गोभी की सिंचाई

आम जानकारी

फूलगोभी एक लोकप्रिय सब्जी है और क्रूसिफेरस परिवार से संबंधित है और यह कैंसर की रोकथाम के लिए प्रयोग की जाती है। यह सब्जी दिल की ताकत को बढ़ाती है। यह शरीर का कोलैस्ट्रोल भी कम करती हैं। फूल गोभी बीजने वाले मुख्य राज्य बिहार, उत्तर प्रदेश, उड़ीसा, पश्चिम बंगाल,  आसाम, हरियाणा और महाराष्ट्र हैं।

जलवायु

  • Season

    Temperature

    12-30°C
  • Season

    Rainfall

    120-125mm
  • Season

    Sowing Temperature

    25-30°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    12-18°C
  • Season

    Temperature

    12-30°C
  • Season

    Rainfall

    120-125mm
  • Season

    Sowing Temperature

    25-30°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    12-18°C
  • Season

    Temperature

    12-30°C
  • Season

    Rainfall

    120-125mm
  • Season

    Sowing Temperature

    25-30°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    12-18°C
  • Season

    Temperature

    12-30°C
  • Season

    Rainfall

    120-125mm
  • Season

    Sowing Temperature

    25-30°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    12-18°C

मिट्टी

यह फसल रेतली दोमट से चिकनी किसी भी तरह की मिट्टी में उगाई जा सकती हैं। देर से बीजने वाली किस्मों के लिए चिकनी दोमट मिट्टी को पहल दी जाती है। जल्दी पकने वाली के लिए रेतली दोमट का प्रयोग करें। मिट्टी की पी एच 6-7 होनी चाहिए। मिट्टी की पी एच बढ़ाने के लिए उसमें चूना डाला जा सकता है।

प्रसिद्ध किस्में और पैदावार

पूसा सनोबाल 1 - फसल 100 दिन में पौध के लिए तैयार हो जाती है। इसके बाहरी पत्ते ऊपर की तरफ सीधे  और मुड़े हुए होते हैं। फूल बर्फ के जैसे सफेद होता है। इसकी पैदावार 90 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।

 पूसा सनोबाल के-1  - यह किस्म सनोबाल1 से देरी में पकने वाली किस्म है। इसके बाहरी पत्ते ऊपर की तरफ सीधे  और मुड़े हुए होते हैं। फूल बर्फ के जैसे सफेद होते हैं। इसकी औसत पैदावार 90 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।

 स्नोबाल 16 - यह देरी से पकने वाली किस्म है। फूल सख्त और आकर्षित छोटे रंग के होते हैं। इसकी औसतन पैदावार 100-125 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
दूसरे राज्यों की किस्में
 
पंत शुभ्रा - यह जल्दी पकने वाली किस्म है और उत्तरी भारत में बीजी जाती है। फूल सफेद रंग के होते हैं और औसतन पैदावार 80 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
अर्ली कुंवारी - यह किस्म जल्दी पकने वाली, पंजाब,  हरियाणा और दिल्ली में बिजाई के लिए उपयुक्त है। इसकी औसत उपज 32 कि्ंवटल प्रति एकड़ है।
 
 पूसा दीपाली - यह आई ए आर आई द्वारा विकसित किस्म है। जल्दी पकने वाली किस्म है और उत्तरी भारत में बिजाई के लिए उपयुक्त है। यह मध्यम आकार की और सफेद रंग की होती है। इसकी औसतन पैदावार 48 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।

ज़मीन की तैयारी

खेत को अच्छी तरह जोतकर नर्म करें। अच्छी तरह गली हुई रूड़ी की खाद आखिरी जोताई के समय डालें।

बिजाई

बिजाई का समय
अगेती किस्मों के लिए जून-जुलाई रोपाई के लिए सबसे अच्छा समय है और पिछेती किस्मों के लिए अगस्त से मध्य सितंबर और अक्तूबर से नवंबर का पहला सप्ताह रोपाई के लिए अच्छा समय है।
 
फासला
अगेती किस्मों के लिए 45x45 से.मी. और पिछेती किस्मों के लिए 45x30 से.मी. का फासला होना चाहिए।
 
बीज की गहराई
बीजों को 1-2 सैं.मी. की गहराई पर बोयें।
 
बिजाई  का ढंग
बिजाई के लिए डिबलिंग विधि और रोपण विधि का प्रयोग किया जाता है।
नर्सरी में बीजों को बोयें और आवश्यकतानुसार खादें और सिंचाई दें। बिजाई के 25-30 दिन बाद पौधे रोपाई के लिए तैयार हो जाते हैं। रोपाई के लिए 3-4 सप्ताह पुराने पौधों का प्रयोग करें।
 

