मिर्च कि फसल

आम जानकारी

यह भारत की एक महत्तवपूर्ण फसल है। मिर्च को कड़ी,  आचार,  चटनी और अन्य सब्जियों में मुख्य तौर पर प्रयोग किया जाता है। मिर्च में कड़वापन कैपसेसिन नाम के एक तत्व के कारण होता है, जिसे दवाइयों के तौर पर प्रयोग किया जाता है। मिर्च का मूल स्थान मैक्सिको और दूसरे दर्जे पर गुआटेमाला माना जाता है। भारत में मिर्चें 17वीं सदी में पुर्तगालियों के द्वारा गोवा लाई गई और इसके बाद यह पूरे भारत में बड़ी तेजी से फैल गई। कैपसेसिन में बहुत सारी दवाइयां बनाने वाले तत्व पाए जाते हैं। खासतौर पर जैसे कैंसर रोधी और तुरंत दर्द दूर करने वाले तत्व पाए जाते हैं। यह खून को पतला करने और दिल की बीमारियों को रोकने में भी मदद करता है। मिर्चें उगाने वाले एशिया के मुख्य देश भारत, चीन, पाकिस्तान, इंडोनेशिया, कोरिया, तुरकी, श्रीलंका आदि हैं। अफ्रीका में नाइज़ीरिया, घाना, टुनीशिया और मिस्र आदि। उत्तरी और केंद्री अमेरिका में मैक्सिको, संयुक्त राज्य अमेरिका आदि। यूरोप में यूगोसलाविया, स्पेन, रोमानिया, बुलगारिया, इटली, हंगरी आदि। दक्षिण अमेरिका में अर्जेनटीना, पेरू, ब्राज़ील आदि। भारत, संसार में मिर्च पैदा करने वाले देशों में मुख्य देश हैं। इसके बाद चीन और पाकिस्तान का नाम आता है। आंध्र प्रदेश, महांराष्ट्र, कर्नाटक, उड़ीसा, तामिलनाडू, बिहार, उत्तर प्रदेश और राज्यस्थान मिर्च पैदा करने वाले भारत के मुख्य राज्य हैं।

जलवायु

  • Season

    Temperature

    18-40°C
  • Season

    Rainfall

    625-1500mm
  • Season

    Sowing Temperature

    35-40°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    35-40°C
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मिट्टी

मिर्च हल्की से भारी हर तरह की मिट्टी में उगाई जा सकती है। अच्छे विकास के लिए हल्की उपजाऊ और पानी के अच्छे निकास वाली ज़मीन जिस में नमी हो, इसके लिए अनुकूल होती है। हल्की ज़मीनें भारी ज़मीनों के मुकाबले अच्छी क्वालिटी की पैदावार देती हैं। मिर्च के अच्छे विकास के लिए ज़मीन की पी एच 6-7 अनुकूल है।

प्रसिद्ध किस्में और पैदावार

CH-1: यह किस्म पी ए यू लुधियाना द्वारा बनाई गई है। यह दरमियाने कद वाली किस्म है। इसका फल दरमियाने आकार और हल्के हरे रंग का होता है जो पकने के बाद गहरे लाल रंग का हो जाता है। इस किस्म का फल बहुत कड़वा और आकर्षित होता है। यह किस्म गलन रोग को सहने योग्य है। इसकी औसतन पैदावार 95-100 क्विंटल प्रति एकड़ है।
 
CH-3: यह किस्म पंजाब खेतीबाड़ी यूनिवर्सिटी, लुधियाना द्वारा बनाई गई है। इसके फल का आकार सी एच-1 के आकार से बड़ा होता है। इसमें कैपसेसिन की मात्रा 0.52 प्रतिशत होती है। इसकी औसतन पैदावार 100-110 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
CH-27: इस किस्म के पौधे लंबे होते हैं और ज्यादा समय तक फल देते हैं। इस किस्म के फल दरमियाने लंबे (6.7 सैं.मी.), पतले छिल्के वाले, शुरू में हल्के हरे और पकने के बाद लाल रंग के होते हैं। यह किस्म पत्ता मरोड़, फल और जड़ गलन, रस चूसने वाले कीट जैसे कि मकौड़ा जुंएं आदि की रोधक है। इसकी औसतन पैदावर 90-110 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Punjab Sindhuri: इस किस्म के पौधे गहरे हरे, ठोस और दरमियाने कद के होते हैं। यह जल्दी पकने वाली किस्म है और इसकी पहली तुड़ाई पनीरी लगाने के 75 दिनों के बाद की जा सकती है। इसके फल लंबे (7-14 सैं.मी.), मोटे छिल्के वाले, शुरू में गहरे हरे और पकने के बाद गहरे लाल रंग के होते हैं। इसकी औसतन पैदावार 70-75 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Punjab Tej:  इसके पौधे हल्के हरे, फैले हुए और दरमियाने कद के होते हैं। यह जल्दी पकने वाली किस्म है और इसकी पहली तुड़ाई पनीरी लगाने के 75 दिन बाद की जा सकती है। इसके फल लंबे (6-8) सैं.मी., पतले छिल्के वाले, शुरू में हल्के हरे रंग के होते हैं जो पकने के बाद गहरे लाल रंग के हो जाते हैं। इसकी औसतन पैदावार 60 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। 
 
