शकरकंदी के बारे में जानकारी

आम जानकारी

शकरकंदी का वानस्पतिक नाम ईपोमोइया बटाटस हैं| यह फसल मुख्य रूप से अपने मीठे स्वाद और स्टार्ची जड़ों के लिए उगाई जाती है। इसकी गांठे बीटा-केरोटीन की स्त्रोत होती है और ऐंटी-ऑक्सीडेंट के रूप में प्रयोग की जाती है| यह जड़ी-बूटी वाली सदाबहार बेल है, जिसके पत्ते हिस्सो में बंटे हुए या दिल के आकार के होते हैं| इसके फल खानेयोग्य, मुलायम छिलके वाले, पतले और लम्बे होते है| इसके फलों के छिलके का रंग अलग-अलग, जैसे की जामुनी, भूरा, सफेद होता है और इसका गुद्दा पीला, संतरी, सफेद और जामुनी होता है| भारत में लगभग 2 लाख हैक्टेयर ज़मीन पर शकरकंदी उगाई जाती है| बिहार, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश और उड़ीसा आदि भारत के मुख्य शकरकंदी उगाने वाले राज्य हैं|

जलवायु

  • Season

    Temperature

    26-30°C
  • Season

    Rainfall

    750-1200mm
  • Season

    Temperature

    26-30°C
  • Season

    Rainfall

    750-1200mm

मिट्टी

यह बहुत किस्म की मिट्टी जैसे की रेतली से दोमट मिट्टी में उगाई जा सकती है, पर यह ज्यादा उपजाऊ और अच्छे निकास वाली मिट्टी में बढिया पैदावार देती है| इसकी खेती हल्की रेतली और भारी चिकनी मिट्टी में ना करें, क्योंकि इसमें गांठों का विकास अच्छी तरह से नहीं होता हैं| इसके लिए मिट्टी का  pH 5.8-6.7 होना चाहिए|

प्रसिद्ध किस्में और पैदावार

Punjab Sweet Potato-21: इस किस्म की बेल की लम्बाई दरमियानी होती है| इसके पत्तों का आकार चौड़ा और रंग गहरा हरा, तना लम्बा और मोटा,  इसकी डंडी  लम्बी 4.5 सैं.मी. और पत्तों की लम्बाई 9  सैं.मी. होती है| इसके फल गहरे लाल रंग के होते है, जो 20 सैं.मी. लम्बे और 4 सैं.मी. चौड़े होते है और इनका गुद्दा सफेद रंग का होता है| यह किस्म 145 दिनों में पक जाती हैं| इनके फलों का औसतन भार 75 ग्राम होता है| इसके फल में 35 % सूखा पदार्थ और 81 मि. ली. प्रति ग्राम स्टार्च की मात्रा होती हैं| इसकी औसतन पैदावार 75 क्विंटल प्रति एकड़ होती हैं|

और राज्यों की किस्में

Varsha: यह किस्म महाराष्ट्र में उगाने की सिफारिश की जाती है| यह बारिश की ऋतु में उगाने के लिए अनुकूल है| इसकी औसतन पैदावार 62.5 किलो प्रति एकड़ होती हैं|

Konkan Ashwini:  यह किस्म महाराष्ट्र में उगाने के लिए तैयार की गई है| यह कम समय वाली फसल है और ज्यादा पैदावार देती है|

Sree Arun: यह जल्दी पकने वाली किस्म हैं जिसका छिलका गुलाबी और गुद्दा क्रीम रंग का होता है| यह किस्म सैंट्रल ट्यूबर क्रॉप रिसर्च इंस्टीट्यूट(सी टी सी आर आई), श्रीकरियम द्वारा तैयार की गई है| इसकी औसतन पैदावार 83-116 क्विंटल प्रति एकड़ होती हैं|

Sree Kanaka: यह किस्म सैंट्रल ट्यूबर क्रॉप रीसर्च ਇੰਸਟੀਟਿਊਟ (सी टी सी आर), श्रीक्रियम द्वारा तैयार की गई है| इसका छिलका क्रीम रंग का होता है और गुद्दा गहरे संतरी रंग का होता है| इसकी औसतन पैदावार 41-62.5 किलो प्रति एकड़ होती है|