बीज

बीज की मात्रा 
अगेते मौसम की किस्मों के लिए 500 ग्राम, जबकि पिछेते और मुख्य मौसम की किस्मों के लिए 250 ग्राम बीज की प्रति एकड़ में आवश्यकता होती है।
 
बीज का उपचार
बिजाई से पहले गर्म पानी (30 मिनट के लिए 50 डिगरी सैल्सियस) या स्ट्रैप्टोसाइक्लिन 0.01 ग्राम को प्रति लीटर पानी में मिलाकर 2 घंटे के लिए बीजों को इस घोल में भिगोकर रखें। उपचार के बाद बीजों को छांव में सुखाएं और फिर उन्हें बैड पर बो दें। रबी के मौसम में काली फंगस का हमला ज्यादा होता है। इसकी रोकथाम के लिए मरकरी क्लोराइड से बीजों का उपचार करना जरूरी होता है। इसके लिए मरकरी क्लोराइड 1 ग्राम को प्रति लीटर पानी में मिलाकर 30 मिनट के लिए बीजों को इस घोल में भिगोकर रखें और फिर छांव में सुखाएं। रेतली मिट्टी में ये फसल उगाने से तना गलन का खतरा रहता है। इसके लिए कार्बेनडाज़िम 50 प्रतिशत डब्लयु पी 3 ग्राम से प्रति किलो बीज का उपचार करें।
 

खाद

 खादें (किलोग्राम प्रति एकड़)

UREA SSP MURIATE OF POTASH
110 155 40

 

  तत्व (किलोग्राम प्रति एकड़)

NITROGEN PHOSPHORUS POTASH
50 25 25

 

खेत में 40 टन पूरी तरह गली हुई रूड़ी की खाद डालें और साथ ही 50 किलो नाइट्रोजन, 25 किलो फासफोरस और 25 किलो पोटाश (110 किलो यूरिया, 155 किलो सुपरफासफेट और 40 किलो म्यूरेटे ऑफ पोटाश) सारी रूड़ी की खाद, सुपरफासफेट और म्यूरेटे ऑफ पोटाश और आधा यूरिया फसल रोपाई से पहले डालें। बाकी बचा यूरिया बीजने के चार सप्ताह बाद डाल देना चाहिए। 
 
अच्छी पैदावार लेने के लिए और अधिक फूलों के लिए 5-7 ग्राम घुलनशील खादें (19:19:19) प्रति लि. का प्रयोग करें। रोपाई के 40 दिनों के बाद 4-5 ग्राम 12:16:0, नाइट्रोजन और फासफोरस, 2.5-3 ग्राम लघु तत्व और 1 ग्राम बोरोन प्रति लि. का छिड़काव करें। फूल की अच्छी गुणवत्ता के लिए 8-10 ग्राम घुलनशील खादें (13:00:45) प्रति लि. पानी में मिलाएं। 
 
मिट्टी का परीक्षण करवाएं। बीजने के 30-35 दिनों के बाद मैगनीश्यिम की कमी को पूरा करने के लिए 5 ग्राम मैगनीश्यिम सलफेट प्रति लि. प्रयोग करें। कैल्शियम की कमी को पूरा करने के लिए कैल्शियम नाइट्रेट 5 ग्राम को प्रति लीटर पानी में मिलाकर 30-35 दिनों के बाद डालें।
 
कभी कभी बेरंग तने देखे जा सकते हैं फूल भी भूरे रंग के हो जाते हैं और पत्ते मुड़ने लग जाते हैं। यह बोरोन की कमी के कारण होता है। इसके लिए बोरैक्स 250-400 ग्राम प्रति एकड़ में डालें।
 

खरपतवार नियंत्रण

नदीनों को रोकने के लिए फसल को खेत में लगाने के बाद फलुक्लोरालिन(बसालिन) @800 मि.ली. को 150 लि. पानी में मिलाकर छिड़काव करें और 30-40 दिनों के बाद रोपाई करें। फसल को खेत में लगाने से 1 दिन पहले पैंडीमैथलीन 1 लि. प्रति एकड़ का छिड़काव करें।

सिंचाई

रोपाई के बाद तुरंत पहली सिंचाई करें। मिट्टी, जलवायु, के आधार पर गर्मियों में 7-8 दिनों के अंतराल पर और सर्दियों में 10-15 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करें।

पौधे की देखभाल

रस चूसने वाले कीड़े
  • हानिकारक कीट और रोकथाम

रस चूसने वाले कीड़े: ये पत्तों का रस चूस कर उन्हें पीला कर देते हैं और गिरा देते हैं, साथ ही पत्ते भी मुड़ जाते हैं और ठूठी के आकार के हो जाते हैं।

