बैंगन की खेती

आम जानकारी

बैंगन (सोलेनम मैलोंजेना) सोलेनैसी जाति की फसल है, जो कि मूल रूप में भारत की फसल मानी जाती है और यह फसल एशियाई देशों में सब्जी के तौर पर उगाई जाती है। इसके बिना यह फसल मिस्र, फरांस, इटली और अमेरिका में भी उगाई जाती है। बैंगन की फसल बाकी फसलों से ज्यादा सख्त होती है। इसके सख्त होने के कारण इसे शुष्क और कम वर्षा वाले क्षेत्रों में भी उगाया जा सकता हैं यह विटामिन और खनिजों का अच्छा स्त्रोत है। इसकी खेती सारा साल की जा सकती है। चीन के बाद भारत दूसरा सबसे अधिक बैंगन उगाने वाला देश है। भारत में बैंगन उगाने वाले मुख्य राज्य पश्चिमी बंगाल, उड़ीसा, कर्नाटक, बिहार, महांराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और आंध्र प्रदेश हैं।

जलवायु

  • Season

    Temperature

    15-32°C
  • Season

    Rainfall

    600-1000mm
  • Season

    Sowing Temperature

    15-20°C
    28-32°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    30-32°C
    25-30°C
  • Season

    Temperature

    15-32°C
  • Season

    Rainfall

    600-1000mm
  • Season

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    15-20°C
    28-32°C
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    Harvesting Temperature

    30-32°C
    25-30°C
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    15-32°C
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    Rainfall

    600-1000mm
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    Sowing Temperature

    15-20°C
    28-32°C
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    30-32°C
    25-30°C
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    600-1000mm
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    Sowing Temperature

    15-20°C
    28-32°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    30-32°C
    25-30°C

मिट्टी

बैंगन की फसल सख्त होने के कारण इसे अलग अलग तरह की मिट्टी में उगाया जा सकता है। यह एक लंबे समय की फसल है, इसलिए अच्छे जल निकास वाली उपजाऊ रेतली दोमट मिट्टी उचित होती है और अच्छी पैदावार देती है। अगेती फसल के लिए हल्की मिट्टी और अधिक पैदावार के लिए चिकनी और नमी या गारे वाली मिट्टी उचित होती है। फसल की वृद्धि के लिए 5.5-6.6 पी एच होनी चाहिए।

प्रसिद्ध किस्में और पैदावार

Punjab Bahar:- इस किस्म के पौधे की लंबाई 93 सैं.मी. होती है। इसके फल गोल, गहरे जामुनी रंग के और कम बीजों वाले होते हैं। इसकी औसतन पैदावार 190 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Punjab No 8:- यह किस्म दरमियाने कद की होती है। इसके फसल दरमियाने आकार के, गोल और हल्के जामुनी रंग के होते हैं। इसकी औसतन पैदावार 130 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Jamuni GOI (S 16):- यह किस्म पंजाब खेतीबाड़ी यूनिवर्सिटी द्वारा तैयार की गई है और इसके फल लंबे और जामुनी रंग के होते हैं।
 
Punjab Barsati: यह किस्म पंजाब खेतीबाड़ी यूनिवर्सिटी द्वारा बनाई गई है और यह किस्म फल छेदक को सहनेयोग्य है। इसके फल दरमियाने आकार के, लंबे और जामुनी रंग के होते हैं। इसकी औसतन पैदावार 140 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Punjab Neelam: यह किस्म पंजाब खेतीबाड़ी यूनिवर्सिटी द्वारा बनाई गई है और इसके फल लंबे और जामुनी रंग के होते हैं। इसकी औसतन पैदावार 140 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Punjab Sadabahar: यह किस्म पंजाब खेतीबाड़ी यूनिवर्सिटी द्वारा बनाई गई है और इसके फल लंबे और काले रंग के होते हैं। इसकी औसतन पैदावार 130 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
PH 4: यह किस्म पंजाब खेतीबाड़ी यूनिवर्सिटी द्वारा बनाई गई है और इसके फल दरमियाने आकार के लंबे और गहरे जामुनी रंग के होते हैं। इसकी औसतन पैदावार 270 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
PBH-5: यह किस्म 2017 में जारी की गई है। इसकी औसतन उपज 225 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। इसके फल लंबे, चमकदार और काले—जामुनी रंग के होते हैं।
 