Sree Varun: यह किस्म सैंट्रल ट्यूबर क्रॉप रीसर्च ਇੰਸਟੀਟਿਊਟ (सी टी सी आर), श्रीक्रियम द्वारा तैयार की गई है| इसका छिलका क्रीम रंग का होता है| यह जल्दी पकने वाली फसल है, जो 90-100 दिनों में तैयार हो जाती है| इसकी औसतन पैदावार 80-100  किलो प्रति एकड़ होती है|

उन्नत किस्में


H-41, H-42, Co 3, Co CIP 1, Sree Vardhini, Sree Rethna, Sree Bhadra, Sree Nandini, Kanjanghad, Gouri, Sankar और Kiran

ज़मीन की तैयारी

शकरकंदी की खेती के लिए, खेत को अच्छी तरह से तैयार करें| मिट्टी को अच्छी तरह से भुरभुरा बनाने के लिए, बिजाई से पहले खेत की 3-4 बार जोताई करें, फिर सुहागा फेरें| खेत को नदीन मुक्त रखना चाहिए|

बिजाई

बिजाई का समय
उचित पैदावार के लिए, गांठों को नर्सरी बैडों पर जनवरी से फरवरी के महीने में बोयें और अप्रैल से जुलाई के महीने में बेलों की बिजाई का उचित समय होता है|

फासला
पंक्तियों के बीच का फासला 60 सैं.मी. और पौधों के बीच का फासला 30 सैं.मी. का रखें|

बीज की गहराई
गांठों की बिजाई 20-25 सैं.मी. गहराई पर बोयें|

बिजाई का ढंग

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बीज

बीज की मात्रा
एक एकड़ में बिजाई के लिए 25,000-30,000 कटी हुई बेलों या 280-320 किलो गांठों का प्रयोग करें|

बीज का उपचार
गांठों को प्लास्टिक बैग में डाल कर ज्यादा मात्रा वाले सल्फयूरिक एसिड में 10-40 मिनट के लिए भिगोये|

फसली चक्र

फसली चक्र
सिंचित स्थितियों में शकरकंदी+धान का फसली चक्र अपनाया जाता है| शकरकंदी की फसल दिसंबर-जनवरी महीने में धान की दूसरी कटाई के बाद बोयें|

खाद

खादें(किलोग्राम प्रति एकड़)

NITROGEN K20
P2O5
30 20 25

तत्व(किलोग्राम प्रति एकड़)

CAN SSP MOP
125 155 35

रूड़ी की खाद 100 क्विंटल प्रति एकड़ में डालें| रूड़ी की खाद के साथ-साथ CAN125 किलो, सिंगल सुपर फास्फेट 155 किलो और मिउरेट ऑफ़ पोटाश 35 किलो प्रति एकड़ डालें|

K2O और P2O5 की पूरी मात्रा बिजाई के समय डालें| नाइट्रोजन की मात्रा 2 भागो में डालें, पहली बिजाई के समय और दूसरी बिजाई से 5 हफ्ते बाद डालें|

 

खरपतवार नियंत्रण

नदीनों के अंकुरण से पहले मेट्रीबिउज़ाइन 70 डब्लयू पी 200 ग्राम या ऐलाक्लोर 2 लीटर प्रति एकड़ डालें| केवल 5-10% अंकुरण और मेंड़ पर नदीन का हमला होने पर पैराकुएट 500-750 मि.ली. प्रति एकड़ में डालें|

सिंचाई

बिजाई के बाद, पहले 10 दिन हर 2 हफ्ते में एक बार सिंचाई करें और फिर 7-10 दिनों में एक बार सिंचाई करें| पुटाई से 3 हफ्ते पहले सिंचाई करना बंद कर दें| पर पुटाई से 2 दिन पहले एक सिंचाई जरूरी होती है|

पौधे की देखभाल

फल पर काले धब्बे

बीमारियां और रोकथाम
फल पर काले धब्बे: इस बीमारी से फलों पर काले रंग के धब्बे दिखाई देते है| प्रभावित पौधे सूखना शुरू हो जाते है| प्रभावित फलों पर अंकुरण के समय आंखे भूरे या काले रंग की हो जाती है|

