देश के लगभग सभी राज्यों में केले की खेती की जाती है। लेकिन दक्षिण भारत में इसकी खेती बड़े पैमाने पर की जाती है। केले में कई ऐसे पोषक तत्व पाए जाते हैं। जो हमारी सेहत के लिए बहुत उपयोगी माने जाते हैं। वहीं, केले का इस्तेमाल आमतौर पर सब्जी, आटा, चिप्स के रूप में भी किया जाता है।
केला एक ऐसा फल है, जिसका इस्तमाल ना केवल खाने में किया जाता है, बल्कि इसका पूजा पाठ में भी बहुत महत्व होता है। इसी कड़ी में केले की बढती मांग को लेकर बिहार सरकार भी किसानों को प्रोत्साहित कर रही है। इसकी खेती को बढ़ावा देने के लिए बिहार के सुपौल जिले के किसानों को केले की उन्नत किस्म जी-9 की खेती के प्रति जागरूक किया जा रहा है।
सरकार के मानना है कि केले की यह किस्म किसानों के लिए काफी लाभदायी होगी। यह उत्पादन के साथ-साथ पैदवार के मामले में भी अच्छी किस्म साबित होगी।
केले की जी-9 किस्म की खासियत
- इसकी उत्पादन क्षमता अधिक होती है।
- यह किस्म पकने के बाद भी लंबे समय तक खराब नहीं होता है।
- केले के पौधे अक्सर आंधी-तूफान में बड़े पैमाने पर क्षतिग्रस्त हो जाते हैं, लेकिन यह मध्यम स्तर के आंधी-तूफान को बर्दाश्त करने में सक्षम हैं।
- इस किस्म में रोग लगने का खतरा कम होता है।
- इसके पौधे छोटे और मजबूत होते हैं।
- इसकी फसल का अच्छा उत्पादन मिलता है।
इसके अलावा केले की दूसरी किस्म 14 से 15 महीने तैयार होती है, लेकिन जी-9 किस्म 9 से 10 महीने में तैयार हो जाती है।
किसानों को दिया गया प्रशिक्षण
इसके अलावा केले की इस किस्म की खेती को बढ़ावा देने के लिए बिहार राज्य में स्थानीय बीएसएस कालेज में किसानों को उन्नत एवं उच्च उत्पादक किस्म के जी-9 केले के 10-10 पौधे देते हुए इसकी खेती का आत्मा द्वारा प्रशिक्षण दिया गया। जिसमें किसानों को केले की खेती, प्रबंधन, बीमारियों की रोकथाम आदि की जानकारी किसानों को दी गयी। इसके अलावा बीएसएस कालेज के प्राचार्य सह प्रधान अन्वेषक पादप उत्तक संवर्द्धन अनुसंधान प्रयोगशाला के प्रोफेसर द्वारा मिली जानकारी के अनुसार बताया गया कि 55 किसानों को उत्तक संवर्द्धन तकनीक से विकसित केले के उच्च उत्पादक एवं उन्नत किस्म जी-9 के 10 पौधे ट्रायल के लिए दिए गए हैं जो इस प्रयोगशाला में विकसित किए गए हैं।
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स्रोत: Krishi Jagran