कृषि

जलवायु
-
Temperature
30-35°C (max)15-18°C (min) -
Rainfall
600-650mm -
Sowing Temperature
25-32°C (Max) -
Harvesting Temperature
35-40°C
-
Temperature
30-35°C (max)15-18°C (min) -
Rainfall
600-650mm -
Sowing Temperature
25-32°C (Max) -
Harvesting Temperature
35-40°C
-
Temperature
30-35°C (max)15-18°C (min) -
Rainfall
600-650mm -
Sowing Temperature
25-32°C (Max) -
Harvesting Temperature
35-40°C
-
Temperature
30-35°C (max)15-18°C (min) -
Rainfall
600-650mm -
Sowing Temperature
25-32°C (Max) -
Harvesting Temperature
35-40°C
मिट्टी
इसे हर प्रकार की मिट्टी में उगाया जा सकता है। लेकिन उपजाऊ और अच्छे जल निकास वाली मिट्टी में उगाने पर यह अच्छे परिणाम देती है। नमक वाली - क्षारीय या जल जमाव वाली मिट्टी इसकी खेती के लिए उपयुक्त नहीं होती। 6.5-7.5 पी एच वाली मिट्टी में इसे सफलतापूर्वक उगाया जा सकता है।
प्रसिद्ध किस्में और पैदावार
ज़मीन की तैयारी
बिजाई
बीज
फंगसनाशी/कीटनाशी दवाई | मात्रा (प्रति किलोग्राम बीज) |
Carbendazim | 2 gm |
Thiram | 3 gm |
खरपतवार नियंत्रण
बिजाई से 3 सप्ताह बाद पहली और 6 सप्ताह बाद दूसरी गोडाई करें । पैंडीमैथालीन 1 लीटर को 150-200 लीटर पानी में मिलाकर नदीनों के अंकुरण से पहले बिजाई के बाद 2 दिनों में डालें। बिजाई के 6 से 7 सप्ताह बाद हाथों से गोडाई करें।
खाद
खादें (किलोग्राम प्रति एकड़)
UREA |
SSP |
MOP |
10-13 | 100-115 | # |
तत्व (किलोग्राम प्रति एकड़)
NITROGEN | PHOSPHORUS | POTASH |
4-6 | 16-18 | # |
नाइट्रोजन 4-6 किलो (10-13 किलो यूरिया), फासफोरस 16-18 किलो (100-115 किलो एस एस पी) और सल्फर 8 किलो प्रति एकड़ में डालें। सभी खादों को बिजाई के समय मिट्टी में डालें। बीजों और खादों का सीधा संपर्क ना होने दें। मिट्टी की जांच के आधार पर खादों का प्रयोग करें। यदि मिट्टी में पोटाश्यिम की कमी लगे तो पोटाश का प्रयोग करें।
सिंचाई
बिजाई के 3-4 सप्ताह बाद सिंचाई करें। बाकी की सिंचाई बारिश की तीव्रता के आधार पर करें। फूल निकलने के समय और फलियां बनने की अवस्थाएं सिंचाई के लिए गंभीर अवस्थाएं होती हैं, इसलिए अच्छी उपज के लिए इन अवस्थाओं में सिंचाई जरूरी है। अत्याधिक सिंचाई ना करें इससे वानस्पतिक वृद्धि ज्यादा होती है और फाइटोपथोरा और ऑल्टरनेरिया झुलस रोग का खतरा बढ़ता है।
पौधे की देखभाल

- हानिकारक कीट और रोकथाम

फली छेदक : यह एक गंभीर कीड़ा है जो कि 75% तक पैदावार को कम कर देता है। यह पत्तों, फूलों और फलीयों को खाता है। फलीयों के ऊपर गोल आकार में छेद हो जाते हैं।
खेत में हैलीकोवरपा अरमीजेरा के लिए फेरोमोन पिंजरे लगाएं । यदि नुकसान कम हो तो कीड़ों को हाथों से भी मारा जा सकता है। शुरूआत में एच.एन.पी.वी. या नीम का घोल 50 ग्राम प्रति लि. पानी का छिड़काव करें ।
यदि इसका नुकसान दिखे तो फसल को इंडोक्साकार्ब 14.5 एस.सी. 200 मि.ली. या स्पिनोसैड 45 एस.सी. 60 मि.ली. प्रति 100-125 लि. पानी का छिड़काव शाम के समय करें।

- बीमारियां और रोकथाम


कैंकर : यह बहुत सारी फंगस के कारण होती है। इस में तने और टहनियों के ऊपर धब्बे बन जाते हैं और जख्मी हिस्से टूट जाते हैं।
फसली चक्र अपनाएं और बहुत ज्यादा नुकसान की हालत में मैनकोज़ेब 75 डब्लयु पी 2 ग्राम को प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।

इसकी प्रतिरोधक किस्मों का प्रयोग करें। इसको रोकने के लिए फेनाज़ाकुईन 10 % ई सी 300 मि.ली. को 200 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ पर स्प्रे करें।

फाइटोपथोरा झुलस रोग : यह बिमारी शुरूआत में आती है और पत्ते मर जाते हैं। तने के ऊपर भूरे गोल और बेरंग धब्बे पड़ जाते हैं और पत्ता जला हुआ लगता है।
इसको रोकने के लिए मैटालैक्सिल 8% + मैनकोज़ोब 64% @ 2 ग्राम को प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।
फसल की कटाई
सब्जियों के लिए उगाई गई फसल पत्तों और फलीयों के हरे होने पर काटी जाती है और दानों वाली फसल को 75-80% फलीयों के सूखने पर काटा जाता है। कटाई में देरी होने पर बीज खराब हो जाते हैं। कटाई हाथों और मशीनों द्वारा की जा सकती है। कटाई के बाद पौधों को सूखने के लिए सीधे रखें । गोहाई कर के दाने अलग किए जाते हैं और आम तौर पर डंडे से कूट कर गोहाई की जाती है।
कटाई के बाद
कटाई की हुई फसल पूरी तरह से सुखी हुई होनी चाहिए और फसल को संभाल कर रखने के समय प्लस बीटल से बचाएं।