ब्राह्मी  की फसल

आम जानकारी

ब्राह्मी का बानस्पतिक नाम बैकोपा मोनिएरी है और यह सक्रोफुलेरीएसी  प्रजाति से संबंध रखती है। यह आमतौर पर गर्म और नमी वाले इलाकों में पायी जाती है। पूरी जड़ी बूटी, जैसे कि इसके बीज, जड़ें, पत्ते, गांठे आदि का प्रयोग अलग अलग तरह की दवाइयां बनाने के लिए किया जाता है। ब्राह्मी से तैयार दवाई कैंसर के विरूद्ध और अनीमिया, दमा, मूत्र वर्धक, रसौली और मिरगी आदि के इलाज के लिए प्रयोग की जाती है। इसका प्रयोग सांप के काटने पर भी इलाज के तौर पर भी किया जाता है। यह एक वार्षिक जड़ी बूटी है, जिसका कद 2-3 फीट होता है और इसकी जड़ें गांठों से फैली होती हैं। इसके फूलों का रंग सफेद या पीला-नीला होता है और फल छोटे और अंडाकार होते हैं। इसके बीजों का आकार 0.2-0.3 मि.ली. और रंग गहरा-भूरा होता है। उत्तरी और दक्षिणी अमेरिका, यूरोप, ऑस्ट्रेलिया, दक्षिणी भारत, एशिया और अफ्रीका आदि ब्राह्मी पैदा करने वाले मुख्य देश हैं।

जलवायु

  • Season

    Temperature

    33-40°C
  • Season

    Rainfall

    650-830 mm
  • Season

    Sowing Temperature

    25-30°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    20-25°C
  • Season

    Temperature

    33-40°C
  • Season

    Rainfall

    650-830 mm
  • Season

    Sowing Temperature

    25-30°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    20-25°C
  • Season

    Temperature

    33-40°C
  • Season

    Rainfall

    650-830 mm
  • Season

    Sowing Temperature

    25-30°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    20-25°C
  • Season

    Temperature

    33-40°C
  • Season

    Rainfall

    650-830 mm
  • Season

    Sowing Temperature

    25-30°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    20-25°C

मिट्टी

इसे बहुत तरह की मिट्टी में उगाया जा सकता है। यह घटिया निकास प्रबंध को भी सहन कर सकती है। यह सैलाबी दलदली मिट्टी में अच्छी पैदावार देती है। इसे दलदली इलाकों, नहरों और अन्य जल स्त्रोतों के पास उगाया जा सकता है। इसके अच्छे विकास के लिए इसे तेजाबी मिट्टी की जरूरत होती है।

प्रसिद्ध किस्में और पैदावार

Pragyashakti: यह किस्म सी आई एम ए पी, लखनऊ की तरफ से तैयार की गई है। इस किस्म में 1.8-2 प्रतिशत बैकोसाइड होता है और यह ज्यादा से ज्यादा स्थानीय लोगों के लिए प्रयोग की जाती है।

Subodhak: इस किस्म को भी सी आई एम ए पी, लखनऊ की तरफ से तैयार किया गया है। इस किस्म में 1.8-2 प्रतिशत बैकोसाइड होता है और यह ज्यादा से ज्यादा स्थानीय लोगों के लिए प्रयोग की जाती है।

ज़मीन की तैयारी

ब्राह्मी की खेती के लिए, भुरभुरी और समतल मिट्टी की जरूरत होती है। मिट्टी को अच्छी तरह भुरभुरा बनाने के लिए, खेत को जोतें और फिर हैरों का प्रयोग करें। जब ज़मीन को प्लाटों में बदल दिया जाये तो तुरंत सिंचाई करें। जोताई करते समय 20 क्विंटल रूड़ी की खाद डालें और मिट्टी में अच्छी तरह मिला दें।

