कृषि

जलवायु
-
Temperature
15-30°C -
Rainfall
400-500mm -
Sowing Temperature
25-30°C -
Harvesting Temperature
15-20°C
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मिट्टी
इसे मिट्टी की कई किस्मों, रेतली दोमट से चिकनी मिट्टी में उगाया जा सकता है। अच्छे निकास वाली मिट्टी जिसकी पी एच 6 से 7.5 हो, में उगाने पर यह अच्छे परिणाम देती है। यह फसल जलजमाव वाले हालातों में खड़ी नहीं रह सकती। अम्लीय मिट्टी के लिए, चूना डालें।
प्रसिद्ध किस्में और पैदावार
ज़मीन की तैयारी
बिजाई
बीज
फंगसनाशी /कीटनाशी दवाई | मात्रा (प्रति किलोग्राम बीज) |
Captan | 3gm |
Thiram | 3gm |
Carbendazim | 2.5gm |
खाद
खादें (किलोग्राम प्रति एकड़)
UREA | SSP | MOP |
30 | 150 | 30 |
तत्व (किलोग्राम प्रति एकड़)
NITROGEN | PHOSPHORUS | POTASH |
13 | 24 | 18 |
बिजाई के समय नाइट्रोजन 13 किलो (30 किलो यूरिया), फासफोरस 24 किलो (150 किलो सिंगल सुपर फासफेट) और पोटाश 18 किलो (म्यूरेट ऑफ पोटाश 30 किलो) की मात्रा प्रति एकड़ में प्रयोग करें। फासफोरस, पोटाश की पूरी मात्रा और नाइट्रोजन की आधी मात्रा बिजाई के समय डालें । बाकी बची नाइट्रोजन को बिजाई के एक महीने बाद डालें। छोटे कद की किस्मों के लिए नाइट्रोजन की 8 किलो मात्रा बिजाई के समय डालें।
खरपतवार नियंत्रण
एक या दो गोडाई करना यह किस्म पर निर्भर करता है। पहली गोडाई, फसल की बिजाई के 3-4 सप्ताह बाद या जब फसल 2 या 3 पत्ते निकाल लेती है और दूसरी गोडाई, फूल निकलने से पहले करें। मटरों की खेती के लिए नदीन नाशकों का प्रयोग बहुत प्रभावशाली होता है। फ्लूक्लोरालिन 45 ई सी 800 मि.ली. को 100-150 लीटर पानी में मिलाकर बीज बोने से पहले खेत में डालें। नदीनों की रोकथाम के लिए पैंडीमैथालीन 1 लीटर प्रति एकड़ या बसालिन 1 लीटर प्रति एकड़ का प्रयोग फसल बीजने से 48 घंटों के अंदर करें।
सिंचाई
बिजाई के बाद 1-2 सिंचाइयों की आवश्यकता होती है। पहली सिंचाई फूल निकलने से पहले और दूसरी सिंचाई फलियां बनने की अवस्था में करें। ज्यादा सिंचाई करने से पौधे पीले रंग के हो जाते हैं जिससे उपज में कमी आती है।
पौधे की देखभाल

- हानिकारक कीट और रोकथाम



- बीमारियां और रोकथाम


फसल की कटाई
हरी फलियों की उचित अवस्था पर तुड़ाई करनी चाहिए। मटर का रंग गहरे हरे से हरा होने पर जितनी जल्दी हो सके तुड़ाई कर लेनी चाहिए। 6 से 10 दिनों के अंतराल पर 4 से 5 तुड़ाइयां की जा सकती हैं। उपज किस्म, मिट्टी की उपजाऊ शक्ति और खेत में इसके प्रबंधन पर निर्भर करती है।
कटाई के बाद
हरी फलियों की लंबे समय तक उपलब्धता बढ़ाने के लिए उन्हें कम तापमान पर स्टोर किया जाता है। पैकिंग जूट की बोरियों, प्लास्टिक के कंटेनर और बांस की टोकरियों में की जाती है।