PBHR-41: यह किस्म 2016 में जारी की गई है। इसकी औसतन उपज 269 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। इसके फल गोल, मध्यम से बड़े आकार के, चमकदार और हरे जामुनी रंग के होते हैं। 
 
PBHR-42: यह किस्म 2016 में जारी की गई है। इसकी औसतन उपज 261 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। इसके फल गोल अंडाकार आकार के, मध्यम, चमकदार और काले जामुनी रंग के होते हैं। 
 
PBH-4: यह किस्म 2016 में जारी की गई है। इसकी औसतन उपज 270 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। इसके फल मध्यम लंबे, चमकदार और काले जामुनी रंग के होते हैं।
 
Punjab Nagina: यह किस्म 2007 में जारी की गई है। इसकी औसतन उपज 145 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। इसके फल काले जामुनी रंग के और चमकदार होते हैं। यह किस्म बिजाई के 55 दिनों के बाद तुड़ाई के लिए तैयार हो जाते हैं। 
 
BH 2: यह किस्म 1994 में जारी की गई है। इसकी औसतन उपज 235 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। इसके फल का औसतन भार 300 ग्राम होता है।
 
Punjab Barsati: यह किस्म 1987 में जारी की गई है। इसकी औसतन उपज 140 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। इसके फल मध्यम लंबे और चमकदार जामुनी रंग के होते हैं।
 
दूसरे राज्यों की किस्में
 
Pusa Purple Long: यह जल्दी पकने वाली किस्म है। सर्दियों में यह 70-80 दिनों में और गर्मियों में यह 100-110 दिनों में पक जाती है। इस किस्म के बूटे दरमियाने कद के और फल लंबे और जामुनी रंग के होते हैं। इसकी औसतन पैदावार 130 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Pusa Purple Cluster: यह किस्म आई. सी. ए. आर. नई दिल्ली द्वारा बनाई गई है। यह दरमियाने समय की किस्म है। इसके फल गहरे जामुनी रंग और गुच्छे में होते हैं। यह किस्म झुलस रोग को सहने योग्य होती है। 
 
Pusa Hybrid 5: इस किस्म के फल लंबे और गहरे जामुनी रंग के होते है। यह किस्म 80-85 दिनों में पककर तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 204 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Pusa Purple Round: यह किस्म पत्ते, शाख और फल के छोटे कीट की रोधक किस्म है।
 
Pant Rituraj: इस किस्म के फल गोल और आकर्षित जामुनी रंग के होते हैं और इनमें बीज की मात्रा भी कम होती है। इसकी औसतन पैदावार 160 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 

पनीरी की देख-रेख और रोपण

बैंगन के बीज 3 मीटर लंबे, 1 मीटर चौड़े और 15 सैं.मी. ऊंचे बैडों पर बोये जाते हैं। पहले बैडों में बढ़िया रूड़ी की खाद डालें। फिर बिजाई से दो दिन पहले कप्तान का घोल डालें ताकि जो नर्सरी बैडों में पौधों को नष्ट होने से बचाया जा सके। फिर 5 सैं.मी. के फासले पर बिजाई करके बैडों को गली हुई खाद या सूखे पत्तों से ढक दिया जाता है। हल्की सिंचाई करें। पौधों के अंकुरन तक बैडों को काले रंग की पॉलीथीन शीट या पराली से ढक दें। तंदरूस्त पौधे जिनके 3-4 पत्ते निकलें हों और कद 12-15 सैं.मी. हो, खेत में पनीरी लगाने के लिए तैयार होते हैं खेत में पनीरी शाम के समय ही लगाएं और पनीरी लगाने के बाद हल्की सिंचाई करें।

ज़मीन की तैयारी

रोपण करने से पहले खेत की अच्छे तरीके से 4-5 बार जोताई करें और समतल करें। फिर खेत में आवश्यकतानुसार आकार के बैड बनाएं।

