कृषि

जलवायु
-
Temperature
18-40°C -
Rainfall
625-1500mm -
Sowing Temperature
35-40°C -
Harvesting Temperature
35-40°C
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मिट्टी
मिर्च रेतली से भारी चिकनी हर तरह की मिट्टी में उगाई जा सकती है। अच्छे विकास के लिए हल्की उपजाऊ और पानी के अच्छे निकास वाली ज़मीन जिसमे नमी सोखने की क्षमता हो, इसके लिए अनुकूल होती है। हल्की ज़मीनें भारी ज़मीनों के मुकाबले अच्छी क्वालिटी की पैदावार देती हैं। मिर्च के अच्छे विकास के लिए ज़मीन की pH 6-7 अनुकूल है।
प्रसिद्ध किस्में और पैदावार
Arka Meghana: यह हाइब्रिड किस्म अधिक पैदावार वाली और पत्तों के धब्बे रोग की प्रतिरोधक है। इसके फलों की लंबाई 10.6 सैं.मी. और चौड़ाई 1.2 सैं.मी. होती है। इसके फल शरू में गहरे हरे और पकने के बाद लाल हो जाते हैं। इसकी औसतन पैदावार 135 क्विंटल (हरी मिर्चें) और 20 क्विंटल (सूखी मिर्चें) प्रति एकड़ है।
Arka Sweta: यह हाइब्रिड किस्म अधिक पैदावार वाली और ताज़ा मंडी में बेचनेयोग्य है। यह सिंचित स्थितियों में खरीफ और रबी दोनों में उगाई जा सकती है। इसके फल की लंबाई 11-12 सैं.मी. चौड़ाई 1.2-1.5 सैं.मी. होती है। इसके फल नर्म और दरमियाने कड़वे होते हैं। फल शुरू में हल्के हरे और पकने के बाद लाल हो जाते हैं। यह विषाणुओं को सहनयोग्य किस्म है। इसकी औसतन पैदावार 130 क्विंटल (हरी मिर्चें) और 20 क्विंटल (सूखी मिर्चें) प्रति एकड़ है।
Kashi Early: इस किस्म के पौधे का कद लंबा (100-110 सैं.मी.) होता है। इसका तना हल्के हरे रंग का बिना टहनियों वाला होता है। इसके फल कड़वे, लंबे (8-9x1.0-1.2 सैं.मी.), आकर्षिक, शरू में गहरे हरे जो पकने के बाद चमकीले लाल हो जाते हैं। इस किस्म के हरी मिर्च की पहली तुड़ाई पनीरी लगाने के 45 दिन बाद की जा सकती है। इसकी औसतन पैदावार 100 क्विंटल (पकी हुई लाल) होती है।
Kashi Surkh: इस किस्म के पौधे छोटे कद के होते हैं, जिनका तना टहनियों वाला होता है। इसके फल हल्के हरे, सीधे, लंबे 11-12 सैं.मी. होते हैं। यह हरी और लाल दोनों तरह की मिर्चें उगाने योग्य किस्म है। इसकी पहली तुड़ाई पनीरी लगाने के 55 दिनों के बाद की जा सकती है। इसमें हरी मिर्च की औसतन पैदावार 100 क्विंटल प्रति एकड़ है।
Kashi Anmol: इस किस्म के पौधे दरमियाने कद के (60-70 सैं.मी.) होते हैं, जिनका तना टहनियों वाला होता है और यह आकर्षिक, हरे, कड़वे फल पैदा करता है। इसकी पहली तुड़ाई पनीरी लगाने के 55 दिनों के बाद की जा सकती है। इसकी औसतन पैदावार 80 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
Pant C-1: यह किस्म अन्य किस्मों से आसानी से अलग है क्योंकि इसके फल की फलियां सीधी होती हैं। इसके फल अत्याधिक तीखे, आकार में छोटे, आधार चौड़ा और सिरा पतला होता है। यह किस्म चितकबरा और पत्ता मरोड़ रोग की कुछ हद तक प्रतिरोधक है। इस किस्म की हरी फलियों की औसतन पैदावार 110 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। सूखी फलियों की पैदावार 20 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
Kashmir Chilly : यह किस्म लंबी और गुद्दे वाली गहरे लाल रंग की होती है। यह सर्दियों में खेती के लिए उपयुक्त है।
Hot Portugal: इसके फल गहरे हरे रंग के होते हैं लेकिन पकने पर लाल रंग के हो जाते हैं। इसके फल 11-15 सैं.मी. लंबे होते हैं और औसतन पैदावार 40-50 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
Soorajmukhi: इस किस्म का पौधा छोटा, फल गहरे रंग के, पकने पर लाल रंग के और स्वाद में अत्याधिक कड़वे होते हैं। एक गुच्छे में 8-12 फल होते हैं। इसकी औसतन पैदावार 31-40 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
Sweet Banana: फल हल्के पीले रंग के होते हैं जो पकने पर लाल रंग के हो जाते हैं। इसके फल 18-20 सैं.मी. लंबे होते हैं और स्वाद में अत्याधिक कड़वे होते हैं। इसकी औसतन पैदावार 40 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
