C (min.)
  • Season

    Rainfall

    600-650 mm
  • Season

    Sowing Temperature

    25°-33°C (max.)
  • Season

    Harvesting Temperature

    35°C - 40°C (max.)
  • Season

    Temperature

    30°C - 35°C (max.)
    15°C - 18°C (min.)
  • Season

    Rainfall

    600-650 mm
  • Season

    Sowing Temperature

    25°-33°C (max.)
  • Season

    Harvesting Temperature

    35°C - 40°C (max.)
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    Temperature

    30°C - 35°C (max.)
    15°C - 18°C (min.)
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    600-650 mm
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    Sowing Temperature

    25°-33°C (max.)
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    35°C - 40°C (max.)
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    30°C - 35°C (max.)
    15°C - 18°C (min.)
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    600-650 mm
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    Sowing Temperature

    25°-33°C (max.)
  • Season

    Harvesting Temperature

    35°C - 40°C (max.)

मिट्टी

यह हर प्रकार की जमीनों में बोयी जा सकती है पर उपजाऊ और बढ़िया जल निकास वाली दोमट जमीन सब से बढ़िया है। खारी और पानी खड़ा रहने वाली ज़मीनें इसकी काश्त के लिए बढ़िया नही हैं। यह फसल 6.5-7.5पी एच तक अच्छी उगती है।

प्रसिद्ध किस्में और पैदावार

AL-15: यह किस्म कम समय वाली किस्म है और 135 दिनों में पकती हैं इसकी फलीयां गुच्छेदार होती हैं और औसतन पैदावार 5.5 क्विंटल प्रति एकड़ होता है।

AL 201: यह किस्म जल्दी पकने वाली किस्म है और 140 दिनों में पकती है। इसका तना टहनियों से मजबूत होता है। प्रत्येक फली में 3-5 भूरे रंग के बीज होते हैं और औसतन पैदावार 6.2 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।

PPH 4: यह पंजाब का पहला अरहर का हाईब्रिड है। यह किस्म 145 दिनों में पकती है। पौधे 2.5-3 मी. लंबे होते हैं। प्रत्येक फली में 5 पीले दाने होते हैं। औसतन पैदावार 7.2-8 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।

AL 882 (2018): यह किस्म को अर्ध-निर्धारित वृद्धि के साथ जल्दी पकने वाली किस्म होती है। यह किस्म 132 दिनों में तैयार हो जाती है और अगली गेहूं की फसल बोने से काफी समय पहले ही खेत खाली हो जाता है। इसके पौधे सुगठित होते हैं और 1.6 से 1.8 मीटर तक ही लंबे होते हैं। फलियाँ पौधे के शीर्ष पास विभिन्न और बिखरे हुए गुच्छों पर लगती हैं। फलियां प्रचुर मात्रा में लगती है इसके साथ प्रत्येक फली में 3-5 मध्यम आकार के पीले भूरे रंग के बीज होते हैं। इसकी औसतन पैदावार 5.4 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।

PAU 881 (2007): यह किस्म अनिश्चित वृद्धि के साथ जल्दी पकने वाली किस्म है। यह किस्म 132 दिनों में तैयार हो जाती है और अगली गेहूं की फसल बोने के लिए पर्याप्त समय में खेत खाली कर देती है। इसके पौधों की लंबाई लगभग 2 मीटर तक होती हैं। फलियाँ प्रचुर मात्रा में होती हैं, प्रत्येक फली में लगभग 3-5 पीले भूरे, मध्यम आकार के बीज होते हैं। इसकी औसतन पैदावार 5.1 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।

दूसरे राज्यों की किस्में

IPA 206: यह एक लंबी अवधि की किस्म होने के साथ सूखा रोग के लिए प्रतिरोधी है इसके बीज मध्यम, आकार में अंडाकार और ऊपर से बैंगनी रंग के होते है। इसकी औसतन पैदावार 10 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। यह किस्म उत्तरप्रदेश के लिए अनुकूल किस्म है।

IPA 203: यह किस्म स्टैरिलिटी मौसेक, फूल ना बनना, और फाइटोपथोरा ब्लाईट रोग को सहनेयोग्य है और इसके बीज बड़े होते हैं और 7-8 क्विंटल प्रति एकड़ उच्च पैदावार मिलती है। यह पूर्वोत्तर भारत समतल क्षेत्र (नॉर्थ ईस्ट प्लेन ज़ोन) के लिए अनुकूल है।

UPAS-120: यह किस्म (120-125 दिन) जल्दी पकने वाली है। ये मध्यम आकार के, अर्ध-फैलने वाली किस्म है। इसके बीज छोटे और हल्के भूरे रंग के होते हैं। इसकी औसतन पैदावार 6-8 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। यह किस्म स्टैरिलिटी मौसेक रोग की चपेट में आ सकती है।

