मटर की फसल के बारे में जानकारी

आम जानकारी

यह फसल लैग्यूमिनसियाइ फैमिली से संबंध रखती है। यह ठंडे इलाकों वाली फसल है। इसकी हरी फलियां सब्जी बनाने और सूखी फलियां दालें बनाने के लिए प्रयोग की जाती हैं। यह फसल हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश, हरियाणा, कर्नाटक और बिहार में उगाई जाती है। यह प्रोटीन और अमीनो एसिड का अच्छा स्त्रोत है। यह फसल पशुओं के लिए चारे के तौर पर भी प्रयोग की जाती है।
 

जलवायु

  • Season

    Temperature

    15-30°C
  • Season

    Rainfall

    400-500mm
  • Season

    Harvesting Temperature

    15-20°C
  • Season

    Sowing Temperature

    25-30°C
  • Season

    Temperature

    15-30°C
  • Season

    Rainfall

    400-500mm
  • Season

    Harvesting Temperature

    15-20°C
  • Season

    Sowing Temperature

    25-30°C
  • Season

    Temperature

    15-30°C
  • Season

    Rainfall

    400-500mm
  • Season

    Harvesting Temperature

    15-20°C
  • Season

    Sowing Temperature

    25-30°C
  • Season

    Temperature

    15-30°C
  • Season

    Rainfall

    400-500mm
  • Season

    Harvesting Temperature

    15-20°C
  • Season

    Sowing Temperature

    25-30°C

मिट्टी

इसे मिट्टी की विभिन्न किस्मों, रेतली दोमट से चिकनी मिट्टी में उगाया जा सकता है। यह अच्छे निकास वाली मिट्टी में उगाने पर अच्छे परिणाम देती है। मिट्टी की पी एच 6 से 7.5 होनी चाहिए। यह फसल जल जमाव वाले हालातों में खड़ी नहीं रह सकती। अम्लीय मिट्टी के लिए, कली (चूना) डालें।

प्रसिद्ध किस्में और पैदावार

PG 3: यह छोटे कद वाली अगेती किस्म है जो 135 दिनों में तैयार हो जाती है। इसके फूल सफेद और दाने क्रीमी सफेद होते हैं। यह सब्जी बनाने के लिए अच्छी मानी जाती है। इस पर सफेद रोग कम आता है और फली छेदक का हमला कम होता है।
 
Punjab 88: यह पी ए यू लुधियाणा की किस्म है। फलियां गहरी हरी और मुड़ी हुई होती हैं। यह 100 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी हरी फलियों की औसतन पैदावार 62 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Matar Ageta 6: यह पी ए यू लुधियाणा की तरफ से तैयार की गई अगेती और छोटे कद की किस्म है। इसके दाने मुलायम और हरे रंग के होते हैं। इसकी औसतन पैदावार 24 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Field Pea 48: यह अगेती पकने वाली दरमियानी किस्म है। इसके दाने हल्के हरे रंग के मोटे और झुरड़ियों वाले होते हैं। यह 135 दिनों में पकती है। यह सब्जी बनाने के लिए अच्छी मानी जाती है। इसकी औसतन पैदावार 27 क्विंटल प्रति एकड़ है।
 
AP 3: यह जल्दी पकने वाली किस्म है। यदि इसे अक्तूबर के दूसरे सप्ताह में बोया जाए तो यह किस्म बिजाई के 70 दिन बाद पहली तुड़ाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन उपज 31.5 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Matar Ageta-7: यह अगेती किस्म है जो कि 65—70 दिनों के बाद तुड़ाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन उपज 32 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Punjab 89: इस किस्म की फलियां जोड़े में उगती हैं। यह किस्म बिजाई के 90 दिना के बाद पहली तुड़ाई के लिए तैयार हो जाती है। इसके बीज स्वाद में मीठे होते हैं और इसकी फलियां 55 प्रतिशत बीज देती हैं। इसकी औसतन उपज 60 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।

Mithi Fali: यह किस्म बिजाई के 90 दिनों के बाद पहली तुड़ाई के लिए तैयार हो जाती है। यह किस्म प्रोटीन और मीठे से भरपूर होती है। इसकी औसतन उपज 47 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
दूसरे राज्यों की किस्में
 
अगेती
 
Asauji: आई ए आर आई की तरफ से तैयार की गई किस्म है।
 
Early Superb: यह इंगलैंड की तरफ से तैयार की गई छोटे कद की किस्म है।
 
Arkel: यह फ्रांस की किस्म है जिसकी पैदावार 16-18 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Little Marvel: यह छोटे कद की इंगलैंड की किस्म है।
 
Alaska
 
Jawahar Matar 3: इस किस्म की पैदावार 16 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Jawahar Matar 4: इस किस्म की पैदावार 28 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Pant Mata
 