बिजाई

बिजाई का समय
पहली फसल के लिए अक्तूबर में पनीरी बोयें ताकि जो नवंबर तक पनीरी खेत में लगाने के लिए तैयार हो जाये।
दूसरी फसल के लिए नवंबर में पनीरी बोयें ताकि जो फरवरी के पहले पखवाड़े तक पनीरी खेत में लगाने के लिए तैयार हो जाये।
तीसरी फसल के लिए फरवरी मार्च में पनीरी बोयें ताकि जो अप्रैल के आखिर से पहले ही पनीरी खेत में लगाने के लिए तैयार हो जाये।
चौथी फसल के लिए जुलाई में पनीरी बोयें ताकि जो अगस्त तक पनीरी खेत में लगाने के लिए तैयार हो जाये।
 
फासला
फासला फसल की किस्म और मिट्टी की उपजाऊ शक्ति पर निर्भर करता है। पंक्तियों में 60 सैं.मी. और पौधों में 35-40 सैं.मी. का फासला रखें।
 
बीज की गहराई
नर्सरी में बीजों को 1 सैं.मी. गहराई में बोयें और मिट्टी से ढक दें।
 
बिजाई का ढंग
खेत में पनीरी लगाकर इसकी बिजाई की जाती है।
 

बीज

बीज की मात्रा
एक एकड़ खेत की पनीरी तैयार करने के लिए 300-400 ग्राम बीजों का प्रयोग करें।
 
बीज का उपचार
बिजाई के लिए तंदरूस्त और बढ़िया बीज का ही प्रयोग करें। बिजाई से पहले बीजों को थीरम 3 ग्राम या कार्बेनडाज़िम 3 ग्राम प्रति किलो बीज से उपचार करें। रासायनिक उपचार के बाद बीजों का ट्राइकोडरमा विराइड 4 ग्राम प्रति किलो बीज से उपचार करें और फिर छांव में सुखाने के बाद तुरंत बिजाई करें।
 
फंगसनाशी दवाई मात्रा (प्रति किलोग्राम बीज)
Carbendazim 3gm
Thiram 3gm
 
 

खाद

खादें (किलोग्राम प्रति एकड़)

UREA SSP MURIATE OF POTASH
55 155 20

 

तत्व (किलोग्राम प्रति एकड़)

NITROGEN PHOSPHORUS POTASH
25 25 12

 

आखिरी बार खेत को जोतने के समय रूड़ी की खाद 10 टन प्रति एकड़ मिट्टी में मिलाएं। नाइट्रोजन 25 किलो (55 किलो यूरिया), फासफोरस 25 किलो (155 किलो सिंगल सुपर फासफेट) और पोटाश 12 किलो (20 किलो म्यूरेट ऑफ पोटाश्यिम) की मात्रा प्रति एकड़ में प्रयोग करें। फासफोरस, पोटाश और नाइट्रोजन की पूरी मात्रा पनीरी खेत में लगाने के समय डालें। दो तुड़ाइयों के बाद 25 किलो नाइट्रोजन प्रति एकड़ डालें।
 
पानी में घुलनशील खादें : फसल के शुरूआती विकास के समय हयूमिक तेजाब 1 लीटर प्रति एकड़ या मिट्टी में मिलाकर 5 किलो प्रति एकड़ डालें। यह फसल की पैदावार और वृद्धि में बहुत मदद करता है। पनीरी लगाने के 10-15 दिन बाद खेत में 19:19:19 के साथ 2.5-3 ग्राम प्रति लीटर सूक्ष्म तत्वों की स्प्रे करें।
 
शुरूआती विकास के समय कईं बार तापमान के कारण पौधे  सूक्ष्म तत्व नहीं ले पाते, जिस के कारण पौधा पीला पड़ जाता है और कमज़ोर दिखता है। ऐसी स्थिति में 19:19:19 या 12:61:0 की 5-7 ग्राम प्रति लीटर की स्प्रे करें। आवश्यकतानुसार 10-15 दिन के बाद दोबारा स्प्रे करें। पनीरी खेत में लगाने के 40-45 दिनों के बाद 20 प्रतिशत बोरोन 1 ग्राम में सूक्ष्म तत्व 2.5-3 ग्राम प्रति लीटर पानी से स्प्रे करें। फसल में तत्वों की पूर्ति और पैदावार 10-15 प्रतिशत बढ़ाने के लिए 13:00:45 की 10 ग्राम प्रति लीटर पानी की दो स्प्रे करें। पहली स्प्रे 50 दिनों के बाद और दूसरी स्प्रे पहली स्प्रे के 10 दिन बाद करें। जब फूल या फल निकलने का समय हो तो 0:52:34 या 13:0:45 की 5-7 ग्राम प्रति लीटर पानी की स्प्रे करें।
 