ICPL 151 (Jagriti): यह 120-130 दिनों में कटने के लिए तैयार हो जाती है और इसकी औसतन पैदावार 4-5 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।

Pusa Ageti: यह किस्म 150-160 दिनों में कटने के लिए तैयार हो जाती है इसकी औसतन पैदावार 5 क्विंटल प्रति एकड़ है।

Pusa 84: यह मध्यम लंबी होती हैं  यह किस्म 140-150 दिनों में कटने के लिए तैयार हो जाती है।

IPA 203 और  IPH 09-5 (Hybrid) किस्में है।

 

ज़मीन की तैयारी

गहरी जोताई के बाद 2-3 बार तवीयों से जोताई करें और खेत को सुहागे के साथ समतल करें । यह फसल खड़े पानी को सह नहीं सकती, इसीलिए खेत में पानी खड़े रहने से रोकें ।
 
फसली चक्र - अरहर का गेहूं, जौं, सेंजी या गन्ने के साथ फसली चक्र अपनाएं ।

बिजाई

बिजाई का समय
मई के दूसरे पखवाड़े में की गई बिजाई अधिक पैदावार देती है यदि यही फसल देरी से लगाई जाये तो पैदावार कम देती है।
 
फासला
बिजाई के लिए 50 से.मी. कतारों में और 25 से.मी. पौधों में फासला रखें।
 
बीज की गइराई
बीज सीड ड्रिल से बीजे जाते हैं और इनकी गहराई 7-10 होती है।
 
बिजाई का ढंग
बीज छींटे से भी बीजा जा सकता है पर बिजाई वाली मशीन से की गई बिजाई ज्यादा पैदावार देती है।

बीज

बीज की मात्रा 
 
अधिक पैदावार के लिए 6 किलो प्रति एकड़ बीजों का प्रयोग करें।
 
बीज का उपचार  
 
बिजाई के लिए मोटे बीज चुनें और उन्हें कार्बेनडाज़िम  2 ग्राम प्रमि किलो बीज के साथ उपचार करें। रसायन के बाद बीज को टराईकोडरमा व्यराईड 4 ग्राम प्रति किलो बीज के साथ उपचार करें ।
 
फंगसनाशी दवाई  मात्रा (प्रति किलोग्राम बीज)
Carbendazim 2gm
Thiram 3gm
 
 

 

खाद

खादें (किलोग्राम प्रति एकड़)

UREA DAP or SSP MOP ZINC
13 35 100 20 -

 

तत्व (किलोग्राम प्रति एकड़)

NITROGEN PHOSPHORUS POTASH
6 16 12

 

नाइट्रोजन 6 किलो (13 किलो यूरिया), फासफोरस 16 किलो (100 किलो एस एस पी) और पोटाश 12 किलो (20 किलो एम ओ पी) की मात्रा प्रति एकड़ में प्रयोग करें। यह सारी खादें बिजाई के समय आवश्यकतानुसार डालें। मिट्टी की जांच के आधार पर खादों का प्रयोग करें। यदि मिट्टी में पोटाश्यिम की कमी लगे तो पोटाश का प्रयोग करें। यदि डी ए पी का प्रयोग किया है तो नाइट्रोजन का प्रयोग ना करें।

 

 

खरपतवार नियंत्रण

रसायनों से नदीनों की रोकथाम

बिजाई से 3 सप्ताह बाद पहली और 6 सप्ताह बाद दूसरी गोडाई करें । नदीनों के लिए पैंडीमैथालीन 2 ली. प्रति एकड. 150-200 ली. पानी में बिजाई से 2 दिन बाद डालें ।

सिंचाई

बिजाई से 3-4 सप्ताह बाद पहली सिंचाई करें और बाकी की सिंचाई वर्षा के अनुसार करें । फूल निकलने और फलीयां बनने के समय सिंचाई बहुत ज़रूरी है। ज्यादा पानी देने से भी पौधे की वृद्धि ज्यादा होती है और झुलस रोग भी ज्यादा आता है। आधे सितंबर के बाद सिंचाई ना करें ।

पौधे की देखभाल

ब्लिस्टर बीटल
  • हानिकारक कीट और रोकथाम

ब्लिस्टर बीटल: इसे फूलों का टिड्डा भी कहा जाता है जो कि फूलों को खाता है और फलीयों की मात्रा को कम करता है। जवान कीड़े काले रंग के होते हैं जिनके अगले पंख पर लाल धारियां होती हैं।
 
इसको रोकने के लिए डैलटामैथरीन 2.8 ई.सी. 200 मि.ली. या इंडोक्साकार्ब 14.5 एस.सी. 200 मि.ली. प्रति एकड़ 100-125 ली. पानी में डाल कर छिड़काव करें। छिड़काव शाम के समय करो और 10 दिनों के फासले पर करें।
 