Pusa Jwala: इस किस्म के पौधे छोटे कद के, झाड़ियों वाले और हल्के हरे रंग के होते हैं। इसके फल 9-10 सैं.मी. लंबे, हल्के हरे और बहुत कड़वे होते हैं। यह किस्म थ्रिप और मकौड़ा जुंओं की प्रतिरोधक है। इसकी औसतन पैदावार 34 क्विंटल (हरी मिर्चें) और 7 क्विंटल (सूखी मिर्चें) प्रति एकड़ होती है।
Pusa Sadabahar: इसके पौधे सीधे, सदाबहार (2-3 वर्ष), 60-80 सैं.मी. कद के होते हैं। इसके फल 6-8 सैं.मी. लंबे होते हैं। फल गुच्छों में लगते हैं और प्रत्येक गुच्छे में 6-14 फल होते हैं। पकने के समय फल गहरे लाल रंग के और कड़वे होते हैं। यह किस्म CMV, TMV और पत्ता मरोड़ की रोधक है। इसकी पहली तुड़ाई पनीरी लगाने के 75-80 दिन बाद की जा सकती है। इसकी औसतन पैदावार 38 क्विंटल (हरी मिर्चें) और 8 क्विंटल (सूखी मिर्चें) प्रति एकड़ है।
 
Arka Meghana:  यह हाइब्रिड किस्म अधिक पैदावार वाली और पत्तों के धब्बे रोग की प्रतिरोधक है। इसके फलों की लंबाई 10.6 सैं.मी. और चौड़ाई 1.2 सैं.मी. होती है। इसके फल शरू में गहरे हरे और पकने के बाद लाल हो जाते हैं। इसकी औसतन पैदावार 134 क्विंटल (हरी मिर्चें) और 20 क्विंटल (सूखी मिर्चें) प्रति एकड़ है।
Arka Sweta: यह हाइब्रिड किस्म अधिक पैदावार वाली और ताज़ा मंडी में बेचनेयोग्य है। यह सिंचित स्थितियों में खरीफ और रबी दोनों में उगाई जा सकती है। इसके फल की लंबाई 11-12 सैं.मी. चौड़ाई 1.2-1.5 सैं.मी. होती है। इसके फल नर्म और दरमियाने कड़वे होते हैं। फल शुरू में हल्के हरे और पकने के बाद लाल हो जाते हैं। यह विषाणुओं को सहनयोग्य किस्म है। इसकी औसतन पैदावार 132 क्विंटल (हरी मिर्चें) और 20 क्विंटल (सूखी मिर्चें) प्रति एकड़ है।
Kashi Early: इस हाइब्रिड किस्म के पौधे का कद लंबा (100-110 सैं.मी.) होता है। इसका तना टहनियों के बिना हल्का हरा होता है। इसके फल कड़वे, लंबे (8-9x1.0-1.2 सैं.मी.), आकर्षिक, शरू में गहरे हरे जो पकने के बाद चमकीले लाल हो जाते हैं। इस किस्म के हरी मिर्च की पहली तुड़ाई पनीरी लगाने के 45 दिन बाद की जा सकती है। इसकी औसतन पैदावार 100 क्विंटल (पकी हुई लाल) होती है।
 