अधिक तापमान होने के कारण फूल गिरने शुरू हो जाते हैं, इसकी रोकथाम के लिए पलैनोफिक्स (एन ए ए) 5 मि.ली. प्रति 10 लीटर पानी की स्प्रे फूल निकलने के समय करें। 20-25 दिन बाद यह स्प्रे दोबारा करें। 
 

 

 

खरपतवार नियंत्रण

नदीनों को रोकने, अच्छे विकास और उचित हवा के लिए दो - चार गोडाई करें। काले रंग की पॉलिथीन शीट से पौधों को ढक दें जिससे नदीनों का विकास कम हो जाता है और ज़मीन का तापमान भी बना रहता है।
 
नदीनों को रोकने के लिए पौधे लगाने से पहले मिट्टी में फलूकलोरालिन 800-1000 मि.ली. प्रति एकड़ या ऑक्साडायाज़ोन 400 ग्राम प्रति एकड़ डालें। अच्छे परिणाम के लिए पौधे लगाने से पहले एलाकलोर 2 लीटर प्रति एकड़ की मिट्टी के तल पर स्प्रे करें।
 

सिंचाई

गर्मियों में हर 3-4 दिन बाद पानी लगाएं और सर्दियों में 12-15 दिन बाद पानी लगाएं। अधिक पैदावार लेने के लिए सही समय पर पानी लगाना बहुत जरूरी है। फसल को कोहरे वाले दिनों में बचाने के लिए मिट्टी में नमी बनाये रखें और लगातार पानी लगाएं। फसल में पानी खड़ा होने से रोकें, क्योंकि बैंगन की फसल खड़े पानी को सहने योग्य नहीं है।

पौधे की देखभाल

फल और शाख का कीट
  • हानिकारक कीट और रोकथाम
फल और शाख का कीट : यह बैंगन की फसल का मुख्य और खतरनाक कीट है। शुरूआत में इसकी छोटी गुलाबी सुंडियां पौधे की गोभ में छेद करके अंदर से तंतू खाती हैं और बाद में फल पर हमला करती हैं। प्रभावित फलों के ऊपर बड़े छेद नज़र आते हैं और खाने योग्य नहीं होते हैं।
 
प्रभावित फल हर सप्ताह तोड़ कर नष्ट कर दें। नर्सरी लगाने से 1 महीने बाद ट्राइज़ोफॉस 20 मि.ली. प्रति 10 लीटर पानी और 50 ग्राम नीम एक्सट्रैक्ट 50 ग्राम प्रति लीटर की स्प्रे करें। 10-15 दिनों के फासले पर यह स्प्रे दोबारा करें। फूल निकलने के समय कोराजैन 18.5 प्रतिशत एस सी 5 मि.ली. + टीपॉल 5 मि.ली. का घोल 12 लीटर पानी में मिलाकर 20 दिनों के फासले पर दो बार स्प्रे करें।
 
शुरूआती हमले में 5 प्रतिशत नीम एक्सट्रैक्ट 50 ग्राम प्रति लीटर की स्प्रे करें। ज्यादा हमला दिखने पर 25 प्रतिशत साइपरमैथरिन 2.4 मि.ली. प्रति लीटर पानी की स्प्रे करें। कीटों की गिनती अधिक हो जाने पर स्पाइनोसैड 1 मि.ली. प्रति लीटर पानी की स्प्रे करें। फल पकने के बाद ट्राइज़ोफॉस या किसी और कीटनाशक की स्प्रे ना करें।
 
 

 