Hungarian Wax: फल पकने पर लाल रंग के हो जाते हैं, 10-16 सैं.मी. लंबे और स्वाद में थोड़े कड़वे होते हैं। इसकी औसतन पैदावार 31-33 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
दूसरे राज्यों की किस्में
Pusa Jwala: इस किस्म के पौधे छोटे कद के, झाड़ियों वाले और हल्के हरे रंग के होते हैं। इसके फल 9-10 सैं.मी. लंबे, हल्के हरे और बहुत तीखी होती है। यह किस्म थ्रिप्स और मकौड़ा जुंओं की प्रतिरोधक है। इसकी औसतन पैदावार 85 क्विंटल (हरी मिर्च) और 18 क्विंटल (सूखी मिर्च) प्रति एकड़ होती है।
Pusa Sadabahar: इसके पौधे सीधे, सदाबहार (2-3 वर्ष), 60-80 सैं.मी. कद के होते हैं। इसके फल 6-8 सैं.मी. लंबे होते हैं। फल गुच्छों में लगते हैं और प्रत्येक गुच्छे में 6-14 फल होते हैं। पकने के समय फल गहरे लाल रंग के और कड़वे होते हैं। यह किस्म CMV, TMV और पत्ता मरोड़ की रोधक है। इसकी पहली तुड़ाई पनीरी लगाने के 75-80 दिनों बाद की जा सकती है। इसकी औसतन पैदावार 95 क्विंटल (हरी मिर्चें) और 20 क्विंटल (सूखी मिर्चें) प्रति एकड़ है।
NP-46A: यह उच्च उपज वाली किस्म है इसके मध्यम आकार के फल होते हैं। इसकी औसतन पैदावार 40 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
G 5 : मिर्च मोटी, चमकदार और गहरे लाल रंग की होती है। इसकी औसतन पैदावार 20 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
G 3 : यह बारानी और सिंचित हालातों में उगाने के लिए उपयुक्त किस्म है। इस किस्म की मिर्च अत्याधिक तीखी होती है। इसकी औसतन पैदावार 16 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
Pant C 2, Jawahar, Mathaniya Long, RCH 1
Kashi Vishwanath
Sankeshwar: यह हल्के स्वाद, लंबी और लाल रंग की किस्म है। यह निर्यात के लिए उपयुक्त किस्म है।
Byadgi (Kaddi) : यह हल्के स्वाद, लंबी और गहरे लाल रंग की किस्म है।
Dabbi: यह हल्के स्वाद, लंबी और मोटी काले रंग की किस्म है।
Tomato chilly
Tadappally
S9 Mundu, Sattur s4, Sangli Sannam, Nalchetti, Nagpur, Madras Pari, , Kanthari white, Guntur Sannam, Ellachipur Sannam.
ज़मीन की तैयारी
खेत को तैयार करने के लिए 2-3 बार जोताई करें और प्रत्येक जोताई के बाद डलियों को तोड़ें। बिजाई से 15-20 दिन पहले रूड़ी की खाद 150-200 क्विंटल प्रति एकड़ डालकर मिट्टी में अच्छी तरह मिला दें। टमाटर और मिर्च की खेती एक ही या नज़दीक वाले खेत में ना करें, क्योंकि दोनों की बीमारियां एक जैसी होती हैं और इस कारण एंथ्राक्नोस और बैक्टीरिया वाली बीमारीयों के बढ़ने का खतरा बढ़ जाता है।
बिजाई
बीज
खाद
खादें (किलोग्राम प्रति एकड़)
UREA | SSP | MOP | |
Rainfed | 110 | 100 | 35 |
Irrigated | 182 | 150 | 40 |
तत्व (किलोग्राम प्रति एकड़)
NITROGEN | PHOSPHORUS | POTASH | |
Rainfed | 50 | 16 | 20 |
Irrigated | 84 | 24 | 24 |
खरपतवार नियंत्रण
45 दिनों तक गोडाई करें, कही की मदद से मिट्टी चढ़ाएं और खेत को नदीन मुक्त रखें। यदि नदीनों की रोकथाम ना की जाये तो यह 70-90 % पैदावार कम कर देते हैं। रोपाई से पहले मुख्य खेत में पैंडीमैथालीन 1 लीटर प्रति एकड़ में डालें। यदि नदीनों की संख्या ज्यादा हो तो उनके अंकुरण के बाद सेन्कोर 800 मि.ली की स्प्रे प्रति एकड़ में करें। नदीनों की रोकथाम के साथ मिट्टी में नमी को बनाए रखने के लिए मलचिंग एक प्रभावी तरीका है।
सिंचाई
मिट्टी में नमी के आधार पर सर्दियों में 6-7 दिनों के अंतराल पर और गर्मियों में 4-5 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करें। फूल निकलने की अवस्था सिंचाई के लिए गंभीर होती है। इस अवस्था पर पानी की कमी से फल गिरते हैं जिससे फलों के उत्पादन में कमी होती है। विभिन्न खोजों में यह पाया गया है, कि प्रत्येक पखवाड़े में आधा इंच सिंचाई से जड़ों में नमी ज्यादा होती है जिससे वे अधिक उपज देती हैं।
पौधे की देखभाल