इसकी रोकथाम के लिए बीमारी-मुक्त बीजों का प्रयोग करें| बिजाई से पहले बीजों का मरकरी के साथ उपचार करें| एक ही जगह पर बार-बार एक ही फसल ना लगाएं, बल्कि फसली-चक्र अपनाएं| अगर ज़मीन को दो साल के लिए खली छोड़ दें ताकि इस बीमारी के फैलने का खतरा कम हो जाता है|

अगेता झुलस रोग

अगेता झुलस रोग: इस बीमारी से निचले पत्तों पर गोल धब्बे पड़ जाते है| यह मिटटी में फंगस के कारण फैलती है| यह ज्यादा नमी और कम तापमान में तेज़ी से फैलता है|

इसकी रोकथाम के लिए एक फसल खेत में बार-बार उगने की बजाएं फसली-चक्र अपनाएं| अगर इसका हमला दिखाई दें तो, मैनकोजेब 30 ग्राम या कॉपर आक्सीक्लोराइड 30 ग्राम को प्रति 10 लीटर पानी में मिलकर बिजाई से 45 दिन बाद 10 दिनों के फासले पर 2-3 बार स्प्रे करें|

धफड़ी रोग

धफड़ी रोग: यह बीमारी खेत और स्टोर दोनों में हमला कर सकती है| यह कम नमी वाली स्थिति में तेज़ी से फैलती है| प्रभावित फलों पर हल्के भूरे से गहरे भूरे धब्बे दिखाई देते है|

इसकी रोकथाम के लिए खेत में हमेशा अच्छी तरह से गला हुआ गोबर ही डालें| बीमारी-मुक्त बीजों का ही प्रयोग करें| बीजों को ज्यादा गहराई में ना बोयें| एक फसल खेत में बार-बार उगने की बजाएं फसली-चक्र अपनाएं| बिजाई से पहले बीजों का एमीसान 6@0.25%(2.5 ग्राम प्रति लीटर पानी) के साथ 5 मिन्ट उपचार करें|

शकरकंदी की भुंडी
  • कीट और रोकथाम

शकरकंदी की भुंडी: यह पत्तों और बेल के बाहरी परत को अपना भोजन बनाकर नुकसान पहुचांते है|

रोकथाम: इसकी रोकथाम के लिए 200 मि.ली.रोगोर को 150 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ में डालें|

फल का पतंगा

फल का पतंगा: यह खेत और स्टोर में हमला करने वाला मुख्य कीट है| यह फलों में सुरंग बनाकर गुद्दे को खाता है|

इसकी रोकथाम के लिए बीमारी-मुकत बीजों का प्रयोग करें और पूरी तरह से गला-सड़ा हुआ गोबर डालें| अगर इसका हमला दिखाई दें तो, कार्बरील 400 ग्राम प्रति 100 लीटर में डालें|

चेपा

चेपा: यह छोटे और बड़े कीट रस चूस कर पौधे को कमज़ोर कर देती है| इसके गंभीर हमले से पत्ते मुड़ जाते है और आकार बदल जाता है| यह शहद की बूंद जैसा पदार्थ छोड़ते है और प्रभावीर भागों पर काली, सफेद फंगस पैदा हो जाती है|

चेपे के हमले की जाँच के लिए, क्षेत्र के मौसम के अनुसार पत्तों को काट दें| अगर चेपे और तेले का हमला दिखाई दें तो, इमिडाक्लोप्रिड 50 मि.ली. या थिआमिथोकस्म 40 ग्राम को 150 लीटर पानी में मिलकर प्रति एकड़ में स्प्रे करें|

फसल की कटाई

यह फसल 120 दिनों में पक कर तैयार हो जाती है| इसकी पुटाई आमतौर पर फल पकने और फल पीले होने पर की जाती है| इसकी पुटाई फल को उखाड़ कर की जाती है| इसकी औसतन पैदावार 100 क्विंटल प्रति एकड़ होती है| उखाड़े गये ताज़ा फल मंडीकरण के लिए तैयार होते है|