बिजाई

बिजाई का समय
इसकी बिजाई मध्य जून या जुलाई महीने के शुरू में कर लेनी चाहिए।

फासला
पनीरी वाले पौधों का रोपण् 20x20 सैं.मी. के फासले पर करें।

बिजाई का ढंग
इसकी बिजाई मुख्य खेत में पनीरी लगा कर की जाती है।

बीज

बीज की मात्रा
एक एकड़ खेत में बिजाई के लिए लगभग 25000 कटे हिस्सों की जरूरत होती है।

पनीरी की देख-रेख और रोपण

जड़ों वाले पौधे तैयार किए बैडों पर बोयें। जब पनीरी वाले पौधे 4-5 सैं.मी. लंबे हो जाये तो रोपण करें और 20x20 सैं.मी. के फासले पर बोयें। रोपण करने के तुरंत बाद सिंचाई करें।

आमतौर पर मार्च-जून महीने में रोपण किया जाता है। पौधे के अच्छे विकास के लिए सिंचाई निश्चित फासले पर करें। कटाई सितंबर महीने में करनी चाहिए।

खाद

खादें(किलोग्राम प्रति एकड़)

UREA   SSP MURIATE OF POTASH
87  150 40

 

तत्व(किलोग्राम प्रति एकड़)

NITROGEN PHOSPHORUS POTASH
40 24 24

 

खेत की तैयारी के समय 20 क्विंटल रूड़ी की खाद डालें और अच्छी तरह मिट्टी में मिलायें। इसके इलावा नाइट्रोजन 40 किलो (87 किलो यूरिया), फासफोरस 24 किलो (150 किलो सिंगल सुपर फासफेट) और पोटाश 24 किलो (40 किलो म्यूरेट ऑफ पोटाश) की मात्रा प्रति एकड़ में प्रयोग करें। फासफोरस और पोटाश को शुरूआती खाद के तौर पर डालें और नाइट्रोजन को 3 हिस्सों में डालें। पहला हिस्सा बिजाई के 30 दिन बाद, फिर दूसरा हिस्सा 60-70 दिन बाद और तीसरा हिस्सा 90 दिनों के बाद डालें।

खरपतवार नियंत्रण

खेत को नदीन मुक्त रखने के लिए हाथों से गोडाई करें। पहली गोडाई पनीरी लगाने के 15-20 दिनों के बाद और फिर दूसरी गोडाई 2 महीनों के फासले पर करें।

सिंचाई

यह वर्षा ऋतु की फसल है, इसलिए इसे वर्षा ऋतु खत्म होने के बाद तुरंत पानी की आवश्यकता होती है। सर्दियों में 20 और गर्मियों में 15 दिनों के फासले पर सिंचाई करें।

पौधे की देखभाल

घास का टिड्डा
  • हानिकारक कीट और रोकथाम

घास का टिड्डा: यह कीट हरे पौधे खाते हैं। यह पत्तों और पौधे के हिस्सों को नष्ट कर देते हैं।

इसकी रोकथाम के लिए नुवोक्रोन 0.2 % या नीम से बने कीटनाशकों की स्प्रे करें।

फसल की कटाई

पनीरी लगाने के 5-6 महीने बाद पौधा उपज देनी शुरू कर देता है। इसकी कटाई अक्तूबर-नवंबर महीने में की जाती है। कटाई के लिए पौधे का जड़ से ऊपर वाला हिस्सा जो कि 4-5 सैं.मी. होता है, को काटा जाता है। एक वर्ष में 2-3 कटाई की जा सकती है।

कटाई के बाद

कटाई के बाद ताजी सामग्री को छांव में सुखाया जाता है। फिर लंबी दूरी पर ले जाने के लिए हवा-मुक्त पैकटों में पैक कर लिया जाता है। इस सूखी हुई सामग्री से बहुत सारे उत्पाद जैसे कि ब्राह्मीघृतम, सरस्वतरिस्तम, ब्राह्मीताइलम, मिसराकसनिहाम, मैमरी पलस आदि तैयार किए जाते हैं।

रेफरेन्स

1.Punjab Agricultural University Ludhiana

2.Department of Agriculture

3.Indian Agricultural Research Instittute, New Delhi

4.Indian Institute of Wheat and Barley Research

5.Ministry of Agriculture & Farmers Welfare