Kashi Surkh: इस किस्म के पौधे छोटे कद के होते हैं, जिनका तना टहनियों वाला होता है। इसके फल हल्के हरे, सीधे, लंबे 11-12 सैं.मी. होते हैं। यह हरी और लाल दोनों तरह की मिर्चें उगाने योग्य किस्म है। इसकी पहली तुड़ाई पनीरी लगाने के 55 दिनों के बाद की जा सकती है। इसमें हरी मिर्च की औसतन पैदावार 100 क्विंटल प्रति एकड़ है। 
 
Kashi Anmol: इस किस्म के पौधे दरमियाने कद के (60-70 सैं.मी.) होते हैं, जिनका तना टहनियों वाला होता है और यह आकर्षिक, हरे, कड़वे फल पैदा करता है। इसकी पहली तुड़ाई पनीरी लगाने के 55 दिनों के बाद की जा सकती है। इसकी औसतन पैदावार 80 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Punjab Gucchedar: यह किस्म 1995 में जारी की गई है। इसके फल छोटे और गुच्छों में होते हैं। यह किस्म डिब्बाबंद पैकिंग के लिए उपयुक्त है। इसकी औसतन उपज 60 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
दूसरे राज्यों की किस्में
 
Kashi Vishwanath
 
Sankeshwar: यह हल्के स्वाद वाली लंबी और लाल रंग वाली किस्म है। यह विशेष तौर पर निर्यात के लिए प्रयोग की जाती है।
 
Byadgi (Kaddi): यह हल्के स्वाद वाली लंबी और चमकीले लाल रंग वाली किस्म है।
 
Dabbi: यह हल्के स्वाद वाली लंबी और मोटी, काले रंग की किस्म है। 
 

 

ज़मीन की तैयारी

खेत को तैयार करने के लिए 2-3 बार जोताई करें और प्रत्येक जोताई के बाद कंकड़ों को तोड़ें। बिजाई से 15-20 दिन पहले रूड़ी की खाद 150-200 क्विंटल प्रति एकड़ डालकर मिट्टी में अच्छी तरह मिला दें। खेत में 60 सैं.मी. के फासले पर मेंड़ और खालियां बनाएं। एज़ोसपीरीलियम 800 ग्राम प्रति एकड़ और फासफोबैक्टीरिया 800 ग्राम प्रति एकड़ को रूड़ी की खाद में मिलाकर खेत में डालें।
 
नोट :  टमाटर और मिर्च की खेती एक ही या नज़दीक वाले खेत में ना करें, क्योंकि दोनों की बीमारियां एक जैसी होती हैं और इस कारण एंथ्राक्नोस और बैक्टीरिया वाली बीमारियों के बढ़ने का खतरा बढ़ जाता है। मिर्च के साथ प्याज और धनिये की खेती करने से आमदन में वृद्धि होती है और नदीनों को रोका जा सकता है। कीड़ों की रोकथाम के लिए मिर्च के साथ प्याज, लहसुन या मैरी गोल्ड की खेती करें।
 

पनीरी की देख-रेख और रोपण

पनीरी तैयार करना : 1 मीटर चौड़े और आवश्यकतानुसार लंबे बैड बनाएं। कीटाणु रहित कोकोपिट 300 किलो, 5 किलो नीम केक को मिलाएं और 1-1 किलो एज़ोसपीरिलियम और फासफोबैक्टीरिया भी डालें।एक ट्रे भरने के लिए लगभग 1.2 किलो कोकोपिट की जरूरत होती है। 11,600 नए पौधे तैयार करने के लिए 120 ट्रे की जरूरत होती है, जो कि एक एकड़ के लिए प्रयोग की जाती है।
 
उपचार किए हुए बीज ट्रे में एक बीज प्रति सैल बोयें। बीज को कोकोपिट से ढक दें और ट्रे एक- दूसरे के साथ रखें। बीज अंकुरन तक इन्हें पॉलीथीन से ढक दें। नर्सरी में बीज बीजने के बाद बैडों को 400 मैश नाइलोन जाल या पतले सफेद कपड़े से ढक दें। यह नए पौधों को कीड़े-मकौड़े और बीमारियों के हमले से बचाता है। 6 दिनों के बाद ट्रे में लगे नए पौधों को एक एक करके जाल की छांव के नीचे बैडों में लगाएं। बीज अंकुरन तक पानी देने वाले बर्तन की मदद से पानी दें। बिजाई के 18 दिन बाद 19:19:19 की 0.5 प्रतिशत (5 ग्राम प्रति लीटर ) की स्प्रे करें।
 
