हलवा कद्दू का उत्पादन

आम जानकारी

यह भारत की प्रसिद्ध सब्जी है जो कि बारिश के मौसम में उगाई जाती है। इसे "हलवा कद्दू" के नाम से भी जाना जाता है और यह कुकरबिटेसी परिवार से संबंधित है। भारत कद्दू के उत्पादन का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है। इसे खाना और मिठाई बनाने के लिए उपयोग किया जाता है। यह विटामिन ए और पोटाशियम का अच्छा स्त्रोत है। कद्दू नज़र तेज करने और रक्तचाप को कम करने में सहायक है और इसकी एन्टीऑक्सीडेंट विशेषताएं भी हैं। इसके पत्तों, तने, फल का रस और फूलों के औषधीय गुण भी हैं।

जलवायु

  • Season

    Temperature

    25-28°C

मिट्टी

कद्दू की फसल अच्छे निकास वाली दोमट मिट्टी जो जैविक तत्वों से भरपूर हो , में उगाई जाती है| कद्दू की खेती के लिए मिट्टी का  pH  6-7 होना चाहिए|

प्रसिद्ध किस्में और पैदावार

हाइब्रिड किस्में

PAU Magaz Kaddoo-1: यह किस्म 2018 में जारी हुई है। इस किस्म का प्रयोग खाने वाले बीज (मगज़ और स्नैक्स) बनाने के लिए किया जाता है। इसके बीज छिल्के रहित, बेलें छोटी और पत्ते गहरे हरे रंग के होते हैं। इस किस्म के फल दरमियाने, गोल और पकने के समय पीले रंग के हो जाते हैं। इस किस्म के बीज में 32 प्रतिशत ओमेगा-6, 3 प्रतिशत प्रोटीन और 27 प्रतिशत तेल होता है। इस किस्म के बीज का औसतन पैदावार 2.9 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।

PPH-1: यह किस्म 2016 में तैयार की गई है। यह ज्यादा जल्दी पकने वाली किस्म है। इसकी बेलें छोटे कद की, छोटे पोर वाली और गहरे हरे रंग के पत्ते होते हैं। इसके फल छोटे और गोल आकार के होते हैं। इसके फल जब अपरिपक्व होते हैं तब चितकबरा हरे रंग के होते हैं और पकने की अवस्था में ये चितकबरा भूरे रंग के हो जाते हैं। फल का गुद्दा सुनहरे पीले रंग का होता है। इसकी औसतन पैदावार 206 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।

PPH-2: यह किस्म 2016 में तैयार की गई है। यह ज्यादा जल्दी पकने वाली किस्म है। इसकी बेलें छोटे कद की, छोटे पोर वाली और गहरे हरे रंग के पत्ते होते हैं। इसके फल छोटे और गोल आकार में होते हैं। अपरिपक्व अवस्था में इसके फल हल्के हरे रंग के और पकने की अवस्था में नर्म भूरे रंग के हो जाते हैं| फल का गुद्दा सुनहरे पीले रंग का होता है। इसकी औसतन पैदावार 222 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।

Punjab Samrat (Released in 2008): इसकी बेलें सामान्य लंबी होती हैं। नुकीला तना और गहरे हरे रंग के पत्ते होते हैं। इसके फल छोटे और गोल आकार में होते हैं। अपरिपक्व अवस्था में इसके फल हरे रंग के और पकने की अवस्था में हल्के भूरे रंग के हो जाते हैं| फल का गुद्दा सुनहरे पीले रंग का होता है। इसकी औसतन पैदावार 165 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।

दूसरे राज्यों की किस्में

CO 2: यह किस्म 1974 में तैयार की गई है। प्रत्येक फल का औसतन भार 1.5-2 किलोग्राम होता है। फल का गुद्दा संतरी रंग का होता है। इसकी औसतन पैदावार 100 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। यह किस्म 135 दिनों में पक जाती है।

CO1, Arka Suryamukhi, Pusa Viswesh, TCR 011, Ambilli and Arka Chandan कद्दू की महत्तवपूर्ण किस्में हैं।

ज़मीन की तैयारी

कद्दू की खेती के लिए अच्छी तरह से तैयार ज़मीन की आवश्यकता होती है। मिट्टी को भुरभुरा करने के लिए ट्रैक्टर के साथ खेत की जोताई करें|

बिजाई

बिजाई का समय
बिजाई के लिए फरवरी-मार्च और जून-जुलाई का समय उचित है|

फासला
प्रत्येक जगह में दो बीज बोयें और 60 सैं.मी. फासले का प्रयोग करें। हाइब्रिड किस्मों के लिए, बीजों को बैड के दोनों तरफ 45 सैं.मी. के फासले पर बोयें

बीज की गहराई
मिट्टी में बीजों को 1 इंच की गहराई में बोयें।

बिजाई का ढंग

सीधे खेत में बिजाई करें।

बीज

बीज की मात्रा
एक एकड़ खेत के लिए 1किलोग्राम बीज उचित है|

बीज का उपचार
मिट्टी से पैदा होने वाली बीमारियों से बचाने के लिए बेनलेट या बविस्टन 2.5 ग्राम से प्रति किलो बीज का उपचार करें।

खाद

खादें (किलोग्राम प्रति एकड़)

NITROGEN PHOSPHORUS POTASSIUM
40 20 20

 

तत्व (किलोग्राम प्रति एकड़)

UREA
SSP MOP
90 125 35

 