रस चूसने वाले कीट जैसे चेपे और तेले का यदि हमला दिखे तो इमीडाक्लोप्रिड 17.8 एस एल 60 मि.ली. को 150 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें। यदि थ्रिप्स का हमला दिखे तो ट्राइज़ोफॉस डैल्टामैथरिन 20 मि.ली. या 25 प्रतिषत साइपरमैथरिन 5 मि.ली. को 10 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।

 

 

चमकीली पीठ वाला पतंगा
चमकीली पीठ वाला पतंगा: फूल गोभी का एक महत्तवपूर्ण कीड़ा है जो कि पत्तों के नीचे की ओर अंडे देता है। हरे रंग की सुंडी पत्तों को खाती है और उनमें छेद कर देती है यदि इसे ना रोका जाए तो 80-90 प्रतिशत तक नुकसान हो सकता है।

शुरूआत में नीम के बीजों का अर्क 40 ग्राम को प्रति लीटर पानी में मिलाकर  फूल बनने की शुरूआती अवस्था में स्प्रे करें । 10-15 दिनों के अंतराल पर दोबारा स्प्रे करें। फूल के पूरा विकसित होने पर स्प्रे ना करें। इसके इलावा बी टी घोल 200 ग्राम की स्प्रे रोपाई के बाद 35 वें और 50 वें दिन प्रति एकड़ में करें। हमला अधिक होने पर  स्पाइनोसैड  2.5% एस सी 80 मि.ली. को प्रति 150 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।

सुंडी
सुंडी: सुंडी पत्तों को खाती है और फसल को खराब करती है।

वर्षा के समय स्पोडोपटीरा का नुकसान आम दिखाई देता है। यदि एक बूटे पर दो सुंडिया दिखे तो बी टी 10 ग्राम को प्रति 10 लीटर पानी में मिलाकर शाम के समय स्प्रे करें और बाद में नीम अर्क 40 ग्राम को प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें। यदि नुकसान ज्यादा हो तो थायोडीकार्ब 75 डब्लयू पी 40 ग्राम को प्रति 15 ली. पानी में मिलाकर स्प्रे करें। यदि पत्ते खाने वाली सुंडी का हमला हो तो स्पाइनोसैड 2.5% ई सी या 100 ग्राम एमामैक्टिन बेनज़ोएट 5 एस जी को 150 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ में स्प्रे करें।

 

सूखा
  • बीमारियों की रोकथाम
सूखा :  इसके साथ फसल पीली पड़ जाती है और पत्ते गिर जाते हैं और सारा पौधा सूख जाता है। यह जड़ों के गलने से भी हो सकता है। इसे रोकने के लिए टराईकोडरमा बायो फंगस 2.5 किलो को प्रति 500 लीटर पानी में मिलाकर पौधे की जड़ों के नज़दीक डालें और फंगस के साथ होने वाले नुकसान की जांच करते रहें। पौधों की जड़ों में रिडोमिल्ड गोल्ड 2.5 ग्राम को प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़कें और जरूरत के अनुसार सिंचाई करें। ज्यादा भारी सिंचाई ना करें।
 

पत्तों के नीचे की ओर धब्बे

पत्तों के नीचे की ओर धब्बे : पत्तों के नीचे की ओर सफेद या बादामी रंग के दाने बन जाते हैं। बीमारी कम करने के लिए खेत को साफ रखें और फसली चक्र अपनायें। यदि इस बीमारी का हमला दिखे तो मैटालैक्सिल+मैनकोजेब 2 ग्राम को प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें। 10 दिनों के अंतराल पर तीन स्प्रे करें।

पत्तों पर धब्बे और झुलस रोग
पत्तों पर धब्बे और झुलस रोग : बीमारी आने पर इसकी रोकथाम के लिए 20 मि.ली. स्टिकर के साथ मैनकोजेब या कॉपर ऑक्सीकलोराइड 300 ग्राम को 150 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।
 
आल्टरनेरिया पत्तों के धब्बे
ऑल्टरनेरिया पत्तों के धब्बा रोग : सुबह के समय प्रभावित पत्तों को निकाले और जला दें और टैबूकोनाज़ोल 50 प्रतिशत + ट्रिफ्लोक्सीट्रोबिन 25 प्रतिशत 120 ग्राम की प्रति एकड़ में स्प्रे करें या मैनकोजेब 2 ग्राम या कार्बेनडाज़िम 1 ग्राम को प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।
 

फसल की कटाई

पूरा फूल विकसित होने पर सुबह के समय फूलों की कटाई की जा सकती है और कटाई के बाद फूलों को ठंडी जगह पर रखना चाहिए।

कटाई के बाद

कटाई के बाद फूलों को आकार के अनुसार छांट लें।

रेफरेन्स

1.Punjab Agricultural University Ludhiana

2.Department of Agriculture

3.Indian Agricultural Research Instittute, New Delhi

4.Indian Institute of Wheat and Barley Research

5.Ministry of Agriculture & Farmers Welfare