Hissar Harit
 
मध्य ऋतु की किस्में
 
Bonneville: यह अमरीका की किस्म है जिसकी औसतन पैदावार 36 क्विंटल प्रति एकड़ है।
 
Alderman, Perfection New line, T 19
 
Lincon: इसकी औसतन पैदावार 40 क्विंटल प्रति एकड़ है।
 
Jawahar Matar 1: इसकी औसतन पैदावार 48 क्विंटल प्रति एकड़ है।
 
Jawahar Matar 2
 
Pant Uphar: इसकी औसतन पैदावार 40 क्विंटल प्रति एकड़ है।
 
Ooty 1: इसकी औसतन पैदावार 48 क्विंटल प्रति एकड़ है।
 
Jawahar Pea 83: इस किस्म की फलियों की पैदावार 48-52 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Jawahar Peas 15: इस किस्म की फलियों की पैदावार 52 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। 
 

ज़मीन की तैयारी

खरीफ ऋतु की फसल की कटाई के बाद सीड बैड तैयार करने के लिए हल से 1-2 जोताई करें। हल से जोतने के बाद 2 या 3 बार तवियों से जोताई करें। जल जमाव से रोकने के लिए खेत को अच्छी तरह समतल कर लेना चाहिए। बिजाई से पहले खेत की एक बार सिंचाई करें यह फसल के अच्छे अंकुरन में सहायक होती है।

बिजाई

बिजाई का समय
अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए अंत अक्तूबर से मध्य नवंबर के बीच बिजाई पूरी कर लें। इसके आगे बिजाई में देरी करने से उपज में कमी होगी। अगेती मंडीकरन के लिए मटरों को अक्तूबर के दूसरे पखवाड़े में उगाएं।
 
फासला
अगेती किस्मों के लिए 30 सैं.मी. x 50 सैं.मी. और पिछेती किस्मों के लिए 45-60 सैं.मी. x 10 सैं.मी.फासले का प्रयोग करें।
 
बीज की गहराई
बीज को मिट्टी में 2-3 सैं.मी. गहरा बोयें।
 
बिजाई का ढंग
इसकी बिजाई मशीन से मेंड़ बनाकर करें जोकि 60 सैं.मी. चौड़ी होती हैं।
 

 

बीज

बीज की मात्रा
बिजाई के लिए 35-40 किलोग्राम बीज प्रति एकड़ में प्रयोग करें।
 
बीज का उपचार
बिजाई से पहले बीजों को कप्तान या थीरम 3 ग्राम या कार्बेनडाज़िम 2.5 ग्राम से प्रति किलो बीज का उपचार करें। रासायनिक तरीके से उपचार के बाद बीजों से अच्छी पैदावार लेने के लिए उन्हें एक बार राइज़ोबियम लैगूमीनोसोरम से उपचार करें। इसमें 10 प्रतिशत चीनी या गुड़ का घोल होता है। इस घोल को बीजों पर लगाएं और फिर बीज को छांव में सुखाएं। इससे 8-10 प्रतिशत पैदावार में वृद्धि होती है।
 
इनमें से किसी एक फंगसनाशी/कीटनाशी दवाई का प्रयोग करें:
 
फंगसनाशी/कीटनाशी दवाई  मात्रा (प्रति किलोग्राम बीज)
Captan 3gm
Thiram 3gm
Carbendazim 2.5gm
 

 

 
 

 

खाद

खादें (किलोग्राम प्रति एकड़)

UREA SSP MURIATE OF POTASH
45 155 On soil test results

 

तत्व (किलोग्राम प्रति एकड़)

NITROGEN PHOSPHORUS POTASH
20 25 #

 

बिजाई के लिए नाइट्रोजन 20 किलो (50 किलो यूरिया), फासफोरस 25 किलो (150 किलो सिंगल सुपर फासफेट) की मात्रा प्रति एकड़ में प्रयोग करें। खादों की पूरी मात्रा कतारों के साथ डाल दें।

 

 

खरपतवार नियंत्रण

किस्म के आधार पर एक या दो गोडाई की आवश्यकता होती है। पहली गोडाई 2-3 पत्ते आने की अवस्था पर या बिजाई के 3-4 सप्ताह बाद की जाती है और दूसरी गोडाई फूल निकलने से पहले की जाती है। मटर की खेती में नदीनों की रोकथाम के लिए नदीननाशक का प्रयोग करना सबसे प्रभावी ढंग है। नदीनों के नियंत्रण के लिए पैंडीमैथालीन 1 लीटर या बसालिन 1 लीटर प्रति एकड़ में डालें। बिजाई के 48 घंटे में नदीननाशक का प्रयोग करें। 

सिंचाई

अच्छे अंकुरण के लिए बिजाई से पहले सिंचाई जरूर करनी चाहिए। यदि इसकी खेती धान फसल के बाद की जाती है तो मिट्टी में पर्याप्त नमी होने पर, इसे सिंचाई के बिना भी बोया जा सकता है। बिजाई के बाद एक या दो सिंचाई की आवश्यकता होती है। पहली सिंचाई फूल निकलने से पहले और दूसरी फलियां भरने की अवस्था में करें। भारी सिंचाई से पौधों में पीलापन बढ़ जाता है और उपज में कमी आती है।

