पानी की कमी के चलते इस बार गर्मी में तीसरी फसल लेने का सपना पूरा नहीं हो पाया है। गेहूं-चने की फसल की कटाई के बाद खेत खाली पड़े हैं। अगले माह से मानसून सक्रिय होने के बाद बुआई का सिलसिला शुरू हो जाएगा। ऐसे में कृषि वैज्ञानिकों ने कि सानों को सलाह दी है कि अन्य सीजन की तरह ही किसान जागरुक रहें। दरअसल, खाली खेतों में यह गहरी जुताई करने का बेहतर मौका है। इस प्रक्रिया से मिट्टी में कार्बनिक पदार्थों की बढ़ोत्तरी सहित कई लाभ होंगे। जिससे कि सान अच्छी फसल उत्पादित कर सकेंगे।
जिले में पिछले साल अल्पबारिश के चलते कई क्षेत्र ऐसे रह गए, जहां फसल की बुआई व उत्पादन पर प्रभाव पड़ा लेकि न इस बार मौसम विभाग के अनुसार बेहतर बारिश की संभावना व्यक्त की गई है। इसके चलते खरीफ सीजन में बडे पैमाने पर कि सान बुआई करेंगे। इसके पहले कि सानों को काफी तैयारियों की जरुरत है। कि सानों को खेतों पर ध्यान देना होगा जिससे आने वाला सीजन बेहतर उत्पादन देगा।
वायु संचार भी होगा
कृषि विज्ञान कें द्र गिरवर के कृषि वैज्ञानिक डॉ. एसएस धाकड़ बताते हैं कि गर्मी के इन दिनों में खाली खेतों की कि सान गहरी जुताई करें तो खेत की मिट्टी की अलटी-पलटी हो जाएगी। इस प्रक्रिया से यह लाभ होता है कि मिट्टी ऊपर नीचे आने से खरपतरवार खेत में दब जाते हैं, जो एक समय बाद जैविक खाद के रुप में तब्दील होकर फसल उत्पादन में मदद करते हैं। इससे रासायनिक खाद पर होने वाले खर्च से भी काफी हद तक कमी आ जाती है। कृषि वैज्ञानिक डॉ. धाकड़ ने बताया गहरी जुताई करने से मिट्टी के कटाव भी कम होता है, क्योंकि इससे मिटटी के बड़े-बड़े टुकड़े बनते हैं, जो ज्यादा पानी सोखकर खेत में पानी पहुंचाने का काम करते हैं। बारिश का पानी खेत से बहकर बाहर नहीं जाता। इससे कम पानी की स्थिति में भी फसल के उत्पादित होने में ज्यादा मदद मिलती है। मिट्टी की जलधारण क्षमता तो बढ़ती है वहीं वायु संचार भी ज्यादा होता है।
बीमारियां फैलाने वाले कीट व्याधियों से मिलेगी मुक्ति
गर्मी के दिनों में खेतों में गहरी जुताई करने से मिट्टी के नीचे दबे रहने वाले कीट व उनके अंडे, लार्वा ऊपर आ जाते हैं। तेज धूप के चलते वह नष्ट हो जाते हैं। वहीं परभक्षी पक्षियों द्वारा भी उन पर हमला करना आसान होता है। इससे मिट्टी में बीमारियां फै लाने वाले यह जीव खत्म हो जाते हैं। जिसका सीधा लाभ बेहतर उत्पादन लेने पर कि सानों को मिलता है। उल्लेखनीय है कि गर्मी के दिनों में तीसरी फसल के माध्यम से कि सानों को अतिरिक्त आय प्राप्त करने का अवसर इस बार नहीं मिल पाया है। मूंग सहित अन्य फसल की बुआई के लिए प्रयास कि ए गए लेकि न जलस्रोतों में पानी नहीं होने से खेत खाली ही रह गए। ऐसे में वर्तमान में खाली खेतों को खरीफ फसल के लिए तैयार करना कि सानों के लिए आवश्यक है।
कैप्शन-एक ओर जहां कृषि वैज्ञानिक मिट्टी को उपजाऊ बनाने पर जोर दे रहे हैं, दूसरी तरफ जिले के कई कि सान खेतों में आग लगाकर मिट्टी की उर्वरक क्षमता नष्ट कर रहे हैं। टुकराना जोड़ पर एबी रोड किनारे स्थित खेत को किसान ने आग के हवाले कर दिया।
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स्रोत:नई दुनिया

                                
                                        
                                        
                                        
                                        
 
                            