खेत में पनीरी लगाना :30-40 दिनों के बाद पौधे पनीरी के लिए तैयार हो जाते हैं। पनीरी खेत में लगाने के लिए 6-8 सप्ताह पुराने और 15-20 सैं.मी. वाले कद के पौधे ही चुनें।
 

बिजाई

बिजाई का समय
नर्सरी लगाने का उचित समय अक्तूबर के आखिर से मध्य नवंबर तक होता है। नर्सरी को 50 प्रतिशत छांव वाले जाल से ढक दें और इर्द गिर्द कीट पतंगे रोकने वाला 40/50 मैश नाइलोन का जाल लगाएं। पनीरी वाले पौधे 30-40 दिनों में आमतौर पर फरवरी मार्च में तैयार हो जाते हैं।
 
बिजाई का फासला
कतारों का फासला 75 सैं.मी. और पौधों का फासला 45 सैं.मी. रखें।
 
बीज की गहराई
पनीरी 1-2 सैं.मी. गहराई में बोयें।
 
बिजाई का ढंग
मिर्च की बिजाई पनीरी लगाकर की जाती है।
 

बीज

बीज की मात्रा
हाइब्रिड किस्मों के लिए बीज की मात्रा 80-100 ग्राम और बाकी किस्मों के लिए 200 ग्राम प्रति एकड़ होनी चाहिए।
 
बीज का उपचार
फसल को मिट्टी से पैदा होने वाली बीमारियों से बचाने के लिए बीज का उपचार करना बहुत जरूरी है। बिजाई से पहले बीज को 3 ग्राम थीरम या 2 ग्राम कार्बेनडाज़िम प्रति किलो बीज से उपचार करें। रासायनिक उपचार के बाद बीज को 5 ग्राम ट्राइकोडरमा या 10 ग्राम सीडियूमोनस फ्लोरीसैन्स  प्रति किलो बीज से उपचार करें और छांव में रखें। फिर यह बीज, बिजाई के लिए प्रयोग करें। फूलों को पानी देने वाले बर्तन से पानी दें। ऑक्सीक्लोराइड 2.5 ग्राम प्रति लीटर पानी नर्सरी में 15 दिनों के फासले पर डालें। इससे मुरझाना रोग से पौधों को बचाया जा सकता है।
 
फसल को उखेड़ा रोग और रस चूसने वाले कीड़ों से बचाने के लिए बिजाई से पहले जड़ों को 15 मिनट के लिए ट्राइकोर्डमा हर्जीनम 20 ग्राम प्रति लीटर+0.5 मि.ली. प्रति लीटर इमीडाक्लोप्रिड में डुबोयें। पौधों को तंदरूस्त रखने के लिए वी ए एम के साथ नाइट्रोजन फिक्सिंग बैक्टीरिया डालें। इस तरह करने से हम 50 प्रतिशत सुपर फासफेट और 25 प्रतिशत नाइट्रोजन बचा सकते हैं।
 

खाद

खादें (किलोग्राम प्रति एकड़)

UREA SSP MURIATE OF POTASH
55 75 20

 

तत्व(किलोग्राम प्रति एकड़)

NITROGEN PHOSPHORUS POTASH
25 12 12

 

नाइट्रोजन 25 किलो (55 किलो यूरिया), फासफोरस 12 किलो (सिंगल सुपर फासफेट 75 किलो) और पोटाश 12 किलो (म्यूरेट ऑफ पोटाश 20 किलो) प्रति एकड़ डालें। नाइट्रोजन की आधी मात्रा, फासफोरस और पोटाश की पूरी मात्रा पनीरी खेत में लगाने के समय डालें। बाकी बची नाइट्रोजन पहली तुड़ाई के बाद डालें।
 