 

फली छेदक

फली छेदक: यह एक महत्वपूर्ण कीड़ा है जो कि 75% तक पैदावार को कम कर देता है। यह पत्तों, फूलों और फलीयों को खाता है। फलीयों के ऊपर गोल आकार में छेद हो जाते हैं।

खेत में हैलीकोवरपा अरमीजेरा के लिए फेरोमोन पिंजरे लगाएं । यदि नुकसान कम हो तो कीड़ों को हाथों से भी मारा जा सकता है। शुरूआत में एच.एन.पी.वी. या नीम एक्सटै्रक्ट 50 ग्राम प्रति लि. पानी का छिड़काव करें ।

यदि इसका नुकसान दिखे तो फसल को इंडोक्साकार्ब 14.5 एस.सी. 200 मि.ली. या स्पिनोसैड 45 एस.सी. 60 मि.ली. प्रति 100-125 लि. पानी का छिड़काव शाम के समय करें।

पत्तों पर धब्बे
  • बीमारियां और रोकथाम

पत्तों पर धब्बे: पत्तों के ऊपर हल्के और गहरे भूरे रंग के धब्बे दिखाई देते हैं। बहुत ज्यादा बिमारी होने पर यह पेटीओल और तने पर हमला करती है।

इसको रोकने के लिए बीज बिमारी मुक्त हो और बीज को थीरम 3 ग्राम प्रति किलो के साथ उपचार करें ।
 

मुरझाना

मुरझाना:  यह बीमारी पैदावार को कम करती है। यह शुरू में और पकने वाली फसल को नुकसान करती है। शुरू में पत्ते गिर जाते हैं और हल्के हरे हो जाते हैं और बाद में पत्ते पीले पड़ जाते हैं।
 
इस बीमारी की प्रतिरोधी किस्मों का प्रयोग करें। हमले की शुरूआत में 1 किलोग्राम ट्राइकोडरमा को 200 किलोग्राम रूड़ी की खाद में मिलाकर तीन दिनों तक रखें और प्रभावित भाग में डालें। यदि खेत में बीमारी का हमला अधिक हो जाये तो 300 मि.ली. प्रॉपीकोनाज़ोल को 200 लीटर पानी में डालकर प्रति एकड़ पर छिड़काव करें।
 

कैंकर

कैंकर: यह बहुत सारी फंगस के कारण होती है। इस में तने और टहनियों के ऊपर धब्बे बन जाते हैं और जख्मी हिस्से टूट जाते हैं।

फसली चक्र अपनाएं और बहुत ज्यादा नुकसान की हालत में मैनकोज़ेब 75 डब्लयु पी 2 ग्राम प्रति लीटर का छिडकाव करें।

फूल ना बनना

फूल ना बनना: यह बिमारी इरीओफाईड कीट के साथ होती है। इसके हमले से फूल नहीं बनते और पत्ते हल्के रंग के हो जाते हैं

इसको रोकने के लिए फेनाज़ाकुईन 10 % ई सी 300 मि.ली. प्रति एकड़ 200 लि. पानी में मिला कर छिड़काव करें।

फाइटोपथोरा स्टैम ब्लाईट

फाइटोपथोरा स्टैम ब्लाईट: यह बिमारी शुरूआत में आती है और पत्ते मर जाते हैं। तने के ऊपर भूरे गोल और बेरंग धब्बे पड़ जाते हैं और पत्ता जला हुआ लगता है।

इसको रोकने के लिए मैटालैकसीकल 8 % +  मैनकोज़ोब 64% 2 ग्राम प्रति लि. का छिड़काव करें।

फसल की कटाई

सब्जियों के लिए उगाई गई फसल पत्तों और फलीयों के हरे होने पर काटी जाती है और दानों वाली फसल को 75-80% फलीयों के सूखने पर काटा जाता है। कटाई में देरी होने पर बीज खराब हो जाते हैं। कटाई हाथों और मशीनों द्वारा की जा सकती है। कटाई के बाद पौधों को सूखने के लिए सीधे रखें । गोहाई कर के दाने अलग किए जाते हैं और आम तौर पर डंडे से कूट कर गोहाई की जाती है।

कटाई के बाद

कटाई की हुई फसल पूरी तरह से सुखी हुई होनी चाहिए और फसल को संभाल कर रखने के समय प्लस बीटल से बचाएं। 

रेफरेन्स

1.Punjab Agricultural University Ludhiana

2.Department of Agriculture

3.Indian Agricultural Research Instittute, New Delhi

4.Indian Institute of Wheat and Barley Research

5.Ministry of Agriculture & Farmers Welfare