चेपा
चेपा : पौधों पर मकौड़ा जुंएं, चेपा और मिली बग भी हमला करते हैं। ये पत्ते का रस चूसते हैं और पत्ते पीले पड़ कर झड़ने शुरू हो जाते हैं।
 
यदि चेपे और सफेद मक्खी का हमला दिखे तो डैल्टामैथरिन + ट्राइज़ोफॉस के घोल 20 मि.ली. प्रति 10 लीटर पानी की स्प्रे करें। सफेद मक्खी के नुकसान को देखते हुए एसेटामीप्रिड 5 ग्राम प्रति 15 लीटर की स्प्रे करें।
 
थ्रिप

थ्रिप : थ्रिप के हमले को मापने के लिए 6-8 प्रति एकड़ नीले फेरोमोन कार्ड लगाएं और हमले को कम करने के लिए वर्टीसिलियम लिकानी 5 ग्राम प्रति लीटर पानी की स्प्रे करें। थ्रिप का ज्यादा हमला होने पर फिप्रोनिल 2 मि.ली. प्रति लीटर की स्प्रे करें।

मकौड़ा जुंएं

मकौड़ा जुंएं : यदि खेत में जुंओं का हमला दिखे तो एबामैक्टिन 1-2 मि.ली. या फैनाजैकुइन 2 मि.ली. प्रति लीटर पानी की स्प्रे करें।

पत्ता खाने वाली सुंडी

पत्ता खाने वाली सुंडी : कईं बार फसल की शुरूआत में इस कीड़े का हमला नज़र आता है। इसकी रोकथाम के लिए नीम वाले कीटनाशकों का प्रयोग करें। यदि कोई असर ना दिखे और हमला बढ़ रहा हो तो रासायनिक कीटनाशक जैसे कि एमामैक्टिन बैंज़ोएट 4 ग्राम लैंबडा साइहैलोथ्रिन 2 मि.ली. प्रति 10 लीटर पानी की स्प्रे करें।

जड़ों में गांठें
  • बीमारियां और रोकथाम
जड़ों में गांठें : यह बैंगन की फसल की आम बीमारी है। यह फसल के शुरूआती समय में ज्यादा खतरनाक होते हैं। इससे जड़ें फूलने लग जाती हैं इस बीमारी के हमले से फसल का विकास रूक जाता है, पौधा पीला पड़ जाता है और पैदावार भी कम हो जाती है।
 
इसकी रोकथाम के लिए फसल चक्र अपनाएं और मिट्टी में कार्बोफिउरॉन या फोरेट 5-8 किलो प्रति एकड़ मिलाएं।
  
brinjal damping-off.jpg
उखेड़ा रोग : नमी और बुरे निकास वाली मिट्टी से यह बीमारी पैदा होती है। यह ज़मीन से पैदा होने वाली बीमारी है। इस बीमारी से तने पर धब्बे और धारियां पड़ जाती हैं। इससे छोटे पौधे अंकुरन से पहले ही मर जाते हैं। यदि नर्सरी में इसका हमला हो जाये तो सारे पौधों को नष्ट कर देती है।
 
इसकी रोकथाम के लिए बिजाई से पहले बीजों को थीरम 3 ग्राम प्रति किलो बीज से उपचार करें। बिजाई से पहले नर्सरी वाली मिट्टी को सूर्य की रोशनी में खुला छोड़ें। यदि नर्सरी में इसका हमला दिखे तो रोकथाम के लिए नर्सरी में से पानी का निकास करें और मिट्टी में कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 3 ग्राम प्रति लीटर डालें।
झुलस रोग और फल गलन
झुलस रोग और फल गलन : इस बीमारी से पत्तों पर भूरे रंग के धब्बे पड़ जाते हैं। यह दाग फलों पर भी नज़र आते हैं। जिस कारण फल काले रंग के होने शुरू हो जाते हैं।
 
