धारवाड़ की भैंस को मिली राष्ट्रीय मान्यता, अब यह देसी नस्ल दुनिया भर में लोकप्रिय होने की राह पर

September 17 2021

कर्नाटक के धारवाड़ की देसी नस्ल की भैंस को अब राष्ट्रीय मान्यता (Buffalo gets National recognition) मिल गई है। कर्नाटक की यह पहली देसी नस्ल है जिसे यह महत्व मिला है। इस भैंस को स्थानीय लोग धारवाड़ी येम्मे (कन्नड़ में भैंस को येम्मे बोला जाता है) कहते हैं। अब इस नस्ल का संरक्षण होगा और विकास भी. धारवाड़ी भैंस इस तरह से, 17वीं देसी नस्ल है जिसे मान्यता मिली है।

धारवाड़ अपने स्वादिष्ट पेड़ा और अपनी बुनाई के लिए भी प्रसिद्ध है और अब पशुपालन के क्षेत्र में भी इसकी प्रसिद्धि फैल गयी है। धारवाड़ का पेड़ा दुनिया भर में मशहूर है और कहा जाता है कि इसके लिए यहां के देसीन स्ल के पशु ज़िम्मेदार हैं। अब धारवाड़ी भैंस को इसका कुछ श्रेय मिल गया है। धारवाड़ी पेड़ा में इसी भैंस के दूध से प्राप्त होने वाले घी का प्रयोग होता है। इन भैसों के दूध से बननेवाला पेड़ा सबसे ज़्यादा स्वादिष्ट होता है।

शोध और मान्यता 

राष्ट्रीय पशु आनुवंशिक संसाधन ब्यूरो (NBAGR), हरियाणा नस्ल के बारे में व्यापक शोध के बाद उसे मान्यता देता है। धारवाड़ी भैंस को जो एक्सेशन नंबर दिया गया है वह है INDIA_BUFFALO_0800_DHARWADI_01018 और यह देश की 17वीं मान्यताप्राप्त नस्ल है। अब इस नस्ल का दुनियाभर में इस कोड के सहारे इस पर शोध और अध्ययन होगा और उसे पहचान मिलेगी। धारवाड़ के कृषि विश्वविद्यालय के पशुपालन विज्ञान विभाग ने इस स्थानीय नस्ल को मान्यता दिलाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की है।

डॉक्टर विश्वनाथ कुलकर्णी के नेतृत्व में विभाग ने इस नस्ल पर 2014 से 2017 के बीच व्यापक शोध किया और राष्ट्रीय पशु आनुवंशिक संसाधन ब्यूरो को अपनी रिपोर्ट भेजी। उन्होंने कहा, ‘भैंस के साइज़, उसके आकार, उसकी विशेषताएं, दूध उत्पादन और प्रजनन क्षमता और इनके अलावा इसके DNA का विस्तृत विश्लेषण यहां किया गया। अर्ध चंद्राकार सिंग, और इसका धुप्प काला रंग इस नस्ल की भैंस की आम विशेषता मानी गई। धारवाड़ी भैंस लगभग 335 दिनों के एक चक्र के दौरान 980 लीटर तक दूध दे सकती है। इसके दूध में वसा (फ़ैट) 7% और दूसरे नॉन-फ़ैट पदार्थ 9.5% होते हैं। मुझे ख़ुशी है कि इस बारे में हुए सभी शोधों ने अच्छा परिणाम दिया और इस नस्ल को मान्यता मिल गयी.’ इस बारे में शोध उस समय शुरू हुआ जब डॉक्टर कुलकर्नी पशुपालन विज्ञान विभाग के प्रमुख थे। इस समय वह शोधकर्ता हैं और संस्थान का निर्देशन करते हैं।

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स्रोत: News 18