अच्छी पैदावार लेने के लिए, टहनियां निकलने के 40-45 दिनों के बाद मोनो अमोनियम फासफेट 12:61:00 की 75 ग्राम प्रति 15 लीटर पानी की स्प्रे करें। अधिक पैदावार के साथ साथ अधिक तुड़ाइयां करने के लिए, फूल निकलने के समय सलफर/बैनसल्फ 10 किलो प्रति एकड़ डालें और कैल्श्यिम नाइट्रेट 10 ग्राम प्रति लीटर पानी की स्प्रे करें।
पानी में घुलनशील खादें : पनीरी खेत में लगाने के 10-15 दिनों के बाद 19:19:19 जैसे सूक्ष्म तत्वों की 2.5-3 ग्राम प्रति लीटर पानी की स्प्रे करें। फिर 40-45 दिनों के बाद 20 प्रतिशत बोरोन 1 ग्राम + सूक्ष्म तत्व 2.5-3 ग्राम प्रति लीटर पानी की स्प्रे करें। फूल निकलने के समय 0:52:34 की 4-5 ग्राम + सूक्ष्म तत्व 2.5-3 ग्राम प्रति लीटर पानी की स्प्रे करें। फूल निकलने के समय 0:52:34 की 4-5 ग्राम + बोरोन 1 ग्राम प्रति लीटर पानी की स्प्रे करें। फल तैयार होने के समय 13:0:45 की 4-5 ग्राम + कैल्श्यिम नाइट्रेट की 2-2.5 ग्राम प्रति लीटर पानी की स्प्रे करें।
 
विकास दर बढ़ाने के लिए प्रयोग किए जाने वाले हारमोन : फूल गिरने से रोकने के लिए और फल की अच्छी क्वालिटी लेने के लिए , फूल निकलने के समय एन एन ए 40 पी पी एम 40 एम जी प्रति लीटर पानी की स्प्रे करें। फूल और फलों के गुच्छे बनने के समय फसल का ध्यान रखने से 20 प्रतिशत अधिक पैदावार मिलती है। फूल निकलने के समय 15 दिनों के फासले पर होमोबरासिनालाइड 5 मि.ली. प्रति 10 लीटर  की तीन स्प्रे करें। अच्छी क्वालिटी वाले अधिक फलों के गुच्छे लेने के लिए बिजाई के 20,40,60 और 80 दिन पर ट्राइकोंटानोल की स्प्रे विकास दर बढ़ाने के लिए 1.25 पी पी एम (1.25 मि.ली. प्रति लीटर) करें।
 

 

 

 

खरपतवार नियंत्रण

बिजाई से पहले पैंडीमैथालीन 1 लीटर प्रति एकड़ या फलूक्लोरालिन 800 मि.ली. प्रति एकड़ नदीन नाशक के तौर पर डालें और बिजाई के 30 दिन बाद एक बार हाथों से गोडाई करें। नदीनों की मात्रा के अनुसार  दोबारा गोडाई करें और खेत को नदीन मुक्त रखें।

सिंचाई

यह फसल अधिक पानी में नहीं उग सकती इसलिए सिंचाई आवश्यकतानुसार ही करें। अधिक पानी देने के कारण पौधे के हिस्से लंबे और पतले आकार में बढ़ते हैं और फूल गिरने लग जाते हैं। सिंचाई की मात्रा और फासला मिट्टी और मौसम की स्थिति पर निर्भर करता है। यदि पौधा शाम के 4 बजे के करीब मुरझा रहा हो तो इससे सिद्ध होता है कि पौधे को सिंचाई की जरूरत है। फूल निकलने और फल बनने के समय सिंचाई बहुत जरूरी है। कभी भी खेत या नर्सरी में पानी खड़ा ना होने दें। इससे फंगस पैदा होने का खतरा बढ़ जाता है।

पौधे की देखभाल

फल छेदक
  • हानिकारक कीट और रोकथाम
फल छेदक : इसकी सुंडियां फल के पत्ते खाती हैं फिर फल में दाखिल होकर पैदावार का भारी नुकसान करती हैं। प्रभावित फलों और पैदा हुई सुंडियों को इक्ट्ठा करके नष्ट कर दें। हैलीकोवेरपा आरमीगेरा या स्पोडोपटेरा लिटूरा के लिए फेरोमोन जाल 5 एन ओ एस प्रति एकड़ लगाएं।
 
इस कीट को रोकने के लिए ज़हर की गोलियां जो कि बरैन 5 किलो, कार्बरिल 500 ग्राम, गुड़ 500 ग्राम और आवश्यकतानुसार पानी की बनी होती है, डालें। यदि इसका नुकसान दिखे तो क्लोरपाइरीफॉस + साइपरमैथरिन 30 मि.ली.+टीपोल 0.5 मि.ली. को 12 लीटर पानी में डालकर पावर स्प्रेयर से स्प्रे करें या एमामैक्टिन बैंजोएट 5 प्रतिशत एस जी 4 ग्राम प्रति 10 लीटर पानी या फलूबैंडीआमाइड 20 डब्लयु डी जी 6 ग्राम को प्रति 10 लीटर पानी में डालकर स्प्रे करें।
 