पौधे की देखभाल

मटर के पत्तों का कीड़ा
  • हानिकारक कीट और रोकथाम
मटर के पत्तों का सुरंगी कीट : लार्वा पत्तों में सुरंग बनाकर पत्ते को खाता है। जिस कारण 10 से 15 प्रतिशत तक फसल का नुकसान होता है।
यदि इसका हमला दिखे तो डाइमैथोएट 30 ई सी 300 मि.ली. को 80-100 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ में स्प्रे करें। जरूरत पड़ने पर 15 दिनों के बाद दोबारा स्प्रे करें।
 
चेपा और जूं
मटर का थ्रिप और चेपा : यह पत्तों का रस चुसते हैं जिस कारण पत्ता पीला हो जाता है और पैदावार कम हो जाती है।
इसकी रोकथाम के लिए डाइमैथोएट 30 ई सी 400 मि.ली. को 80-100 लीटर पानी में डालकर प्रति एकड़ में स्प्रे करें। जरूरत पड़ने पर 15 दिनों के बाद दोबारा छिड़काव करें।
फली छेदक
फली छेदक : यह मटरों की फसल का खतरनाक कीड़ा है। यदि इस कीड़े की रोकथाम जल्दी ना की जाये तो यह फूलों और फलियों को 10 से 90 प्रतिशत नुकसान पहुंचाता है।
 
शुरूआती नुकसान के समय कार्बरिल 900 ग्राम को प्रति 100 लीटर पानी में डालकर प्रति एकड़ पर स्प्रे करें। जरूरत के अनुसार 15 दिनों के फासले पर दोबारा स्प्रे करें। ज्यादा नुकसान के समय 1 लीटर क्लोरपाइरीफॉस या एसीफेट 800 ग्राम को 100 लीटर पानी में डालकर स्प्रे वाले पंप से प्रति एकड़ में स्प्रे करें।
 
सूखा
  • बीमारियां और रोकथाम
सूखा : इस बीमारी के कारण जड़ें काली हो जाती हैं और बाद में सूख जाती हैं। पौधा छोटा और रंग बिरंगा हो जाता है। पत्ते पीले होकर किनारों से मुड़ जाते हैं। सारा पौधा मुरझा जाता है। इसकी रोकथाम के लिए बीज का उपचार कर लेना जरूरी है।
 
बिजाई से पहले बीज को थीरम 3 ग्राम या कार्बेनडाज़िम 2 ग्राम प्रति लीटर पानी से उपचार कर लेना चाहिए और बुरी तरह से प्रभावित क्षेत्रों में अगेती बिजाई ना करें। तीन साल का फसली चक्र अपनायें। ज्यादा नुकसान होने की हालत में कार्बेनडाज़िम 5 ग्राम प्रति लीटर पानी का घोल बनाकर पौधे की जड़ों के साथ-साथ छिड़काव करें। लैथीरस वीसिया जैसे नदीनों को नष्ट कर दें।
 
कुंगी
कुंगी : इससे पौधे के पत्ते, टहनियां, फलियों और पीले भूरे रंग के उभरे हुए धब्बे पड़ जाते हैं।
 
 
मैनकोजेब 25 ग्राम या इंडोफिल 400 ग्राम को 100 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें और 10-15 दिनों के अंतराल पर दोबारा स्प्रे करें।  
 
 
पत्तों पर सफेद धब्बे
पत्तों पर सफेद धब्बे : पत्तों के निचली तरफ, शाखाओं और फलियों पर सफेद रंग के धब्बे पड़ जाते हैं। इसके कीट पौधे को अपने भोजन के रूप में लेते हैं। ये फसल की किसी भी अवस्था में विकसित हो सकते हैं। ज्यादा हमले के कारण पत्ते गिर भी जाते हैं।
 
यदि इसका हमला दिखे तो कैराथेन 40 ई सी 80 मि.ली. को 100 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ में स्प्रे करें। 10 दिनों के अंतराल पर कैराथेन की तीन स्प्रे करें। 
 

फसल की कटाई

हरी फलियों की उचित अवस्था पर तुड़ाई करनी चाहिए। मटर का रंग गहरे हरे से हरा होने पर जितनी जल्दी हो सके तुड़ाई कर लेनी चाहिए। 6 से 10 दिनों के अंतराल पर 4 से 5 तुड़ाइयां की जा सकती हैं। उपज किस्म, मिट्टी की उपजाऊ शक्ति और खेत में इसके प्रबंधन पर निर्भर करती है।  

कटाई के बाद

हरी फलियों की लंबे समय तक उपलब्धता बढ़ाने के लिए उन्हें कम तापमान पर स्टोर किया जाता है।  पैकिंग जूट की बोरियों, प्लास्टिक के कंटेनर और बांस की टोकरियों में की जाती है।  
 

रेफरेन्स

1.Punjab Agricultural University Ludhiana

2.Department of Agriculture

3.Indian Agricultural Research Instittute, New Delhi

4.Indian Institute of Wheat and Barley Research

5.Ministry of Agriculture & Farmers Welfare