कृषि

जलवायु
-
Temperature
46-48°C -
Rainfall
630-800 mm -
Sowing temperature
22-30°C -
Harvesting temperature
8-15°C
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Temperature
46-48°C -
Rainfall
630-800 mm -
Sowing temperature
22-30°C -
Harvesting temperature
8-15°C
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Rainfall
630-800 mm -
Sowing temperature
22-30°C -
Harvesting temperature
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46-48°C -
Rainfall
630-800 mm -
Sowing temperature
22-30°C -
Harvesting temperature
8-15°C
मिट्टी
इसके सख्त होने की वजह से इसे मिट्टी की हर किस्म में उगाया जा सकता है। इसे हल्की तेजाबी और नमकीन और चूने वाली मिट्टी में उगाया जा सकता है| अगर इसकी खेती बढ़िया जल निकास वाली और उपजाऊ-दोमट मिट्टी में की जाती है तो यह अच्छी पैदावार देती है। यह खारी मिट्टी को भी सहयोग्य है। इस फसल की खेती के लिए मिट्टी की pH 6.5-9.5 होना चाहिए। भारी ज़मीनों में इसकी खेती करने से परहेज करें।
प्रसिद्ध किस्में और पैदावार
ज़मीन की तैयारी
आंवला की खेती के लिए अच्छी तरह से जोताई और जैविक मिट्टी की आवश्यकता होती है। मिट्टी को अच्छी तरह से भुरभुरा बनाने के लिए बिजाई से पहले ज़मीन की जोताई करें| जैविक खाद जैसे कि रूड़ी की खाद को मिट्टी में मिलायें। फिर 15×15 सैं.मी. आकार के 2.5 सैं.मी. नर्सरी बैड तैयार करें।
बिजाई
बीज
खाद
तत्व (किलोग्राम प्रति एकड़)
NITROGEN | PHOSPHORUS | POTASH |
100 | 50 | 100 |
खेत की तैयारी के समय मिट्टी में 10 किलो रूड़ी की खाद अच्छी तरह मिलाएं। एक वर्ष के पौधे के लिए, खेत में नाइट्रोजन 100 ग्राम, फासफोरस 50 ग्राम और पोटाश्यिम 100 ग्राम प्रति पौधा डालें। 10 साल तक खाद की मात्रा बढ़ते रहें। फासफोरस की पूरी और पोटाशियम और नाइट्रोजन की आधी मात्रा को जनवरी-फरवरी में शुरूआती खुराक के तौर पर डालें। बाकी की मात्रा अगस्त के महीने में डालें| सोडियम की ज्यादा मात्रा वाली मिटटी में, बोरोन और ज़िंक सल्फेट 100-150 ग्राम पौधे की आयु और सेहत के अनुसार डालें|
खरपतवार नियंत्रण
सिंचाई
गर्मियों में सिंचाई 15 दिनों के फासले पर करें और सर्दियों में अक्तूबर दिसंबर के महीने में हर रोज़ तुपका सिंचाई द्वारा 25-30 लीटर प्रति वृक्ष डालें। मानसून के मौसम में सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती। फूल निकलने के समय सिंचाई ना करें।
पौधे की देखभाल

- हानिकारक कीट और रोकथाम


- बीमारीयां और रोकथाम


फसल की कटाई
बिजाई से 7-8 साल बाद पौधे पैदावार देना शुरू कर देते है। जब फूल हरे रंग के हो जाएं और इनमें विटामिन सी की अधिक मात्रा हो जाए तो फरवरी के महीने में तुड़ाई कर दें। इसकी तुड़ाई वृक्ष को ज़ोर-ज़ोर से हिलाकर की जाती है। जब फल पूरी तरह से पक जाते हैं तो यह हरे पीले रंग के हो जाते हैं। बीजों के लिए पके हुए फूलों का प्रयोग किया जाता है।