मकौड़ा जुंएं

मकौड़ा जुंएं : यह सारे संसार में पाया जाने वाला कीट है। यह बहुत सारी फसलों जैसे आलू, मिर्चें, दालें, नर्मा, तंबाकू, कद्दू, अरिंड, जूट, कॉफी, निंबू, संतरे, उड़द, काली मिर्च, टमाटर, शकरकंदी, आम, पपीता, बैंगन, अमरूद आदि को नुकसान करता है। नए जन्में और बड़े कीट पत्तों को नीचे की ओर से खाते हैं। प्रभावित पत्ते कप के आकार के हो जाते हैं। नुकसान बढ़ने पर पत्ते झड़ने और सूखना, टहनियों का टूटना आदि शुरू हो जाता है। यदि खेत में पील जुंएं और भूरी जुंएं का हमला दिखे तो क्लोरफैनापायर 1.5 मि.ली. प्रति लीटर एबामैक्टिन 1.5 मि.ली. प्रति लीटर की स्प्रे करें। यह खतरनाक कीड़ा है जो कि फसल के पैदावार का 80 प्रतिशत तक नुकसान करता है। इसे रोकने के लिए स्पाइरोमैसीफेन 22.9 एस सी 200 मि.ली. प्रति एकड़ प्रति 180 लीटर पानी की स्प्रे करें।

चेपा
चेपा : यह कीड़ा आमतौर पर सर्दियों के महीने और फसल के पकने पर नुकसान करता है। यह पत्ते का रस चूसता है। यह शहद जैसा पदार्थ छोड़ता है। जिससे काले रंग की फंगस पौधे के भागों कैलिकस और फलियों आदि पर बन जाती है और उत्पाद की क्वालिटी कम हो जाती है। चेपा मिर्चों में चितकबरा रोग फैलाने में मदद करता है, जिससे पैदावार में 20 से 30 प्रतिशत नुकसान हो जाता है।
 
इसे रोकने के लिए एसीफेट 75 एस पी 5 ग्राम प्रति लीटर या मिथाइल डैमेटन 25 ई सी 2 मि.ली. प्रति लीटर पानी की स्प्रे करें। पनीरी लगाने के 15-60 दिनों के बाद दानेदार कीटनाशक जैसे कार्बोफिउरॉन, फोरेट 4-8 किलो प्रति एकड़ की स्प्रे भी लाभदायक सिद्ध होती है।
सफेद मक्खी

सफेद मक्खी : यह पौधों का रस चूसती है और उन्हें कमज़ोर कर देती है। यह शहद जैसा पदार्थ छोड़ते हैं, जिससे पत्तों के ऊपर दानेदार काले रंग की फंगस जम जाती है। यह पत्ता मरोड़ रोग को फैलाने में मदद करते हैं। इनके हमले को मापने के लिए पीले चिपकने वाले कार्ड का प्रयोग करें, जिस पर ग्रीस और चिपकने वाला तेल लगा होता है। नुकसान के बढ़ने पर एसेटामिप्रिड 20 एस पी 4 ग्राम प्रति 10 लीटर या ट्राइज़ोफॉस 2.5 मि.ली. प्रति लीटर या प्रोफैनोफॉस 2 मि.ली. प्रति लीटर या प्रोफैनोफॉस 2 मि.ली. प्रति लीटर पानी की स्प्रे करें। 15 दिनों के बाद दोबारा स्प्रे करें।

पत्तों पर सफेद धब्बे
  • बीमारियां और रोकथाम
पत्तों पर सफेद धब्बे : इस बीमारी से पत्तों के नीचे की ओर सफेद रंग के धब्बे दिखाई देते हैं। यह बीमारी पौधे को अपने खाने के तौर पर प्रयोग करती है, जिससे पौधा कमज़ोर हो जाता है। यह बीमारी विशेष तौर पर फलों के गुच्छे बनने पर या उससे पहले, पुराने पत्तों पर हमला करती है पर यह किसी भी समय फसल पर हमला कर सकती है। अधिक नुकसान के समय पत्ते झड़ जाते हैं।
 