बैडों को तैयार करने से पहले रूड़ी की खाद 8-10 टन डालें| खाद के तौर पर नाइट्रोजन 40 किलो (यूरिया 90 किलो), फासफोरस 20 किलो (सिंगल सुपर फासफेट 125 किलो) और पोटाशियम 20 किलो (मिउरेट ऑफ पोटाश 35 किलो) प्रति एकड़ में डालें। नाइट्रोजन की मात्रा को दो बराबर हिस्सों में डालें| नाइट्रोजन की आधी मात्रा बिजाई से पहले और बाकी बची हुई नाइट्रोजन की खाद 3-4 हफ्तों में खड़ी फसल पर छींटा दें|

खरपतवार नियंत्रण

नदीनों को रोकथाम के लिए, लगातार गोड़ाई और मिट्टी चढ़ाने की प्रक्रिया की आवश्यकता होती है। गोड़ाई कसी या हाथों द्वारा की जाती है। पहली गोड़ाई बिजाई के 2-3 हफ्तों बाद की जाती है। खेत को नदीन मुक्त बनाने के लिए कुल 3-4 गोड़ाईयों की आवश्यकता होती है।

सिंचाई

सही समय के अंतराल पर उचित सिंचाई आवश्यक होती है। बीज बोने के तुरंत बाद सिंचाई की आवश्यकता होती है। मौसम के आधार पर, 6-7 दिनों के अंतराल पर लगातार सिंचाई आवश्यक है। कुल 8-10 सिंचाई की आवश्यकता होती है।

पौधे की देखभाल

चेपा और थ्रिप
  • हानिकारक कीट और रोकथाम

चेपा और थ्रिप्स: ये कीट पत्तों का रस चूसते हैं जिससे पत्ते पीले होकर गिर जाते हैं। थ्रिप्स के कारण पत्ते मुड़ जाते हैं और कप के आकार की तरह हो जाते हैं या ऊपर की तरफ मुड़ जाते हैं।

यदि इसका हमला खेत में दिखाई दें तो थाइमैथोक्सम 5 ग्राम को 15 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।

कद्दू की मक्खी

कद्दू की मक्खी: इस कीट के कारण फल पर भूरे रंग के धब्बे पड़ जाते हैं और सफेद रंग के छोटे कीट फल पर विकसित होते हैं।

कद्दू की मक्खी की रोकथाम के लिए नीम के तेल 3.0 % की फोलियर स्प्रे करें।

सफेद फंगस
  • बीमारियां और रोकथाम

पत्तों पर सफेद धब्बे: प्रभावित पौधे के मुख्य तने और पत्तों की ऊपरी सतह पर सफेद रंग के धब्बे पड़ जाते हैं। इसके कीट पौधे को अपने भोजन के रूप में प्रयोग करते हैं। इसके ज्यादा हमले से पत्ते गिरने लगते हैं और फल समय से पहले ही पक जाते हैं।

यदि इसका हमला दिखाई दें तो पानी में घुलनशील सल्फर 20 ग्राम को 10 लीटर में मिलाकर 10 दिनों के अंतराल पर 2-3 बार स्प्रे करें।

पत्तों के निचली सतह पर धब्बे

पत्तों के निचली सतह पर धब्बे: यह रोग सियुडोपरनोस्पोरा क्यूबेनसिस के कारण होता है। इससे पत्तों की निचली सतह पर चितकबरे और जामुनी रंग के धब्बे देखे जा सकते हैं।

यदि इसका हमला दिखाई दें तो 400 ग्राम डाईथेन एम-45 या डाईथेन Z-78 का प्रयोग इस बीमारी से बचाव के लिए किया जाता है।

एंथ्राक्नोस

एंथ्राक्नोस: एंथ्राक्नोस से प्रभावित पत्ते झुलसे हुए दिखाई देते हैं।

इससे बचाव के लिए कार्बेनडाज़िम 2 ग्राम से प्रति किलो बीज का उपचार करें। यदि इसका हमला खेत में दिखाई दें तो मैनकोजेब 2 ग्राम या कार्बेनडाज़िम 3 ग्राम को प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।

सूखा

सूखा: इस बीमारी के कारण जड़ गलन होता है।

यदि इसका हमला दिखाई दें, तो 400ग्राम एम-45 को 100 लीटर पानी में मिलाकर डालें|

फसल की कटाई

मुख्य रूप से फल के छिल्के का हल्का भूरा रंग होने पर और अंदरूनी गुद्दा सुनहरे पीले रंग का होने पर तुड़ाई की जाती है। लंबी दूरी वाले स्थानों पर ले जाने के लिए पके फलों का अच्छे से भंडारण किया जाता है। बिक्री उद्देश्य से अपरिपक्व फलों की तुड़ाई की जाती है।

बीज उत्पादन

कद्दू की अन्य किस्मों से फाउंडेशन बीज के लिए 1000 मीटर और प्रमाणित बीज उत्पादन के लिए 500 मीटर का फासला रखें। खेत में से बीमार पौधों को निकाल दें। जब फल पक जाते तो रंग बदलकर गहरा हो जाता है। उसके बाद उन्हें ताज़े पानी में हाथों से तोड़ा जाता है और गुद्दे में से बीजों को अलग कर लिया जाता है। जो बीज नीचे सतह पर बैठ जाते हैं उन बीजों को बीज उद्देश्य के लिए इक्ट्ठा कर लिया जाता है।