इसकी रोकथाम के लिए बिजाई से पहले बीजों को थीरम 3 ग्राम प्रति किलो बीज से उपचार करें। इस बीमारी की रोधक किस्मों का प्रयोग करें यदि खेत में हमला दिखे तो ज़िनैब 2 ग्राम प्रति लीटर या मैनकोज़ेब 2.5 ग्राम प्रति लीटर पानी की स्प्रे करें।
पत्तों का छोटापन
पत्तों का छोटापन : यह बीमारी पत्तों के टिड्डे द्वारा फैलती है। इस बीमारी से प्रभावित पत्ते पतले रह जाते हैं। छोटी पत्तियां भी हरी पड़ जाती हैं। प्रभावित पौधे फल नहीं पैदा करते।
 
इस बीमारी की रोकथाम के लिए रोधक किस्मों का प्रयोग करें। नर्सरी में फोरेट 10 प्रतिशत (20 ग्राम, 3x1 मीटर चौड़े बैड के लिए) का प्रयोग करें। बिजाई के समय दो पंक्तियों के बीच फोरेट डालें। यदि शुरूआती समय पर हमला दिखे तो प्रभावित पौधे उखाड़कर बाहर निकाल दें। फसल में डाईमैथोएट या ऑक्सीडैमीटन मिथाइल 1 मि.ली. प्रति लीटर पानी की स्प्रे करें। इस बीमारी का मुख्य कारण तेला है। तेले के हमले को काबू करने के लिए थायामैथोक्सम 25 प्रतिशत डब्लयु जी 5 ग्राम प्रति 15 लीटर पानी की स्प्रे करें।
चितकबरा रोग
चितकबरा रोग : इस बीमारी से पत्तों पर हल्के हरे धब्बे दिखाई देते हैं। पत्तों पर छोटे-छोटे बुलबुले जैसे दाग बन जाते हैं और पत्ते छोटे रह जाते हैं।
 
इसकी रोकथाम के लिए बिजाई के लिए तंदरूस्त और बीमारी रहित बीज का प्रयोग करें। प्रभावित पौधे खेत में से उखाड़कर नष्ट कर दें। सिफारिश की गई दवाइयां चेपे की रोकथाम के लिए अपनाएं। इसके हमले की रोकथाम के लिए एसीफेट 75 एस पी 1 ग्राम प्रति लीटर या मिथाइल डैमेटन 25 ई सी 2 मि.ली. प्रति लीटर पानी या डाईमैथोएट 2 मि.ली. प्रति लीटर पानी की स्प्रे करें।
सूखा रोग
सूखा रोग : इस बीमारी से फसल पीली पड़ने लग जाती है और पत्ते झड़ जाते हैं। सारा पौधा सूखा हुआ नज़र आता है प्रभावित तने को यदि काटकर पानी में डुबोया जाये तो पानी सफेद रंग का हो जाता है।
 
इसकी रोकथाम के लिए फसली चक्र अपनाएं। बैंगन की फसल फ्रांसबीन की फलियों की फसल के बाद उगाएं, ऐसा करने से इस बीमारी को फसल को बचाया जा सकता है। प्रभावित पौधों के हिस्सों को खेत से बाहर निकालकर नष्ट कर दें। खेत में पानी खड़ा ना रहने दें। बीमारी के हमले को रोकने के लिए कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 2.5 ग्राम प्रति लीटर पानी की स्प्रे करें।

फसल की कटाई

बैंगन की तुड़ाई फल पकने से थोड़ा समय पहले की जाती है, जब फल उचित आकार और रंग का हो जाता है। मंडी में अच्छा रेट लेने के लिए फल चिकना और आकर्षक रंग का होना चाहिए।

कटाई के बाद

बैंगन को ज्यादा देर के लिए आम कमरे के तापमान में नहीं रखा जा सकता, क्यों कि इससे इसकी नमी खत्म हो जाती है। बैंगन को 2-3 सप्ताह के लिए 10-11 डिगरी सैल्सियस तापमान पर और 92 प्रतिशत नमी में रखा जा सकता है। कटाई के बाद इसे सुपर, फैंसी और व्यापारिक आकार के हिसाब से छांट लिया जाता है। पैकिंग के लिए, बोरियों या टोकरियों का प्रयोग करें।

रेफरेन्स

1.Punjab Agricultural University Ludhiana

2.Department of Agriculture

3.Indian Agricultural Research Instittute, New Delhi

4.Indian Institute of Wheat and Barley Research

5.Ministry of Agriculture & Farmers Welfare