खेत में पानी ना खड़ा होने दें और साफ सुथरा रखें। इसे रोकने के लिए हैक्साकोनाज़ोल को स्टिकर 1 मि.ली. प्रति लीटर पानी के साथ मिलाकर स्प्रे करें। अचानक बारिश पड़ने से इस बीमारी का खतरा बढ़ जाता है। ज्यादा हमला होने पर पानी में घुलनशील सलफर 20 ग्राम प्रति 10 लीटर पानी की 2-3 स्प्रे 10 दिनों के फासले पर करें।
 
झुलस रोग : यह फाइटोफथोरा कैपसीसी नाम की फंगस के कारण होता है। यह मिट्टी में पैदा होने वाली बीमारी है और ज्यादातर कम निकास वाली ज़मीनों में और सही ढंग से खेती ना करने वाले क्षेत्रों में पाई जाती है। बादलवाई वाला मौसम भी इस बीमारी को फैलाने में मदद करता है।
 
इस बीमारी को रोकने के लिए फसली चक्र में बैंगन, टमाटर, खीरा, पेठा आदि कम से कम तीन वर्ष तक ना अपनायें। कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 250 ग्राम प्रति 150 पानी की स्प्रे करें।
 
थ्रिप

 

थ्रिप : यह ज्यादातर शुष्क मौसम में पाया जाने वाला कीड़ा है। यह पत्तों का रस चूसता है और पत्ता मरोड़ रोग पैदा करता है। इससे फूल भी झड़ने लग जाते हैं।
 
इनका हमला मापने के लिए नीले चिपकने वाले कार्ड 6-8 प्रति एकड़ लगाएं। इनके हमले को कम करने के लिए वर्टीसिलियम लिकानी 5 ग्राम प्रति लीटर पानी की स्प्रे की जा सकती है।
 
यदि इसका हमला अधिक हो तो इमीडाक्लोप्रिड 17.8 एस एल या फिप्रोनिल 1 ग्राम प्रति लीटर पानी या फिप्रोनिल 80 प्रतिशत डब्लयु पी 2.5 मि.ली. प्रति लीटर पानी या एसीफेट 75 प्रतिशत डब्लयु पी 1.0 ग्राम प्रति लीटर की स्प्रे करें या थायामैथोक्सम 25 प्रतिशत डब्लयु जी 1.0 ग्राम प्रति लीटर पानी की स्प्रे करें।
पौधे मुरझाना और फल गलन
पौधे मुरझाना और फल गलन : इससे टहनियां और पत्ते सूख जाते हैं और प्रभावित हिस्सों पर काले धब्बे दिखाई देते हैं। धब्बे आमतौर पर गोल, पानी जैसे  गहरे होते हैं और इन पर काली धारियां बन जाती हैं अधिक धब्बे पड़ने से फल पकने से पहले ही गिर जाते हैं जिस कारण पैदावार बहुत कम हो जाती है। बारिश के मौसम में यह बीमारी हवा चलने से ज्यादा फैलती है। बिमारी वाले पौधे पर फल कम और घटिया क्वालिटी वाले होते हैं।
 
इसे रोकने के लिए रोधक किस्मों का प्रयोग करें। बिजाई से पहले बीज को थीरम या कप्तान 4 ग्राम प्रति किलो से उपचार करने से ज़मीन से पैदा होने वाली बीमारियों से बचा जा सकता है। इस बीमारी को रोकने के लिए मैनकोजेब 2.5 ग्राम या कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 3 ग्राम प्रति लीटर पानी से स्प्रे करें। पहले स्प्रे फूल निकलने से पहले और दूसरी फूल बनने के समय करें।
उखेड़ा रोग
उखेड़ा रोग : यह बीमारी मिट्टी में ज्यादा नमी और घटिया निकास के कारण फैलती है। यह मिट्टी से पैदा होने वाली बीमारी है। इससे तना मुरझा जाता है। यह बीमारी नए पौधों को अंकुरन से पहले ही नष्ट कर देती है। यदि यह बीमारी नर्सरी में आ जाये तो सारे पौधे नष्ट हो जाते हैं।
 
