सतीश आमेटा का अनूठा शोध, अब गाजरघास से बनेगी विशिष्ट कम्पोस्ट खाद

July 20 2021

गाजर घास (Carrot Grass) का पर्यावरण (Environment) के लिए खराब माना जाता है, लेकिन वैज्ञानिकों ने अब इस घास से खाद बनाने का आविष्कार कर किसानों को राहत देने की शुरुआत कर दी है। जिला पर्यावरण समिति उदयपुर और फॉस्टर भारतीय पर्यावरण सोसायटी इंटाली के संयुक्त तत्वावधान में गाजर घास से विशिष्ट कम्पोस्ट खाद निर्माण तकनीक का आविष्कार किया गया है। गाजर घास विश्वभर में पर्यावरण की समस्या बनी हुई है।

नेशनल नवाचार खोज कार्यक्रम के कोऑर्डिनेटर ललित नारायण आमेटा के अनुसार विश्वभर में पर्यावरण की प्रमुख समस्या बनी गाजर घास (पार्थेनियम) से मनुष्यों, जानवरों फसलों सहित पूरे पारिस्थितिकी तंत्र को देश में सालाना करोड़ों रुपए का नुकसान होता है। इसे नियंत्रण करने के लिए रासायनिक तरीके बहुत ही महंगे होते हैं और पर्यावरण को भी हानि होती है।

इन सभी समस्याओं का समाधान को लेकर उदयपुर जिले के कुराबड़ गांव निवासी असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. सतीश कुमार आमेटा ने अपने शोध पत्र में दो साल के अथक प्रयास से विश्व पर्यावरण की समस्या बनी गाजर घास का समाधान कर एक विशिष्ट कम्पोस्ट खाद का निर्माण किया। इस तकनीक से बनी खाद में नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटेशियम की मात्रा साधारण हरित खाद से तीनगुना आंकलन अधिक किया गया, जो किसानों के लिए एक वरदान सिद्ध होगा। वर्तमान में मेवाड़ यूनिवर्सिटी गंगरार चित्तौड़गढ़ में असिस्टेंट प्रोफेसर पद पर कार्यरत डॉ. आमेटा के इस शोध से गाजर घास के उन्मूलन और इससे किसानों को जैविक खाद की प्राप्ति दोनों रूप में फायदा मिलेगा।

इस तरह बनेगी गाजरघास से खाद

इस तकनीक में व्यर्थ कार्बनिक पदार्थों जैसे गोबर, सूखी पत्तियां, फसलों के अवशेष, राख, लकड़ी का बुरादा आदि का एक भाग एवं चार भाग गाजर घास को इस अनुपात में मिलाकर लकड़ी के बनाये एक डिब्बे में भरा जाता है। इस डिब्बे के चारों ओर छेद किये जाते हैं, ताकि हवा का प्रवाह समुचित बना रहे और गाजर घास का खाद के रूप में अपघटन शीघ्रता से हो सकें. इसमें रॉक फॉस्फेट एवं ट्राइकोडर्मा कवक का प्रयोग करके खाद में पोषक तत्वों की मात्रा को बढ़ाया जा सकता है।

इस तरह निरंतर पानी का छिड़काव कर एवं इस मिश्रण को निश्चित समयांतराल में पलट कर हवा उपलब्ध कराने पर मात्र 2 महीने में गाजर घास से जैविक खाद का निर्माण किया जा सकता है। डॉ. सतीश आमेटा का यह शोध ईरान की एक प्रतिष्ठित शोध पत्रिका में प्रकाशित हो चुका है। इससे प्राप्त जानकारी से काश्तकार गाजर घास (पार्थेनियम) को फसल के खाद रूप में उपयोग ले सकते हैं जो पर्यावरण को सुरक्षित रखेगा।

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स्रोत: News 18