- हानिकारक कीट और रोकथाम

मकौड़ा जूं: यह सारे संसार में पाया जाने वाला कीट है। यह बहुत सारी फसलों जैसे आलू, मिर्चें, दालें, नर्मा, तंबाकू, कद्दू, अरिंड, जूट, कॉफी, निंबू, संतरे, उड़द, काली मिर्च, टमाटर, शकरकंदी, आम, पपीता, बैंगन, अमरूद आदि को नुकसान करता है। नए जन्में और बड़े कीट पत्तों को नीचे की ओर से खाते हैं। प्रभावित पत्ते कप के आकार के हो जाते हैं। नुकसान बढ़ने पर पत्ते झड़ने और सूखना, टहनियों का टूटना आदि शुरू हो जाता है।
यदि खेत में पील जुंएं और भूरी जुंएं का हमला दिखे तो क्लोरफैनापायर 1.5 मि.ली. प्रति लीटर एबामैक्टिन 1.5 मि.ली. प्रति लीटर की स्प्रे करें। यह खतरनाक कीड़ा है जो कि फसल के पैदावार का 80 प्रतिशत तक नुकसान करता है। इसे रोकने के लिए स्पाइरोमैसीफेन 22.9 एस सी 200 मि.ली. प्रति एकड़ प्रति 180 लीटर पानी की स्प्रे करें।


सफेद मक्खी: यह पौधों का रस चूसती है और उन्हें कमज़ोर कर देती है। यह शहद जैसा पदार्थ छोड़ते हैं, जिससे पत्तों के ऊपर दानेदार काले रंग की फंगस जम जाती है। यह पत्ता मरोड़ रोग को फैलाने में मदद करते हैं। इनके हमले को मापने के लिए पीले चिपकने वाले कार्ड का प्रयोग करें, जिस पर ग्रीस और चिपकने वाला तेल लगा होता है।
नुकसान के बढ़ने पर एसेटामिप्रिड 20 एस पी 4 ग्राम प्रति 10 लीटर या ट्राइज़ोफॉस 2.5 मि.ली. प्रति लीटर या प्रोफैनोफॉस 2 मि.ली. प्रति लीटर की स्प्रे करें। 15 दिनों के बाद दोबारा स्प्रे करें।

- बीमारियां और रोकथाम




चितकबरा रोग: इस बीमारी से पौधे पर हल्के हरे रंग के धब्बे पड़ जाते हैं। शुरूआत में पौधे का विकास रूक जाता है। पत्तों और फलों पर पीले, गहरे पीले और पीले-सफेद गोल धब्बे बन जाते हैं। बिजाई के लिए हमेशा तंदरूस्त और निरोगी पौधों का ही प्रयोग करें। मिर्च के साथ एक ही फसल खेत में बार बार ना लगाएं। मक्की या ज्वार की दो लाइनें, मिर्च की हर पांच लाइनें बाद हवा के बहाव के विपरीत बोयें। प्रभावित पौधे उखाड़कर खेत से दूर नष्ट कर दें।
चेपे की रोकथाम के लिए एसीफेट 75 एस पी 1 ग्राम प्रति लीटर या मिथाइल डैमेटन 25 ई सी 2 मि.ली. प्रति लीटर पानी की स्प्रे करें। मिट्टी में दानेदार कीटनाशक कार्बोफिउरॉन, फोरेट 4-8 किलो प्रति एकड़ पनीरी खेत में लगाने के 15 से 60 दिन बाद डालें।

फसल की कटाई
मिर्चों की तुड़ाई हरा रंग आने पर करें या फिर पकने के लिए पौधे पर ही रहने दें। मिर्चों का पकने के बाद वाला रंग किस्म पर निर्भर करता है। अधिक तुड़ाइयां लेने के लिए यूरिया 10 ग्राम प्रति लीटर और घुलनशील K @ 10 ग्राम प्रति लीटर पानी (1 प्रतिशत प्रत्येक का घोल) की स्प्रे 15 दिनों के फासले पर कटाई के समय करें। पैकिंग के लिए मिर्चें पक्की और लाल रंग की होने पर तोड़ें। सुखाने के लिए प्रयोग की जाने वाली मिर्चों की पूरी तरह पकने के बाद ही तुड़ाई करें।
कटाई के बाद
मिर्चों को पहले सुखाया जाता है फिर आकार के आधार पर छांटने के बाद पैक किया जाता है और स्टोर कर लिया जाता है।