इसे रोकने के लिए पौधों के नजदीक मिट्टी में कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 250 ग्राम या कार्बेनडाज़िम 200 ग्राम प्रति 150 लीटर पानी डालें। पौधे का उखेड़ा रोग जो जड़ गलन के कारण होता है, की रोकथाम के लिए जड़ें ट्राइकोडरमा बायो फंगस 2.5 किलो प्रति 500 लीटर पानी डालें।
एंथ्राकनोस
एंथ्राक्नोस : यह बीमारी कोलैटोट्रीचम पीपेराटम और सी कैपसिसी नाम की फंगस के कारण होती है। यह फंगस गर्म तापमान, अधिक नमी के कारण बढ़ती है। प्रभावित हिस्सों पर काले धब्बे नज़र आते हैं। धब्बे आमतौर पर गोल, पानी जैसे और काले रंग की धारियों वाले होते हैं। ज्यादा धब्बों वाले फल पकने से पहले ही झड़ जाते हैं, जिससे पैदावार पर बुरा असर पड़ता हैं।
इसकी रोकथाम के लिए प्रॉपीकोनाज़ोल या हैक्साकोनाज़ोल 1 मि.ली प्रति लीटर पानी की स्प्रे करें।
चितकबरा रोग

चितकबरा रोग : इस बीमारी से पौधे पर हल्के हरे रंग के धब्बे पड़ जाते हैं। शुरूआत में पौधे का विकास रूक जाता है। पत्तों और फलों पर पीले, गहरे पीले और पीले-सफेद गोल धब्बे बन जाते हैं। बिजाई के लिए हमेशा तंदरूस्त और निरोगी पौधों का ही प्रयोग करें। मिर्च के साथ एक ही फसल खेत में बार बार ना लगाएं। मक्की या ज्वार की दो लाइनें, मिर्च की हर पांच लाइनें बाद हवा के बहाव के विपरीत बोयें। प्रभावित पौधे उखाड़कर खेत से दूर नष्ट कर दें। चेपे की रोकथाम के लिए एसीफेट 75 एस पी 1 ग्राम प्रति लीटर या मिथाइल डैमेटन 25 ई सी 2 मि.ली. प्रति लीटर पानी की स्प्रे करें। मिट्टी में दानेदार कीटनाशक कार्बोफिउरॉन, फोरेट 4-8 किलो प्रति एकड़ पनीरी खेत में लगाने के 15 से 60 दिन बाद डालें।

भूरे धब्बों का रोग
भूरे धब्बों का रोग : यह रोग आमतौर पर वर्षा के मौसम में फैलता है। नए पत्तों और पील-हरे और पुराने पत्तों पर गहरे और पानी जैसे धब्बे पड़ जाते हैं। अधिक प्रभावित पत्ते पीले पड़ जाते हैं और झड़ जाते हैं। यह बीमारी तने पर भी पाई जाती है, जिससे टहनियां सूख जाती हैं और कैंकर नाम का रोग पैदा हो जाता है। इससे फल के ऊपर गोल आकार के पानी जैसे पीले घेरे वाले धब्बे पड़ जाते हैं।
 
इसे रोकने के लिए प्रॉपीकोनाज़ोल 25 प्रतिशत ई सी 200 मि.ली. या क्लोरोथैलोनिल 75 प्रतिशत डब्लयु पी 400-600 ग्राम प्रति 150-200 लीटर पानी की स्प्रे करें। यदि नुकसान दिखे तो स्ट्रैपटोसाइकलिन 1 ग्राम + कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 400 ग्राम प्रति 200 लीटर पानी की स्प्रे करें।

फसल की कटाई

मिर्चों की तुड़ाई हरा रंग आने पर करें या फिर पकने के लिए पौधे पर ही रहने दें। मिर्चों का पकने के बाद वाला रंग किस्म पर निर्भर करता है। अधिक तुड़ाइयां लेने के लिए यूरिया 10 ग्राम प्रति लीटर और घुलनशील K @ 10 ग्राम प्रति लीटर पानी (1 प्रतिशत प्रत्येक का घोल) की स्प्रे 15 दिनों के फासले पर कटाई के समय करें। पैकिंग के लिए मिर्चें पक्की और लाल रंग की होने पर तोड़ें। सुखाने के लिए प्रयोग की जाने वाली मिर्चों की पूरी तरह पकने के बाद ही तुड़ाई करें।

कटाई के बाद

मिर्चों को पहले सुखाया जाता है फिर आकार के आधार पर छांटने के बाद पैक किया जाता है और स्टोर कर लिया जाता है।
 

रेफरेन्स

1.Punjab Agricultural University Ludhiana

2.Department of Agriculture

3.Indian Agricultural Research Instittute, New Delhi

4.Indian Institute of Wheat and Barley Research

5.Ministry of Agriculture & Farmers Welfare